अर्थशास्त्र सारांष
अर्थशास्त्र सारांष
■ 1.उपभोक्ता का व्यवहार
▪ उपभोक्ता का व्यवाहर सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण की प्रारंभिक कड़ी है और उपभोक्ता का उपभोग समस्त आय पर निर्भर करता है
▪आय व उपभोग के सम्बंध को उपभोग फलन कहा जाता है
▪ उपभोग उसकी आय पर निर्भर है आय बढ़ने पर उपभोग बढ़ता है घटने पर उपभोग घटता है
▪उपभोक्ता व्यवहार उपभोक्ताओं का व्यवहार है जो वे किसी उत्पादन या सेवा को उपयोग करने से पूर्व या पश्चात खरीदने के दौरान करते है
▪उपभोक्ता का व्यवहार क्रेता व उपभोक्ता की संतुष्टि की व्याख्या करता है
■ उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व
1.व्यक्तिगत घटक (उपभोक्ता की आयु, उसकी आवश्यकता, जीवन शैली,व्यवसाय ,लिंग-भेद,व्यक्तित्व, स्वधारण) उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते है
2.आर्थिक घटक (उपभोक्ता की आय,भावी आय की संभावना, साख सुविधा,तरल परिसम्पत्ति, मूल्यस्तर ) आदि उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते है
3.सामाजिक घटक ( उपभोक्ता के व्यवहार को परिवार, संपर्क समूह,प्रभावित करने वाला व्यक्ति,सामाजिक वर्ग )आदि उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते है
4.मनोवैज्ञानिक घटक (उपभोक्ता क्रय व्यवहार को अवबोधन,अनुभव द्वारा सीखना,छवि,प्रेरक तत्व) आदि उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते है
◆ मॉर्शल का उपयोगिता विश्लेषण
▪ यह मापनिय होता है जिसे मुद्रा में मापा जाता है
▪ उपयोगिता को गणात्मक संख्याओं (1,2,3..) से मापा जाता है
▪ व्यक्ति किसी वस्तु के उपभोग के लिए जितना अधिक द्रव्य(मुद्रा) देने को ततपर है उस वस्तु की उतनी अधिक उपयोगिता होगी
▪ मॉर्शल ने उपयोगिता के तीनों प्रभाव आय प्रभाव,कीमत प्रभाव व प्रतिस्थापन प्रभाव की उपेक्षा की है
◆ हिक्स का अधिमान वक्र (उदासीन) विश्लेषण
▪ अधिमान वक्रो का सर्वप्रथम प्रयोग एजवर्थ ने किया जबकि अधिमान वक्रो की सहायता से विश्लेषण हिक्स व ऐलन ने किया तथा सलूट्स्की ने इसका वैज्ञानिक प्रस्तुतिकरण किया
▪ अपनी पुस्तक वेल्यू एंड केपिटल में उदासीन वक्रो की सहायता से मांग वक्र की विस्तृत व्याख्या की
▪ इसमें संतुष्टि केवल तुलना की जा सकती है की दूसरी वस्तु से संतुष्टि समान है ,कम है या ज्यादा है
▪ अधिमान वक्र उन समान सयोगों को बताता है जो समान संतुष्टि को बताता है
▪ MRS प्रतिस्थापन की की सीमांत दर को बताता है
▪ अधिमान वक्रो का ढाल बाए से दाएं गिरता हुवा होता है मूल बिंदु उननतोदर होता है उचा अधिमान ऊची संतुष्टि को दर्शाता है
◆ जोखिम में अनिश्चितता की स्थिती में उपभोक्ता का व्यवहार
▪ उपभोक्ता द्वारा ऐसे अंको का निर्माण किया जाता है जिसमे वह परिस्थिति की अनिश्चितता के अनुमान का चयन किया जाता है
▪ एक विवेकशील उपभोक्ता जोखिम और अनिश्चितता की स्थति में निर्णय लेता है वह यह निर्णय प्रत्याशित उपयोगिता के आधार पर लेता है
▪ प्रत्याशित उपयोगिता का क्रम रेखीय होता है उपयोगिता का अनुमान बदलता रहता है
■ बर्नौली परिकल्पना
▪बर्नौली परिकल्पना उपभोक्ता का नव प्रतिष्ठित सिद्धात पर आधारित हैं
▪ उपभोक्ता उस स्थति में भी जुवा नही खेलता तथा ऐसी बाजी (बेट) नही लगता जहा जितने व हारने की संभावनाएं बराबर बराबर (50:50) हो
▪ कारण ?
उत्तर -:- इस मत को समझाने में मत दिया -लोग अपनी समस्त आय को दाव पर लगाने को तैयार नही होते क्योकि ज्यो ज्यो आय में बढ़ोतरी होती है मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है
-:- मुद्रा से उनके मौद्रिक लाभ की गणितीय प्रत्यासा बहुत अधिक है इसलिए व्यक्ति Fairbet / Games /Obeal को स्वीकार नही करता है Fairbet जिसमे लाभ हानी की सम्भावना बराबर होती है
▪ बर्नौली ने इस विरोधाभास को "सेंट पीटर्सबर्ग विरोधाभास"कहा है
▪व्यक्ति का उपयोगिता फलन जोखिम टालने के कारण नतोदर होता है
■ (N M)थ्योरी
▪जोखिम चुनाव से प्रत्याशित उपयोगिताओ की गणन संख्या (Cordinal) माप विधि का विकास किया
▪ इस तरह के जोखिम चुनावों लाटरी ,जुए आदि के सम्बंध में पाया जाता है इसलिए उन्होंने एक उपयोगिता सूचकांक की गणना की जिसे N --M उपयोगिता सूचकांक कहा गया
▪ इस सूचकांक में दोनों का मान एक के बराबर होता है
UB = UAPA + (1-PA)UC = इसमे उपभोक्ता तटस्थत रहेगा
UB > UAPA + (1-PA)UC = इसमे उपभोक्ता पैसा लगायेगा
UB <UAPA + (1-PA)UC = इसमे उपभोक्ता पैसा नही लगाएगा
▪ N M थ्योरी का सम्बंध सूचक से होता है इसमें सूचकांक तैयार किये जाते है इसमें जोखिम उठाना हैं या नहीं इसका सूचकांक बनाते है इसमे दोनों का मान 1 होता है
▪ खतरनाक विकल्पों से अपेक्षित उपयोगिता के कार्डिनल मापन की विधि विकसित की। इसके लिए, उन्होंने एक यूटिलिटी इंडेक्स बनाया जिसे N-M उपयोगिता सूचकांक कहा जाता है।
▪इसका उपयोग जुवा खेलने लाटरी लगाने,आदि में दो या दो से अधिक विकल्पों के सम्बंध में भविष्यवाणी करता है
■ फ्राइडमैन-सैवेज परिकल्पना
▪ फ्रीडमैन-सैवेज ने अनिश्चित तथा जोखिम की स्थिति में उपभोक्ता के व्यवहार को दर्शाता है
▪ कुछ लोग बीमा कराने तथा जुआ खेलने दोनों में संलग्न होते हैं और इस तरह वे जोखिम से बचने का भी प्रयास करते हैं और जोखिम उठाते भी हैं क्यों ?
उतर :- इसका विश्लेषण N-M विधि के विस्तार के रूप में फ्रीडमैन-सैवेज परिकल्पना द्वारा प्रस्तुत किया गया है
-:- फ्रीडमैन-सैवेज के अनुसार
एक निश्चित स्तर से नीचे की आय के लिए मौद्रिक आय की सीमांत उपयोगिता घटती है (बीमा करवाते है) उस स्तर और उसके ऊपर एक निश्चित स्तर के बीच की आय के लिए बढ़ती है और उसके ऊपर की आय के लिए वह पुनः घटने लगती है
▪ शून्य (0) एवं एक (1) के मध्य संभावित उपयोगिता होती है 1 > P > O एक से ज्यादा नहीं और शून्य से कम नहीं होती है
▪ निश्चित आय वर्ग (सीमान्त उपयोगिता घटती है) बीमा करवाते है
▪ मध्यम आय वर्ग (सीमान्त उपयोगिता बढ़ती है) जुवा खेलते है
▪ उच्य आय वर्ग (सीमान्त उपयोगिता घटती है) जोखिम नही उठाते जब तक अनुकूल संभावना ना हो
■ मार्कोविट्ज़ परिकल्पना
▪ मार्कोविट्ज़ परिकल्पना ,फ्रीडमैन-सेवेज परिकल्पना का एक सुधार है क्योंकि इसमें एक व्यक्ति की निरपेक्ष आय के स्थान पर उसकी वर्तमान आय पर ध्यान दिया जाता है
▪ मार्कोविट्ज़ परिकल्पना में यह मत व्यक्त किया गया है कि व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब बीमा कराने अथवा दाव लगाने के प्रति उसका व्यवहार समान होता है
▪मार्कोविट्ज़ ने निरपेक्ष आय के बदले वर्तमान आय पर ध्यान दिया वर्तमान स्तर में छोटी वृद्धि के कारण मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता में वृद्धि होती है
■ स्लटस्की प्रमेय
▪ स्लटस्की प्रमेय कीमत में होने वाले परिवर्तन के आय प्रभाव एवं प्रतिस्थापन प्रभाव की व्याख्या करता है
√√ कीमत प्रभाव = आय प्रभाव +प्रतिस्थापन प्रभाव
▪ समीकरण के प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित थे
1.प्रतिस्थापन प्रभाव सदैव ऋणात्मक होता है
2. आय प्रभाव धनात्मक तथा ऋण आत्मक हो सकता है
3. आय प्रभाव धनात्मक अथवा ऋणात्मक होना प्रमुख रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि उपभोक्ता वस्तु विशेष की कितनी मात्रा का क्रय करता है
■2.Consumer and producer’s surplus
▪उपभोक्ता की बचत की विचारधारा के प्रतिपादक फ्रांसीसी अर्थशास्त्री ड्यूपीट ने 1844 में किया
▪ मार्शल ने 1879 में इसे क्रमबद्ध व वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया
▪उपभोक्ता क्या देना चाहता है और क्या देता है उसका अंतर ही बचत है
▪ मार्शल का बचत विश्लेषण
- बचत को उपयोगिता विश्लेषण द्वारा समझाया
- उपभोक्ता की बचत की व्याख्या में सीमांत उपयोगिता हास्यमान को आधार बनाया
- वस्तु की कीमत में कमी होने पर उपभोक्ता की बचत में वृद्धि
- कीमत वृद्धि होने पर उपभोक्ता की बचत में कमी होती है
▪ हिक्स विधि (ततत्स्थता व उदासीन वक्रो द्वारा)
- उपभोक्ता अतिरिक्त का विचार विलासिता की वस्तुओं पर लागू नहीं होता जबकि टाजिग के अनुसार लागू होता है
- हिक्स ने अपने लेख"The Four Consumer Surplus" में उपभोक्ता की विचारधारा का पुनर्निर्माण किया है
- अपनी परिवर्तित विचारधारा को प्रोफेसर हिक्स ने समतुल्य परिवर्तन EV तथा क्षतिपूरक परिवर्तन CV का प्रयोग किया है
▪ उत्पादक की बचत =
वास्तविक मूल्य जिस पर वस्तु की पूर्ति की जाती है - न्यूतम मूल्य जिस पर उत्पादक अपनी वस्तु की पूर्ति करना चहाता है
▪ आर्थिक अधिशेष = उपभोक्ता अधिशेष' +उत्पादक अधिशेष' का कुल जोड़ है
▪ उपभोक्ता अधिशेष = खरीददारों के लिए मूल्य - खरीदारों द्वारा भुगतान की गई राशि।
▪ निर्माता अधिशेष = उत्पादकों द्वारा प्राप्त राशि - उत्पादकों के लिए लागत।
▪ आर्थिक अधिशेष = उपभोक्ता अधिशेष + निर्माता अधिशेष
या (खरीददारों के लिए मूल्य - खरीदारों द्वारा भुगतान की गई राशि) + (राशि विक्रेताओं द्वारा प्राप्त - विक्रेताओं के लिए लागत)।
है
▪ उपभोक्ता की बचत =वास्तविक मूल्य जिस पर वस्तु की पूर्ति की जाती है -न्यूतम मूल्य जिस पर उत्पादक अपनी वस्तु की पूर्ति करना चहाता है
▪सीमान्त तुष्टिगुणो का योगफल - (कीमत ×खरीदी गई इकाइयों की संख्या)
€ MU -(P × No Of Unit)
C.S =TUx - P.x. या
C.S =€MUx - P.x
▪C. S सीमान्त = उपयोगिता का नीचें का भाग -कीमत रेखा का उपर का भाग
▪मार्शल की पुस्तक प्रिंसीपल आफ एकॉनॉमिस है
▪हिक्स ने बचत वक्र को IS वक्र व कीमत रेखा के आधार पर समझाया था
■ 3.हिक्स व सलुत्स्की का कीमत प्रभाव
▪ अधिमान वक्र विश्लेषण में कीमत में परिवर्तन के दो प्रभाव पड़ते है आय प्रभाव व प्रतिस्थापन प्रभाव
● कीमत प्रभाव क्या है ?
▪किसी एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन पर उस वस्तु की क्रय शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है कीमत प्रभाव है
- कीमत बढ़ना - संतुलन ऊंचे वक्रो पर चला जाता है
- कीमत घटना - संतुलन नीचे वक्रो पर चला जाता है
नोट - मौद्रिक आय स्थीर है
▪ कीमत प्रभाव आय प्रभाव व प्रतिस्थापन प्रभाव का मिश्रण है
▪ किसी वस्तु की कीमत बढ़ने पर संतुष्टि नीचे वक्रो पर चली जाती है
▪ किसी वस्तु की कीमत घटने पर संतुष्टि ऊंचे वक्रो पर चली जाती
● आय प्रभाव क्या है ?
▪ उपभोक्ता की आय में परिवर्तन के कारण मांग पर जो प्रभाव पड़ता है आय प्रभाव कहते है
▪ आय प्रभाव धनात्मक होता हैं (+)
- आय बढ़ने पर बढ़ता है
- आय घटने पर घटता है
नोट :- हीन वस्तु में आय बढ़ने पर मांग कम होती है
श्रेष्ठ वस्तु में आय बढ़ने पर ज्यादा मांग होती है
▪ जिस तरफ वस्तु का झुकाव होता है वह वस्तु श्रेष्ठ होती है और उसके विपरीत वाली वस्तु हीन होती है
● प्रतिस्थापन प्रभाव क्या है ?
▪दो वस्तुओं की कीमत इस तरह बदले की पहले से अछि स्थति ना हो और ना ही पहले से बुरी स्थति हो बस खरीद बदल जाती है उपभोक्ता एक ही वक्र पर बने रहते है
▪प्रतिस्थापन प्रभाव सदैव ऋणात्मक होता है ∆Q/ ∆P
● हिक्स का कीमत प्रभाव
▪सामान्य वस्तु में कीमत प्रभाव को आय प्रभाव व कीमत प्रभाव में प्रयोग करने की विधि हिक्स ने दी थी
- नीचे वक्र से ऊंचे वक्र पर जाना कीमत प्रभाव है
- उसी वक्र पर ऊपर- नीचे होना प्रतिस्थापन प्रभाव है
- नीचे वक्र के निम्न बिंदु से ऊपर के वक्र पर जाना आय प्रभाव है
▪हिक्स ने स्वतंत्र आय क्षतिपूर्ति परिवर्तन द्वारा व्याख्या की [ मौद्रिक आय को इतना परिवर्तन करो कि संतुष्टि पूर्व स्तर पर बनी रहे]
▪ सलुत्स्की :- आय क्रय शक्ति के हिसाब से बदलता है [आय को इतना कम करो कि पहले जितना सयोग मिलता रहे ] आय को स्थिर माना है
4.Price and output determination in imperfect competition
▪श्रीमती जॉन रॉबिंसन ने अपूर्ण प्रतियोगिता कहा है
▪ चेम्बरलींन एकाधिकृत प्रतियोगिता कहा है
▪ अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति होती है जिसमें पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताओं की कमी होती है अपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं की मांग पूर्णयतय लोचदार नही होती
▪ A. P लर्नर के अनुसार "अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में विक्रेताओं की वस्तु को गिरते हुए मांग वक्र का सामना करना पड़ता है"
■अपूर्ण प्रतियोगिता के प्रकार
1.दव्याधिकार
2.अल्पाधिकार
3.एकाधिकृत प्रतियोगिता
■अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत निर्धारण
- फर्म अपना उत्पादन व मूल्य इस प्रकार निर्धारित करती है कि उसे अधिकतम का लाभ प्राप्त हो सके
- अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म वहा संतुलन में होती है जहाँ MR = MC होती है तथा वही कीमत का निर्धारण करती है
- अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की मांग रेखा (AR Curve) तथा सीमान्त आगम रेखा (MR Curve) नीचे की तरफ गिरती हुई होती है
- अपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत मांग की रेखा (AR Curve) एकाधिकार मांग रेखा (AR) से अधिक लोचदार होती है जिसके कारण अपूर्ण प्रतियोगिता में एकाधिकार की तुलना में MC तथा AR में कम अंतर होता है
■ एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता :- बाजार की वह स्थिति जिसमे बहुत सारे क्रेता बहुत सारे विक्रेता होते है तथा जिसकी वस्तु उत्पादन के निकट स्थानापन्न पाये जाते है"
उदाहरण. LUX साबुन की जगह हमाम साबुन का प्रयोग करना स्थानापन्न है एक कि जगह दूसरी वस्तु को प्रतिस्थापित करना
🔰विशेषताएं
1.एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में बहुत सारे क्रेता पर बहुत सारे विक्रेता पाए जाते हैं लेकिन पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में इनकी संख्या कम होती है
2.प्रत्येक वस्तु के निकट स्थानापन्न वस्तु पाई जाती है
3.फर्म का प्रवेश एवं बहिर्गमन पूर्ण स्वतंत्रता होती है
4.क्रेताओं को वस्तु के बारे में पूर्ण ज्ञान नहीं होता है वस्तु का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है
5.एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में गैर कीमत प्रतियोगिता पाई जाती है
6.दीर्घकाल में समूह संतुलन पाया जाता है
7.इसमें विज्ञापन की आवश्यकता नहीं होती है
8.परिवहन लागते फर्मे स्वयं वहन करती हैं
9.दीर्घकाल में सामान्य लाभ प्राप्त होता है
10.AR व MR दोनों वक्र लोचदार होते हैं
11.अतिरिक्त क्षमता एकाधिकारात्मक में पाई जाती है
किन्तु इन रूपों में प्रमुख हैं:
1. द्वि-विक्रेताधिकार या द्वियाधिकार (Duopoly):
- जब बाजार में वस्तु के केवल दो विक्रेता ही पाये जायें तो ऐसी स्थिति को द्वि-विक्रेता अधिकार कहते हैं
- वस्तु के विक्रेता समान आकार के हों और वे एक जैसी वस्तु बेचते हों तो ऐसी स्थिति में यदि उनके बीच गलाकाट प्रतियोगिता होगी तो दोनों विक्रेताओं के लाभ समाप्त हो जायेंगे ।
2. अल्पाधिकार (Oligopoly):
➖ बाजार में कुछ बड़े विक्रेता तथा अनेक क्रेता होते है (बहुत अधिक विक्रेता नही होते)
➖ विक्रेता में आपस मे निर्भरता होती है
➖ संघर्षपूर्ण प्रतियोगिता होती है
➖ मांग वक्र की अनिश्चितता होती है
➖?व्यापार गुटो का निर्माण होता है
■ व्यापार शेयर गठबंधन :- जिनमे लागत एक जैसी होती है AR, MR एक जैसे हो लाभ समान हो समरूप उत्पादन हो
■ केंद्रीय कार्टेल : -इसमे लागत वक्र अलग होता है AR, MR एक जैसे होते है समरूप वस्तु होती है लागत बढ़ती है तो लाभ कम होता जाता है
● द्वयाधिकार
-द्वयाधिकार अल्पाधिकार का सबसे सरलतम रूप है
-द्वयाधिकार में दो विक्रेता तथा उत्पादन लगभग समान रहता है
-दोनों विक्रेताओं की स्वतंत्र उत्पादन नीति होती है
-द्वयाधिकार कीमत निर्धारण करते समय प्रतियोगिता की कीमत का ध्यान रखते है
-कीमत युद्ध की संभावना के कारण कीमत स्थायित्व रखता है
■ कुनों मॉडल -- प्रत्येक विक्रेता प्रतिद्वंद्वी की [पूर्ति स्थीर] मान लेता है
■ एजवर्थ मॉडल -- प्रत्येक विक्रेता प्रतिद्वंद्वी की [कीमत को स्थीर] मान लेता है
■ स्टेकलम्बर्ग मॉडल -- इनके अनुसार समस्या का हल नेता करता है तथा अनुयायी इसे अपनाते है
● एकाधिकारात्म प्रतियोगिता में कीमत व उत्पादन का निर्धारण
1.अल्पकाल में कीमत व उत्पादन का निर्धारण में प्रथम शर्त MR =MC होना आवश्यक हैं
(क)अधिसामान्य लाभ की स्थिति में AR > AC
(ख)सामान्य लाभ की स्थिति में AR = AC
(ग)हानि की स्थिति में AR < AC
2.दीर्घकाल में कीमत व उत्पादन का निर्धारण
LAC =SAC = AR साम्य की स्थिति में
▪कुल आगम व कुल लागत रेखा विधि द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण
▪सम विच्छेद बिंदु =सामान्य लाभ = न लाभ न हानि की स्थति
▪इस विधि के अनुसार फर्म का साम्य उस बिंदु पर होगा जहा पर कुल आगम वक्र TR तथा कुल लागत वक्र TC के बीच मे दूरी अधिकतम होगी
■ प्रमुख मॉडल
▪क़ुरनो मॉडल - (1838) में दिया गया था यह उत्पादन स्थिरता का मॉडल जिसमें MR = MC होता है
▪ब्ररट्रेंड (1883) गणितज्ञ
कीमत मॉडल प्रतिद्वंद्वी की पूर्ति को स्थिर मानता है यह बंद मॉडल है
▪एजवर्थ मॉडल (1897) स्वतंत्र निर्णय मॉडल बंद मॉडल है कीमत में अस्थिरता उत्पादन क्षमता सीमित है
▪स्ट्रेकेल मॉडल (1952) द्वि अधिकारिता मॉडल है A नेता B अनुयायी
▪हॉटलीग मॉडल (1929) - भौगोलिक स्थिति के कारण वस्तु विभेद करता है
▪पाल ए स्वीजी (1939) - मांग वक्र मोडयुक्त कीमत दृढ़ता से सम्बंधित है
▪एक ही उद्योग में स्वतंत्र फर्मो के संगठन को कार्टेल कहते है
▪विकुचित मांग मॉडल :-चेम्बरलींन के प्रत्यासीत मांग वक्र (dd) तथा बाजार मांग वक्र DD से हुई है
▪एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता बाजार का वह स्वरूप है जिसमें बहुत सी छोटी फर्मे होती है और उनमें से प्रत्येक फर्म मिलती - जुलती वस्तुएं बेचती है परंतु वस्तुएं एक रूप नहीं होती वस्तुओं में थोड़ी भिन्नता या भेद होता है
■5. Macroeconomic variables (समष्टि के आर्थिक चर)
▪ समष्टि के आर्थिक चर वे चर है जिनका समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर अध्ययन किया जाता है ये चर समष्टि अर्थशास्त्र की विषय सामग्री के महत्वपूर्ण भाग है
1.अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग, कुल बचत,कुल निवेश
2.सकल मांग
3.सकल पूर्ति
4.राष्ट्रीय आय
5.अर्थव्यवस्था में रोजगार का स्तर
▪ किसी भी सिद्धांत के चार अंग होते हैं
-::- चल राशियां Variables
-::- मान्यताएं Assumptions
-::- परिकल्पनाएं Hypotheses
-::- निष्कर्ष
▪ चर वे होते हैं जिनका समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर अध्ययन होता है जो विभिन्न संभावित मूल्यों को ग्रहण कर सके ऐसा सिद्धांत में चर ही मूल तत्व है
🔰 वर्गीकरण
1.स्वतंत्र चलराशी व आश्रित चलराशी
2.स्टॉक व प्रवाह
3.प्रत्यासित व वास्तविक चलराशी
4.बाह्य जात और आंतरिक चलराशीया
बचत व विनियोग उपभोग, मुद्रा की पूर्ति, राष्ट्रीय आय, रोजगार ,पूंजी सभी समष्टिगत चर है
🔰 स्वतंत्र चर राशियां व आश्रित चलराशी
▪स्वतंत्र चर -:- वे चलराशी जिस पर अन्य चर का प्रभाव नहीं पड़ता है तथा जिसका मूल्य दूसरों पर निर्भर नहीं करता है स्वतंत्र चलराशी कहलाती हैं
▪ आश्रित चर -:- वे चर राशिया जिस पर अन्य चर का प्रभाव पड़ता है तथा इसका मूल्य दूसरों पर निर्भर करता है आश्रित चर कहलाते हैं
↪ फलन D = f(P) वस्तु की मांग (आश्रित चर) =फलन (वस्तु की कीमत ) जो स्वतंत्र चर है
▪ मांग कीमत का फलन है अर्थात वस्तु की मांग कीमत पर निर्भर करती है
▪ कोई भी वस्तु सदैव स्वतंत्र नहीं होती व सदैव आश्रित नहीं होती इनका परिस्थिति अनुसार निर्धारण होता है
▪ उत्पादन का नियम में रोजगार की मात्रा (परतंत्र) वास्तविक मजदूरी (स्वतंत्र चर) है
🔰 स्टॉक व प्रवाह
▪ स्टॉक - किसी समय बिंदु को बताता है (Ponit of Time)
▪ प्रवाह - यह समय अवधि को बताता है (Peried Of Time)
नोट 🔜 कीमत एक ऐसा चर है जो ना तो स्टॉक है ना प्रवाह है
कीमत उपभोग की इकाइयों के बारे में बताती है उत्पादन सामान्य कीमत को बताता है
■ स्टॉक ■ प्रवाह
➖ संपति ➖ आय/ राष्ट्रीय आय
➖ श्रमबल (शक्ति) ➖ बजट घाटा
➖ पूंजी ➖ आयात निर्यात मात्रा
➖ मुद्रा की मात्रा(पूर्ति) ➖ मुद्रा का व्यय
➖ बैंक जमा ➖ बजट घाटा
➖ माल सूची ➖ विनियोग
➖ विदेशी मुद्रा भंडार ➖ पूंजी निर्माण/ ब्याज
➖ बचते ➖ बचत
➖ बेरोजगारों की संख्या ➖ समुद्र से तेल निकालना
➖ भारत की जनसंख्या ➖ लोहे का उत्पादन
➖ जयपुर से दिल्ली के बीच की दूरी➖ मुद्रा पूर्ति में परिवर्तन
➖ अब तक प्राप्त खनिज ➖ पूंजी पर ब्याज
➖ टैंक का पानी ➖ टैंक से रिसता पानी
➖ भारत में राष्ट्रीय पूंजी ➖ बजट घाटा
❗झील में जब तक पानी है स्टॉक कहलाता है जबकि बहता पानी प्रवाह कहलाता है
🔰 3 बहिर्जात व अंतर्जात चलराशी
■ वे चलराशी जो मॉडल बनाने से पहले निर्धारित होती है या वह चल राशि है जो किसी प्रणाली अथवा पद्धति पर बाहरी दशाओं द्वारा अधिरोपित की गई हो बहिर्जात चलराशी कहलाती है
■ अंतर्जात चलराशी
कार्य प्रणाली के अंदर से उदय होती है किसी उद्योग में एकाधिकार अंतर्जात चल राशि होती है जब पैमाने की बचते प्राप्त होने से बड़ी फर्मे छोटी फर्मो को व्यवसाय से बाहर निकाल दे तो अंतर्जात चलराशि हैं
■ एकाधिकार बाह्यय जात जब होता है जब सरकार द्वारा किसी फर्म पर कानूनी एकाधिकार का अधिकार आरोपित किया जाता है जैसे भारत रेलवे
■ यदि वाह्य जात चलराशीयो में
परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव अंतर्जात चल राशियों पर होता है
▪ आमदनी बढ़ने से मांग बढ़ती है कीमत बढ़ने से वस्तु की मात्रा बढ़ती है
▪ बहिर्जात राशियों में आय बढ़ती है व अंतर्जात चलराशी में मांग,कीमत,पूर्ति बढ़ती है
🔰 4.प्रत्यासित व वास्तविक चल राशियां
▪ वे चल राशियां जो पूर्व नियोजित हो प्रत्याशित राशी कहलाती है
▪ वास्तविक चल राशियां -:- वह चल राशि जो कार्य समाप्ति के बाद प्राप्त होती है
▪ किसी चलराशी का प्रत्यासित मूल्य वह है जिसका कोई सम्बंधित व्यक्ति ओर संगठन आशा करता हो प्रत्यासा करता हो
▪ प्रत्यासित बचत वह राशी है जिसे बचत करने को उत्सुक हैं इसलिए इसे ऐच्छिक या आयोजित चल राशि भी कहते है
▪ वास्तविक चल राशियां -:- वास्तविक चल राशि निवेश उस स्थिति में प्रत्यासित हो सकता है जब भवन निर्माण की प्रक्रिया लंबित हो गई हो इसमे वास्तविक बचत, आय,उपभोग इत्यादि लेते है
▪ वास्तविक बचत =वास्तविक निवेश (लेकिन प्रत्यासित बचत प्रत्यासित निवेश के बराबर नही होती है ) बचत > निवेश
▪ समष्टि आर्थिक विश्लेषण का अध्ययन कई कारणों से महत्वपूर्ण है, जो निम्नलिखित दिये गये हैं :
➖ अर्थशास्त्र की कार्यप्रणाली को समझाने में सहायक
➖ आर्थिक नीति निर्धारण में सहायक
➖ अंतर्राष्ट्रीय तुलना में सहायक
➖ आर्थिक नियोजन में सहायक
➖ सामान्य बेरोजगारी के विश्लेषण में सहायक
➖ मौद्रिक समस्याओं के विश्लेषण में सहायक
➖ व्यापार चक्रों के विश्लेषण में सहायक
➖ व्यष्टि अर्थशास्त्र के विकास में सहायक
■6.Consumption hypothesis उपभोग परिकल्पना
1.निरपेक्ष आय परिकल्पना किन्स 1936
2.सापेक्ष आय परिकल्पना ड्यूजन बरी 1949
3.जीवन चक्र परिकल्पना मोदी ग्लानि बबर्ग ,एंडो MBA 1950
4.स्थाई आय परिकल्पना मिल्टन फ्रीडमैन 1957
▪ किसी एक ही पक्ष को लिए किया गया वस्तु का निर्णय कहलाता निरपेक्ष और सभी पक्षों से किया गया वस्तु का अध्ययन
कहलाता सापेक्ष कथन कहलाता है
🔰 किन्स की निरपेक्ष आय परिकल्पना
🔝जो अनुपात अल्पकाल में गैर आनुपातिक(APC #MPC) होती है वह अनुपात दीर्घकाल में बराबर बराबर हो जाता है इसके
-:- 4 प्रमुख कारण है
1.व्यक्ति गांव से शहर में पलायन करता है
2.व्यक्ति वर्धवस्था में कमाता नही है फिर भी उपभोग ज्यादा होता
3.नए अविष्कारो के कारण उपभोक्ता के व्यवहार में नई नई वस्तुएं जुड़ती जाने के कारण
4.व्यक्ति की परिसम्पत्तियों की कीमत में वर्द्धि होने पर उसका उपभोग बढ़ जाता है
▪ कीन्स के उपभोग फलन में दीर्घकाल में स्वचलित उपभोग(a) समाप्त हो जाता है
▪ किन्स के उपभोग फलन में उत्क्रमणीयता पाई जाती है जैसे जैसे आय में वृद्धि होती है उपभोग में आनुपातिक रूप से कम वृद्धि होती है इसे किन्स का मनोवैज्ञानिक नियम कहा है
▪ MPC =∆C/∆Y =b सीमान्त उपभोग प्रवति (आदत)
▪ सीमान्त उपभोग प्रवर्ति एक अतिरिक्त इकाई आय बढ़ाने पर उपभोग में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त उपभोग परवर्ती कहते है उपभोग व आय के परिवर्तन का अनुपात को MPC कहलाता है
▪.उपभोग वक्र के ढाल को सीमान्त उपभोग परवर्ती कहते है
▪ अल्पकाल में MPC स्थिर होती है तथा जैसे जैसे आय बढ़ती है वैशे APC गिरती है
◆ बचत का विरोधाभास :- यदि एक व्यक्ति बचत करता है तो वरदान साबित होता है अगर सभी बचत करे तो अभिशाप साबित होता है
▪ किन्स के अनुसार राष्ट्रीय आय का निर्धारण दो तरह से होता है
C + I रेखा 45° रेखा को काटता है [S =I हो]
▪ किन्स का उपभोग फलन चालू प्रयोज्य आय का फलन है
C = a+byd
▪ Yd =Y-T आय में से टैक्स चुकाने के बाद बची खर्च योग्य आय
"■ सापेक्ष आय परिकल्पना -ड्यूजन बरी 1949
▪ यह परिकल्पना के अनुसार व्यक्ति उपभोग के सम्बंध में अपनी आय के साथ साथ पड़ोसी या आसपास रहने वाले व्यक्तियों के उपभोग व्यय से प्रभावित होता है
▪ ड्यूजन बरी ने इस उपभोग ढांचे को सामाजिक आचरण कहा है
▪ आय के स्तर गिरने से उपभोग के स्तर में कमी आती है परंतु यह आय की तुलना में कम होती है
▪ उपभोक्ता अपने स्तर को बनाये रखने के लिए पिछली बचतों का प्रयोग करता है
▪ दीर्घकाल में APC=MPC होता है इसमे उल्टक्रमनियता नही पाई जाती है
▪ रेचिट इफेक्ट(अनुवर्ती प्रभाव) इसमे आय बढ़ने के साथ साथ उपभोग में ज्यादा कमी नही आती है इसे रेचिट् प्रभाव कहते है जैसे साइकल के कुत्ते जो आगे तो बढ़ाता है पर वापस नही आने देता
▪ प्रदर्शनकारी प्रभाव को बेबलीन प्रभाव कहा जाता है
▪ चालू समय मे निरपेक्ष आय के अतिरिक्त पिछली अवधि की आय का भी उपभोग को प्रभावित करता है
▪ प्रदर्शनकारी प्रभाव ड्यूजन बरी में दिया इसकी Book इनकम,सेविंग,एण्ड थ्योरी आफ कंज्यूमर बिहेवियर 1949 में परिकल्पना दी जिसमे उपभोग ढांचे को सामाजिक आचरण कहा
▪ उपभोग व आय पर समय का प्रभाव नही पड़ता है
■ जीवन चक्र परिकल्पना 1950 (मोदी ग्लानी, बम्बर्ग, प्रो एंडो)
▪ इस परिकल्पना के अनुसार उपभोग उपभोक्ता के पूरे जीवन की प्रत्याशित आय का फलन है
▪ इस परिकल्पना में यह कहा कि व्यक्ति वर्तमान उपभोग ,वर्तमान आय का फलन नही है बल्कि सम्पूर्ण जीवन की प्रत्याशित आय पर निर्भर करता है
▪ उपभोक्ता की सुद्ध परिसम्पत्तियों उसकी बचतों का परिणाम है उसको परिसम्पत्ति का कुछ भाग भी विरासत में नही मिलता ओर ना ही वह बचो को छोड़ कर जाता है
▪ 15 वर्ष की उम्र से कमाना प्रारंभ करता है 65 वर्ष तक कमाता है जीवन प्रत्यासा 75 वर्ष मानता है
1.▪ प्रारम्भ में उसका व्यय उसकी आय से अधिक होता है अर्थात अबचत करता है
2.▪ मध्यवर्ती वर्षो में आय उसके उपभोग से ज्यादा होती है इस अवधि में बचत करता है
3.▪अंतिम वर्षो में उपभोग आय से ज्यादा होता है अबचत करता है
■ स्थाई आय परिकल्पना मिल्टन फ्रीडमैन 1957
▪ इसे मिल्टन फ्रीडमैन ने प्रस्तुत किया इसमे प्रत्यासी आय परिकल्पना कहा जाता है
▪ मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार भविष्य में आय की प्रत्यासा भी उपभोग क्रिया को प्रभावित करती है
▪ मिल्टन फ्रीडमैन में उपभोग और आय को स्थाई और अस्थाई रूपो में विभाजित किया है
▪ नोबल पुरुष्कार विजेता मिल्टन फ्रीडमैन को 1976 में पुरुस्कार मिला
◆उपभोग का cm =cp +ct
मापित उपभोग =स्थाई आय +अस्थाई उपभोग
◆ आय का उपभोग ym =yp =yt
मापित आय = स्थाई आय =अस्थाई आय
yp जो सरकार से मिलती है
yt जो आस्मिक कभी कभी मिलती है
▪स्थाई उपभोग स्थाई आय का अनुपात है (ब्याज दर ,गैर मानवीय सम्पति,मानवीय सम्पति का अनुपात,उपभोक्ता की प्रवर्ति) Cp yp का स्थिर अनुपात है जिसके कारण सम्पति की उपेक्षा वह (w) उपभोग व्यय बढ़ाता है
▪ मिल्टन फ्रीडमैन कहता है कि अल्पकाल में मापित आय अस्थाई आय से जुड़ी होती है जो कभी धनात्मक तो कभी ऋणात्मक होती रहती है लेकिन दीर्घकाल में अस्थाई आय नही पाई जाती यदि लंबे समय तक अस्थाई आय मिलती रहे तो वह स्थाई आय का भाग बन जाता है
■ 7. गुणक की अवधारणा
▪गुणक का सिद्धांत सर्वप्रथम " F. A. काहन" ने 1931 में रोजगार गुणक का प्रतिपादन किया
▪जब किसी अर्थव्यवस्था में विनियोग किया जाता है तो उससे आय में उतनी ही वृद्धि नही होती जितना विनियोग बढ़ाया है बल्की विनियोग से कुछ गुणा अधिक / कम वृद्धि होती है ऐसा गुणक प्रभाव के कारण होता है
▪गुणक वह संख्या है जिसमे विनियोग के परिवर्तन का गुणा करने पर राष्ट्रीय आय में परिवर्तन मालूम होता है
[विनियोग का परिवर्तन =राष्ट्रीय आय में परिवर्तन]
सूत्र ∆Y = K ∆ I या K = ∆Y/∆I
Y -आय को दर्शाता है
∆ -परिवर्तन को दर्शाता है
K -गुणक को कहते है
I -विनियोग को दर्शाता है
♻समीकरण -
∆Y -आय में परिवर्तन को प्रदर्शित करता जे
K -गुणक को कहते है
∆I -विनियोग में परिवर्तन को प्रदर्शित करता है
▪ गुणक के अप्रत्यक्ष रूप से सिद्धांत का प्रतिपादन "नट वीकशेल" ने स्वीडन में 19वीं सदी में किया
▪गुणक का सविस्तार वर्णन 'एन. जोहानसेन 1903 में जर्मनी में किया लेकिन इसकी व्याख्या अपूर्ण रही
▪किन्स द्वारा व्याख्या 1929 में की गई
▪ 1931 में Economic Journal प्रकाशित लेख किया R F काहन ने सर्वप्रथम से प्रस्तुत किया
▪जब निवेश बढ़ाया जाता है तो आय व रोजगार की मात्रा में वृद्धि हो जाती है
■ गुणक को प्रभावित करने वाले तत्व
⭐ बचत संग्रहण की मात्रा पर गुणक निर्भर करता है
⭐ पूर्व कर्जो को चुकाना प्रभावित करता है
⭐ निर्यात-आयात प्रभाव प्रभावित करता है
⭐ उपभोग पदार्थ की उपलब्धि
⭐ गुणक की अवधि
⭐ रोजगार की अवस्था
⭐ सरकारी व्ययों व करो का प्रभाव
🔝प्रायोगिक गुणक को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते है
▪गुणक एक अंक होता है जिसमे विनियोग के परिवर्तन से गुणा करने पर आय परिवर्तन निकल आता है
▪उपभोग की प्रवर्ति जितनी अधिक होगी गुणक की मात्रा भी उतनी अधिक होगी
▪काहन का रोजगार गुणक =कुल रोजगार सृजन / प्राम्भिक रोजगार ♻ K =N2/N1
▪गुणक का सम्बंध -(MPC) सीमांत उपभोग प्रवर्ति से प्रत्यक्ष सम्बंध है MPS से गुणक का विलोम सम्बन्ध है
▪गुणक का मूल्य ( 0 < MPC <1) होता है अर्थात 0 से अधिक होती है MPC और 1 से कम होती है
1 ओर ०० (अनन्त) के मध्य होता है
♻ MPC + MPS = 1 (दोनों का जोड़ हमेशा एक होता है)
▪किन्स ने गुणक के सिद्धान्त को विकसित किया है (निवेश को बढ़ाया जाता है तो आय व रोजगार की मात्रा कई गुना बढ़ेगी)
: ■ त्वरक Accelerator
➖ त्वरक का मूल विचार 'अफतेलियन' द्वारा 1913 में दिया गया था
➖ त्वरक के विकास का श्रेय " JB क्लार्क "को जाता है इन्होंने 1917 में दिया था इसे मांग का व्युत्पन्न मांग का त्वरण सिद्धांत कहा जाता है
➖ उपभोग में परिवर्तन से निवेश पर प्रभाव प्रकट करता है
➖ त्वरक गुणाक =प्रेरित विनियोग /उपभोग में परिवर्तन
या ∆I /∆C
त्वरण गुणाक स्थिर नही बल्कि इसमे परिवर्तन होता रहता है जो पूजी उत्पादन अनुपात पर निर्भर करता है
➖त्वरक का सम्बंध प्रेरित विनियोग से होता है
➖त्वरक पूजी उत्पादन अनुपात पर निर्भर करता है
➖गुणक व त्वरक के इकठे प्रभाव को लिवर प्रभाव कहलाता है
➖त्वरक समस्त अवधि तक स्थिर रहता है
♻उत्पादन मॉडल हिक्स का सूत्र
∆Kt/∆Yt या 1/∆Y
♻सेम्युसन का उपभोग मॉडल
∆Kt /∆Ct या 1/∆C त्वरक को शामिल किया है
➖ त्वरक सिद्धात अर्थव्यवस्था में उपभोग में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप विसुद्ध निवेश में होने वाले कई गुणा अधिक परिवर्तन का विश्लेषण करता है
प्रो कुरिहार के अनुसार " त्वरक गुणाक प्रेरित विनियोग तथा उपभोग व्यय में प्रारंभिक परिवर्तन के बीच का अनुपात है"
➖आय बढ़ने के फलस्वरूप निवेश में जितना गुणा वर्द्धि होती है उसे त्वरक कहते है उत्पादन में किसी परिवर्तन से पूजी स्टॉक में परिवर्तन होता है
∆It =V ∆Yt
➖कुल विनियोग तीन बातों पर निर्भर करता है
1.त्वरक का मूल्य
2.उत्पादन स्तर में परिवर्तन
3.पुनः स्थापित विनियोग
🔝कुल विनियोग कभी भी ऋणात्मक नही होता है
जब हम त्वरक का अध्ययन करते है तब हमें स्वायत विनियोग व प्रेरित विनियोग पर विचार करना पड़ता है
➖त्वरक सिद्धात प्रेरित विनियोग से सम्बंधित है
♻स्वायत विनियोग
वह विनियोग जो एक स्थिर उपभोग के स्तर पर होता है तथा आय व उत्पादन में परिवर्तन से प्रभावित नही होता है
♻प्रेरित विनियोग
वह विनियोग जो उपभोग वस्तुओं की मांग में वर्द्धि का कारण होता है प्रेरित विनियोग आय परिवर्तन के साथ बदलता रहता है अर्थात यह आय स्तर से प्रभावित होता है
➖ त्वरक सिद्धात उपभोग में परिवर्तन के कारण विनियोग पर पड़ने वाले प्रभाव की व्याख्या करता है
🔰गुणक व त्वरक में अंतर
⭐गुणक पर आय व रोजगार पर निवेश में परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है त्वरक में पूजी पर उपभोग/उत्पादन/आय के परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है
⭐गुणक उपभोग के रुझान पर निर्भर करता है जबकि त्वरक मशीनों के कार्यकाल पर निर्भर करता है
⭐गुणक का आधार मनोवैज्ञानिक है जबकि त्वरक का आधार तकनीकी तत्व है
➖अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त उत्पादन छमता न होने पर कुल उत्पादन में निर्दिष्ट वर्द्धि के लिए प्रेरित निवेश का कुल आकार में वर्द्धि की जाती है
➖इसमे कुल वर्द्धि तथा त्वरक के गुणनफल के बराबर होगा अर्थात ∆I =V ∆Y होगा
■8.Theories of demand for Money, Liquidity Trap
▪मुद्रा की मांग का सिद्धात प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री व कैमब्रिज अर्थशास्त्रीयो ने दिया किन्स ने मुद्रा की मांग के उद्देश्य को स्पष्ट किया है
▪आधुनिक अर्थशास्त्री में मिल्टन, फ्रीडमैन,बोमेल, टोबीन व गर्लेशा सामिल है
▪ इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जे. एम. कीन्स (1936) में अपनी पुस्तक " General Theory of Employment, Interest and Money " में किया
▪मुद्रा की मांग का प्रयोग विनिमय कार्यो हेतु किया जाता है अतः मुद्रा की मांग व्युत्पन्न मांग कहलाती है
▪मुद्रा की मांग का निर्धारण किसी निश्चित समय अवधि में वस्तुओं ,सेवाओ तथा सम्पत्ति के व्यवसाय पर निर्भर करता है
■ मुद्रा की कुल मांग = [विनिमय सौदा मूल्य (P) × वस्तु तथा सेवा की मात्रा (T) ]
■ केम्ब्रिज अर्थशास्त्री के अनुसार
▪मुद्रा की मांग का निर्धारण में मुद्रा के सचय कार्य को महत्व दिया है केम्ब्रिज अर्थशास्त्री मुद्रा की मांग का अर्थ नगद शेष मांग से लगया जाता है इसमे राष्ट्रीय आय में शामिल होने वाली वस्तु होती है लेकिन सभी वस्तु नही है
▪नगद शेष के रूप में मुद्रा की मांग बढ़ने पर मुद्रा का प्रचलन वेग कम हो जाता है इनमे विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है
🔖केम्ब्रिज अर्थशास्त्री के अनुसार मुद्रा की मांग लोगो की तरलता पसन्दगी पर निर्भर करती है
■ किन्स का तरलता पसन्दगी सिद्धात
➖किन्स ने मुद्रा की मांग को तरलता पसन्दगी कहा है
➖तरलता पसन्दगी सिद्धात में 'ब्याज दर का निर्धारण होता है'
➖ मांग व पूर्ति शक्तियों द्वारा ब्याज दर का निर्धारण होता है
➖MD =L1+L2 +L3 (मुद्रा की मांग =सौदा +सतर्कता +सट्टा उद्देश)
A. मुद्रा की माँग (Demand of Money):
➖कीन्स के अनुसार, मुद्रा की माँग का अभिप्राय मुद्रा की उस राशि से है जो लोग अपने पास तरल (अर्थात् नकद) रूप में रखना चाहते हैं । कीन्स के अनुसार, लोग मुद्रा को नकद या तरल रूप में रखने की माँग तीन उद्देश्यों से करते हैं
1. सौदा उद्देश् (Transactive Motive):
➖व्यक्तियों को आय एक निश्चित अवधि के बाद मिलती है जबकि व्यय करने की आवश्यकता दैनिक जीवन में प्रतिदिन पड़ती रहती है । इस प्रकार आय प्राप्त करने तथा व्यय करने के बीच एक अन्तर रहता है ।
2. दूरदर्शिता उद्देश्य ( सतर्कता उद्देश्य ):
भविष्य की अनिश्चितताओं जैसे – बेकारी, बीमारी, दुर्घटना, मृत्यु आदि की दशाओं में सुरक्षित रहने के लिए अथवा भविष्य में सामाजिक रीति-रिवाजों को पूरा करने के लिए व्यक्ति नकद मुद्रा की मात्रा अपने पास रखना चाहता है । नकदी का संचय भी अनिश्चित भविष्य के प्रति सतर्कता के उद्देश्य से किया जाता है ।
3. सट्टा उद्देश्य
व्यक्ति अपने पास नकद मुद्रा इसलिए भी रखना चाहता है ताकि भविष्य में ब्याज दूर, बॉण्ड तथा प्रतिभूतियों की कीमतों में होने वाले परिवर्तन का लाभ उठा सके ।
🔰तरलता जाल (Liquidity Trap):
▪तरलता पसन्दगी रेखा (LP line) का आकार एवं ढाल ब्याज की दर (r) तथा सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग (L2) द्वारा निर्धारित होता है ।
🔰मिल्टन फ्रीडमैन का मुद्रा की मांग दृष्टिकोण
➖ मिल्टन फ्रीडमैन एक अमेरिकी अर्थशास्त्री थे जो खपत विश्लेषण, मौद्रिक इतिहास और सिद्धांत और स्थिरीकरण नीति की जटिलता पर अपना शोध करते थे।
➖मिल्टन फ्रीडमैन ने मुद्रा को संचय की जाने वाली परिसम्पत्ति माना है
➖मुद्रा के परिमाण सिद्धात को मुद्रा की मांग सिद्धात माना है
➖किसी भी देश की मुद्रा निर्धारण के लिए 4 तत्व आवश्यक है
1.सामान्य कीमत स्तर
2.वास्तविक आय या उत्पादन स्तर
3.ब्याज की प्रचलित दर
4.सामान्य कीमत स्तर में वर्द्धि
➖कीमत स्तर तथा वास्तविक आय के परिवर्तन को उसी दिशा में परिवर्तन करते है
➖ सामान्य ब्याज तथा सामान्य कीमत स्तर विपरीत दिशा में परिवर्तन करते है
■ समीकरण Md/P =फक्शन f (rm,rb,re,1/p,.Dp/dt, yp, w, u)
Md =मुद्रा की मांग का मौद्रिक स्तर
P =कीमत स्तर
rm=मुद्रा पर प्रतिफल दर,
rb=बॉन्ड पर प्रतिफल
re=इकलवीटी पर प्रतिफल डर
1/p,.Dp/dt =कीमत स्तर में प्रत्याशित परिवर्तन दर
yp =चिर आय
w =गैर मानवीय रुप मे रखी सम्पति
u= रुचि ओर अधिमान
▪वास्तविक आय के मांग निर्धारक का प्रमुख तत्व माना जाता है
▪वास्तविक आय में परिवर्तन से अनुपात में अधिक परिवर्तन होता है ∆M / ∆Y > 1
▪मिल्टन फ्रीडमैन ने मुद्रा की मांग की इकाई लोच 1.8 बताई थी
■ बोमेल का मांग दृष्टिकोण 1952
▪बोमेल ने स्टॉक के आधार पर मुद्रा की मांग का विश्लेषण किया था
▪कोई फर्म सौदे के लिए मुद्रा का अनुकूलतम स्टॉक अपने पास रखती है
➖स्टॉक को नगद रखने का दूसरा तरीका बॉन्ड है जिस पर ब्याज मिलता है ब्याज जितना अधिक होगा नगद उतना ही कम रहेगा
➖बोमेल के अनुसार जब आय में परिवर्तन होता है तब मुद्रा की सौदा उद्देश्य हेतु मांग में अनुपात से कम परिवर्तन होगा
दो प्रकार की लागते आती है
1.अवसर लागते(ब्याज लागते)
2.गैर ब्याज लागते
n = कुल लागत =ब्याज लागत +गैर ब्याज लागत
■टोबीन का दृष्टिकोण (जोखिम निवारण तरलता अधिमान सिद्धात)
▪टोबीन ने तरलता पसन्दगी का जोखिम के प्रति व्यवहार में तरलता अधिमान प्रस्तुत किया
➖टोबीन ने मौद्रिक सिद्धात को पूजी सिद्धात के साथ समन्वय करता है तथा यह बताता है कि मुद्रा की मांग का आकार मुद्रा के प्रतिस्थापन सम्पतियों से प्राप्त होने वाली आय पर निर्भर है
➖ब्याज परिसम्पत्तियों से पूजी लाभ अथवा हानि का प्रत्याशित मूल्य हमेशा शून्य होता है
➖किसी भी परिसम्पत्ति की मांग एक ब्याज दर पर निरभर ना होकर बहुत ब्याज दरों पर निर्भर है
➖एक परिसम्पत्ति की ब्याज दर केवल उसकी पूर्ति पर निर्भर नही बल्कि अन्यं परिसम्पत्तियों की पूर्ति पर निर्भर है
➖बॉन्ड व मुद्रा के चुनाव के बजाय मिश्रण को पसंद करता है
■ गुर्लेशा की विचारधारा [1959 ग्रेट ब्रिटेन]
▪मुद्रा एवम कीमतों में पूर्णता में ना केवल नगदी की मांग आती है बल्कि तरल सम्पति का समावेश होता है
➖गुर्लेशा ने तरलता पर विचार दिया
➖मांग राशियों के अतिरिक्त अन्य तरल परिसम्पत्ति को सामील किया है
🔜नोट पोर्टफ़ोलियो सिद्धात अलग अलग परिसम्पत्तियों की अलग अलग ब्याज दर मानता है जबकि तरलता सिद्धात एक ही ब्याज दर मानता है
🔵किन्स से टोबीन की श्रेष्ठता
टोबीन ने स्वम माना है कि नगदी की मांग व ब्याज दर में उल्टा सम्बंध होता है टोबीन ने किन्स के तरलता जाल को शामिल नही किया है इससे द्वि विभाजन की समस्या दूर हो गई
एक निवेशक एक समय मे बॉन्ड्स व नगदी दोनों को विभिन्न अनुपात में जमा रख सकता है जबकि किन्स केवल एक को अपने पास रखता है
■10. Inflation- Types and Control, Phillip curve
▪ सामान्य अर्थों में मुद्रास्फीति वह स्थति है जिसमें कीमत स्तर में वृद्धि होती है तथा मुद्रा का मूल्य गिरता है
▪ वेबस्टर के अनुसार " मुद्रा स्फीति वह अवस्था है जब वस्तु की उपलब्ध मात्रा की तुलना में मुद्रा तथा साख की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है और परिणाम स्वरूप मूल्य स्तर में निरंतर और महत्वपूर्ण वृद्धि होती है
▪ हिनार्थ प्रेरित स्फीति को पाल इंजिग :- ने बजटीय स्फीति कहा है
▪मुद्रा स्फीति से अभिप्राय बढ़ती हुई कीमतों के क्रम से है न की बढ़ती हुई कीमतों की स्थिति से
▪चलन स्फीति - अत्याधिक मुद्रा निर्गमन से उत्पन्न स्फीति को चलन स्फीति कहते हैं
▪ साख स्फीति :- उदार रणनीति के फलस्वरूप व्यापारिक बैंकों द्वारा अत्याधिक साख निर्गमन के कारण उत्पन्न स्फीति को साख स्फीति कहा जाता है
▪मांग प्रेरित स्फीति - वस्तुओं एवं सेवाओं की तेजी से बढ़ती मांग और फलस्वरूप तेजी से बढ़ती हुई मुद्रा की सक्रियता के कारण बढ़ने वाली कीमतें मांग प्रेरित स्फीति उत्पन्न करती है
▪लागत प्रेरित स्फीति :-वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ जाने के कारण जब वस्तुओं की कीमतों को बढ़ाया जाता है तो उसे लागत प्रेरित स्फीति कहा जाता है
▪हिनार्थ प्रेरित स्फीति - बजट के घाटे को पूरा करने के लिए हिनार्थ प्रबंधन के अंतर्गत नए नोट छापे जाना मुद्रा की पूर्ति का विस्तार करता है जिससे कीमतों में वृद्धि होती है इसे हिनार्थ प्रेरित स्फीति या बजटीय स्फीति कहा जाता है
▪अवमूल्यन जनित स्फीति - अवमूल्यन के फलस्वरूप निर्यात बढ़ने तथा देश में आंतरिक पूर्ति घट जाने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगती है जिससे अवमूल्यन जनित स्फीति उत्पन्न होती है
▪ खुली मुद्रास्फीति में समाज में बढ़ती हुई आय के उपभोग पर नियंत्रण नहीं लगाया जाता जबकि देबी मुद्रा स्पीति में उपभोग की मात्रा पर नियंत्रण लगा दिया जाता है
🔰फिलिप्स वक्र
फिलिप्स वक्र ब्रिटिश अर्थशास्त्री A W फिलिप्स ने 1958 में प्रस्तुत किया गया जिसके द्वारा ब्रिटेन में 1861-1913 की अवधि में मौद्रिक मजदूरी दरो तथा बेरोजगारी के बीच सम्बन्ध की व्याख्या की गई
➖ संबंधित आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर प्रोफेसर फिलिप्स ने यह बताया कि बेरोजगारी की दर (u)तथा मौद्रिक मजदूरी(w) में विपरीत संबंध होता है
➖ मूल रूप से फिलिप्स वक्र द्वारा केवल बेरोजगारी तथा मौद्रिक मजदूरी के बीच संबंध व्यक्त किया गया था परंतु बाद में इसका उपयोग बेरोजगारी तथा कीमतों में वृद्धि का संबंध दिखाने के लिए किया जाने लगा
🔰मुद्रा स्फीति की तीव्रता
OA रेंगती या साधारण स्फीति(2%कीमत वर्द्धि दर)
AB चलती स्फीति(5%)
BC दौड़ती स्फीति(10%)
CD सरपट भागती स्फीति(15%)
➖ मुद्रा स्फीति के प्रभाव
उत्पादक वर्ग को लाभ
निश्चित आय वर्ग वालो को हानि
पूर्ण रोजगार से पहले की स्थिति में श्रमिकों को लाभ
निश्चित आय वर्ग वेतन भोगी को हानि
धनी और अधिक धनी गरीब और अधिक गरीब
व्यापार संतुलन विपक्ष में आयात में वर्द्धि व निर्यात में कमी
ऋणदाता को हानि ऋणी को लाभ
◆ 11. Monetary and Fiscal Policies (मौद्रिक नीति व राजकोषीय नीति)
▪किसी देश मे आर्थिक विकास में मौद्रिक नीति व राजकोषीय नीति का महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि जहा मौद्रिक नीति मुद्रा के प्रसार तथा संकुचन को नियंत्रित करती है वही राजकोषीय नीति सार्वजनिक व्यय को नियंत्रित करती है
● मौद्रिक नीति (Monetary policy)
▪मौद्रिक नीति का अर्थ केंद्रीय बैंक की उस नियंत्रण नीति से लगाया जाता है जिसके द्वारा मुद्रा एवम साख की मात्रा उसकी लागत तथा उसके उपायों को नियंत्रित किया जाता है
▪मौद्रिक नीति; भारतीय रिज़र्व बैंक की उस नीति को बताती है जिसके माध्यम से देश की मौद्रिक नीति को इस प्रकार नियंत्रित किया जाता है कि देश में मुद्रा स्फीति को बढ़ाये बिना देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके
▪मुद्रा व साख की पूर्ति पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए जो RBI द्वारा नीतियां बनाई जाती है उसे मौद्रिक नीति कहते है
▪ मौद्रिक नीति का विकसित राष्ट्रों उदेश्य " आर्थिक स्थायित्व " का है
▪ मौद्रिक नीति का विकाशशील राष्ट्रों उदेश्य " स्थिरता के साथ विकास करना " है
▪ मौद्रिक नीति में - मुद्रा की पूर्ति ,ब्याज , ऋणों को नियमित करने का प्रयास किया जाता है
▪मौद्रिक नीति का निर्धारण :- मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा किया जाता है
- यह केंद्र व राज्य समझौता का परिणाम है जो RBI act 1934 की धारा 2(!!!) cci में उल्लेख है
- इसकी सरंचना - धारा 45 ZB (i) के तहत है
- इसका गठन रंगराजन समिति की सिफारिश पर 27 जून 2016 को किया गया था
- कुल 6 सदस्य है (3 RBI से व 3 बाहरी )
अक्टूबर 2019 में मौद्रिक नीति समिति में शामिल सदस्य इस प्रकार हैं;
1. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर - अध्यक्ष, पदेन; (श्री शक्तिकांत दास)
2. भारतीय रिजर्व बैंक के उप-गवर्नर, मौद्रिक नीति के प्रभारी – सदस्य, पदेन; (बीपी कानूनगो)
3. भारतीय रिजर्व बैंक के एक अधिकारी को केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित किया जाता है - पदेन सदस्य,; (डॉ. माइकल देवव्रत पात्रा)
4. डॉ. रवींद्र ढोलकिया, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद - सदस्य
5. प्रोफेसर पामी दुआ, निदेशक, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स - सदस्य
6. श्री चेतन घाटे, प्रोफेसर, भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) - सदस्य
पदेन सदस्यों को छोड़कर शेष सभी सदस्य 4 वर्ष या अगले आदेश तक (जो भी पहले हो) कार्यभार सँभालते हैं.
मौद्रिक नीति के साधन दो प्रकार के होते हैं:
1. मात्रात्मक साधन (Quantitative Instruments): सामान्य या अप्रत्यक्ष (कैश रिज़र्व रेशियो, वैधानिक तरलता अनुपात, ओपन मार्केट ऑपरेशंस, बैंक दर, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, सीमांत स्थायी सुविधा और लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी (LAF).
2. गुणात्मक साधन (Qualitative Instruments): चयनात्मक या प्रत्यक्ष (मार्जिन मनी में परिवर्तन, प्रत्यक्ष कार्रवाई, नैतिक दबाव
▪[नीति दरें]
▪रिपो दर - 5.15%
▪प्रत्यावर्तनीय रिवर्स रिपो दर - 4.90%
▪सीमांत स्थायी सुविधा दर (MSF)- 5.40%
▪बैंक दर - 5.40%
▪[आरक्षित अनुपात]
▪CRR (सीआरआर) 4%
▪SLR (एसएलआर) 18.50%
▪GDP का अनुमान 6.9 से घटाकर 6.1 कर दिया गया
▪रेपो रेट बढ़ने पर मुद्रा की तरलता कम होती है जिससे लोन मंहगे होते है मुद्रा का संकुचन होता है इसे टाइट पोलोसी कहते है
● राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)
▪राजकोषीय नीति सरकार द्वारा बनाई जाती है
▪राजकोषीय नीति के अंतर्गत हम सरकार की आय और व्यय के द्वारा अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कार्यो का उल्लेख करते है
▪राजकोषीय नीति के उपकरण [ बजट नीति - सार्वजनिक व्यय - कराधान - सार्वजनिक ऋण ]
▪राजकोषीय नीति आर्थिक विकास को बल देती है. यह कई तरह से काम करती है. इसके जरिए सरकार अधिक खर्च को नियंत्रित या टैक्स में कटौती करती है. साथ-साथ दोनों काम भी किए जा सकते हैं.
▪इसका मकसद होता है उपभोक्ताओं के हाथों में अधिक पैसे डालना. जब उपभोक्ताओं के हाथ में ज्यादा पैसे आते हैं तो वे अधिक खर्च करते हैं. इससे आर्थिक विकास का पहिया तेजी से घूमता है.
बजट के आंकड़े पढ़ना है ...
: ■ 12. Free trade and protection (Customs,Quota,License)
▪मुक्त या स्वतंत्र व्यापारवह क्षेत्र होता है जहां से वस्तुओं के निर्माण, निर्यात, प्रसंस्करण आदि की सुविधा होती है उपर्युक्त क्षेत्र कस्टम ड्यूटी, उत्पाद शुल्क आदि से भी मुक्त होते हैं। जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है
▪एडम स्मिथ स्वतंत्र व्यापार को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि ” स्वतंत्र व्यापार से आशय व्यापारिक नीति को उस प्रणाली से है जो घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं में कोई अन्तर नहीं करती न तो विदेशी वस्तुओं पर कोई अतिरिक्त कर लगाया जाता है और न ही घरेलू वस्तुओं की कोई विशेष रियायत या सुविधा दी जाती है
▪स्वतंत्र व्यापार श्रम विभाजन के कारण होता है
▪स्वतंत्र व्यापार के प्रवर्तक एडम स्मिथ थे तथा इनका समर्थन रिकार्डो , जे. एस. मिल व बर्टेबल ने किया है
▪स्वतंत्र व्यापार का उद्देश्य उत्पादन को अधिक करना, सस्ता आयात, एकाधिकार से मुक्ति, विश्व संसाधनों का अनुकलतम प्रयोग, बाजार विस्तार, राष्ट्रीय आय में वर्द्धि ,परस्पर सहयोग, अविष्कार को प्रोत्साहन के लिए आवश्यक है
▪GATT ,WTO ECM स्वतंत्र व्यापार के प्रमुख उदाहरण है
मुक्त व्यापार नीतियां, अपने सबसे अच्छे रूप में, आयात प्रतिबंधों (जैसे कि टैरिफ और कोटा) की पूर्ण अनुपस्थिति के लिए अधिवक्ता और निर्यात उद्योगों की कोई सब्सिडी नहीं के लिए
■ सरक्षण (protection)
▪सरक्षण एक ऐसी नीति है जिसके अंतर्गत विभिन्न तरीकों से आयतों को नियंत्रित कर सरक्षण प्रदान करना या उत्पादकों को आर्थिक सहायता प्रदान करने को सरक्षण व्यापार कहा जाता है
उदहारण - प्रशुल्क ,आयात अभ्यस, विनिमय नियंत्रण, कीमत विभेद, राज्य व्यापार
▪सरक्षण व्यापार का प्रारंभिक विश्लेषण :-1789 में ''अलेक्जेंडर हेमिल्टन " ने अमेरिका की संसद के सम्मुख रखा था
▪घरेलू उद्योग धंधों को सरक्षण का प्रथम तर्क फ्रेडरिक लिस्ट (1841) में दिया था
▪प्रो.ए. मुराद "राष्ट्र हितों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की नीति को सरक्षण कहा जाता है"
■सरक्षण के उपाय
▪प्रशुल्क प्रतिबंध(प्रशुल्क और तटकर)
▪गैरप्रशुल्क प्रतिबंध (कोटा अभ्यंस,अनुदान, राशिपातन, प्रतिरोधक कर)
▪राशीपातन :- स्वदेश में अधिक कीमत वसूलना व विदेशों से कम कीमत वसूलना राशिपतन कहलाता है
■ प्रशुल्क [Customs] :-यह एक प्रकार का कर होता है जो अंतरास्ट्रीय सिमा पार करने पर लगाया जाता है चाहे आयात हो या निर्यात यह सीमान्त आयतों पर लगता है यह दो प्रकार का होता है राजस्व प्रशुल्क व सरक्षण प्रशुल्क
▪A देश अगर प्रशुल्क लगाता है स्थिति A देश के पक्ष में हो जाएगी क्योकि A देश राजस्व वसूली करता है इसलिए शर्ते A देश के पक्ष में हो जाती है और अगर यदि B देश प्रतिशोधात्मक नीति अपनाता है तो यथावत स्थिति बनी रहेगी
■ कोटा [Quota]
■ व्यापार की शर्तों को प्रभावित करने वाले तत्व
1.पारस्परिक मांग-जिस देश की पारस्परिक मांग तीव्र होगी व्यापर शर्ते उसके प्रतिकूल होगी
2.प्रशुल्क-जो देश प्रशुल्क लगाता है उसके पक्ष में व्यापार शर्ते होगी
3.कोटा -एकाधिकार के पक्ष में होता है
4.प्रोधोगिकी में परिवर्तन-परिवर्तन करने वाले के विरुद्ध होती है
5.साधन सम्पनता-जिसकी साधन सम्पनता बढ़ती है उसके विपक्ष में
6.मांग में परिवर्तन -जिसकी मांग परिवर्तन उसके विपक्ष में
7.रुचियों में परिवर्तन -जिसकी रुचि बढ़ी उसके विपक्ष में
8.आर्थिक वर्द्धि
9.भुगतान शेष
10.स्फीति व अवस्फीति
11.आयात स्थापन्न
12.अंतरराष्ट्रीय पूजी प्रवाह
13.अवमूल्यन जो करता है उसके विपक्ष में
14.स्थानापन्न वस्तु की उपलब्धता
■ 13.Theories of trade – comparative cost and opportunity cost, Terms of Trade
▪अंतरराष्ट्रीय व्यापार का प्रारम्भ अदल बदल क्रिया से हुवा है आंतरिक व्यापार व अंतरराष्ट्रीय व्यापार
▪ओहलीन के अनुसार - अंतरराष्ट्रीय व्यापार अन्तरक्षेत्रीय व्यापार की विशिष्ट दशा है -
▪ अंतररष्ट्रीय व्यापार का प्रतिष्ठित सिद्धात के जनक एडम स्मिथ व डेविड होम्यु है क्रमबद्ध अध्ययन डेविड रिकार्डो ने किया
■ तुलनात्मक लागत सिद्धात - डेविड रिकार्डो (1817)
- श्रम के मूल्य सिद्धात पर आधरित है
- व्यापार लागतो में निरपेक्ष अंतर नही बल्कि तुलनात्मक अंतर के कारण होता है
है
-व्यापार की अनिवार्य शर्ते =M1 /ME <M3 /M4<1
▪Book :" दा प्रिसिंपल आफ पोलटिकल इकोनॉमी एंड टेक्स्टन"
▪तुलनात्मक लागत सिद्धांत की आनुभविक व सांख्यकी जांच मेकडुगल 1991 की थी
▪तुलनात्मक लागत सिद्धांत की मौद्रिक व्याख्या टासींग ने की थी
■ अवसर लागत का सिद्धांत : हेबलेर (1936)
▪दो वस्तुओं के बीच विनिमय अनुपात प्रतिस्थपन (स्थान बदल कर) द्वारा व्यक्त किया जा सकता है
▪पूजी व श्रम दोनो को शामिल किया है
▪हैबलर के अनुसार उत्पादन संभावना वक्र की आकृति उत्पादन के नियमों अर्थात लागत की दशाओ से प्रभावित होती है
1.स्थीर लागत दशा में(स्थीर उतपत्ति के नियम) बाए से दायें सरल रेखा
2.बढ़ती अवसर लागत(घटते उतपत्ति के नियम) मूल बिंदु के नतोदर (आंशिक विशिष्टकरण)
3.घटती अवसर लागत(बढ़ते उतपत्ति के नियम) मूल बिंदु के उन्नतोदर
▪अवसर लागत से आशय है एक वस्तु की दूसरी वस्तु से प्रतिस्थापन करने की लागत से है अवसर लागत को त्याग ते हुए विकल्प के रूप में व्यक्त किया है
1.रिकॉर्ड उत्पादन को एक मात्र साधन मानता था जबकि हैबलर पूंजी व श्रम को सम्मिलित करता है
2.रिकार्डो एक देश ,एक वस्तु में पूर्ण विशिष्ट करण दूसरा देश दूसरी वस्तु में पूर्ण विशिष्ट करण को मानता है जबकि हैबलर ने पूर्ण विशिष्टीकरण और अपूर्ण विशिष्ट कर्ण दोनों को अपने सिद्धांत में शामिल करता है
3.रिकार्डो ने पैमाने के स्थिर प्रतिफल को मानता है जबकि हैबलर तीनों पैमानों को मानता है
▪व्यापार दो देशों के मध्य होता है दो वस्तुएं, दो साधन श्रम व पूजी होती हैं 2×2×2
🔅निरपेक्ष लाभ सिद्धात :-एडम स्मिथ
🔅पारस्परिक मांग सिद्धात :- जे एस मील
🔅प्रस्ताव वक्र सिद्धात :-मार्शल
🔅सापेक्षित लागतो का सिद्धात। :-हेक्सचर ओहलीन
🔅अंतरराष्ट्रीय व्यापार तुलनात्मक लागत सिद्धांत : डेविड रिकार्डो
■ व्यापार की शर्तें
▪व्यापार शर्तें उस दर की ओर संकेत करती हैं जिस दर पर एक देश की वस्तु का दूसरे देश की वस्तुओं से विनिमय होता है यह दर ही देश के आयतों के रूप में उस देश के निर्यातो की क्रय शक्ति की माप है और निर्यात कीमतों व आयात कीमतों के मध्य संबंध व्यक्त करता है
▪ सूत्र व्यापार शर्तें =आयातो का कुल मूल्य / निर्यातो का कुल मूल्य [Pm/Px]
▪अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जिस मूल्य पर वस्तुओं का आदान प्रदान होता है उसे अंतरराष्ट्रीय विनिमय अनुपात को व्यापार शर्ते कहते हैं
● व्यापार की शर्तों का वर्गीकरण
■A. वस्तुओं के विनिमय अनुपात से सम्बंधित व्यापार शर्ते
▪टासिंग ने सुद्ध तथा सकल वस्तु विनिमय व्यापार शर्तो की धारणा प्रस्तुत की
1.सुद्ध वस्तु विनिमय व्यापार की शर्तें सूत्र - N =Px/Pm
यहा पर :-
- N सुद्ध विनिमय व्यापार की शर्तें
- Px निर्यात मूल्य
- Pm आयात मूल्य
▪यदि आयात मूल्य की तुलना में निर्यात मूल्य अधिक होता है तो व्यापार की शर्तें देश के अनुकूल तथा विपरीत स्थिति में प्रतिकूल होती है
अनुकूलतम व्यापार की शर्ते -Px >Pm
प्रतिकूल व्यापार की शर्ते -Px < Pm
2.सकल वस्तुओं व्यापार की शर्तें - टाजिंग 1927
सूत्र में G =Qm /Qx (आयात मात्रा/ निर्यात मात्रा )
यदि चालू वर्ष की सकल वस्तु विनिमय व्यापार की शर्त (G) में वृद्धि होती है तो अनुकूल तो व्यापार शर्त का घोतक है
3.आय व्यापार शर्ते
▪आय व्यापार की शर्तों को आयात करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है
▪इस शब्द का प्रतिपादन जी.एस डोरेंस व एच् स्टेहल ने किया यदि किसी भी देश के भुगतान संतुलन साम्य में है तब
PC.Qx =Pm.Qm
Qm = Of.Qx /Pm
यहा
Px -निर्यात वस्तु का मूल्य
Qx-निर्यात वस्तु की मात्रा
Pm -आयात वस्तु का मूल्य
Qm-आयात वस्तु की मात्रा
■ B. साधनों के स्थानांतरण से संबंधित व्यापार की शर्तें
1.एक घटक के व्यापार शर्तें - प्रतिपादन वाइनर ने किया
S =Px /Pm .Zx
यहा पर
Zx -निर्यातों की उत्पादकता का सूचकांक
S- एक घटकीय व्यापार की शर्तें
Px/Pm - शुद्ध वस्तु विनिमय व्यापार शर्तें
2.दिघटकीय व्यापार की शर्तें :- सूत्र D =N.Zx /Am
यहां Zm -आयात वस्तु का उत्पादकता सूचकांक है
यदि D में वृद्धि होती है तो यह एक बात का सूचक है कि निर्यात उत्पादन में प्रदेश के साधनों का एक इकाई के बदले आयात उत्पादन में प्रयुक्त विदेशी साधनों की अधिकता प्राप्त की जा सकती है
■ C. उपयोगिता से संबंधित व्यापार शर्तें
1. वास्तविक लागत व्यापार शर्ते
▪वाइनर ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के वास्तविक लाभों का निर्धारण करने के लिए वास्तविक व्यापार का प्रतिपादन किया
R =Px /Pm .Zx.Rx
अथवा R =N.Zx.Rx
R-वास्तविक लागत व्यापार की शर्तें
Rx- निर्यात के उत्पादन में प्रति का साधन की उपयोगिता का सूचकांक
R में होने वाली इस बात का सूचक है कि प्रति इकाई वास्तविक लागत से प्राप्त आयातो की मात्रा अधिक है
2.उपयोगिता व्यापार शर्तें सूत्र Tu =N.Zx.Rx.u
यहां Tu व्यापार की उपयोगिता शर्त का सूचकांक है
इस तरह यदि वास्तविक लागत व्यापार की उपयोगिता तथा की गई वस्तुओं के सूचकांक का गुणा कर दिया जाए तो व्यापार को ज्ञात किया जाता है
■ 14.Foreign Direct Investment[ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश]
▪किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (फॉरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेन्ट / एफडीआई) कहलाता है
▪किसी निवेश को FDI का दर्जा दिलाने के लिए कम-से-कम कंपनी में विदेशी निवेशक को 10 फीसदी शेयर खरीदना पड़ता
▪प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDi) मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
१.ग्रीन फील्ड निवेश - स्वामित्व व नियंत्रण स्वम के पास
२.पोर्टफोलियो निवेश - प्रभुत्व व नियंत्रण नही होता लाभांश की गारंटी होती है
▪भारत बीते वित्त वर्ष 2018-19 में अब तक का सर्वाधिक 64.37 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) मिला
■ WTO विश्व व्यापार संगठन
▪विश्व व्यापार संगठन (वर्ल्द ट्रेड ऑर्गनाइजेशन/WTO) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो विश्व व्यापार के लिए नियम बनाता है
▪स्थापना :- 1 जनवरी 1995 जेनेवा (स्विट्जरलैंड)
▪सदस्य :- 164 देश [29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना था] प्रारम्भिक सदस्य 77 थे
▪महानिदेशक :-राबर्ट अज्बेड़ा
प्रथम महानिदेशक पीटर सदरलैंड थे
▪इसके प्रथम स्थायी अध्यक्ष इटली के एक प्रमुख व्यवसायी रेनटो रुगियरो (Renato Ruggiero) बनाए गये
▪ बैठक :- 13 और 14 मई, 2019 के मध्य नई दिल्ली ( दो वर्ष में दो बार)
▪यह बैठक वर्ष 2020 में कज़ाखस्तान में आयोजित होने वाले विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन से पहले आयोजित एक महत्त्वपूर्ण बैठक है।
▪विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना 1995 में मारकेश संधि के तहत की गई थी
▪विश्व व्यापार संगठन का मूल “प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता”/”GATT” (General Agreement on Tariffs and Trade) में निहित है. GATT की स्थापना 1948 में मूलतः 23 संस्थापक देशों द्वारा की गई थी जिनमें भारत भी एक था.
# WTO की मूल संरचना में निकाय
1.मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (Ministerial Council) : शासी निकाय है यह संगठन की रणनीतिक दिशा तय करता है
2.सामान्य काउंसिल (General Council) : व्यवहार में, ज्यादातर मामलों के लिए यह डब्ल्यूटीओ का फैसला करने वाला मुख्य अंग है।
3.व्यापार नीति समीक्षा निकाय (The Trade Policy Review Body): यह उरुग्वे राउंड के बाद बने व्यापार नीति समीक्षा तंत्र की देखरख करता है
4.विवाद निपटान निकाय (Dispute Settlement Body): जिन देशों के बीच व्यापार सम्बन्धी कोई विवाद होता है तो वे इसी निकाय के सामने अपील कर न्याय मांगते हैं
5.वस्तुओं एवं सेवाओं में व्यापार पर परिषद
: यह वस्तुओं ( कपड़ा और कृषि जैसे) और सेवाओं में व्यापार पर हुए आम एवं विशेष समझौतों के विवरणों की समीक्षा के लिए तंत्र प्रदान करते हैं।
■ World Bank विश्व बैंक
▪विश्व बैंक विशिष्ट संस्था है।इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निमाण और विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता देना है
▪विश्व बैंक समूह पांच अंतरराष्ट्रीय संगठनों का एक ऐसा समूह है जो सदस्य देशों को वित्त और वित्तीय सलाह देता है
▪मुख्यालय : वॉशिंगटन, डी॰ सी॰ में है
▪अध्यक्ष : डेविड मालपास अमेरिका 13वें
[ विश्वबैंक का अध्यक्ष IBRD व IDA के अध्यक्ष होते हैं.]
▪ सदस्य : 189 देश सदस्य
▪स्थापना : 1945 ( कार्य प्रारम्भ 1946)
▪
1. पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (International Bank for Reconstruction and Development-IBRD) स्थापना : 1945 सदस्य 188
2. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation-IFC) : 1956 में स्थापना 184 सदस्य
3. अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (International Development Association-IDA) स्थापना :1960 में सदस्य173 देश IDA विश्व बैंक का वह हिस्सा है जो दुनिया के सबसे गरीब देशों की मदद करता है
4. निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Centre for Settlement of Investment Disputes-ICSID) वर्ष 1966 में भारत सदस्य नही है
5. बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (Multilateral Investment Guarantee Agency-MIGA) 12 अप्रैल, 1988 को विश्व बैंक समूह के नए सदस्य के रूप में MIGA की स्थापना की गई सदस्य 179
विश्व बैंक समूह की सदस्यता
▪IBRD के आर्टिकल्स ऑफ एग्रीमेंट के तहत बैंक का सदस्य बनने के लिये किसी देश को पहले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में शामिल होना अनिवार्य है।
▪IBRD की सदस्यता मिलने पर ही IDA, IFC और MIGA की सदस्यता मिलती है।
▪ICSID में सदस्यता IBRD के सदस्यों के लिये उपलब्ध होती है, किंतु जो IBRD के सदस्य नहीं हैं, लेकिन पार्टी ऑफ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) के सदस्य हैं, उन्हें ICSID प्रशासनिक परिषद के आमंत्रण पर अपने सदस्यों के दो-तिहाई वोट का समर्थन मिलने पर ही सदस्यता दी जाती है
▪भारत ब्रेटन वुड्स में किये गए समझौतों के मूल हस्ताक्षरकर्त्ताओं में से एक था, जिसमे (IBRD) और (IMF)) की स्थापना की
▪भारत वर्ष 1956 में IFC और 1960 में IDA के संस्थापक सदस्यों में भी शामिल था।
▪भारत जनवरी वर्ष 1994 में MIGA का सदस्य बना।
▪अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट 15 अक्टूबर IMF ने मंदी के चलते भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट घटने का अनुमान जताया है.
▪IMF ने साल 2019-20 में भारत की इकनॉमिक ग्रोथ रेट 7 फीसदी रहने की उम्मीद जताई है, जिसमें 0.30 फीसदी की कटौती की गई है.
■ IMF अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष
मुख्यालय :-
स्थापना :7 दिसम्बर 1945 कार्य प्रारम्भ 1 मार्च 1947
सदस्य : 187 देश (नोरु)
प्रबंध निदेशक : बुल्गारिया की अर्थशास्त्री क्रिस्टालिना जार्वीवा
◆ 15.Measurement of development, HDI, PQLI
■ मानव विकास सूचकांक (HDI)
▪मानव विकास सूचकांक (HDI) एक सूचकांक है, जिसका उपयोग देशों को "मानव विकास" के आधार पर आंकने के लिए किया जाता है
▪इस सूचकांक से इस बात का पता चलता है कि कोई देश विकसित है, विकासशील है, अथवा अविकसित है
▪मानव विकास सूचकांक :- जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, और प्रति व्यक्ति आय संकेतकों का एक समग्र आंकड़ा है
▪HDI का विकास पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा किया गया था
▪कमेटी के सदस्य :-
: महबूब उल हक
: पॉल स्ट्रीटन
: फ्रैन्सस स्टीवर्ट
: गुस्ताव रानीस
: कीथ ग्रिफिन,
: सुधीर आनंद
: मेघनाद देसाई
▪प्रकाशन :- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)द्वारा
▪2010 में कई मानव विकास आयामों में से गरीबी, असमानता तथा लैंगिक सशक्तीकरण की निगरानी के लिये तीन सूचकांक शुरू किये गए थे।
1.बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index-MPI),
2.असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक (IHDI)
3.लैंगिक असमानता सूचकांक (GII)।
▪2014 में जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स (GDI) की शुरुआत की गई थी
■ HDI रिपोर्ट 2019
▪मानव विकास सूचकांक में भारत एक पायदान की छलांग लगाकर 130 से 129वें स्थान पर
▪इस सूची में पाकिस्तान ने तीन पायदान की छलांग लगाते हुए 150 से 147वें पायदान पर पहुंचा
▪भारत में 2005-06 से 2015-16 के बीच 27.1 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया
▪तीन दशकों से तेज विकास के कारण यह प्रगति हुई है, जिसके कारण गरीबी में कमी आई
■ वैश्विक HDI रैंकिंग में शीर्ष पाँच देश
1.नॉर्वे (0.954),
2.स्विट्ज़रलैंड (0.946),
3.इरलेण्ड (0.942),
4.जर्मनी (0.939)
5.हनकोंग चाइना (0.939)
■ रैंकिंग में निचले में स्थान हासिल करने वाले देश-
185.बुरुंडी (0.423),
186.साउथ सूडान (0.413)
187.चाड (0.401),
188.मध्य अफ्रीकी गणराज्य (0.381)
189.नाइजर (0.377)
▪भारत का 129 वा है (0.647)
▪HDI का अधिकतम मुख्य 1 के बराबर होता है यह 0- 1 के मध्य होता है
▪HDI का आधारवर्ष 2010 है
▪यहाँ जन्म के समय औसत जीवन प्रत्याशा 68.8 वर्ष है
6,353 रुपए की सकल राष्ट्रीय आय (Gross National Income-GNI) के साथ यहाँ स्कूली शिक्षा में अपेक्षित वर्ष 6.4 वर्ष के औसत के साथ 12.3 वर्ष हैं
▪1990 में HDI की शुरुआत के समय से 2018 तक भारत का HDI मान 0.427 से 0.640 तक पहुँच गया है अर्थात् HDI मान में 50% का सकारात्मक परिवर्तन हुआ है।
▪वर्ष 2000 से 2010 के दशक में वार्षिक विकास की उच्चतम दर 1.64% थी
▪देश की आबादी का 1 फीसदी हिस्सा ऐसा है, जो देश की कुल आय के 20% का मालिक है
▪टॉप 10 फीसदी लोगों के पास कुल आय का 55% हिस्सा है
▪1980 से लेकर अब तक आय की असमानता की खाई लगातार गहरी हुई है
▪पिछले 12 वर्षों में यह निचले आय वर्ग की आय की ग्रोथ औसत ग्रोथ से दो तिहाई कम के लेवल पर है
■ जीवन के भौकित गुणवत्ता सूचकांक [PQLI]
▪ जीवन के भौकित गुणवत्ता सूचकांक का प्रतिपादन किसने किया— जॉन टिनवर्जन (1976)
▪ जीवन के भौतिक गुणवत्ता सूचकांक को वैज्ञानिक रूप मे प्रस्तुत एवं विकसित करने का श्रेय किसे दिया जाता है—मॉरिस डी माटिस
▪मॉरीश ने 23 विकसित व विकाशशील देशों के जीवन की भौतिक गुणवत्ता का तुलनात्मक अध्ययन किया
▪मारिश का मानना है कि GDP द्वारा किसी देश की गुणवत्ता मापना उपयुक्त नही है क्योकि अलग अलग देशों की GDP अलग अलग होती है
▪इसका निर्धारण तीन तत्वों द्वारा होता है
1.साक्षरता दर
2.शिशु मृत्यु दर
3. जीवन प्रत्याशा (न्यूनतम 38 : अधितम 77)
▪सूत्र :- Literacy Rate + indexed Infant Mortality Rate + Indexed Life Expectancy /3
▪PQLI की गणना 0 और 1 के मध्य करते है
0 - अच्छा
1 - बुरा
▪अधिकतम मृत्युदर 229/1000 होगी व न्यूतम 7/1000 हो सकती है
■ 16. Poverty in India
▪गरीबी से आशय जीवन की कुछ आवश्यक आवश्यकता की पूर्ति से वंचित रहने से है
▪प्रथम वैश्विक गरीबी का अनुमान "वर्ड डवलपमेंट रिपोर्ट 1990 " में मिलता है
● गरीबी दो प्रकार की होती है
▪निरपेक्ष गरीबी : परिवार के लिए आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति जुटा पाने में असमर्थ होता है
▪ सापेक्ष गरीबी : तुलनात्मक रुप से आय की असमानताओं
▪भारत में गरीबी का अनुमान दैनिक कैलोरी उपभोग के आधार पर लगाया जाता
:- शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2100 कैलोरी
:- ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी
▪गरीबी रेखा या निर्धनता रेखा (poverty line) : आय के उस स्तर को कहते हैं जिससे कम आमदनी होने पे इंसान अपनी भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ होता है। गरीबी रेखा अलग अलग देशों में अलग अलग होती है।
▪योजना आयोग राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के सर्वेक्षणों के आधार पर ही निर्धनता की संख्या का आंकलन करता रहा है
■ प्रो.डी.टी. लकड़वाला :- प्रत्येक राज्य में मूल्य स्तर के आधार पर अलग अलग निर्धनता रेखा का निर्धारण किया
- कुल 35 निर्धनता रेखाए निर्धारित की
: ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी
: शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी
▪भारत में सर्वप्रथम गरीबी का अध्ययन श्री बी एस मिन्हास ने किया और उन्होंने 1956-57 तथा 1967-68 के बीच गांव के निर्धनों के प्रतिशत में कमी होने के संकेत दिए
▪लोरेंज वक्र- 1905 में गिनी गुणांक को इटालियन कोरेडो गिनी ने विकसित किया था
2. सुरेंद्र तेंदुलकर समिति
▪प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र तेंदुलकर की रिपोर्ट गरीबी का आंकड़ा 37.2% प्रतिशत बताती है
▪ राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन 2012 में गरीबी रेखा के नीचे 22% लोग थे
3. रंगराजन समिति 2012
मनमोहन सिंह की सरकार में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार
:- शहरों में प्रतिदिन ₹45 तक खर्च
:- ग्रामीण क्षेत्रों में ₹32
:- ग्रामीण क्षेत्रों में ₹972 प्रतिमाह से कम
:- शहरों में 1407 से कम प्रतिमाह कमाने वालों को गरीब माना जाएगा
▪सामान्य रूप से भारत में 15 से 59 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्तियों को आर्थिक रुप से सक्रिय माना जाता है
🔰निर्धनता निवारण एवं रोजगार कार्यक्रम
1. सामुदायिक विकास -1952
2. प्रधानमंत्री रोजगार योजना- 2 अक्टूबर 1993
3. मिड डे मील योजना- 1995
4. स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना- 1 दिसंबर 1997
5. अन्नपूर्णा योजना- 19 मार्च 1999
6. समग्र आवास योजना- 1999
7. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वराज योजना- 1 अप्रैल 1999
8. जनश्री बीमा योजना- 10 अगस्त 2000
9. अंत्योदय अन्न योजना- 25 दिसंबर 2000
10. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना- 2000-01 में
▪भारत में अब भी 37 करोड़ लोग गरीब, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
▪संयुक्त राष्ट्र: भारत में स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति से लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिली है.
● संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट
▪वर्ष 2006 से 2016 के बीच रिकॉर्ड 27.10 लोग गरीबी से बाहर निकले हैं. फिर भी करीब 37 करोड़ लोग आज भी गरीब हैं.
28 फीसदी आबादी अब भी गरीब
▪संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 में भारत के करीब 64 करोड़ लोग (55.1 प्रतिशत) गरीबी में थे. यह संख्या घटकर 2015-16 में 36.9 करोड़ (27.9 प्रतिशत) पर आ गयी
▪रिपोर्ट में 101 देशों में 1.3 अरब लोगों का अध्ययन किया गया.
▪इसमें 31 न्यूनतम आय, 68 मध्यम आय और दो उच्च आय वाले देश शामिल थे.
▪भारत का MPI मूल्य 2005-06 में 0.283 था जो 2015-16 में 0.123 पर आ गया.
▪भारत में गरीबी में कमी के मामले में सर्वाधिक सुधार झारखंड में देखा गया गरीबी 2005-06 में 74.9 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 46.5 प्रतिशत पर आ गयी
■ लोरेंज वक्र विधि
➖ ग्राफ पर 1905 में अमेरिकी अर्थशास्त्री मैक्स लोरेन्ज द्वारा विकसित धन वितरण की एक चित्रमय प्रतिनिधित्व, एक सीधे विकर्ण लाइन धन वितरण की सही समानता का प्रतिनिधित्व करता
इसका प्रत्येक बिंदु परिस्थिति को व्यक्तं करता है अलग अलग आय वाले व्यक्तियों का अलग अलग प्रदर्शन बिंदु होता है
मापन 0 से 100 तक होता है इसमे मापन ऋणात्मक नही होता है
लोरेंज वक्र जितना पास होगा विषमता उतनी ही कम होगी जबकि रेखा जितनी दूर होगी विषमता ज्यादा होगी
■ गिनी गुणांक
एक सांख्यिकीय फैलाव का माप हैं, जिसका उद्देश्य किसी राष्ट्र के निवासियों के आय वितरण का प्रतिनिधित्व करना हैं, और यह सर्वाधिक प्रयोग होने वाला असमानता का माप हैं
इसका विकास समाजशास्त्री कोराडो गिनी द्वारा किया गया और यह उनके 1912 के पत्र "वरिएबिलिटी एण्ड म्युटेबिलिटी" में प्रकाशित हुआ
समाज मे व्याप्त आय एवं संपत्ति के असमान वितरण की माप सांख्यकी आधार पर करना गिनी गुणाक है
➖यदि गिनी गुणाक शून्य है तो समाज मे सभी व्यक्तियों की आय समान मानी जायेगी इसके विपरीत गिनी गुणाक का मान 1 का अर्थ है की समाज के कुछ विशेष वर्ग के पास देश की समस्त आय केंद्रित है
🔰गरीबी का सेन दृष्टिकोण
➖ उपरोक्त विद्या यह बताने में असक्षम रही की गरीबी रेखा के नीचे व्यक्ति कितना गरीब है वह उसमे कितनी असमानता है
➖ विषमता समायोजित प्रति व्यक्ति आय की धारणा अमर्त्यसेन ने 1973 में प्रस्तुत की इस में आय स्तर में वितरण का आयाम जोड़ कर एक नया माप विकसित किया
➖ w =u (1-G)
कल्याण =प्रतिव्यक्ति आय (1-विषमता की आय)
➖ सेन निर्देशाक का विकसित किया की गरीबी रेखा से कितना नीचे गिरावट उस आधार पर गणना की जा सकती है
■ Main features of economy of Rajasthan
▪Economy of Rajasthan Statistics
▪GDP - ₹ 9.29 lakh crore (US$130 billion) (2018–19 est.)
▪GDP rank 7th
▪GDP growth - 11.2%
▪GDP per capita - ₹121,581 (US$1,800) (2018–19)
▪GDP by sector
# Agriculture 25%
# Industry 30%
# Services 45% (2018–19)
▪Labour force by occupation
Agriculture 44%
Industry 8%
Services 47% (2015)
▪Public finances
▪Public debt -33.1% of GSDP (2019–20 est.)
▪Budget balance - ₹-32,768 crore (US$−4.7 billion) (3.19% of GSDP) (2019–20 est.)
▪Revenues₹1.88 lakh crore (US$27 billion) (2019–20 est.)
▪Expenses₹2.33 lakh crore (US$34 billion)
▪GSDP सकल राज्य घरेलू उत्पाद व प्रतिव्यक्ति आय (PCI) राज्य की समग्र अर्थव्यवस्था की उपलब्धि को प्रदर्शित करती है
▪GSDP राज्य आय के आर्थिक विकास के स्तर में परिवर्तन व दिशा को इंगित करती है
▪PCI = NSDP (सुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद) / राज्य की मध्यवर्गीय कुल जनसंख्या
▪PCI लोगो के जीवन स्तर तथा सम्पनता का सूचक है
▪प्रचलित कीमतों पर - सकल राज्य घरेलू उत्पाद GSDP (2018-19) -9,29,124 करोड़ है जो गत वर्ष से 11.20 % वर्द्धि दर्शाता है
▪स्थीर कीमतों पर - सकल राज्य घरेलू उत्पाद GSDP (2018-19) -6,79,314 करोड़ है जो गत वर्ष से 7.33 % वर्द्धि दर्शाता है
■ थोक मूल्य सूचकांक [ आधारवर्ष 1999-2000]
▪2018 में थोक मूल्य सूचकांक 300.27 है जिसमें 3.26 वर्द्धि हुई है
▪अखिल भारतीय स्तर पर थोक मूल्य सूचकांक ( आधारवर्ष 2011-12) में 4.21 की वर्द्धि हुई है
■ राजस्थान में वन संसाधन
▪भारत में सबसे पहले लार्ड डलहौजी ने 1855 में एक वन नीति घोषित की है
▪ब्रिटिश काल में भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति वर्ष 1894 में प्रकाशित की गई
▪ स्वतंत्रता के पश्चात् 1952 में नई वन नीति बनाई गई इस वन नीति को 1988 में संशोधित किया गया इस नीति के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भू भाग पर वन होने आवश्यक है।
▪संविधान के 42वें संशोधन 1976 के द्वारा वनों का विषय राज्यसूची से समवर्ती सूची में लाया गया।
▪राजस्थान में सर्वप्रथम 1910 में जोधपुर रियासत लागू की
▪1935 में अलवर रियासत ने वन संरक्षण नीति बनाई
▪राज्य में 1949-50 में वन विभाग की स्थापना की गई
▪स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान वन अधिनियम 1953 में पारित किया गया।
▪राजस्थान वन अधिनियम 1953 के अनुसार वनों को तीन भागों में बांटा गया है।
▪राजस्थान सरकार द्वारा 8 फरवरी 2010 में अपनी पहली राज्य वन नीति घोषित की गई है साथ ही राजस्थान वन पर्यावरण निति घोषित करने वाला देश का पहला राज्य हो गया
▪ जल सरक्षण व वरक्षारोपन के लिए 2018 -19 के बजट में प्रोजेक्ट फ़ॉर डवलपमेंट ऑफ वाटर घोषित किया गया
■ वन रिपोर्ट 2017
- 12 फरवरी 2018 को हर्षवर्धन ने जारी की थी
- राजस्थान में 477 वर्ग किलोमीटर हरित क्षेत्र बढ़ा है [सातवां]
- सर्वाधिक हरियाली वर्द्धि - जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर
- राजस्थान के 21 जिलों में 673 वर्ग किलोमीटर का इजाफा
- राजस्थान के 12 जिलों में 207 वर्ग किलोमीटर घटा है
- वन बढ़ने के मामले में राजस्थान का सातवां स्थान है
- 17 जिलों में 151 का निवेश का प्रावधान किया है
- सर्वाधिक विस्तार जैसलमेर (88 वर्ग KM) बाड़मेर (86)
- घटा है प्रतापगढ़ (48 वर्ग KM) बारा (44) चितौड़, कोटा, हनुमानगढ़, पाली,धौलपुर, करोली,चुरू,टोंक,अलवर,भीलवाड़ा]
▪कुल क्षेत्रफल 17,572 वर्ग किलोमीटर [4.84 %]
▪सघन वन - 4430 वर्ग किलोमीटर [78]
▪खुले वन - 12154 वर्ग किलोमीटर
▪अभिलेखित वन - 9.57 %
▪संरक्षित वन 18217 ( 55.64 %)
▪आरक्षित वन 12475 ( 33.11 %)
▪अवर्गीकृत वन 2045 ( 6.25 %)
▪प्रतिव्यक्ति वन 0.04 हेक्टेयर
▪सर्वाधिक वन - उदयपुर , अलवर, प्रतापगढ़, बारा
▪न्यूतम वन - चुरू,हनुमानगढ़, जोधपुर, गनागंगर
▪सर्वाधिक प्रतिशत में - उदयपुर, प्रतापगढ़,सिरोही करोली
▪न्यूतम प्रतिशत में - जोधपुर, चुरू,नागौर जैसलमेर
■ राजस्थान में कृषि
▪राजस्थान का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल वर्ष 2016-17 में 342.79 लाख हेक्टेयर है
# वानिकी -8.3%
# कृषि के अलावा भूमि - 5.74 %
# कृषि अयोग्य भूमि ( ऊसर) - 6.98 %
# बृक्ष का झुंड - 0.06 %
# बंजर भूमि - 11.18 %
# अन्य चालू पड़त -5.79%
# चालू पड़त भूमि - 4.35%
@ सुद्ध बोया गया भूमि का भाग - 53 %
▪भूमि जोत में 11.14 % वर्द्धि हुई है
▪कृषि उत्पादन (2018-19)
खददानों - 218.29 लाख टन (1.36 कम)
दलहन - 18.67 लाख टन (0.16 कम)
गन्ना - 2.73 लाख टन ( 28.53 कम)
कपास का उत्पादन - 20.27 ( 7.08 कम)
▪राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा 2007-08 में प्रारम्भ 60:40
14 जिले गेंहू के लिए व 11 जिले मोटा अनाज के लिए चिन्हित
▪राजस्थान कृषक ऋण माफी योजना 2019 - 24.44 लाख किसानों के लगभग 9513 करोड़ ऋण माफ
▪राजीव गांधी कृषक सारथी योजना - कृषक मजदूर हम्मालों की दुर्घटना पर मृत्यु पर 2 लाख राशी देना
▪किसान कलेवा योजना - अ व ब श्रेणियों की मंडियों के लिए बेचने वालो के लिए भोजन
▪महात्मा ज्योतिबा फुले मंडी श्रमिक कल्याण योजना - मण्डी के व्यक्तियों के लिए प्रसूति सहायता,चिकित्सा, पितृत्व अवकाश योजना
▪राष्ट्रीय कृषि विकास योजना - केंद्र की योजना में वर्ष 2018-19 में 91.2 करोड़ की उद्यान की विकास की परियोजना
▪अनार उत्कृष्टता केंद्र - बस्सी जयपुर
▪खट्टे फलों के लिए - नान्त कोटा
▪राष्ट्रीय आयुष मिशन योजना - 2009-10 ओषधि पौधा रोपण
▪राजस्थान राज्य भंडारण निगम की स्थापना की गई – 30 दिसंबर, 1957 को
▪किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले उर्वरक समुचित व समयानुसार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इफ्को की स्थापना की गई – 3 नवंबर, 1967 को
▪कृषिगत वित्त निगम की स्थापना की गई – अप्रैल, 1968 में
▪राज्य कृषि उद्योग निगम की स्थापना की गई – 1969 में
▪राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड की स्थापना की गई – 6 जून, 1976 को
▪प्रथम कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना की गई – फतेहपुर (राजस्थान) में1976 में
▪राजस्थान राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था की स्थापना की गई – 30 दिसंबर, 1977 को
▪राजस्थान राज्य बीज निगम की स्थापना की गई – 28 मार्च, 1978 को
▪कृषि विपणन निदेशालय की स्थापना की गई – 1980 में
▪कृभको की स्थापना – 17 अप्रैल, 1980 को
▪राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की गई – 12 जुलाई,1982 को
▪सरसो अनुसन्धान केंद्र सेवर भरतपुर - 20 अक्टूबर 1993 में
▪किसान सेवा केंद्र सादरी द्वारा जोधपुर में कब की गई – 1998 में
▪राजस्थान में 62% लोग कृषि पर आधारित है जिनका मुख्य कृषि व्यवसाय है
▪राजस्थान में 49.53 % लोग कृषि में सलंग्न है व 30 % कृषि भूमि सिंचित है
▪भारत का 11 % कृषि राजस्थान में विस्तार है
▪GVA में योगदान ( आधारवर्ष 2011-12)
:- स्थीर मूल्य पर (2016-17) - 24.61 % (2.7 कम)
:- चालू मूल्यों पर - 24.76 % ( 7.2 वर्द्धि)
▪खाद पार्क (4) - जयपुर ,कोटा, अलवर ,जोधपुर
▪सतान्तरित खेती गरासिया करते है - [भील वालरा] - [चिमाता असम] - [पाई - आंध्रप्रदेश]
▪राजस्थान सर्वाधिक उत्पादन - सरसों, बाजरा,ग्वार,मोठ,मेथी,इसबगोल, जीरा धनिया,वूलन आदि
▪खदान में - अलवर /दलहन में - नागौर /तिलहन में - बीकानेर /हरी सब्जी - जयपुर / फल - गंगानगर /मसाला- झालावाड़
▪सर्वाधिक बुवाई - बाड़मेर में
▪कम बुवाई - जैसलमेर में
▪सर्वाधिक सिंचित छेत्र- गनागंगर
▪न्यूनतम सिंचित छेत्र - चुरू
▪जोत के हिसाब से 10 जॉन मण्डल है
▪गेंहू - UP 5वां गनागंगर
▪जो - UP दूसरा जयपुर
▪चना- MP तीसरा बीकानेर
▪मोठ- राजस्थान - बीकानेर
▪बाजरा - राजस्थान - अलवर / बोया बाड़मेर
▪ज्वार - महाराट्र - 5वा अजमेर अनुसन्धान बलभनगर उदयपुर
▪मक्का - कर्नाटक - 9 - भीलवाड़ा
▪मुगफली- गुजराज - बीकानेर
▪सोयाबीन- MP - बारा
▪अफीम - UP - चितोड़
▪तंबाखू - आंध्र - जालौर
▪सरसो राजस्थान- अलवर
▪गन्ना UP- गनागंगर
■ Rajasthan- mineral and Livestock resources
▪राजस्थान खनिज की दृष्टि से एक सम्पन्न राज्य है राजस्थान को "खनिजों का अजायबघर" कहा जाता है।
▪राजस्थान में लगभग 81 प्रकार के है व 57 प्रकार के खनिजों का खनन होता है।
▪खनिज भण्डारों की दृष्टि से दुसरा स्थान है।
▪खनिज से प्राप्त आय की दृष्टि से पांचवा स्थान है। (अलौह उत्पादन में प्रथम है व लौह में चौथा है)
▪देश के कुल खनिज उत्पादन में राजस्थान का योगदान 22 प्रतिशत है (15% धात्विक, 25%अधात्विक, 26% लघु श्रेणी)
▪खनिज उत्पादन की दुष्टि से झारखण्ड, मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान का तिसरा स्थान है।
▪देश की सर्वाधिक खाने राजस्थान में है।
▪खनिजों में राजस्थान का प्रथम लौह खनिजों में राजस्थान का भारत में चतुर्थ स्थान है।
▪राजस्थान में सर्वाधिक उपलब्ध खनिज राॅक फास्फेट है।
▪राजस्थान जास्पर,बुलस्टोनाइट व गार्नेट का समस्त उत्पादन का एक मात्र राज्य है। (100%)
▪सीसा जस्ता, जिप्सम, चांदी, संगमरमर, एस्बेसटाॅस, राॅकफास्फेट, तामड़ा, पन्ना, जास्पर, फायरक्ले,कैडमियम में राजस्थान का एकाधिकार है।
▪चूना पत्थर, टंगस्टन, अभ्रक, तांबा, फेल्सपर, इमारती पत्थर में राजस्थान का भारत में महत्वपूर्ण स्थान
▪पेट्रोलियम ऊर्जा एवम खननं विश्वविद्यालय जोधपुर में है
राजस्थान का भारत में स्थान
▪अलौह खनिज का उत्पादन -प्रथम
▪लौह खनिज का उत्पादन -चतुर्थ
▪खनन में होने वाली आय -पाँचवा
▪खनिज उत्पादन का मूल्य -आठवाँ
■ राजस्थान के प्रमुख लौहा उत्पादक क्षेत्र
▪मोरीजा बेनाल (जयपुर)
▪निमला रायसेला (दौसा)
▪कुशलगढ़ (अलवर)
▪डाबला-सिंघाना (झुंझुनू)
▪नीमकाथाना (सीकर)
▪थुर, हुन्डेर व नाथरा की पाल (उदयपुर)
■राजस्थान के प्रमुख सीसा-जस्ता उत्पादक क्षेत्र
▪रामपुरा-आगूचा (भीलवाड़ा) विश्व की सबसे बड़ी सीसा-जस्ता की खान
▪जावर-देबारी (उदयपुर)
▪राजपुरा-दरीबा (राजसमंद)
▪चौथ का बरवाडा (सवाई माधोपुर)
▪1966 में जावर-देबारी में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड संयंत्र की स्थापना की गई परंतु वर्तमान में इस संयंत्र का कुछ भाग वेदांता समूह ने ग्रहण कर लिया है।
■राजस्थान के प्रमुख तांबा उत्पादक क्षेत्र
▪खेतड़ी (झुंझुनू)
▪खो-दरीबा (अलवर)
▪बीदासर व बरसिंगसर (बीकानेर)
▪पूर-दरीबा (भीलवाड़ा)
■राजस्थान के प्रमुख सोना उत्पादक क्षेत्र
▪जगतपूरा (बांसवाडा)
▪घाटोल, आनन्दपुर भूकिया (बांसवाडा)
▪पंचमऊडी, तिमरान माता (जयपुर)
▪अमलवा-डिगोच (डूंगरपूर)
राजस्थान खनिज नीति
राज्य की प्रथम खनिज नीति 1978 को घोषित की गयी।
राजस्थान खनिज नीति 2015 को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा 4 जून 2015 को जारी की गयी।
■ राजस्थान राज्य खनिज विकास निगम
▪इसकी स्थापना 27 सितम्बर 1979 में हुई लेकिन 20 फरवरी 2003 को इसका विलय RSMML में हो गया। इसका मुख्यालय जयपुर में है।
■राजस्थान राज्य खान व खनिज लिमिटेड
▪इसकी स्थापना 1974 में एक सार्वजनिक कम्पनी के रूप में हुई। यह अधात्विक खनिज के उत्पादन तथा विपणन का कार्य करती है। इसका मुख्यालय जयपुर में है।
राजस्थान में अकाल व सूखा
➖ जेम्स टॉड ने 11वीं सदी में पड़ने वाले एक भीषण अकाल का वर्णन किया जिसमें लगातार 12 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई
➖ चालीसा का अकाल : 1783 ई० ( विक्रम संवत 1840 ) में पड़े अकाल को कहा जाता है
➖ पंचकाल : 1812-13 ई० में पड़े अकाल को कहा गया है
➖ त्रिकाल : 1868-69 ई० में पड़े अकाल को कहा गया है
➖ छपनिया अकाल : 1899-1900 ई० ( विक्रम संवत 1956 ) में पड़े अकाल को कहा गया
👉राजस्थान देश का सर्वाधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र है। यहाँ अकाल एक बड़ी समस्या है।
👉राजस्थान की स्थिति पर गौर करें तो राजस्थान के निर्माण के बाद वर्ष 1959-60, 1973-74, 1975-76, 1976-77, 1990-91 व 1994-95 को छोड़कर हर साल यह क्षेत्र सूखा एवं अकाल प्रभावित रहा है।
राजस्थान कृषि नीति 2019
विश्व कृषि व्यापार में भारत की भागीदारी - 2.2% है
कृषि में भागीदारी 2016-17 राजस्थान :- 24.65 योगदान (राष्ट्रीय का 14.82 %)
पशुपालन में भागीदारी - 8.74 ( कृषि का एक तिहाई)
प्रथम :- सरसो, गवार :- अजवाइन, धनिया मैथी, ईसबगोल
द्वितीय :- चना ,जीरा, मोटा अनाज :- सब्जी,
तीसरा :- सोयाबीन, दाल ,तिलहन,
चौथा ':- लहसुन
छटा :- संतरा
आठवां :-अनाज
पशुधन (2012) - 577.32 लाख
कुटकुट धन - 802.4 लाख
देश का कुल पशुधन 11.26 %
दूध उत्पादन में दूसरा स्थान है - 12.93 %
उन में प्रथम स्थान उत्पादन - 32.89 %
मीठा पानी 4.23 लाख हेक्टेयर
NCR का राजस्थान में हिस्सा - 24.50 %
■ 19.राजस्थान में कृषि
▪राजस्थान का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल वर्ष 2016-17 में 342.79 लाख हेक्टेयर है
# वानिकी -8.3%
# कृषि के अलावा भूमि - 5.74 %
# कृषि अयोग्य भूमि ( ऊसर) - 6.98 %
# बृक्ष का झुंड - 0.06 %
# बंजर भूमि - 11.18 %
# अन्य चालू पड़त -5.79%
# चालू पड़त भूमि - 4.35%
@ सुद्ध बोया गया भूमि का भाग - 53 %
▪भूमि जोत में 11.14 % वर्द्धि हुई है
▪कृषि उत्पादन (2018-19)
खददानों - 218.29 लाख टन (1.36 कम)
दलहन - 18.67 लाख टन (0.16 कम)
गन्ना - 2.73 लाख टन ( 28.53 कम)
कपास का उत्पादन - 20.27 ( 7.08 कम)
▪राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा 2007-08 में प्रारम्भ 60:40
14 जिले गेंहू के लिए व 11 जिले मोटा अनाज के लिए चिन्हित
▪राजस्थान कृषक ऋण माफी योजना 2019 - 24.44 लाख किसानों के लगभग 9513 करोड़ ऋण माफ
▪राजीव गांधी कृषक सारथी योजना - कृषक मजदूर हम्मालों की दुर्घटना पर मृत्यु पर 2 लाख राशी देना
▪किसान कलेवा योजना - अ व ब श्रेणियों की मंडियों के लिए बेचने वालो के लिए भोजन
▪महात्मा ज्योतिबा फुले मंडी श्रमिक कल्याण योजना - मण्डी के व्यक्तियों के लिए प्रसूति सहायता,चिकित्सा, पितृत्व अवकाश योजना
▪राष्ट्रीय कृषि विकास योजना - केंद्र की योजना में वर्ष 2018-19 में 91.2 करोड़ की उद्यान की विकास की परियोजना
▪अनार उत्कृष्टता केंद्र - बस्सी जयपुर
▪खट्टे फलों के लिए - नान्त कोटा
▪राष्ट्रीय आयुष मिशन योजना - 2009-10 ओषधि पौधा रोपण
▪राजस्थान राज्य भंडारण निगम की स्थापना की गई – 30 दिसंबर, 1957 को
▪किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले उर्वरक समुचित व समयानुसार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इफ्को की स्थापना की गई – 3 नवंबर, 1967 को
▪कृषिगत वित्त निगम की स्थापना की गई – अप्रैल, 1968 में
▪राज्य कृषि उद्योग निगम की स्थापना की गई – 1969 में
▪राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड की स्थापना की गई – 6 जून, 1976 को
▪प्रथम कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना की गई – फतेहपुर (राजस्थान) में1976 में
▪राजस्थान राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था की स्थापना की गई – 30 दिसंबर, 1977 को
▪राजस्थान राज्य बीज निगम की स्थापना की गई – 28 मार्च, 1978 को
▪कृषि विपणन निदेशालय की स्थापना की गई – 1980 में
▪कृभको की स्थापना – 17 अप्रैल, 1980 को
▪राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की गई – 12 जुलाई,1982 को
▪सरसो अनुसन्धान केंद्र सेवर भरतपुर - 20 अक्टूबर 1993 में
▪किसान सेवा केंद्र सादरी द्वारा जोधपुर में कब की गई – 1998 में
▪राजस्थान में 62% लोग कृषि पर आधारित है जिनका मुख्य कृषि व्यवसाय है
▪राजस्थान में 49.53 % लोग कृषि में सलंग्न है व 30 % कृषि भूमि सिंचित है
▪भारत का 11 % कृषि राजस्थान में विस्तार है
▪GVA में योगदान ( आधारवर्ष 2011-12)
:- स्थीर मूल्य पर (2016-17) - 24.61 % (2.7 कम)
:- चालू मूल्यों पर - 24.76 % ( 7.2 वर्द्धि)
▪खाद पार्क (4) - जयपुर ,कोटा, अलवर ,जोधपुर
▪सतान्तरित खेती गरासिया करते है - [भील वालरा] - [चिमाता असम] - [पाई - आंध्रप्रदेश]
▪राजस्थान सर्वाधिक उत्पादन - सरसों, बाजरा,ग्वार,मोठ,मेथी,इसबगोल, जीरा धनिया,वूलन आदि
▪खदान में - अलवर /दलहन में - नागौर /तिलहन में - बीकानेर /हरी सब्जी - जयपुर / फल - गंगानगर /मसाला- झालावाड़
▪सर्वाधिक बुवाई - बाड़मेर में
▪कम बुवाई - जैसलमेर में
▪सर्वाधिक सिंचित छेत्र- गनागंगर
▪न्यूनतम सिंचित छेत्र - चुरू
▪जोत के हिसाब से 10 जॉन मण्डल है
▪गेंहू - UP 5वां गनागंगर
▪जो - UP दूसरा जयपुर
▪चना- MP तीसरा बीकानेर
▪मोठ- राजस्थान - बीकानेर
▪बाजरा - राजस्थान - अलवर / बोया बाड़मेर
▪ज्वार - महाराट्र - 5वा अजमेर अनुसन्धान बलभनगर उदयपुर
▪मक्का - कर्नाटक - 9 - भीलवाड़ा
▪मुगफली- गुजराज - बीकानेर
▪सोयाबीन- MP - बारा
▪अफीम - UP - चितोड़
▪तंबाखू - आंध्र - जालौर
▪सरसो राजस्थान- अलवर
▪गन्ना UP- गनागंगर
☯ हरित क्रांति [ Green Revolution ]
▪ कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में क्रांतिकारी परिवर्तन करने के उद्देश्य से अपनाएं गए कार्यक्रम को हरित क्रांति का नाम दिया गया
◆ हरित क्रांति का अर्थ और इतिहास
▪ हरित क्रांति शब्द का प्रयोग 1940 और 1960 के समयकाल में विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र में किया गया था। इस समय कृषि के पारंपरिक तरीकों को आधुनिक तकनीक और उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया गया
-:- हरित क्रांति की सुरुवात 1966 - 67 में हुई थी
▪ हरित क्रांति’ इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग डॉ. विलियम गैड ने किया था। परंतु जिस व्यक्ति ने इस शब्द को एक शाब्दिक अर्थ प्रदान किया वह डा. नॉरमन बॉरलाग हैं। उन्हें विश्व में ‘‘हरित क्रांति के जनक’’ के रूप में जाना जाता है।
▪ हरित क्रान्ति के जनक अमरीकी कृषि वैज्ञानिक नौरमन बोरलॉग (नोबल विजेता) माने जाते है
▪ भारत मे हरित क्रान्ति के जनक एम एस स्वामीनाथन माने जाते है
▪ 1965 में भारत के तत्कालीन कृषि मंत्री श्री सी. सुब्रह्मण्यम ने हरित क्रांति का बिगुल उन्नत तकनीक के गहूँ के बीजों का आयात करके किया था।
▪ उन्होनें कृषि क्षेत्र को उधयोग का दर्जा देते हुए उसे औध्योगिक तकनीक व उपकरणों का समन्वय कर दिया
▪दूसरी पंचवर्षीय योजना के उत्तरार्ध में फोर्ड फाउंडेशन के विशेषज्ञों के एक दल को कृषि उत्पादन और उत्पादकता के साधन बढ़ाने के लिए नये तरीके सुझाने के लिए भारत सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था
▪ इस टीम की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 1960 में सात राज्यों से चयनित सात जिलों में एक गहन विकास कार्यक्रम आरम्भ किया और इस कार्यक्रम को गहन क्षेत्र विकास कार्यक्रम (IADP) का नाम दिया गया था
▪ इस नई 'कृषि रणनीति' को पहली बार भारत में 1966 के खरीफ के मौसम में अमल में लाया गया और इसे उच्च उपज देने वाली किस्म कार्यक्रम (HYVP) का नाम दिया गया था
▪ उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि - HYVP केवल पांच फसलों के लिए सीमित था- गेहूं, चावल, जवार, बाजरा और मक्का
◆ हरित क्रांति के लाभ
इसका सबसे ज्यादा लाभ गेहू के उत्पादन पर पड़ा है इसका उत्पादन 1960-61 में 11.0 मिलियन टन था जो -2011-12 में 88.31मिलियन पर पहुच गया
-:- एम एस स्वामीनाथन ने भारत मे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सदाबहार क्रांति सब्द का प्रयोग किया था इन्होने 1966 में मेक्सिको के बीज व पंजाब के घरेलू बीज का मिश्रण कर संकर किस्म का बीज विकसित किया था इस कारण पद्म भूषण से 1972 में सम्मनित किया गया था
-:- 1966 में चावल की " टाइचुंग नेटिव " उच्य किस्म का प्रयोग किया गया
▪ द्वितीय हरित क्रांति ए पी जे अब्दुल कलाम ने नई दिल्ली 22-24नवम्बर 2006 को आयोजित किया गया जिसका विषय नॉलेज एग्रीकल्चर था
▪राजस्थान बेरोजगारी भत्ता
: 1 मार्च 2019 से बढ़ाने की घोषणा की गई है इस योजना से बेरोजगार युवाओं को बहुत लाभ मिलेगा
: बेरोजगार लड़कियों को 3500 रुपए
: लड़कों को 3000 रुपए वार्षिक 2 वर्ष तक प्रदान
राजस्थान स्कॉलरशिप योजना 2019
बारहवीं कक्षा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर से होनी चाहिए|
12वीं कक्षा में कम से कम 60% अंक प्राप्त किए होने चाहिए|
पहला एक लाख स्थान बोर्ड की प्राथमिकता लिस्ट में होना चाहिए
वार्षिक पारिवारिक आय 2 लाख 50 हजार रुपए से कम होनी चाहिए
छात्र-छात्राओं को मासिक 500 रुपए प्रदान करवाएं जाएंगे 1 वर्ष में केवल 10 महीने ही यह राशि प्रदान करवाई जाएगी
■ 1.उपभोक्ता का व्यवहार
▪ उपभोक्ता का व्यवाहर सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण की प्रारंभिक कड़ी है और उपभोक्ता का उपभोग समस्त आय पर निर्भर करता है
▪आय व उपभोग के सम्बंध को उपभोग फलन कहा जाता है
▪ उपभोग उसकी आय पर निर्भर है आय बढ़ने पर उपभोग बढ़ता है घटने पर उपभोग घटता है
▪उपभोक्ता व्यवहार उपभोक्ताओं का व्यवहार है जो वे किसी उत्पादन या सेवा को उपयोग करने से पूर्व या पश्चात खरीदने के दौरान करते है
▪उपभोक्ता का व्यवहार क्रेता व उपभोक्ता की संतुष्टि की व्याख्या करता है
■ उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्व
1.व्यक्तिगत घटक (उपभोक्ता की आयु, उसकी आवश्यकता, जीवन शैली,व्यवसाय ,लिंग-भेद,व्यक्तित्व, स्वधारण) उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते है
2.आर्थिक घटक (उपभोक्ता की आय,भावी आय की संभावना, साख सुविधा,तरल परिसम्पत्ति, मूल्यस्तर ) आदि उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते है
3.सामाजिक घटक ( उपभोक्ता के व्यवहार को परिवार, संपर्क समूह,प्रभावित करने वाला व्यक्ति,सामाजिक वर्ग )आदि उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते है
4.मनोवैज्ञानिक घटक (उपभोक्ता क्रय व्यवहार को अवबोधन,अनुभव द्वारा सीखना,छवि,प्रेरक तत्व) आदि उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते है
◆ मॉर्शल का उपयोगिता विश्लेषण
▪ यह मापनिय होता है जिसे मुद्रा में मापा जाता है
▪ उपयोगिता को गणात्मक संख्याओं (1,2,3..) से मापा जाता है
▪ व्यक्ति किसी वस्तु के उपभोग के लिए जितना अधिक द्रव्य(मुद्रा) देने को ततपर है उस वस्तु की उतनी अधिक उपयोगिता होगी
▪ मॉर्शल ने उपयोगिता के तीनों प्रभाव आय प्रभाव,कीमत प्रभाव व प्रतिस्थापन प्रभाव की उपेक्षा की है
◆ हिक्स का अधिमान वक्र (उदासीन) विश्लेषण
▪ अधिमान वक्रो का सर्वप्रथम प्रयोग एजवर्थ ने किया जबकि अधिमान वक्रो की सहायता से विश्लेषण हिक्स व ऐलन ने किया तथा सलूट्स्की ने इसका वैज्ञानिक प्रस्तुतिकरण किया
▪ अपनी पुस्तक वेल्यू एंड केपिटल में उदासीन वक्रो की सहायता से मांग वक्र की विस्तृत व्याख्या की
▪ इसमें संतुष्टि केवल तुलना की जा सकती है की दूसरी वस्तु से संतुष्टि समान है ,कम है या ज्यादा है
▪ अधिमान वक्र उन समान सयोगों को बताता है जो समान संतुष्टि को बताता है
▪ MRS प्रतिस्थापन की की सीमांत दर को बताता है
▪ अधिमान वक्रो का ढाल बाए से दाएं गिरता हुवा होता है मूल बिंदु उननतोदर होता है उचा अधिमान ऊची संतुष्टि को दर्शाता है
◆ जोखिम में अनिश्चितता की स्थिती में उपभोक्ता का व्यवहार
▪ उपभोक्ता द्वारा ऐसे अंको का निर्माण किया जाता है जिसमे वह परिस्थिति की अनिश्चितता के अनुमान का चयन किया जाता है
▪ एक विवेकशील उपभोक्ता जोखिम और अनिश्चितता की स्थति में निर्णय लेता है वह यह निर्णय प्रत्याशित उपयोगिता के आधार पर लेता है
▪ प्रत्याशित उपयोगिता का क्रम रेखीय होता है उपयोगिता का अनुमान बदलता रहता है
■ बर्नौली परिकल्पना
▪बर्नौली परिकल्पना उपभोक्ता का नव प्रतिष्ठित सिद्धात पर आधारित हैं
▪ उपभोक्ता उस स्थति में भी जुवा नही खेलता तथा ऐसी बाजी (बेट) नही लगता जहा जितने व हारने की संभावनाएं बराबर बराबर (50:50) हो
▪ कारण ?
उत्तर -:- इस मत को समझाने में मत दिया -लोग अपनी समस्त आय को दाव पर लगाने को तैयार नही होते क्योकि ज्यो ज्यो आय में बढ़ोतरी होती है मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है
-:- मुद्रा से उनके मौद्रिक लाभ की गणितीय प्रत्यासा बहुत अधिक है इसलिए व्यक्ति Fairbet / Games /Obeal को स्वीकार नही करता है Fairbet जिसमे लाभ हानी की सम्भावना बराबर होती है
▪ बर्नौली ने इस विरोधाभास को "सेंट पीटर्सबर्ग विरोधाभास"कहा है
▪व्यक्ति का उपयोगिता फलन जोखिम टालने के कारण नतोदर होता है
■ (N M)थ्योरी
▪जोखिम चुनाव से प्रत्याशित उपयोगिताओ की गणन संख्या (Cordinal) माप विधि का विकास किया
▪ इस तरह के जोखिम चुनावों लाटरी ,जुए आदि के सम्बंध में पाया जाता है इसलिए उन्होंने एक उपयोगिता सूचकांक की गणना की जिसे N --M उपयोगिता सूचकांक कहा गया
▪ इस सूचकांक में दोनों का मान एक के बराबर होता है
UB = UAPA + (1-PA)UC = इसमे उपभोक्ता तटस्थत रहेगा
UB > UAPA + (1-PA)UC = इसमे उपभोक्ता पैसा लगायेगा
UB <UAPA + (1-PA)UC = इसमे उपभोक्ता पैसा नही लगाएगा
▪ N M थ्योरी का सम्बंध सूचक से होता है इसमें सूचकांक तैयार किये जाते है इसमें जोखिम उठाना हैं या नहीं इसका सूचकांक बनाते है इसमे दोनों का मान 1 होता है
▪ खतरनाक विकल्पों से अपेक्षित उपयोगिता के कार्डिनल मापन की विधि विकसित की। इसके लिए, उन्होंने एक यूटिलिटी इंडेक्स बनाया जिसे N-M उपयोगिता सूचकांक कहा जाता है।
▪इसका उपयोग जुवा खेलने लाटरी लगाने,आदि में दो या दो से अधिक विकल्पों के सम्बंध में भविष्यवाणी करता है
■ फ्राइडमैन-सैवेज परिकल्पना
▪ फ्रीडमैन-सैवेज ने अनिश्चित तथा जोखिम की स्थिति में उपभोक्ता के व्यवहार को दर्शाता है
▪ कुछ लोग बीमा कराने तथा जुआ खेलने दोनों में संलग्न होते हैं और इस तरह वे जोखिम से बचने का भी प्रयास करते हैं और जोखिम उठाते भी हैं क्यों ?
उतर :- इसका विश्लेषण N-M विधि के विस्तार के रूप में फ्रीडमैन-सैवेज परिकल्पना द्वारा प्रस्तुत किया गया है
-:- फ्रीडमैन-सैवेज के अनुसार
एक निश्चित स्तर से नीचे की आय के लिए मौद्रिक आय की सीमांत उपयोगिता घटती है (बीमा करवाते है) उस स्तर और उसके ऊपर एक निश्चित स्तर के बीच की आय के लिए बढ़ती है और उसके ऊपर की आय के लिए वह पुनः घटने लगती है
▪ शून्य (0) एवं एक (1) के मध्य संभावित उपयोगिता होती है 1 > P > O एक से ज्यादा नहीं और शून्य से कम नहीं होती है
▪ निश्चित आय वर्ग (सीमान्त उपयोगिता घटती है) बीमा करवाते है
▪ मध्यम आय वर्ग (सीमान्त उपयोगिता बढ़ती है) जुवा खेलते है
▪ उच्य आय वर्ग (सीमान्त उपयोगिता घटती है) जोखिम नही उठाते जब तक अनुकूल संभावना ना हो
■ मार्कोविट्ज़ परिकल्पना
▪ मार्कोविट्ज़ परिकल्पना ,फ्रीडमैन-सेवेज परिकल्पना का एक सुधार है क्योंकि इसमें एक व्यक्ति की निरपेक्ष आय के स्थान पर उसकी वर्तमान आय पर ध्यान दिया जाता है
▪ मार्कोविट्ज़ परिकल्पना में यह मत व्यक्त किया गया है कि व्यक्ति चाहे अमीर हो या गरीब बीमा कराने अथवा दाव लगाने के प्रति उसका व्यवहार समान होता है
▪मार्कोविट्ज़ ने निरपेक्ष आय के बदले वर्तमान आय पर ध्यान दिया वर्तमान स्तर में छोटी वृद्धि के कारण मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता में वृद्धि होती है
■ स्लटस्की प्रमेय
▪ स्लटस्की प्रमेय कीमत में होने वाले परिवर्तन के आय प्रभाव एवं प्रतिस्थापन प्रभाव की व्याख्या करता है
√√ कीमत प्रभाव = आय प्रभाव +प्रतिस्थापन प्रभाव
▪ समीकरण के प्रमुख निष्कर्ष निम्नलिखित थे
1.प्रतिस्थापन प्रभाव सदैव ऋणात्मक होता है
2. आय प्रभाव धनात्मक तथा ऋण आत्मक हो सकता है
3. आय प्रभाव धनात्मक अथवा ऋणात्मक होना प्रमुख रूप से इस बात पर निर्भर करता है कि उपभोक्ता वस्तु विशेष की कितनी मात्रा का क्रय करता है
■2.Consumer and producer’s surplus
▪उपभोक्ता की बचत की विचारधारा के प्रतिपादक फ्रांसीसी अर्थशास्त्री ड्यूपीट ने 1844 में किया
▪ मार्शल ने 1879 में इसे क्रमबद्ध व वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया
▪उपभोक्ता क्या देना चाहता है और क्या देता है उसका अंतर ही बचत है
▪ मार्शल का बचत विश्लेषण
- बचत को उपयोगिता विश्लेषण द्वारा समझाया
- उपभोक्ता की बचत की व्याख्या में सीमांत उपयोगिता हास्यमान को आधार बनाया
- वस्तु की कीमत में कमी होने पर उपभोक्ता की बचत में वृद्धि
- कीमत वृद्धि होने पर उपभोक्ता की बचत में कमी होती है
▪ हिक्स विधि (ततत्स्थता व उदासीन वक्रो द्वारा)
- उपभोक्ता अतिरिक्त का विचार विलासिता की वस्तुओं पर लागू नहीं होता जबकि टाजिग के अनुसार लागू होता है
- हिक्स ने अपने लेख"The Four Consumer Surplus" में उपभोक्ता की विचारधारा का पुनर्निर्माण किया है
- अपनी परिवर्तित विचारधारा को प्रोफेसर हिक्स ने समतुल्य परिवर्तन EV तथा क्षतिपूरक परिवर्तन CV का प्रयोग किया है
▪ उत्पादक की बचत =
वास्तविक मूल्य जिस पर वस्तु की पूर्ति की जाती है - न्यूतम मूल्य जिस पर उत्पादक अपनी वस्तु की पूर्ति करना चहाता है
▪ आर्थिक अधिशेष = उपभोक्ता अधिशेष' +उत्पादक अधिशेष' का कुल जोड़ है
▪ उपभोक्ता अधिशेष = खरीददारों के लिए मूल्य - खरीदारों द्वारा भुगतान की गई राशि।
▪ निर्माता अधिशेष = उत्पादकों द्वारा प्राप्त राशि - उत्पादकों के लिए लागत।
▪ आर्थिक अधिशेष = उपभोक्ता अधिशेष + निर्माता अधिशेष
या (खरीददारों के लिए मूल्य - खरीदारों द्वारा भुगतान की गई राशि) + (राशि विक्रेताओं द्वारा प्राप्त - विक्रेताओं के लिए लागत)।
है
▪ उपभोक्ता की बचत =वास्तविक मूल्य जिस पर वस्तु की पूर्ति की जाती है -न्यूतम मूल्य जिस पर उत्पादक अपनी वस्तु की पूर्ति करना चहाता है
▪सीमान्त तुष्टिगुणो का योगफल - (कीमत ×खरीदी गई इकाइयों की संख्या)
€ MU -(P × No Of Unit)
C.S =TUx - P.x. या
C.S =€MUx - P.x
▪C. S सीमान्त = उपयोगिता का नीचें का भाग -कीमत रेखा का उपर का भाग
▪मार्शल की पुस्तक प्रिंसीपल आफ एकॉनॉमिस है
▪हिक्स ने बचत वक्र को IS वक्र व कीमत रेखा के आधार पर समझाया था
■ 3.हिक्स व सलुत्स्की का कीमत प्रभाव
▪ अधिमान वक्र विश्लेषण में कीमत में परिवर्तन के दो प्रभाव पड़ते है आय प्रभाव व प्रतिस्थापन प्रभाव
● कीमत प्रभाव क्या है ?
▪किसी एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन पर उस वस्तु की क्रय शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है कीमत प्रभाव है
- कीमत बढ़ना - संतुलन ऊंचे वक्रो पर चला जाता है
- कीमत घटना - संतुलन नीचे वक्रो पर चला जाता है
नोट - मौद्रिक आय स्थीर है
▪ कीमत प्रभाव आय प्रभाव व प्रतिस्थापन प्रभाव का मिश्रण है
▪ किसी वस्तु की कीमत बढ़ने पर संतुष्टि नीचे वक्रो पर चली जाती है
▪ किसी वस्तु की कीमत घटने पर संतुष्टि ऊंचे वक्रो पर चली जाती
● आय प्रभाव क्या है ?
▪ उपभोक्ता की आय में परिवर्तन के कारण मांग पर जो प्रभाव पड़ता है आय प्रभाव कहते है
▪ आय प्रभाव धनात्मक होता हैं (+)
- आय बढ़ने पर बढ़ता है
- आय घटने पर घटता है
नोट :- हीन वस्तु में आय बढ़ने पर मांग कम होती है
श्रेष्ठ वस्तु में आय बढ़ने पर ज्यादा मांग होती है
▪ जिस तरफ वस्तु का झुकाव होता है वह वस्तु श्रेष्ठ होती है और उसके विपरीत वाली वस्तु हीन होती है
● प्रतिस्थापन प्रभाव क्या है ?
▪दो वस्तुओं की कीमत इस तरह बदले की पहले से अछि स्थति ना हो और ना ही पहले से बुरी स्थति हो बस खरीद बदल जाती है उपभोक्ता एक ही वक्र पर बने रहते है
▪प्रतिस्थापन प्रभाव सदैव ऋणात्मक होता है ∆Q/ ∆P
● हिक्स का कीमत प्रभाव
▪सामान्य वस्तु में कीमत प्रभाव को आय प्रभाव व कीमत प्रभाव में प्रयोग करने की विधि हिक्स ने दी थी
- नीचे वक्र से ऊंचे वक्र पर जाना कीमत प्रभाव है
- उसी वक्र पर ऊपर- नीचे होना प्रतिस्थापन प्रभाव है
- नीचे वक्र के निम्न बिंदु से ऊपर के वक्र पर जाना आय प्रभाव है
▪हिक्स ने स्वतंत्र आय क्षतिपूर्ति परिवर्तन द्वारा व्याख्या की [ मौद्रिक आय को इतना परिवर्तन करो कि संतुष्टि पूर्व स्तर पर बनी रहे]
▪ सलुत्स्की :- आय क्रय शक्ति के हिसाब से बदलता है [आय को इतना कम करो कि पहले जितना सयोग मिलता रहे ] आय को स्थिर माना है
4.Price and output determination in imperfect competition
▪श्रीमती जॉन रॉबिंसन ने अपूर्ण प्रतियोगिता कहा है
▪ चेम्बरलींन एकाधिकृत प्रतियोगिता कहा है
▪ अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार की वह स्थिति होती है जिसमें पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताओं की कमी होती है अपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं की मांग पूर्णयतय लोचदार नही होती
▪ A. P लर्नर के अनुसार "अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में विक्रेताओं की वस्तु को गिरते हुए मांग वक्र का सामना करना पड़ता है"
■अपूर्ण प्रतियोगिता के प्रकार
1.दव्याधिकार
2.अल्पाधिकार
3.एकाधिकृत प्रतियोगिता
■अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत निर्धारण
- फर्म अपना उत्पादन व मूल्य इस प्रकार निर्धारित करती है कि उसे अधिकतम का लाभ प्राप्त हो सके
- अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म वहा संतुलन में होती है जहाँ MR = MC होती है तथा वही कीमत का निर्धारण करती है
- अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की मांग रेखा (AR Curve) तथा सीमान्त आगम रेखा (MR Curve) नीचे की तरफ गिरती हुई होती है
- अपूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत मांग की रेखा (AR Curve) एकाधिकार मांग रेखा (AR) से अधिक लोचदार होती है जिसके कारण अपूर्ण प्रतियोगिता में एकाधिकार की तुलना में MC तथा AR में कम अंतर होता है
■ एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता :- बाजार की वह स्थिति जिसमे बहुत सारे क्रेता बहुत सारे विक्रेता होते है तथा जिसकी वस्तु उत्पादन के निकट स्थानापन्न पाये जाते है"
उदाहरण. LUX साबुन की जगह हमाम साबुन का प्रयोग करना स्थानापन्न है एक कि जगह दूसरी वस्तु को प्रतिस्थापित करना
🔰विशेषताएं
1.एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में बहुत सारे क्रेता पर बहुत सारे विक्रेता पाए जाते हैं लेकिन पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में इनकी संख्या कम होती है
2.प्रत्येक वस्तु के निकट स्थानापन्न वस्तु पाई जाती है
3.फर्म का प्रवेश एवं बहिर्गमन पूर्ण स्वतंत्रता होती है
4.क्रेताओं को वस्तु के बारे में पूर्ण ज्ञान नहीं होता है वस्तु का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है
5.एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता में गैर कीमत प्रतियोगिता पाई जाती है
6.दीर्घकाल में समूह संतुलन पाया जाता है
7.इसमें विज्ञापन की आवश्यकता नहीं होती है
8.परिवहन लागते फर्मे स्वयं वहन करती हैं
9.दीर्घकाल में सामान्य लाभ प्राप्त होता है
10.AR व MR दोनों वक्र लोचदार होते हैं
11.अतिरिक्त क्षमता एकाधिकारात्मक में पाई जाती है
किन्तु इन रूपों में प्रमुख हैं:
1. द्वि-विक्रेताधिकार या द्वियाधिकार (Duopoly):
- जब बाजार में वस्तु के केवल दो विक्रेता ही पाये जायें तो ऐसी स्थिति को द्वि-विक्रेता अधिकार कहते हैं
- वस्तु के विक्रेता समान आकार के हों और वे एक जैसी वस्तु बेचते हों तो ऐसी स्थिति में यदि उनके बीच गलाकाट प्रतियोगिता होगी तो दोनों विक्रेताओं के लाभ समाप्त हो जायेंगे ।
2. अल्पाधिकार (Oligopoly):
➖ बाजार में कुछ बड़े विक्रेता तथा अनेक क्रेता होते है (बहुत अधिक विक्रेता नही होते)
➖ विक्रेता में आपस मे निर्भरता होती है
➖ संघर्षपूर्ण प्रतियोगिता होती है
➖ मांग वक्र की अनिश्चितता होती है
➖?व्यापार गुटो का निर्माण होता है
■ व्यापार शेयर गठबंधन :- जिनमे लागत एक जैसी होती है AR, MR एक जैसे हो लाभ समान हो समरूप उत्पादन हो
■ केंद्रीय कार्टेल : -इसमे लागत वक्र अलग होता है AR, MR एक जैसे होते है समरूप वस्तु होती है लागत बढ़ती है तो लाभ कम होता जाता है
● द्वयाधिकार
-द्वयाधिकार अल्पाधिकार का सबसे सरलतम रूप है
-द्वयाधिकार में दो विक्रेता तथा उत्पादन लगभग समान रहता है
-दोनों विक्रेताओं की स्वतंत्र उत्पादन नीति होती है
-द्वयाधिकार कीमत निर्धारण करते समय प्रतियोगिता की कीमत का ध्यान रखते है
-कीमत युद्ध की संभावना के कारण कीमत स्थायित्व रखता है
■ कुनों मॉडल -- प्रत्येक विक्रेता प्रतिद्वंद्वी की [पूर्ति स्थीर] मान लेता है
■ एजवर्थ मॉडल -- प्रत्येक विक्रेता प्रतिद्वंद्वी की [कीमत को स्थीर] मान लेता है
■ स्टेकलम्बर्ग मॉडल -- इनके अनुसार समस्या का हल नेता करता है तथा अनुयायी इसे अपनाते है
● एकाधिकारात्म प्रतियोगिता में कीमत व उत्पादन का निर्धारण
1.अल्पकाल में कीमत व उत्पादन का निर्धारण में प्रथम शर्त MR =MC होना आवश्यक हैं
(क)अधिसामान्य लाभ की स्थिति में AR > AC
(ख)सामान्य लाभ की स्थिति में AR = AC
(ग)हानि की स्थिति में AR < AC
2.दीर्घकाल में कीमत व उत्पादन का निर्धारण
LAC =SAC = AR साम्य की स्थिति में
▪कुल आगम व कुल लागत रेखा विधि द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण
▪सम विच्छेद बिंदु =सामान्य लाभ = न लाभ न हानि की स्थति
▪इस विधि के अनुसार फर्म का साम्य उस बिंदु पर होगा जहा पर कुल आगम वक्र TR तथा कुल लागत वक्र TC के बीच मे दूरी अधिकतम होगी
■ प्रमुख मॉडल
▪क़ुरनो मॉडल - (1838) में दिया गया था यह उत्पादन स्थिरता का मॉडल जिसमें MR = MC होता है
▪ब्ररट्रेंड (1883) गणितज्ञ
कीमत मॉडल प्रतिद्वंद्वी की पूर्ति को स्थिर मानता है यह बंद मॉडल है
▪एजवर्थ मॉडल (1897) स्वतंत्र निर्णय मॉडल बंद मॉडल है कीमत में अस्थिरता उत्पादन क्षमता सीमित है
▪स्ट्रेकेल मॉडल (1952) द्वि अधिकारिता मॉडल है A नेता B अनुयायी
▪हॉटलीग मॉडल (1929) - भौगोलिक स्थिति के कारण वस्तु विभेद करता है
▪पाल ए स्वीजी (1939) - मांग वक्र मोडयुक्त कीमत दृढ़ता से सम्बंधित है
▪एक ही उद्योग में स्वतंत्र फर्मो के संगठन को कार्टेल कहते है
▪विकुचित मांग मॉडल :-चेम्बरलींन के प्रत्यासीत मांग वक्र (dd) तथा बाजार मांग वक्र DD से हुई है
▪एकाधिकारात्मक प्रतियोगिता बाजार का वह स्वरूप है जिसमें बहुत सी छोटी फर्मे होती है और उनमें से प्रत्येक फर्म मिलती - जुलती वस्तुएं बेचती है परंतु वस्तुएं एक रूप नहीं होती वस्तुओं में थोड़ी भिन्नता या भेद होता है
■5. Macroeconomic variables (समष्टि के आर्थिक चर)
▪ समष्टि के आर्थिक चर वे चर है जिनका समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर अध्ययन किया जाता है ये चर समष्टि अर्थशास्त्र की विषय सामग्री के महत्वपूर्ण भाग है
1.अर्थव्यवस्था में कुल उपभोग, कुल बचत,कुल निवेश
2.सकल मांग
3.सकल पूर्ति
4.राष्ट्रीय आय
5.अर्थव्यवस्था में रोजगार का स्तर
▪ किसी भी सिद्धांत के चार अंग होते हैं
-::- चल राशियां Variables
-::- मान्यताएं Assumptions
-::- परिकल्पनाएं Hypotheses
-::- निष्कर्ष
▪ चर वे होते हैं जिनका समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर अध्ययन होता है जो विभिन्न संभावित मूल्यों को ग्रहण कर सके ऐसा सिद्धांत में चर ही मूल तत्व है
🔰 वर्गीकरण
1.स्वतंत्र चलराशी व आश्रित चलराशी
2.स्टॉक व प्रवाह
3.प्रत्यासित व वास्तविक चलराशी
4.बाह्य जात और आंतरिक चलराशीया
बचत व विनियोग उपभोग, मुद्रा की पूर्ति, राष्ट्रीय आय, रोजगार ,पूंजी सभी समष्टिगत चर है
🔰 स्वतंत्र चर राशियां व आश्रित चलराशी
▪स्वतंत्र चर -:- वे चलराशी जिस पर अन्य चर का प्रभाव नहीं पड़ता है तथा जिसका मूल्य दूसरों पर निर्भर नहीं करता है स्वतंत्र चलराशी कहलाती हैं
▪ आश्रित चर -:- वे चर राशिया जिस पर अन्य चर का प्रभाव पड़ता है तथा इसका मूल्य दूसरों पर निर्भर करता है आश्रित चर कहलाते हैं
↪ फलन D = f(P) वस्तु की मांग (आश्रित चर) =फलन (वस्तु की कीमत ) जो स्वतंत्र चर है
▪ मांग कीमत का फलन है अर्थात वस्तु की मांग कीमत पर निर्भर करती है
▪ कोई भी वस्तु सदैव स्वतंत्र नहीं होती व सदैव आश्रित नहीं होती इनका परिस्थिति अनुसार निर्धारण होता है
▪ उत्पादन का नियम में रोजगार की मात्रा (परतंत्र) वास्तविक मजदूरी (स्वतंत्र चर) है
🔰 स्टॉक व प्रवाह
▪ स्टॉक - किसी समय बिंदु को बताता है (Ponit of Time)
▪ प्रवाह - यह समय अवधि को बताता है (Peried Of Time)
नोट 🔜 कीमत एक ऐसा चर है जो ना तो स्टॉक है ना प्रवाह है
कीमत उपभोग की इकाइयों के बारे में बताती है उत्पादन सामान्य कीमत को बताता है
■ स्टॉक ■ प्रवाह
➖ संपति ➖ आय/ राष्ट्रीय आय
➖ श्रमबल (शक्ति) ➖ बजट घाटा
➖ पूंजी ➖ आयात निर्यात मात्रा
➖ मुद्रा की मात्रा(पूर्ति) ➖ मुद्रा का व्यय
➖ बैंक जमा ➖ बजट घाटा
➖ माल सूची ➖ विनियोग
➖ विदेशी मुद्रा भंडार ➖ पूंजी निर्माण/ ब्याज
➖ बचते ➖ बचत
➖ बेरोजगारों की संख्या ➖ समुद्र से तेल निकालना
➖ भारत की जनसंख्या ➖ लोहे का उत्पादन
➖ जयपुर से दिल्ली के बीच की दूरी➖ मुद्रा पूर्ति में परिवर्तन
➖ अब तक प्राप्त खनिज ➖ पूंजी पर ब्याज
➖ टैंक का पानी ➖ टैंक से रिसता पानी
➖ भारत में राष्ट्रीय पूंजी ➖ बजट घाटा
❗झील में जब तक पानी है स्टॉक कहलाता है जबकि बहता पानी प्रवाह कहलाता है
🔰 3 बहिर्जात व अंतर्जात चलराशी
■ वे चलराशी जो मॉडल बनाने से पहले निर्धारित होती है या वह चल राशि है जो किसी प्रणाली अथवा पद्धति पर बाहरी दशाओं द्वारा अधिरोपित की गई हो बहिर्जात चलराशी कहलाती है
■ अंतर्जात चलराशी
कार्य प्रणाली के अंदर से उदय होती है किसी उद्योग में एकाधिकार अंतर्जात चल राशि होती है जब पैमाने की बचते प्राप्त होने से बड़ी फर्मे छोटी फर्मो को व्यवसाय से बाहर निकाल दे तो अंतर्जात चलराशि हैं
■ एकाधिकार बाह्यय जात जब होता है जब सरकार द्वारा किसी फर्म पर कानूनी एकाधिकार का अधिकार आरोपित किया जाता है जैसे भारत रेलवे
■ यदि वाह्य जात चलराशीयो में
परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव अंतर्जात चल राशियों पर होता है
▪ आमदनी बढ़ने से मांग बढ़ती है कीमत बढ़ने से वस्तु की मात्रा बढ़ती है
▪ बहिर्जात राशियों में आय बढ़ती है व अंतर्जात चलराशी में मांग,कीमत,पूर्ति बढ़ती है
🔰 4.प्रत्यासित व वास्तविक चल राशियां
▪ वे चल राशियां जो पूर्व नियोजित हो प्रत्याशित राशी कहलाती है
▪ वास्तविक चल राशियां -:- वह चल राशि जो कार्य समाप्ति के बाद प्राप्त होती है
▪ किसी चलराशी का प्रत्यासित मूल्य वह है जिसका कोई सम्बंधित व्यक्ति ओर संगठन आशा करता हो प्रत्यासा करता हो
▪ प्रत्यासित बचत वह राशी है जिसे बचत करने को उत्सुक हैं इसलिए इसे ऐच्छिक या आयोजित चल राशि भी कहते है
▪ वास्तविक चल राशियां -:- वास्तविक चल राशि निवेश उस स्थिति में प्रत्यासित हो सकता है जब भवन निर्माण की प्रक्रिया लंबित हो गई हो इसमे वास्तविक बचत, आय,उपभोग इत्यादि लेते है
▪ वास्तविक बचत =वास्तविक निवेश (लेकिन प्रत्यासित बचत प्रत्यासित निवेश के बराबर नही होती है ) बचत > निवेश
▪ समष्टि आर्थिक विश्लेषण का अध्ययन कई कारणों से महत्वपूर्ण है, जो निम्नलिखित दिये गये हैं :
➖ अर्थशास्त्र की कार्यप्रणाली को समझाने में सहायक
➖ आर्थिक नीति निर्धारण में सहायक
➖ अंतर्राष्ट्रीय तुलना में सहायक
➖ आर्थिक नियोजन में सहायक
➖ सामान्य बेरोजगारी के विश्लेषण में सहायक
➖ मौद्रिक समस्याओं के विश्लेषण में सहायक
➖ व्यापार चक्रों के विश्लेषण में सहायक
➖ व्यष्टि अर्थशास्त्र के विकास में सहायक
■6.Consumption hypothesis उपभोग परिकल्पना
1.निरपेक्ष आय परिकल्पना किन्स 1936
2.सापेक्ष आय परिकल्पना ड्यूजन बरी 1949
3.जीवन चक्र परिकल्पना मोदी ग्लानि बबर्ग ,एंडो MBA 1950
4.स्थाई आय परिकल्पना मिल्टन फ्रीडमैन 1957
▪ किसी एक ही पक्ष को लिए किया गया वस्तु का निर्णय कहलाता निरपेक्ष और सभी पक्षों से किया गया वस्तु का अध्ययन
कहलाता सापेक्ष कथन कहलाता है
🔰 किन्स की निरपेक्ष आय परिकल्पना
🔝जो अनुपात अल्पकाल में गैर आनुपातिक(APC #MPC) होती है वह अनुपात दीर्घकाल में बराबर बराबर हो जाता है इसके
-:- 4 प्रमुख कारण है
1.व्यक्ति गांव से शहर में पलायन करता है
2.व्यक्ति वर्धवस्था में कमाता नही है फिर भी उपभोग ज्यादा होता
3.नए अविष्कारो के कारण उपभोक्ता के व्यवहार में नई नई वस्तुएं जुड़ती जाने के कारण
4.व्यक्ति की परिसम्पत्तियों की कीमत में वर्द्धि होने पर उसका उपभोग बढ़ जाता है
▪ कीन्स के उपभोग फलन में दीर्घकाल में स्वचलित उपभोग(a) समाप्त हो जाता है
▪ किन्स के उपभोग फलन में उत्क्रमणीयता पाई जाती है जैसे जैसे आय में वृद्धि होती है उपभोग में आनुपातिक रूप से कम वृद्धि होती है इसे किन्स का मनोवैज्ञानिक नियम कहा है
▪ MPC =∆C/∆Y =b सीमान्त उपभोग प्रवति (आदत)
▪ सीमान्त उपभोग प्रवर्ति एक अतिरिक्त इकाई आय बढ़ाने पर उपभोग में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त उपभोग परवर्ती कहते है उपभोग व आय के परिवर्तन का अनुपात को MPC कहलाता है
▪.उपभोग वक्र के ढाल को सीमान्त उपभोग परवर्ती कहते है
▪ अल्पकाल में MPC स्थिर होती है तथा जैसे जैसे आय बढ़ती है वैशे APC गिरती है
◆ बचत का विरोधाभास :- यदि एक व्यक्ति बचत करता है तो वरदान साबित होता है अगर सभी बचत करे तो अभिशाप साबित होता है
▪ किन्स के अनुसार राष्ट्रीय आय का निर्धारण दो तरह से होता है
C + I रेखा 45° रेखा को काटता है [S =I हो]
▪ किन्स का उपभोग फलन चालू प्रयोज्य आय का फलन है
C = a+byd
▪ Yd =Y-T आय में से टैक्स चुकाने के बाद बची खर्च योग्य आय
"■ सापेक्ष आय परिकल्पना -ड्यूजन बरी 1949
▪ यह परिकल्पना के अनुसार व्यक्ति उपभोग के सम्बंध में अपनी आय के साथ साथ पड़ोसी या आसपास रहने वाले व्यक्तियों के उपभोग व्यय से प्रभावित होता है
▪ ड्यूजन बरी ने इस उपभोग ढांचे को सामाजिक आचरण कहा है
▪ आय के स्तर गिरने से उपभोग के स्तर में कमी आती है परंतु यह आय की तुलना में कम होती है
▪ उपभोक्ता अपने स्तर को बनाये रखने के लिए पिछली बचतों का प्रयोग करता है
▪ दीर्घकाल में APC=MPC होता है इसमे उल्टक्रमनियता नही पाई जाती है
▪ रेचिट इफेक्ट(अनुवर्ती प्रभाव) इसमे आय बढ़ने के साथ साथ उपभोग में ज्यादा कमी नही आती है इसे रेचिट् प्रभाव कहते है जैसे साइकल के कुत्ते जो आगे तो बढ़ाता है पर वापस नही आने देता
▪ प्रदर्शनकारी प्रभाव को बेबलीन प्रभाव कहा जाता है
▪ चालू समय मे निरपेक्ष आय के अतिरिक्त पिछली अवधि की आय का भी उपभोग को प्रभावित करता है
▪ प्रदर्शनकारी प्रभाव ड्यूजन बरी में दिया इसकी Book इनकम,सेविंग,एण्ड थ्योरी आफ कंज्यूमर बिहेवियर 1949 में परिकल्पना दी जिसमे उपभोग ढांचे को सामाजिक आचरण कहा
▪ उपभोग व आय पर समय का प्रभाव नही पड़ता है
■ जीवन चक्र परिकल्पना 1950 (मोदी ग्लानी, बम्बर्ग, प्रो एंडो)
▪ इस परिकल्पना के अनुसार उपभोग उपभोक्ता के पूरे जीवन की प्रत्याशित आय का फलन है
▪ इस परिकल्पना में यह कहा कि व्यक्ति वर्तमान उपभोग ,वर्तमान आय का फलन नही है बल्कि सम्पूर्ण जीवन की प्रत्याशित आय पर निर्भर करता है
▪ उपभोक्ता की सुद्ध परिसम्पत्तियों उसकी बचतों का परिणाम है उसको परिसम्पत्ति का कुछ भाग भी विरासत में नही मिलता ओर ना ही वह बचो को छोड़ कर जाता है
▪ 15 वर्ष की उम्र से कमाना प्रारंभ करता है 65 वर्ष तक कमाता है जीवन प्रत्यासा 75 वर्ष मानता है
1.▪ प्रारम्भ में उसका व्यय उसकी आय से अधिक होता है अर्थात अबचत करता है
2.▪ मध्यवर्ती वर्षो में आय उसके उपभोग से ज्यादा होती है इस अवधि में बचत करता है
3.▪अंतिम वर्षो में उपभोग आय से ज्यादा होता है अबचत करता है
■ स्थाई आय परिकल्पना मिल्टन फ्रीडमैन 1957
▪ इसे मिल्टन फ्रीडमैन ने प्रस्तुत किया इसमे प्रत्यासी आय परिकल्पना कहा जाता है
▪ मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार भविष्य में आय की प्रत्यासा भी उपभोग क्रिया को प्रभावित करती है
▪ मिल्टन फ्रीडमैन में उपभोग और आय को स्थाई और अस्थाई रूपो में विभाजित किया है
▪ नोबल पुरुष्कार विजेता मिल्टन फ्रीडमैन को 1976 में पुरुस्कार मिला
◆उपभोग का cm =cp +ct
मापित उपभोग =स्थाई आय +अस्थाई उपभोग
◆ आय का उपभोग ym =yp =yt
मापित आय = स्थाई आय =अस्थाई आय
yp जो सरकार से मिलती है
yt जो आस्मिक कभी कभी मिलती है
▪स्थाई उपभोग स्थाई आय का अनुपात है (ब्याज दर ,गैर मानवीय सम्पति,मानवीय सम्पति का अनुपात,उपभोक्ता की प्रवर्ति) Cp yp का स्थिर अनुपात है जिसके कारण सम्पति की उपेक्षा वह (w) उपभोग व्यय बढ़ाता है
▪ मिल्टन फ्रीडमैन कहता है कि अल्पकाल में मापित आय अस्थाई आय से जुड़ी होती है जो कभी धनात्मक तो कभी ऋणात्मक होती रहती है लेकिन दीर्घकाल में अस्थाई आय नही पाई जाती यदि लंबे समय तक अस्थाई आय मिलती रहे तो वह स्थाई आय का भाग बन जाता है
■ 7. गुणक की अवधारणा
▪गुणक का सिद्धांत सर्वप्रथम " F. A. काहन" ने 1931 में रोजगार गुणक का प्रतिपादन किया
▪जब किसी अर्थव्यवस्था में विनियोग किया जाता है तो उससे आय में उतनी ही वृद्धि नही होती जितना विनियोग बढ़ाया है बल्की विनियोग से कुछ गुणा अधिक / कम वृद्धि होती है ऐसा गुणक प्रभाव के कारण होता है
▪गुणक वह संख्या है जिसमे विनियोग के परिवर्तन का गुणा करने पर राष्ट्रीय आय में परिवर्तन मालूम होता है
[विनियोग का परिवर्तन =राष्ट्रीय आय में परिवर्तन]
सूत्र ∆Y = K ∆ I या K = ∆Y/∆I
Y -आय को दर्शाता है
∆ -परिवर्तन को दर्शाता है
K -गुणक को कहते है
I -विनियोग को दर्शाता है
♻समीकरण -
∆Y -आय में परिवर्तन को प्रदर्शित करता जे
K -गुणक को कहते है
∆I -विनियोग में परिवर्तन को प्रदर्शित करता है
▪ गुणक के अप्रत्यक्ष रूप से सिद्धांत का प्रतिपादन "नट वीकशेल" ने स्वीडन में 19वीं सदी में किया
▪गुणक का सविस्तार वर्णन 'एन. जोहानसेन 1903 में जर्मनी में किया लेकिन इसकी व्याख्या अपूर्ण रही
▪किन्स द्वारा व्याख्या 1929 में की गई
▪ 1931 में Economic Journal प्रकाशित लेख किया R F काहन ने सर्वप्रथम से प्रस्तुत किया
▪जब निवेश बढ़ाया जाता है तो आय व रोजगार की मात्रा में वृद्धि हो जाती है
■ गुणक को प्रभावित करने वाले तत्व
⭐ बचत संग्रहण की मात्रा पर गुणक निर्भर करता है
⭐ पूर्व कर्जो को चुकाना प्रभावित करता है
⭐ निर्यात-आयात प्रभाव प्रभावित करता है
⭐ उपभोग पदार्थ की उपलब्धि
⭐ गुणक की अवधि
⭐ रोजगार की अवस्था
⭐ सरकारी व्ययों व करो का प्रभाव
🔝प्रायोगिक गुणक को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते है
▪गुणक एक अंक होता है जिसमे विनियोग के परिवर्तन से गुणा करने पर आय परिवर्तन निकल आता है
▪उपभोग की प्रवर्ति जितनी अधिक होगी गुणक की मात्रा भी उतनी अधिक होगी
▪काहन का रोजगार गुणक =कुल रोजगार सृजन / प्राम्भिक रोजगार ♻ K =N2/N1
▪गुणक का सम्बंध -(MPC) सीमांत उपभोग प्रवर्ति से प्रत्यक्ष सम्बंध है MPS से गुणक का विलोम सम्बन्ध है
▪गुणक का मूल्य ( 0 < MPC <1) होता है अर्थात 0 से अधिक होती है MPC और 1 से कम होती है
1 ओर ०० (अनन्त) के मध्य होता है
♻ MPC + MPS = 1 (दोनों का जोड़ हमेशा एक होता है)
▪किन्स ने गुणक के सिद्धान्त को विकसित किया है (निवेश को बढ़ाया जाता है तो आय व रोजगार की मात्रा कई गुना बढ़ेगी)
: ■ त्वरक Accelerator
➖ त्वरक का मूल विचार 'अफतेलियन' द्वारा 1913 में दिया गया था
➖ त्वरक के विकास का श्रेय " JB क्लार्क "को जाता है इन्होंने 1917 में दिया था इसे मांग का व्युत्पन्न मांग का त्वरण सिद्धांत कहा जाता है
➖ उपभोग में परिवर्तन से निवेश पर प्रभाव प्रकट करता है
➖ त्वरक गुणाक =प्रेरित विनियोग /उपभोग में परिवर्तन
या ∆I /∆C
त्वरण गुणाक स्थिर नही बल्कि इसमे परिवर्तन होता रहता है जो पूजी उत्पादन अनुपात पर निर्भर करता है
➖त्वरक का सम्बंध प्रेरित विनियोग से होता है
➖त्वरक पूजी उत्पादन अनुपात पर निर्भर करता है
➖गुणक व त्वरक के इकठे प्रभाव को लिवर प्रभाव कहलाता है
➖त्वरक समस्त अवधि तक स्थिर रहता है
♻उत्पादन मॉडल हिक्स का सूत्र
∆Kt/∆Yt या 1/∆Y
♻सेम्युसन का उपभोग मॉडल
∆Kt /∆Ct या 1/∆C त्वरक को शामिल किया है
➖ त्वरक सिद्धात अर्थव्यवस्था में उपभोग में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप विसुद्ध निवेश में होने वाले कई गुणा अधिक परिवर्तन का विश्लेषण करता है
प्रो कुरिहार के अनुसार " त्वरक गुणाक प्रेरित विनियोग तथा उपभोग व्यय में प्रारंभिक परिवर्तन के बीच का अनुपात है"
➖आय बढ़ने के फलस्वरूप निवेश में जितना गुणा वर्द्धि होती है उसे त्वरक कहते है उत्पादन में किसी परिवर्तन से पूजी स्टॉक में परिवर्तन होता है
∆It =V ∆Yt
➖कुल विनियोग तीन बातों पर निर्भर करता है
1.त्वरक का मूल्य
2.उत्पादन स्तर में परिवर्तन
3.पुनः स्थापित विनियोग
🔝कुल विनियोग कभी भी ऋणात्मक नही होता है
जब हम त्वरक का अध्ययन करते है तब हमें स्वायत विनियोग व प्रेरित विनियोग पर विचार करना पड़ता है
➖त्वरक सिद्धात प्रेरित विनियोग से सम्बंधित है
♻स्वायत विनियोग
वह विनियोग जो एक स्थिर उपभोग के स्तर पर होता है तथा आय व उत्पादन में परिवर्तन से प्रभावित नही होता है
♻प्रेरित विनियोग
वह विनियोग जो उपभोग वस्तुओं की मांग में वर्द्धि का कारण होता है प्रेरित विनियोग आय परिवर्तन के साथ बदलता रहता है अर्थात यह आय स्तर से प्रभावित होता है
➖ त्वरक सिद्धात उपभोग में परिवर्तन के कारण विनियोग पर पड़ने वाले प्रभाव की व्याख्या करता है
🔰गुणक व त्वरक में अंतर
⭐गुणक पर आय व रोजगार पर निवेश में परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है त्वरक में पूजी पर उपभोग/उत्पादन/आय के परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है
⭐गुणक उपभोग के रुझान पर निर्भर करता है जबकि त्वरक मशीनों के कार्यकाल पर निर्भर करता है
⭐गुणक का आधार मनोवैज्ञानिक है जबकि त्वरक का आधार तकनीकी तत्व है
➖अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त उत्पादन छमता न होने पर कुल उत्पादन में निर्दिष्ट वर्द्धि के लिए प्रेरित निवेश का कुल आकार में वर्द्धि की जाती है
➖इसमे कुल वर्द्धि तथा त्वरक के गुणनफल के बराबर होगा अर्थात ∆I =V ∆Y होगा
■8.Theories of demand for Money, Liquidity Trap
▪मुद्रा की मांग का सिद्धात प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री व कैमब्रिज अर्थशास्त्रीयो ने दिया किन्स ने मुद्रा की मांग के उद्देश्य को स्पष्ट किया है
▪आधुनिक अर्थशास्त्री में मिल्टन, फ्रीडमैन,बोमेल, टोबीन व गर्लेशा सामिल है
▪ इस सिद्धान्त का प्रतिपादन जे. एम. कीन्स (1936) में अपनी पुस्तक " General Theory of Employment, Interest and Money " में किया
▪मुद्रा की मांग का प्रयोग विनिमय कार्यो हेतु किया जाता है अतः मुद्रा की मांग व्युत्पन्न मांग कहलाती है
▪मुद्रा की मांग का निर्धारण किसी निश्चित समय अवधि में वस्तुओं ,सेवाओ तथा सम्पत्ति के व्यवसाय पर निर्भर करता है
■ मुद्रा की कुल मांग = [विनिमय सौदा मूल्य (P) × वस्तु तथा सेवा की मात्रा (T) ]
■ केम्ब्रिज अर्थशास्त्री के अनुसार
▪मुद्रा की मांग का निर्धारण में मुद्रा के सचय कार्य को महत्व दिया है केम्ब्रिज अर्थशास्त्री मुद्रा की मांग का अर्थ नगद शेष मांग से लगया जाता है इसमे राष्ट्रीय आय में शामिल होने वाली वस्तु होती है लेकिन सभी वस्तु नही है
▪नगद शेष के रूप में मुद्रा की मांग बढ़ने पर मुद्रा का प्रचलन वेग कम हो जाता है इनमे विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है
🔖केम्ब्रिज अर्थशास्त्री के अनुसार मुद्रा की मांग लोगो की तरलता पसन्दगी पर निर्भर करती है
■ किन्स का तरलता पसन्दगी सिद्धात
➖किन्स ने मुद्रा की मांग को तरलता पसन्दगी कहा है
➖तरलता पसन्दगी सिद्धात में 'ब्याज दर का निर्धारण होता है'
➖ मांग व पूर्ति शक्तियों द्वारा ब्याज दर का निर्धारण होता है
➖MD =L1+L2 +L3 (मुद्रा की मांग =सौदा +सतर्कता +सट्टा उद्देश)
A. मुद्रा की माँग (Demand of Money):
➖कीन्स के अनुसार, मुद्रा की माँग का अभिप्राय मुद्रा की उस राशि से है जो लोग अपने पास तरल (अर्थात् नकद) रूप में रखना चाहते हैं । कीन्स के अनुसार, लोग मुद्रा को नकद या तरल रूप में रखने की माँग तीन उद्देश्यों से करते हैं
1. सौदा उद्देश् (Transactive Motive):
➖व्यक्तियों को आय एक निश्चित अवधि के बाद मिलती है जबकि व्यय करने की आवश्यकता दैनिक जीवन में प्रतिदिन पड़ती रहती है । इस प्रकार आय प्राप्त करने तथा व्यय करने के बीच एक अन्तर रहता है ।
2. दूरदर्शिता उद्देश्य ( सतर्कता उद्देश्य ):
भविष्य की अनिश्चितताओं जैसे – बेकारी, बीमारी, दुर्घटना, मृत्यु आदि की दशाओं में सुरक्षित रहने के लिए अथवा भविष्य में सामाजिक रीति-रिवाजों को पूरा करने के लिए व्यक्ति नकद मुद्रा की मात्रा अपने पास रखना चाहता है । नकदी का संचय भी अनिश्चित भविष्य के प्रति सतर्कता के उद्देश्य से किया जाता है ।
3. सट्टा उद्देश्य
व्यक्ति अपने पास नकद मुद्रा इसलिए भी रखना चाहता है ताकि भविष्य में ब्याज दूर, बॉण्ड तथा प्रतिभूतियों की कीमतों में होने वाले परिवर्तन का लाभ उठा सके ।
🔰तरलता जाल (Liquidity Trap):
▪तरलता पसन्दगी रेखा (LP line) का आकार एवं ढाल ब्याज की दर (r) तथा सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग (L2) द्वारा निर्धारित होता है ।
🔰मिल्टन फ्रीडमैन का मुद्रा की मांग दृष्टिकोण
➖ मिल्टन फ्रीडमैन एक अमेरिकी अर्थशास्त्री थे जो खपत विश्लेषण, मौद्रिक इतिहास और सिद्धांत और स्थिरीकरण नीति की जटिलता पर अपना शोध करते थे।
➖मिल्टन फ्रीडमैन ने मुद्रा को संचय की जाने वाली परिसम्पत्ति माना है
➖मुद्रा के परिमाण सिद्धात को मुद्रा की मांग सिद्धात माना है
➖किसी भी देश की मुद्रा निर्धारण के लिए 4 तत्व आवश्यक है
1.सामान्य कीमत स्तर
2.वास्तविक आय या उत्पादन स्तर
3.ब्याज की प्रचलित दर
4.सामान्य कीमत स्तर में वर्द्धि
➖कीमत स्तर तथा वास्तविक आय के परिवर्तन को उसी दिशा में परिवर्तन करते है
➖ सामान्य ब्याज तथा सामान्य कीमत स्तर विपरीत दिशा में परिवर्तन करते है
■ समीकरण Md/P =फक्शन f (rm,rb,re,1/p,.Dp/dt, yp, w, u)
Md =मुद्रा की मांग का मौद्रिक स्तर
P =कीमत स्तर
rm=मुद्रा पर प्रतिफल दर,
rb=बॉन्ड पर प्रतिफल
re=इकलवीटी पर प्रतिफल डर
1/p,.Dp/dt =कीमत स्तर में प्रत्याशित परिवर्तन दर
yp =चिर आय
w =गैर मानवीय रुप मे रखी सम्पति
u= रुचि ओर अधिमान
▪वास्तविक आय के मांग निर्धारक का प्रमुख तत्व माना जाता है
▪वास्तविक आय में परिवर्तन से अनुपात में अधिक परिवर्तन होता है ∆M / ∆Y > 1
▪मिल्टन फ्रीडमैन ने मुद्रा की मांग की इकाई लोच 1.8 बताई थी
■ बोमेल का मांग दृष्टिकोण 1952
▪बोमेल ने स्टॉक के आधार पर मुद्रा की मांग का विश्लेषण किया था
▪कोई फर्म सौदे के लिए मुद्रा का अनुकूलतम स्टॉक अपने पास रखती है
➖स्टॉक को नगद रखने का दूसरा तरीका बॉन्ड है जिस पर ब्याज मिलता है ब्याज जितना अधिक होगा नगद उतना ही कम रहेगा
➖बोमेल के अनुसार जब आय में परिवर्तन होता है तब मुद्रा की सौदा उद्देश्य हेतु मांग में अनुपात से कम परिवर्तन होगा
दो प्रकार की लागते आती है
1.अवसर लागते(ब्याज लागते)
2.गैर ब्याज लागते
n = कुल लागत =ब्याज लागत +गैर ब्याज लागत
■टोबीन का दृष्टिकोण (जोखिम निवारण तरलता अधिमान सिद्धात)
▪टोबीन ने तरलता पसन्दगी का जोखिम के प्रति व्यवहार में तरलता अधिमान प्रस्तुत किया
➖टोबीन ने मौद्रिक सिद्धात को पूजी सिद्धात के साथ समन्वय करता है तथा यह बताता है कि मुद्रा की मांग का आकार मुद्रा के प्रतिस्थापन सम्पतियों से प्राप्त होने वाली आय पर निर्भर है
➖ब्याज परिसम्पत्तियों से पूजी लाभ अथवा हानि का प्रत्याशित मूल्य हमेशा शून्य होता है
➖किसी भी परिसम्पत्ति की मांग एक ब्याज दर पर निरभर ना होकर बहुत ब्याज दरों पर निर्भर है
➖एक परिसम्पत्ति की ब्याज दर केवल उसकी पूर्ति पर निर्भर नही बल्कि अन्यं परिसम्पत्तियों की पूर्ति पर निर्भर है
➖बॉन्ड व मुद्रा के चुनाव के बजाय मिश्रण को पसंद करता है
■ गुर्लेशा की विचारधारा [1959 ग्रेट ब्रिटेन]
▪मुद्रा एवम कीमतों में पूर्णता में ना केवल नगदी की मांग आती है बल्कि तरल सम्पति का समावेश होता है
➖गुर्लेशा ने तरलता पर विचार दिया
➖मांग राशियों के अतिरिक्त अन्य तरल परिसम्पत्ति को सामील किया है
🔜नोट पोर्टफ़ोलियो सिद्धात अलग अलग परिसम्पत्तियों की अलग अलग ब्याज दर मानता है जबकि तरलता सिद्धात एक ही ब्याज दर मानता है
🔵किन्स से टोबीन की श्रेष्ठता
टोबीन ने स्वम माना है कि नगदी की मांग व ब्याज दर में उल्टा सम्बंध होता है टोबीन ने किन्स के तरलता जाल को शामिल नही किया है इससे द्वि विभाजन की समस्या दूर हो गई
एक निवेशक एक समय मे बॉन्ड्स व नगदी दोनों को विभिन्न अनुपात में जमा रख सकता है जबकि किन्स केवल एक को अपने पास रखता है
■10. Inflation- Types and Control, Phillip curve
▪ सामान्य अर्थों में मुद्रास्फीति वह स्थति है जिसमें कीमत स्तर में वृद्धि होती है तथा मुद्रा का मूल्य गिरता है
▪ वेबस्टर के अनुसार " मुद्रा स्फीति वह अवस्था है जब वस्तु की उपलब्ध मात्रा की तुलना में मुद्रा तथा साख की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है और परिणाम स्वरूप मूल्य स्तर में निरंतर और महत्वपूर्ण वृद्धि होती है
▪ हिनार्थ प्रेरित स्फीति को पाल इंजिग :- ने बजटीय स्फीति कहा है
▪मुद्रा स्फीति से अभिप्राय बढ़ती हुई कीमतों के क्रम से है न की बढ़ती हुई कीमतों की स्थिति से
▪चलन स्फीति - अत्याधिक मुद्रा निर्गमन से उत्पन्न स्फीति को चलन स्फीति कहते हैं
▪ साख स्फीति :- उदार रणनीति के फलस्वरूप व्यापारिक बैंकों द्वारा अत्याधिक साख निर्गमन के कारण उत्पन्न स्फीति को साख स्फीति कहा जाता है
▪मांग प्रेरित स्फीति - वस्तुओं एवं सेवाओं की तेजी से बढ़ती मांग और फलस्वरूप तेजी से बढ़ती हुई मुद्रा की सक्रियता के कारण बढ़ने वाली कीमतें मांग प्रेरित स्फीति उत्पन्न करती है
▪लागत प्रेरित स्फीति :-वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ जाने के कारण जब वस्तुओं की कीमतों को बढ़ाया जाता है तो उसे लागत प्रेरित स्फीति कहा जाता है
▪हिनार्थ प्रेरित स्फीति - बजट के घाटे को पूरा करने के लिए हिनार्थ प्रबंधन के अंतर्गत नए नोट छापे जाना मुद्रा की पूर्ति का विस्तार करता है जिससे कीमतों में वृद्धि होती है इसे हिनार्थ प्रेरित स्फीति या बजटीय स्फीति कहा जाता है
▪अवमूल्यन जनित स्फीति - अवमूल्यन के फलस्वरूप निर्यात बढ़ने तथा देश में आंतरिक पूर्ति घट जाने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगती है जिससे अवमूल्यन जनित स्फीति उत्पन्न होती है
▪ खुली मुद्रास्फीति में समाज में बढ़ती हुई आय के उपभोग पर नियंत्रण नहीं लगाया जाता जबकि देबी मुद्रा स्पीति में उपभोग की मात्रा पर नियंत्रण लगा दिया जाता है
🔰फिलिप्स वक्र
फिलिप्स वक्र ब्रिटिश अर्थशास्त्री A W फिलिप्स ने 1958 में प्रस्तुत किया गया जिसके द्वारा ब्रिटेन में 1861-1913 की अवधि में मौद्रिक मजदूरी दरो तथा बेरोजगारी के बीच सम्बन्ध की व्याख्या की गई
➖ संबंधित आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर प्रोफेसर फिलिप्स ने यह बताया कि बेरोजगारी की दर (u)तथा मौद्रिक मजदूरी(w) में विपरीत संबंध होता है
➖ मूल रूप से फिलिप्स वक्र द्वारा केवल बेरोजगारी तथा मौद्रिक मजदूरी के बीच संबंध व्यक्त किया गया था परंतु बाद में इसका उपयोग बेरोजगारी तथा कीमतों में वृद्धि का संबंध दिखाने के लिए किया जाने लगा
🔰मुद्रा स्फीति की तीव्रता
OA रेंगती या साधारण स्फीति(2%कीमत वर्द्धि दर)
AB चलती स्फीति(5%)
BC दौड़ती स्फीति(10%)
CD सरपट भागती स्फीति(15%)
➖ मुद्रा स्फीति के प्रभाव
उत्पादक वर्ग को लाभ
निश्चित आय वर्ग वालो को हानि
पूर्ण रोजगार से पहले की स्थिति में श्रमिकों को लाभ
निश्चित आय वर्ग वेतन भोगी को हानि
धनी और अधिक धनी गरीब और अधिक गरीब
व्यापार संतुलन विपक्ष में आयात में वर्द्धि व निर्यात में कमी
ऋणदाता को हानि ऋणी को लाभ
◆ 11. Monetary and Fiscal Policies (मौद्रिक नीति व राजकोषीय नीति)
▪किसी देश मे आर्थिक विकास में मौद्रिक नीति व राजकोषीय नीति का महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि जहा मौद्रिक नीति मुद्रा के प्रसार तथा संकुचन को नियंत्रित करती है वही राजकोषीय नीति सार्वजनिक व्यय को नियंत्रित करती है
● मौद्रिक नीति (Monetary policy)
▪मौद्रिक नीति का अर्थ केंद्रीय बैंक की उस नियंत्रण नीति से लगाया जाता है जिसके द्वारा मुद्रा एवम साख की मात्रा उसकी लागत तथा उसके उपायों को नियंत्रित किया जाता है
▪मौद्रिक नीति; भारतीय रिज़र्व बैंक की उस नीति को बताती है जिसके माध्यम से देश की मौद्रिक नीति को इस प्रकार नियंत्रित किया जाता है कि देश में मुद्रा स्फीति को बढ़ाये बिना देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जा सके
▪मुद्रा व साख की पूर्ति पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए जो RBI द्वारा नीतियां बनाई जाती है उसे मौद्रिक नीति कहते है
▪ मौद्रिक नीति का विकसित राष्ट्रों उदेश्य " आर्थिक स्थायित्व " का है
▪ मौद्रिक नीति का विकाशशील राष्ट्रों उदेश्य " स्थिरता के साथ विकास करना " है
▪ मौद्रिक नीति में - मुद्रा की पूर्ति ,ब्याज , ऋणों को नियमित करने का प्रयास किया जाता है
▪मौद्रिक नीति का निर्धारण :- मौद्रिक नीति समिति (MPC) द्वारा किया जाता है
- यह केंद्र व राज्य समझौता का परिणाम है जो RBI act 1934 की धारा 2(!!!) cci में उल्लेख है
- इसकी सरंचना - धारा 45 ZB (i) के तहत है
- इसका गठन रंगराजन समिति की सिफारिश पर 27 जून 2016 को किया गया था
- कुल 6 सदस्य है (3 RBI से व 3 बाहरी )
अक्टूबर 2019 में मौद्रिक नीति समिति में शामिल सदस्य इस प्रकार हैं;
1. भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर - अध्यक्ष, पदेन; (श्री शक्तिकांत दास)
2. भारतीय रिजर्व बैंक के उप-गवर्नर, मौद्रिक नीति के प्रभारी – सदस्य, पदेन; (बीपी कानूनगो)
3. भारतीय रिजर्व बैंक के एक अधिकारी को केंद्रीय बोर्ड द्वारा नामित किया जाता है - पदेन सदस्य,; (डॉ. माइकल देवव्रत पात्रा)
4. डॉ. रवींद्र ढोलकिया, प्रोफेसर, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद - सदस्य
5. प्रोफेसर पामी दुआ, निदेशक, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स - सदस्य
6. श्री चेतन घाटे, प्रोफेसर, भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) - सदस्य
पदेन सदस्यों को छोड़कर शेष सभी सदस्य 4 वर्ष या अगले आदेश तक (जो भी पहले हो) कार्यभार सँभालते हैं.
मौद्रिक नीति के साधन दो प्रकार के होते हैं:
1. मात्रात्मक साधन (Quantitative Instruments): सामान्य या अप्रत्यक्ष (कैश रिज़र्व रेशियो, वैधानिक तरलता अनुपात, ओपन मार्केट ऑपरेशंस, बैंक दर, रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, सीमांत स्थायी सुविधा और लिक्विडिटी एडजस्टमेंट फैसिलिटी (LAF).
2. गुणात्मक साधन (Qualitative Instruments): चयनात्मक या प्रत्यक्ष (मार्जिन मनी में परिवर्तन, प्रत्यक्ष कार्रवाई, नैतिक दबाव
▪[नीति दरें]
▪रिपो दर - 5.15%
▪प्रत्यावर्तनीय रिवर्स रिपो दर - 4.90%
▪सीमांत स्थायी सुविधा दर (MSF)- 5.40%
▪बैंक दर - 5.40%
▪[आरक्षित अनुपात]
▪CRR (सीआरआर) 4%
▪SLR (एसएलआर) 18.50%
▪GDP का अनुमान 6.9 से घटाकर 6.1 कर दिया गया
▪रेपो रेट बढ़ने पर मुद्रा की तरलता कम होती है जिससे लोन मंहगे होते है मुद्रा का संकुचन होता है इसे टाइट पोलोसी कहते है
● राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)
▪राजकोषीय नीति सरकार द्वारा बनाई जाती है
▪राजकोषीय नीति के अंतर्गत हम सरकार की आय और व्यय के द्वारा अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कार्यो का उल्लेख करते है
▪राजकोषीय नीति के उपकरण [ बजट नीति - सार्वजनिक व्यय - कराधान - सार्वजनिक ऋण ]
▪राजकोषीय नीति आर्थिक विकास को बल देती है. यह कई तरह से काम करती है. इसके जरिए सरकार अधिक खर्च को नियंत्रित या टैक्स में कटौती करती है. साथ-साथ दोनों काम भी किए जा सकते हैं.
▪इसका मकसद होता है उपभोक्ताओं के हाथों में अधिक पैसे डालना. जब उपभोक्ताओं के हाथ में ज्यादा पैसे आते हैं तो वे अधिक खर्च करते हैं. इससे आर्थिक विकास का पहिया तेजी से घूमता है.
बजट के आंकड़े पढ़ना है ...
: ■ 12. Free trade and protection (Customs,Quota,License)
▪मुक्त या स्वतंत्र व्यापारवह क्षेत्र होता है जहां से वस्तुओं के निर्माण, निर्यात, प्रसंस्करण आदि की सुविधा होती है उपर्युक्त क्षेत्र कस्टम ड्यूटी, उत्पाद शुल्क आदि से भी मुक्त होते हैं। जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलता है
▪एडम स्मिथ स्वतंत्र व्यापार को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि ” स्वतंत्र व्यापार से आशय व्यापारिक नीति को उस प्रणाली से है जो घरेलू एवं विदेशी वस्तुओं में कोई अन्तर नहीं करती न तो विदेशी वस्तुओं पर कोई अतिरिक्त कर लगाया जाता है और न ही घरेलू वस्तुओं की कोई विशेष रियायत या सुविधा दी जाती है
▪स्वतंत्र व्यापार श्रम विभाजन के कारण होता है
▪स्वतंत्र व्यापार के प्रवर्तक एडम स्मिथ थे तथा इनका समर्थन रिकार्डो , जे. एस. मिल व बर्टेबल ने किया है
▪स्वतंत्र व्यापार का उद्देश्य उत्पादन को अधिक करना, सस्ता आयात, एकाधिकार से मुक्ति, विश्व संसाधनों का अनुकलतम प्रयोग, बाजार विस्तार, राष्ट्रीय आय में वर्द्धि ,परस्पर सहयोग, अविष्कार को प्रोत्साहन के लिए आवश्यक है
▪GATT ,WTO ECM स्वतंत्र व्यापार के प्रमुख उदाहरण है
मुक्त व्यापार नीतियां, अपने सबसे अच्छे रूप में, आयात प्रतिबंधों (जैसे कि टैरिफ और कोटा) की पूर्ण अनुपस्थिति के लिए अधिवक्ता और निर्यात उद्योगों की कोई सब्सिडी नहीं के लिए
■ सरक्षण (protection)
▪सरक्षण एक ऐसी नीति है जिसके अंतर्गत विभिन्न तरीकों से आयतों को नियंत्रित कर सरक्षण प्रदान करना या उत्पादकों को आर्थिक सहायता प्रदान करने को सरक्षण व्यापार कहा जाता है
उदहारण - प्रशुल्क ,आयात अभ्यस, विनिमय नियंत्रण, कीमत विभेद, राज्य व्यापार
▪सरक्षण व्यापार का प्रारंभिक विश्लेषण :-1789 में ''अलेक्जेंडर हेमिल्टन " ने अमेरिका की संसद के सम्मुख रखा था
▪घरेलू उद्योग धंधों को सरक्षण का प्रथम तर्क फ्रेडरिक लिस्ट (1841) में दिया था
▪प्रो.ए. मुराद "राष्ट्र हितों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की नीति को सरक्षण कहा जाता है"
■सरक्षण के उपाय
▪प्रशुल्क प्रतिबंध(प्रशुल्क और तटकर)
▪गैरप्रशुल्क प्रतिबंध (कोटा अभ्यंस,अनुदान, राशिपातन, प्रतिरोधक कर)
▪राशीपातन :- स्वदेश में अधिक कीमत वसूलना व विदेशों से कम कीमत वसूलना राशिपतन कहलाता है
■ प्रशुल्क [Customs] :-यह एक प्रकार का कर होता है जो अंतरास्ट्रीय सिमा पार करने पर लगाया जाता है चाहे आयात हो या निर्यात यह सीमान्त आयतों पर लगता है यह दो प्रकार का होता है राजस्व प्रशुल्क व सरक्षण प्रशुल्क
▪A देश अगर प्रशुल्क लगाता है स्थिति A देश के पक्ष में हो जाएगी क्योकि A देश राजस्व वसूली करता है इसलिए शर्ते A देश के पक्ष में हो जाती है और अगर यदि B देश प्रतिशोधात्मक नीति अपनाता है तो यथावत स्थिति बनी रहेगी
■ कोटा [Quota]
■ व्यापार की शर्तों को प्रभावित करने वाले तत्व
1.पारस्परिक मांग-जिस देश की पारस्परिक मांग तीव्र होगी व्यापर शर्ते उसके प्रतिकूल होगी
2.प्रशुल्क-जो देश प्रशुल्क लगाता है उसके पक्ष में व्यापार शर्ते होगी
3.कोटा -एकाधिकार के पक्ष में होता है
4.प्रोधोगिकी में परिवर्तन-परिवर्तन करने वाले के विरुद्ध होती है
5.साधन सम्पनता-जिसकी साधन सम्पनता बढ़ती है उसके विपक्ष में
6.मांग में परिवर्तन -जिसकी मांग परिवर्तन उसके विपक्ष में
7.रुचियों में परिवर्तन -जिसकी रुचि बढ़ी उसके विपक्ष में
8.आर्थिक वर्द्धि
9.भुगतान शेष
10.स्फीति व अवस्फीति
11.आयात स्थापन्न
12.अंतरराष्ट्रीय पूजी प्रवाह
13.अवमूल्यन जो करता है उसके विपक्ष में
14.स्थानापन्न वस्तु की उपलब्धता
■ 13.Theories of trade – comparative cost and opportunity cost, Terms of Trade
▪अंतरराष्ट्रीय व्यापार का प्रारम्भ अदल बदल क्रिया से हुवा है आंतरिक व्यापार व अंतरराष्ट्रीय व्यापार
▪ओहलीन के अनुसार - अंतरराष्ट्रीय व्यापार अन्तरक्षेत्रीय व्यापार की विशिष्ट दशा है -
▪ अंतररष्ट्रीय व्यापार का प्रतिष्ठित सिद्धात के जनक एडम स्मिथ व डेविड होम्यु है क्रमबद्ध अध्ययन डेविड रिकार्डो ने किया
■ तुलनात्मक लागत सिद्धात - डेविड रिकार्डो (1817)
- श्रम के मूल्य सिद्धात पर आधरित है
- व्यापार लागतो में निरपेक्ष अंतर नही बल्कि तुलनात्मक अंतर के कारण होता है
है
-व्यापार की अनिवार्य शर्ते =M1 /ME <M3 /M4<1
▪Book :" दा प्रिसिंपल आफ पोलटिकल इकोनॉमी एंड टेक्स्टन"
▪तुलनात्मक लागत सिद्धांत की आनुभविक व सांख्यकी जांच मेकडुगल 1991 की थी
▪तुलनात्मक लागत सिद्धांत की मौद्रिक व्याख्या टासींग ने की थी
■ अवसर लागत का सिद्धांत : हेबलेर (1936)
▪दो वस्तुओं के बीच विनिमय अनुपात प्रतिस्थपन (स्थान बदल कर) द्वारा व्यक्त किया जा सकता है
▪पूजी व श्रम दोनो को शामिल किया है
▪हैबलर के अनुसार उत्पादन संभावना वक्र की आकृति उत्पादन के नियमों अर्थात लागत की दशाओ से प्रभावित होती है
1.स्थीर लागत दशा में(स्थीर उतपत्ति के नियम) बाए से दायें सरल रेखा
2.बढ़ती अवसर लागत(घटते उतपत्ति के नियम) मूल बिंदु के नतोदर (आंशिक विशिष्टकरण)
3.घटती अवसर लागत(बढ़ते उतपत्ति के नियम) मूल बिंदु के उन्नतोदर
▪अवसर लागत से आशय है एक वस्तु की दूसरी वस्तु से प्रतिस्थापन करने की लागत से है अवसर लागत को त्याग ते हुए विकल्प के रूप में व्यक्त किया है
1.रिकॉर्ड उत्पादन को एक मात्र साधन मानता था जबकि हैबलर पूंजी व श्रम को सम्मिलित करता है
2.रिकार्डो एक देश ,एक वस्तु में पूर्ण विशिष्ट करण दूसरा देश दूसरी वस्तु में पूर्ण विशिष्ट करण को मानता है जबकि हैबलर ने पूर्ण विशिष्टीकरण और अपूर्ण विशिष्ट कर्ण दोनों को अपने सिद्धांत में शामिल करता है
3.रिकार्डो ने पैमाने के स्थिर प्रतिफल को मानता है जबकि हैबलर तीनों पैमानों को मानता है
▪व्यापार दो देशों के मध्य होता है दो वस्तुएं, दो साधन श्रम व पूजी होती हैं 2×2×2
🔅निरपेक्ष लाभ सिद्धात :-एडम स्मिथ
🔅पारस्परिक मांग सिद्धात :- जे एस मील
🔅प्रस्ताव वक्र सिद्धात :-मार्शल
🔅सापेक्षित लागतो का सिद्धात। :-हेक्सचर ओहलीन
🔅अंतरराष्ट्रीय व्यापार तुलनात्मक लागत सिद्धांत : डेविड रिकार्डो
■ व्यापार की शर्तें
▪व्यापार शर्तें उस दर की ओर संकेत करती हैं जिस दर पर एक देश की वस्तु का दूसरे देश की वस्तुओं से विनिमय होता है यह दर ही देश के आयतों के रूप में उस देश के निर्यातो की क्रय शक्ति की माप है और निर्यात कीमतों व आयात कीमतों के मध्य संबंध व्यक्त करता है
▪ सूत्र व्यापार शर्तें =आयातो का कुल मूल्य / निर्यातो का कुल मूल्य [Pm/Px]
▪अंतरराष्ट्रीय व्यापार में जिस मूल्य पर वस्तुओं का आदान प्रदान होता है उसे अंतरराष्ट्रीय विनिमय अनुपात को व्यापार शर्ते कहते हैं
● व्यापार की शर्तों का वर्गीकरण
■A. वस्तुओं के विनिमय अनुपात से सम्बंधित व्यापार शर्ते
▪टासिंग ने सुद्ध तथा सकल वस्तु विनिमय व्यापार शर्तो की धारणा प्रस्तुत की
1.सुद्ध वस्तु विनिमय व्यापार की शर्तें सूत्र - N =Px/Pm
यहा पर :-
- N सुद्ध विनिमय व्यापार की शर्तें
- Px निर्यात मूल्य
- Pm आयात मूल्य
▪यदि आयात मूल्य की तुलना में निर्यात मूल्य अधिक होता है तो व्यापार की शर्तें देश के अनुकूल तथा विपरीत स्थिति में प्रतिकूल होती है
अनुकूलतम व्यापार की शर्ते -Px >Pm
प्रतिकूल व्यापार की शर्ते -Px < Pm
2.सकल वस्तुओं व्यापार की शर्तें - टाजिंग 1927
सूत्र में G =Qm /Qx (आयात मात्रा/ निर्यात मात्रा )
यदि चालू वर्ष की सकल वस्तु विनिमय व्यापार की शर्त (G) में वृद्धि होती है तो अनुकूल तो व्यापार शर्त का घोतक है
3.आय व्यापार शर्ते
▪आय व्यापार की शर्तों को आयात करने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है
▪इस शब्द का प्रतिपादन जी.एस डोरेंस व एच् स्टेहल ने किया यदि किसी भी देश के भुगतान संतुलन साम्य में है तब
PC.Qx =Pm.Qm
Qm = Of.Qx /Pm
यहा
Px -निर्यात वस्तु का मूल्य
Qx-निर्यात वस्तु की मात्रा
Pm -आयात वस्तु का मूल्य
Qm-आयात वस्तु की मात्रा
■ B. साधनों के स्थानांतरण से संबंधित व्यापार की शर्तें
1.एक घटक के व्यापार शर्तें - प्रतिपादन वाइनर ने किया
S =Px /Pm .Zx
यहा पर
Zx -निर्यातों की उत्पादकता का सूचकांक
S- एक घटकीय व्यापार की शर्तें
Px/Pm - शुद्ध वस्तु विनिमय व्यापार शर्तें
2.दिघटकीय व्यापार की शर्तें :- सूत्र D =N.Zx /Am
यहां Zm -आयात वस्तु का उत्पादकता सूचकांक है
यदि D में वृद्धि होती है तो यह एक बात का सूचक है कि निर्यात उत्पादन में प्रदेश के साधनों का एक इकाई के बदले आयात उत्पादन में प्रयुक्त विदेशी साधनों की अधिकता प्राप्त की जा सकती है
■ C. उपयोगिता से संबंधित व्यापार शर्तें
1. वास्तविक लागत व्यापार शर्ते
▪वाइनर ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के वास्तविक लाभों का निर्धारण करने के लिए वास्तविक व्यापार का प्रतिपादन किया
R =Px /Pm .Zx.Rx
अथवा R =N.Zx.Rx
R-वास्तविक लागत व्यापार की शर्तें
Rx- निर्यात के उत्पादन में प्रति का साधन की उपयोगिता का सूचकांक
R में होने वाली इस बात का सूचक है कि प्रति इकाई वास्तविक लागत से प्राप्त आयातो की मात्रा अधिक है
2.उपयोगिता व्यापार शर्तें सूत्र Tu =N.Zx.Rx.u
यहां Tu व्यापार की उपयोगिता शर्त का सूचकांक है
इस तरह यदि वास्तविक लागत व्यापार की उपयोगिता तथा की गई वस्तुओं के सूचकांक का गुणा कर दिया जाए तो व्यापार को ज्ञात किया जाता है
■ 14.Foreign Direct Investment[ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश]
▪किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया निवेश प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (फॉरेन डाइरेक्ट इन्वेस्टमेन्ट / एफडीआई) कहलाता है
▪किसी निवेश को FDI का दर्जा दिलाने के लिए कम-से-कम कंपनी में विदेशी निवेशक को 10 फीसदी शेयर खरीदना पड़ता
▪प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDi) मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
१.ग्रीन फील्ड निवेश - स्वामित्व व नियंत्रण स्वम के पास
२.पोर्टफोलियो निवेश - प्रभुत्व व नियंत्रण नही होता लाभांश की गारंटी होती है
▪भारत बीते वित्त वर्ष 2018-19 में अब तक का सर्वाधिक 64.37 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) मिला
■ WTO विश्व व्यापार संगठन
▪विश्व व्यापार संगठन (वर्ल्द ट्रेड ऑर्गनाइजेशन/WTO) एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जो विश्व व्यापार के लिए नियम बनाता है
▪स्थापना :- 1 जनवरी 1995 जेनेवा (स्विट्जरलैंड)
▪सदस्य :- 164 देश [29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना था] प्रारम्भिक सदस्य 77 थे
▪महानिदेशक :-राबर्ट अज्बेड़ा
प्रथम महानिदेशक पीटर सदरलैंड थे
▪इसके प्रथम स्थायी अध्यक्ष इटली के एक प्रमुख व्यवसायी रेनटो रुगियरो (Renato Ruggiero) बनाए गये
▪ बैठक :- 13 और 14 मई, 2019 के मध्य नई दिल्ली ( दो वर्ष में दो बार)
▪यह बैठक वर्ष 2020 में कज़ाखस्तान में आयोजित होने वाले विश्व व्यापार संगठन के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन से पहले आयोजित एक महत्त्वपूर्ण बैठक है।
▪विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना 1995 में मारकेश संधि के तहत की गई थी
▪विश्व व्यापार संगठन का मूल “प्रशुल्क एवं व्यापार पर सामान्य समझौता”/”GATT” (General Agreement on Tariffs and Trade) में निहित है. GATT की स्थापना 1948 में मूलतः 23 संस्थापक देशों द्वारा की गई थी जिनमें भारत भी एक था.
# WTO की मूल संरचना में निकाय
1.मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (Ministerial Council) : शासी निकाय है यह संगठन की रणनीतिक दिशा तय करता है
2.सामान्य काउंसिल (General Council) : व्यवहार में, ज्यादातर मामलों के लिए यह डब्ल्यूटीओ का फैसला करने वाला मुख्य अंग है।
3.व्यापार नीति समीक्षा निकाय (The Trade Policy Review Body): यह उरुग्वे राउंड के बाद बने व्यापार नीति समीक्षा तंत्र की देखरख करता है
4.विवाद निपटान निकाय (Dispute Settlement Body): जिन देशों के बीच व्यापार सम्बन्धी कोई विवाद होता है तो वे इसी निकाय के सामने अपील कर न्याय मांगते हैं
5.वस्तुओं एवं सेवाओं में व्यापार पर परिषद
: यह वस्तुओं ( कपड़ा और कृषि जैसे) और सेवाओं में व्यापार पर हुए आम एवं विशेष समझौतों के विवरणों की समीक्षा के लिए तंत्र प्रदान करते हैं।
■ World Bank विश्व बैंक
▪विश्व बैंक विशिष्ट संस्था है।इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निमाण और विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता देना है
▪विश्व बैंक समूह पांच अंतरराष्ट्रीय संगठनों का एक ऐसा समूह है जो सदस्य देशों को वित्त और वित्तीय सलाह देता है
▪मुख्यालय : वॉशिंगटन, डी॰ सी॰ में है
▪अध्यक्ष : डेविड मालपास अमेरिका 13वें
[ विश्वबैंक का अध्यक्ष IBRD व IDA के अध्यक्ष होते हैं.]
▪ सदस्य : 189 देश सदस्य
▪स्थापना : 1945 ( कार्य प्रारम्भ 1946)
▪
1. पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (International Bank for Reconstruction and Development-IBRD) स्थापना : 1945 सदस्य 188
2. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation-IFC) : 1956 में स्थापना 184 सदस्य
3. अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (International Development Association-IDA) स्थापना :1960 में सदस्य173 देश IDA विश्व बैंक का वह हिस्सा है जो दुनिया के सबसे गरीब देशों की मदद करता है
4. निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (International Centre for Settlement of Investment Disputes-ICSID) वर्ष 1966 में भारत सदस्य नही है
5. बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (Multilateral Investment Guarantee Agency-MIGA) 12 अप्रैल, 1988 को विश्व बैंक समूह के नए सदस्य के रूप में MIGA की स्थापना की गई सदस्य 179
विश्व बैंक समूह की सदस्यता
▪IBRD के आर्टिकल्स ऑफ एग्रीमेंट के तहत बैंक का सदस्य बनने के लिये किसी देश को पहले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में शामिल होना अनिवार्य है।
▪IBRD की सदस्यता मिलने पर ही IDA, IFC और MIGA की सदस्यता मिलती है।
▪ICSID में सदस्यता IBRD के सदस्यों के लिये उपलब्ध होती है, किंतु जो IBRD के सदस्य नहीं हैं, लेकिन पार्टी ऑफ इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) के सदस्य हैं, उन्हें ICSID प्रशासनिक परिषद के आमंत्रण पर अपने सदस्यों के दो-तिहाई वोट का समर्थन मिलने पर ही सदस्यता दी जाती है
▪भारत ब्रेटन वुड्स में किये गए समझौतों के मूल हस्ताक्षरकर्त्ताओं में से एक था, जिसमे (IBRD) और (IMF)) की स्थापना की
▪भारत वर्ष 1956 में IFC और 1960 में IDA के संस्थापक सदस्यों में भी शामिल था।
▪भारत जनवरी वर्ष 1994 में MIGA का सदस्य बना।
▪अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट 15 अक्टूबर IMF ने मंदी के चलते भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट घटने का अनुमान जताया है.
▪IMF ने साल 2019-20 में भारत की इकनॉमिक ग्रोथ रेट 7 फीसदी रहने की उम्मीद जताई है, जिसमें 0.30 फीसदी की कटौती की गई है.
■ IMF अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष
मुख्यालय :-
स्थापना :7 दिसम्बर 1945 कार्य प्रारम्भ 1 मार्च 1947
सदस्य : 187 देश (नोरु)
प्रबंध निदेशक : बुल्गारिया की अर्थशास्त्री क्रिस्टालिना जार्वीवा
◆ 15.Measurement of development, HDI, PQLI
■ मानव विकास सूचकांक (HDI)
▪मानव विकास सूचकांक (HDI) एक सूचकांक है, जिसका उपयोग देशों को "मानव विकास" के आधार पर आंकने के लिए किया जाता है
▪इस सूचकांक से इस बात का पता चलता है कि कोई देश विकसित है, विकासशील है, अथवा अविकसित है
▪मानव विकास सूचकांक :- जीवन प्रत्याशा, शिक्षा, और प्रति व्यक्ति आय संकेतकों का एक समग्र आंकड़ा है
▪HDI का विकास पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा किया गया था
▪कमेटी के सदस्य :-
: महबूब उल हक
: पॉल स्ट्रीटन
: फ्रैन्सस स्टीवर्ट
: गुस्ताव रानीस
: कीथ ग्रिफिन,
: सुधीर आनंद
: मेघनाद देसाई
▪प्रकाशन :- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)द्वारा
▪2010 में कई मानव विकास आयामों में से गरीबी, असमानता तथा लैंगिक सशक्तीकरण की निगरानी के लिये तीन सूचकांक शुरू किये गए थे।
1.बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index-MPI),
2.असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक (IHDI)
3.लैंगिक असमानता सूचकांक (GII)।
▪2014 में जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स (GDI) की शुरुआत की गई थी
■ HDI रिपोर्ट 2019
▪मानव विकास सूचकांक में भारत एक पायदान की छलांग लगाकर 130 से 129वें स्थान पर
▪इस सूची में पाकिस्तान ने तीन पायदान की छलांग लगाते हुए 150 से 147वें पायदान पर पहुंचा
▪भारत में 2005-06 से 2015-16 के बीच 27.1 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया
▪तीन दशकों से तेज विकास के कारण यह प्रगति हुई है, जिसके कारण गरीबी में कमी आई
■ वैश्विक HDI रैंकिंग में शीर्ष पाँच देश
1.नॉर्वे (0.954),
2.स्विट्ज़रलैंड (0.946),
3.इरलेण्ड (0.942),
4.जर्मनी (0.939)
5.हनकोंग चाइना (0.939)
■ रैंकिंग में निचले में स्थान हासिल करने वाले देश-
185.बुरुंडी (0.423),
186.साउथ सूडान (0.413)
187.चाड (0.401),
188.मध्य अफ्रीकी गणराज्य (0.381)
189.नाइजर (0.377)
▪भारत का 129 वा है (0.647)
▪HDI का अधिकतम मुख्य 1 के बराबर होता है यह 0- 1 के मध्य होता है
▪HDI का आधारवर्ष 2010 है
▪यहाँ जन्म के समय औसत जीवन प्रत्याशा 68.8 वर्ष है
6,353 रुपए की सकल राष्ट्रीय आय (Gross National Income-GNI) के साथ यहाँ स्कूली शिक्षा में अपेक्षित वर्ष 6.4 वर्ष के औसत के साथ 12.3 वर्ष हैं
▪1990 में HDI की शुरुआत के समय से 2018 तक भारत का HDI मान 0.427 से 0.640 तक पहुँच गया है अर्थात् HDI मान में 50% का सकारात्मक परिवर्तन हुआ है।
▪वर्ष 2000 से 2010 के दशक में वार्षिक विकास की उच्चतम दर 1.64% थी
▪देश की आबादी का 1 फीसदी हिस्सा ऐसा है, जो देश की कुल आय के 20% का मालिक है
▪टॉप 10 फीसदी लोगों के पास कुल आय का 55% हिस्सा है
▪1980 से लेकर अब तक आय की असमानता की खाई लगातार गहरी हुई है
▪पिछले 12 वर्षों में यह निचले आय वर्ग की आय की ग्रोथ औसत ग्रोथ से दो तिहाई कम के लेवल पर है
■ जीवन के भौकित गुणवत्ता सूचकांक [PQLI]
▪ जीवन के भौकित गुणवत्ता सूचकांक का प्रतिपादन किसने किया— जॉन टिनवर्जन (1976)
▪ जीवन के भौतिक गुणवत्ता सूचकांक को वैज्ञानिक रूप मे प्रस्तुत एवं विकसित करने का श्रेय किसे दिया जाता है—मॉरिस डी माटिस
▪मॉरीश ने 23 विकसित व विकाशशील देशों के जीवन की भौतिक गुणवत्ता का तुलनात्मक अध्ययन किया
▪मारिश का मानना है कि GDP द्वारा किसी देश की गुणवत्ता मापना उपयुक्त नही है क्योकि अलग अलग देशों की GDP अलग अलग होती है
▪इसका निर्धारण तीन तत्वों द्वारा होता है
1.साक्षरता दर
2.शिशु मृत्यु दर
3. जीवन प्रत्याशा (न्यूनतम 38 : अधितम 77)
▪सूत्र :- Literacy Rate + indexed Infant Mortality Rate + Indexed Life Expectancy /3
▪PQLI की गणना 0 और 1 के मध्य करते है
0 - अच्छा
1 - बुरा
▪अधिकतम मृत्युदर 229/1000 होगी व न्यूतम 7/1000 हो सकती है
■ 16. Poverty in India
▪गरीबी से आशय जीवन की कुछ आवश्यक आवश्यकता की पूर्ति से वंचित रहने से है
▪प्रथम वैश्विक गरीबी का अनुमान "वर्ड डवलपमेंट रिपोर्ट 1990 " में मिलता है
● गरीबी दो प्रकार की होती है
▪निरपेक्ष गरीबी : परिवार के लिए आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति जुटा पाने में असमर्थ होता है
▪ सापेक्ष गरीबी : तुलनात्मक रुप से आय की असमानताओं
▪भारत में गरीबी का अनुमान दैनिक कैलोरी उपभोग के आधार पर लगाया जाता
:- शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2100 कैलोरी
:- ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति 2400 कैलोरी
▪गरीबी रेखा या निर्धनता रेखा (poverty line) : आय के उस स्तर को कहते हैं जिससे कम आमदनी होने पे इंसान अपनी भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ होता है। गरीबी रेखा अलग अलग देशों में अलग अलग होती है।
▪योजना आयोग राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) के सर्वेक्षणों के आधार पर ही निर्धनता की संख्या का आंकलन करता रहा है
■ प्रो.डी.टी. लकड़वाला :- प्रत्येक राज्य में मूल्य स्तर के आधार पर अलग अलग निर्धनता रेखा का निर्धारण किया
- कुल 35 निर्धनता रेखाए निर्धारित की
: ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी
: शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी
▪भारत में सर्वप्रथम गरीबी का अध्ययन श्री बी एस मिन्हास ने किया और उन्होंने 1956-57 तथा 1967-68 के बीच गांव के निर्धनों के प्रतिशत में कमी होने के संकेत दिए
▪लोरेंज वक्र- 1905 में गिनी गुणांक को इटालियन कोरेडो गिनी ने विकसित किया था
2. सुरेंद्र तेंदुलकर समिति
▪प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र तेंदुलकर की रिपोर्ट गरीबी का आंकड़ा 37.2% प्रतिशत बताती है
▪ राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन 2012 में गरीबी रेखा के नीचे 22% लोग थे
3. रंगराजन समिति 2012
मनमोहन सिंह की सरकार में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार
:- शहरों में प्रतिदिन ₹45 तक खर्च
:- ग्रामीण क्षेत्रों में ₹32
:- ग्रामीण क्षेत्रों में ₹972 प्रतिमाह से कम
:- शहरों में 1407 से कम प्रतिमाह कमाने वालों को गरीब माना जाएगा
▪सामान्य रूप से भारत में 15 से 59 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्तियों को आर्थिक रुप से सक्रिय माना जाता है
🔰निर्धनता निवारण एवं रोजगार कार्यक्रम
1. सामुदायिक विकास -1952
2. प्रधानमंत्री रोजगार योजना- 2 अक्टूबर 1993
3. मिड डे मील योजना- 1995
4. स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना- 1 दिसंबर 1997
5. अन्नपूर्णा योजना- 19 मार्च 1999
6. समग्र आवास योजना- 1999
7. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वराज योजना- 1 अप्रैल 1999
8. जनश्री बीमा योजना- 10 अगस्त 2000
9. अंत्योदय अन्न योजना- 25 दिसंबर 2000
10. प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना- 2000-01 में
▪भारत में अब भी 37 करोड़ लोग गरीब, संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
▪संयुक्त राष्ट्र: भारत में स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा समेत विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति से लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिली है.
● संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट
▪वर्ष 2006 से 2016 के बीच रिकॉर्ड 27.10 लोग गरीबी से बाहर निकले हैं. फिर भी करीब 37 करोड़ लोग आज भी गरीब हैं.
28 फीसदी आबादी अब भी गरीब
▪संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 में भारत के करीब 64 करोड़ लोग (55.1 प्रतिशत) गरीबी में थे. यह संख्या घटकर 2015-16 में 36.9 करोड़ (27.9 प्रतिशत) पर आ गयी
▪रिपोर्ट में 101 देशों में 1.3 अरब लोगों का अध्ययन किया गया.
▪इसमें 31 न्यूनतम आय, 68 मध्यम आय और दो उच्च आय वाले देश शामिल थे.
▪भारत का MPI मूल्य 2005-06 में 0.283 था जो 2015-16 में 0.123 पर आ गया.
▪भारत में गरीबी में कमी के मामले में सर्वाधिक सुधार झारखंड में देखा गया गरीबी 2005-06 में 74.9 प्रतिशत से कम होकर 2015-16 में 46.5 प्रतिशत पर आ गयी
■ लोरेंज वक्र विधि
➖ ग्राफ पर 1905 में अमेरिकी अर्थशास्त्री मैक्स लोरेन्ज द्वारा विकसित धन वितरण की एक चित्रमय प्रतिनिधित्व, एक सीधे विकर्ण लाइन धन वितरण की सही समानता का प्रतिनिधित्व करता
इसका प्रत्येक बिंदु परिस्थिति को व्यक्तं करता है अलग अलग आय वाले व्यक्तियों का अलग अलग प्रदर्शन बिंदु होता है
मापन 0 से 100 तक होता है इसमे मापन ऋणात्मक नही होता है
लोरेंज वक्र जितना पास होगा विषमता उतनी ही कम होगी जबकि रेखा जितनी दूर होगी विषमता ज्यादा होगी
■ गिनी गुणांक
एक सांख्यिकीय फैलाव का माप हैं, जिसका उद्देश्य किसी राष्ट्र के निवासियों के आय वितरण का प्रतिनिधित्व करना हैं, और यह सर्वाधिक प्रयोग होने वाला असमानता का माप हैं
इसका विकास समाजशास्त्री कोराडो गिनी द्वारा किया गया और यह उनके 1912 के पत्र "वरिएबिलिटी एण्ड म्युटेबिलिटी" में प्रकाशित हुआ
समाज मे व्याप्त आय एवं संपत्ति के असमान वितरण की माप सांख्यकी आधार पर करना गिनी गुणाक है
➖यदि गिनी गुणाक शून्य है तो समाज मे सभी व्यक्तियों की आय समान मानी जायेगी इसके विपरीत गिनी गुणाक का मान 1 का अर्थ है की समाज के कुछ विशेष वर्ग के पास देश की समस्त आय केंद्रित है
🔰गरीबी का सेन दृष्टिकोण
➖ उपरोक्त विद्या यह बताने में असक्षम रही की गरीबी रेखा के नीचे व्यक्ति कितना गरीब है वह उसमे कितनी असमानता है
➖ विषमता समायोजित प्रति व्यक्ति आय की धारणा अमर्त्यसेन ने 1973 में प्रस्तुत की इस में आय स्तर में वितरण का आयाम जोड़ कर एक नया माप विकसित किया
➖ w =u (1-G)
कल्याण =प्रतिव्यक्ति आय (1-विषमता की आय)
➖ सेन निर्देशाक का विकसित किया की गरीबी रेखा से कितना नीचे गिरावट उस आधार पर गणना की जा सकती है
■ Main features of economy of Rajasthan
▪Economy of Rajasthan Statistics
▪GDP - ₹ 9.29 lakh crore (US$130 billion) (2018–19 est.)
▪GDP rank 7th
▪GDP growth - 11.2%
▪GDP per capita - ₹121,581 (US$1,800) (2018–19)
▪GDP by sector
# Agriculture 25%
# Industry 30%
# Services 45% (2018–19)
▪Labour force by occupation
Agriculture 44%
Industry 8%
Services 47% (2015)
▪Public finances
▪Public debt -33.1% of GSDP (2019–20 est.)
▪Budget balance - ₹-32,768 crore (US$−4.7 billion) (3.19% of GSDP) (2019–20 est.)
▪Revenues₹1.88 lakh crore (US$27 billion) (2019–20 est.)
▪Expenses₹2.33 lakh crore (US$34 billion)
▪GSDP सकल राज्य घरेलू उत्पाद व प्रतिव्यक्ति आय (PCI) राज्य की समग्र अर्थव्यवस्था की उपलब्धि को प्रदर्शित करती है
▪GSDP राज्य आय के आर्थिक विकास के स्तर में परिवर्तन व दिशा को इंगित करती है
▪PCI = NSDP (सुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद) / राज्य की मध्यवर्गीय कुल जनसंख्या
▪PCI लोगो के जीवन स्तर तथा सम्पनता का सूचक है
▪प्रचलित कीमतों पर - सकल राज्य घरेलू उत्पाद GSDP (2018-19) -9,29,124 करोड़ है जो गत वर्ष से 11.20 % वर्द्धि दर्शाता है
▪स्थीर कीमतों पर - सकल राज्य घरेलू उत्पाद GSDP (2018-19) -6,79,314 करोड़ है जो गत वर्ष से 7.33 % वर्द्धि दर्शाता है
■ थोक मूल्य सूचकांक [ आधारवर्ष 1999-2000]
▪2018 में थोक मूल्य सूचकांक 300.27 है जिसमें 3.26 वर्द्धि हुई है
▪अखिल भारतीय स्तर पर थोक मूल्य सूचकांक ( आधारवर्ष 2011-12) में 4.21 की वर्द्धि हुई है
■ राजस्थान में वन संसाधन
▪भारत में सबसे पहले लार्ड डलहौजी ने 1855 में एक वन नीति घोषित की है
▪ब्रिटिश काल में भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति वर्ष 1894 में प्रकाशित की गई
▪ स्वतंत्रता के पश्चात् 1952 में नई वन नीति बनाई गई इस वन नीति को 1988 में संशोधित किया गया इस नीति के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भू भाग पर वन होने आवश्यक है।
▪संविधान के 42वें संशोधन 1976 के द्वारा वनों का विषय राज्यसूची से समवर्ती सूची में लाया गया।
▪राजस्थान में सर्वप्रथम 1910 में जोधपुर रियासत लागू की
▪1935 में अलवर रियासत ने वन संरक्षण नीति बनाई
▪राज्य में 1949-50 में वन विभाग की स्थापना की गई
▪स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान वन अधिनियम 1953 में पारित किया गया।
▪राजस्थान वन अधिनियम 1953 के अनुसार वनों को तीन भागों में बांटा गया है।
▪राजस्थान सरकार द्वारा 8 फरवरी 2010 में अपनी पहली राज्य वन नीति घोषित की गई है साथ ही राजस्थान वन पर्यावरण निति घोषित करने वाला देश का पहला राज्य हो गया
▪ जल सरक्षण व वरक्षारोपन के लिए 2018 -19 के बजट में प्रोजेक्ट फ़ॉर डवलपमेंट ऑफ वाटर घोषित किया गया
■ वन रिपोर्ट 2017
- 12 फरवरी 2018 को हर्षवर्धन ने जारी की थी
- राजस्थान में 477 वर्ग किलोमीटर हरित क्षेत्र बढ़ा है [सातवां]
- सर्वाधिक हरियाली वर्द्धि - जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर
- राजस्थान के 21 जिलों में 673 वर्ग किलोमीटर का इजाफा
- राजस्थान के 12 जिलों में 207 वर्ग किलोमीटर घटा है
- वन बढ़ने के मामले में राजस्थान का सातवां स्थान है
- 17 जिलों में 151 का निवेश का प्रावधान किया है
- सर्वाधिक विस्तार जैसलमेर (88 वर्ग KM) बाड़मेर (86)
- घटा है प्रतापगढ़ (48 वर्ग KM) बारा (44) चितौड़, कोटा, हनुमानगढ़, पाली,धौलपुर, करोली,चुरू,टोंक,अलवर,भीलवाड़ा]
▪कुल क्षेत्रफल 17,572 वर्ग किलोमीटर [4.84 %]
▪सघन वन - 4430 वर्ग किलोमीटर [78]
▪खुले वन - 12154 वर्ग किलोमीटर
▪अभिलेखित वन - 9.57 %
▪संरक्षित वन 18217 ( 55.64 %)
▪आरक्षित वन 12475 ( 33.11 %)
▪अवर्गीकृत वन 2045 ( 6.25 %)
▪प्रतिव्यक्ति वन 0.04 हेक्टेयर
▪सर्वाधिक वन - उदयपुर , अलवर, प्रतापगढ़, बारा
▪न्यूतम वन - चुरू,हनुमानगढ़, जोधपुर, गनागंगर
▪सर्वाधिक प्रतिशत में - उदयपुर, प्रतापगढ़,सिरोही करोली
▪न्यूतम प्रतिशत में - जोधपुर, चुरू,नागौर जैसलमेर
■ राजस्थान में कृषि
▪राजस्थान का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल वर्ष 2016-17 में 342.79 लाख हेक्टेयर है
# वानिकी -8.3%
# कृषि के अलावा भूमि - 5.74 %
# कृषि अयोग्य भूमि ( ऊसर) - 6.98 %
# बृक्ष का झुंड - 0.06 %
# बंजर भूमि - 11.18 %
# अन्य चालू पड़त -5.79%
# चालू पड़त भूमि - 4.35%
@ सुद्ध बोया गया भूमि का भाग - 53 %
▪भूमि जोत में 11.14 % वर्द्धि हुई है
▪कृषि उत्पादन (2018-19)
खददानों - 218.29 लाख टन (1.36 कम)
दलहन - 18.67 लाख टन (0.16 कम)
गन्ना - 2.73 लाख टन ( 28.53 कम)
कपास का उत्पादन - 20.27 ( 7.08 कम)
▪राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा 2007-08 में प्रारम्भ 60:40
14 जिले गेंहू के लिए व 11 जिले मोटा अनाज के लिए चिन्हित
▪राजस्थान कृषक ऋण माफी योजना 2019 - 24.44 लाख किसानों के लगभग 9513 करोड़ ऋण माफ
▪राजीव गांधी कृषक सारथी योजना - कृषक मजदूर हम्मालों की दुर्घटना पर मृत्यु पर 2 लाख राशी देना
▪किसान कलेवा योजना - अ व ब श्रेणियों की मंडियों के लिए बेचने वालो के लिए भोजन
▪महात्मा ज्योतिबा फुले मंडी श्रमिक कल्याण योजना - मण्डी के व्यक्तियों के लिए प्रसूति सहायता,चिकित्सा, पितृत्व अवकाश योजना
▪राष्ट्रीय कृषि विकास योजना - केंद्र की योजना में वर्ष 2018-19 में 91.2 करोड़ की उद्यान की विकास की परियोजना
▪अनार उत्कृष्टता केंद्र - बस्सी जयपुर
▪खट्टे फलों के लिए - नान्त कोटा
▪राष्ट्रीय आयुष मिशन योजना - 2009-10 ओषधि पौधा रोपण
▪राजस्थान राज्य भंडारण निगम की स्थापना की गई – 30 दिसंबर, 1957 को
▪किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले उर्वरक समुचित व समयानुसार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इफ्को की स्थापना की गई – 3 नवंबर, 1967 को
▪कृषिगत वित्त निगम की स्थापना की गई – अप्रैल, 1968 में
▪राज्य कृषि उद्योग निगम की स्थापना की गई – 1969 में
▪राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड की स्थापना की गई – 6 जून, 1976 को
▪प्रथम कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना की गई – फतेहपुर (राजस्थान) में1976 में
▪राजस्थान राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था की स्थापना की गई – 30 दिसंबर, 1977 को
▪राजस्थान राज्य बीज निगम की स्थापना की गई – 28 मार्च, 1978 को
▪कृषि विपणन निदेशालय की स्थापना की गई – 1980 में
▪कृभको की स्थापना – 17 अप्रैल, 1980 को
▪राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की गई – 12 जुलाई,1982 को
▪सरसो अनुसन्धान केंद्र सेवर भरतपुर - 20 अक्टूबर 1993 में
▪किसान सेवा केंद्र सादरी द्वारा जोधपुर में कब की गई – 1998 में
▪राजस्थान में 62% लोग कृषि पर आधारित है जिनका मुख्य कृषि व्यवसाय है
▪राजस्थान में 49.53 % लोग कृषि में सलंग्न है व 30 % कृषि भूमि सिंचित है
▪भारत का 11 % कृषि राजस्थान में विस्तार है
▪GVA में योगदान ( आधारवर्ष 2011-12)
:- स्थीर मूल्य पर (2016-17) - 24.61 % (2.7 कम)
:- चालू मूल्यों पर - 24.76 % ( 7.2 वर्द्धि)
▪खाद पार्क (4) - जयपुर ,कोटा, अलवर ,जोधपुर
▪सतान्तरित खेती गरासिया करते है - [भील वालरा] - [चिमाता असम] - [पाई - आंध्रप्रदेश]
▪राजस्थान सर्वाधिक उत्पादन - सरसों, बाजरा,ग्वार,मोठ,मेथी,इसबगोल, जीरा धनिया,वूलन आदि
▪खदान में - अलवर /दलहन में - नागौर /तिलहन में - बीकानेर /हरी सब्जी - जयपुर / फल - गंगानगर /मसाला- झालावाड़
▪सर्वाधिक बुवाई - बाड़मेर में
▪कम बुवाई - जैसलमेर में
▪सर्वाधिक सिंचित छेत्र- गनागंगर
▪न्यूनतम सिंचित छेत्र - चुरू
▪जोत के हिसाब से 10 जॉन मण्डल है
▪गेंहू - UP 5वां गनागंगर
▪जो - UP दूसरा जयपुर
▪चना- MP तीसरा बीकानेर
▪मोठ- राजस्थान - बीकानेर
▪बाजरा - राजस्थान - अलवर / बोया बाड़मेर
▪ज्वार - महाराट्र - 5वा अजमेर अनुसन्धान बलभनगर उदयपुर
▪मक्का - कर्नाटक - 9 - भीलवाड़ा
▪मुगफली- गुजराज - बीकानेर
▪सोयाबीन- MP - बारा
▪अफीम - UP - चितोड़
▪तंबाखू - आंध्र - जालौर
▪सरसो राजस्थान- अलवर
▪गन्ना UP- गनागंगर
■ Rajasthan- mineral and Livestock resources
▪राजस्थान खनिज की दृष्टि से एक सम्पन्न राज्य है राजस्थान को "खनिजों का अजायबघर" कहा जाता है।
▪राजस्थान में लगभग 81 प्रकार के है व 57 प्रकार के खनिजों का खनन होता है।
▪खनिज भण्डारों की दृष्टि से दुसरा स्थान है।
▪खनिज से प्राप्त आय की दृष्टि से पांचवा स्थान है। (अलौह उत्पादन में प्रथम है व लौह में चौथा है)
▪देश के कुल खनिज उत्पादन में राजस्थान का योगदान 22 प्रतिशत है (15% धात्विक, 25%अधात्विक, 26% लघु श्रेणी)
▪खनिज उत्पादन की दुष्टि से झारखण्ड, मध्यप्रदेश के बाद राजस्थान का तिसरा स्थान है।
▪देश की सर्वाधिक खाने राजस्थान में है।
▪खनिजों में राजस्थान का प्रथम लौह खनिजों में राजस्थान का भारत में चतुर्थ स्थान है।
▪राजस्थान में सर्वाधिक उपलब्ध खनिज राॅक फास्फेट है।
▪राजस्थान जास्पर,बुलस्टोनाइट व गार्नेट का समस्त उत्पादन का एक मात्र राज्य है। (100%)
▪सीसा जस्ता, जिप्सम, चांदी, संगमरमर, एस्बेसटाॅस, राॅकफास्फेट, तामड़ा, पन्ना, जास्पर, फायरक्ले,कैडमियम में राजस्थान का एकाधिकार है।
▪चूना पत्थर, टंगस्टन, अभ्रक, तांबा, फेल्सपर, इमारती पत्थर में राजस्थान का भारत में महत्वपूर्ण स्थान
▪पेट्रोलियम ऊर्जा एवम खननं विश्वविद्यालय जोधपुर में है
राजस्थान का भारत में स्थान
▪अलौह खनिज का उत्पादन -प्रथम
▪लौह खनिज का उत्पादन -चतुर्थ
▪खनन में होने वाली आय -पाँचवा
▪खनिज उत्पादन का मूल्य -आठवाँ
■ राजस्थान के प्रमुख लौहा उत्पादक क्षेत्र
▪मोरीजा बेनाल (जयपुर)
▪निमला रायसेला (दौसा)
▪कुशलगढ़ (अलवर)
▪डाबला-सिंघाना (झुंझुनू)
▪नीमकाथाना (सीकर)
▪थुर, हुन्डेर व नाथरा की पाल (उदयपुर)
■राजस्थान के प्रमुख सीसा-जस्ता उत्पादक क्षेत्र
▪रामपुरा-आगूचा (भीलवाड़ा) विश्व की सबसे बड़ी सीसा-जस्ता की खान
▪जावर-देबारी (उदयपुर)
▪राजपुरा-दरीबा (राजसमंद)
▪चौथ का बरवाडा (सवाई माधोपुर)
▪1966 में जावर-देबारी में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड संयंत्र की स्थापना की गई परंतु वर्तमान में इस संयंत्र का कुछ भाग वेदांता समूह ने ग्रहण कर लिया है।
■राजस्थान के प्रमुख तांबा उत्पादक क्षेत्र
▪खेतड़ी (झुंझुनू)
▪खो-दरीबा (अलवर)
▪बीदासर व बरसिंगसर (बीकानेर)
▪पूर-दरीबा (भीलवाड़ा)
■राजस्थान के प्रमुख सोना उत्पादक क्षेत्र
▪जगतपूरा (बांसवाडा)
▪घाटोल, आनन्दपुर भूकिया (बांसवाडा)
▪पंचमऊडी, तिमरान माता (जयपुर)
▪अमलवा-डिगोच (डूंगरपूर)
राजस्थान खनिज नीति
राज्य की प्रथम खनिज नीति 1978 को घोषित की गयी।
राजस्थान खनिज नीति 2015 को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा 4 जून 2015 को जारी की गयी।
■ राजस्थान राज्य खनिज विकास निगम
▪इसकी स्थापना 27 सितम्बर 1979 में हुई लेकिन 20 फरवरी 2003 को इसका विलय RSMML में हो गया। इसका मुख्यालय जयपुर में है।
■राजस्थान राज्य खान व खनिज लिमिटेड
▪इसकी स्थापना 1974 में एक सार्वजनिक कम्पनी के रूप में हुई। यह अधात्विक खनिज के उत्पादन तथा विपणन का कार्य करती है। इसका मुख्यालय जयपुर में है।
राजस्थान में अकाल व सूखा
➖ जेम्स टॉड ने 11वीं सदी में पड़ने वाले एक भीषण अकाल का वर्णन किया जिसमें लगातार 12 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई
➖ चालीसा का अकाल : 1783 ई० ( विक्रम संवत 1840 ) में पड़े अकाल को कहा जाता है
➖ पंचकाल : 1812-13 ई० में पड़े अकाल को कहा गया है
➖ त्रिकाल : 1868-69 ई० में पड़े अकाल को कहा गया है
➖ छपनिया अकाल : 1899-1900 ई० ( विक्रम संवत 1956 ) में पड़े अकाल को कहा गया
👉राजस्थान देश का सर्वाधिक सूखाग्रस्त क्षेत्र है। यहाँ अकाल एक बड़ी समस्या है।
👉राजस्थान की स्थिति पर गौर करें तो राजस्थान के निर्माण के बाद वर्ष 1959-60, 1973-74, 1975-76, 1976-77, 1990-91 व 1994-95 को छोड़कर हर साल यह क्षेत्र सूखा एवं अकाल प्रभावित रहा है।
राजस्थान कृषि नीति 2019
विश्व कृषि व्यापार में भारत की भागीदारी - 2.2% है
कृषि में भागीदारी 2016-17 राजस्थान :- 24.65 योगदान (राष्ट्रीय का 14.82 %)
पशुपालन में भागीदारी - 8.74 ( कृषि का एक तिहाई)
प्रथम :- सरसो, गवार :- अजवाइन, धनिया मैथी, ईसबगोल
द्वितीय :- चना ,जीरा, मोटा अनाज :- सब्जी,
तीसरा :- सोयाबीन, दाल ,तिलहन,
चौथा ':- लहसुन
छटा :- संतरा
आठवां :-अनाज
पशुधन (2012) - 577.32 लाख
कुटकुट धन - 802.4 लाख
देश का कुल पशुधन 11.26 %
दूध उत्पादन में दूसरा स्थान है - 12.93 %
उन में प्रथम स्थान उत्पादन - 32.89 %
मीठा पानी 4.23 लाख हेक्टेयर
NCR का राजस्थान में हिस्सा - 24.50 %
■ 19.राजस्थान में कृषि
▪राजस्थान का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल वर्ष 2016-17 में 342.79 लाख हेक्टेयर है
# वानिकी -8.3%
# कृषि के अलावा भूमि - 5.74 %
# कृषि अयोग्य भूमि ( ऊसर) - 6.98 %
# बृक्ष का झुंड - 0.06 %
# बंजर भूमि - 11.18 %
# अन्य चालू पड़त -5.79%
# चालू पड़त भूमि - 4.35%
@ सुद्ध बोया गया भूमि का भाग - 53 %
▪भूमि जोत में 11.14 % वर्द्धि हुई है
▪कृषि उत्पादन (2018-19)
खददानों - 218.29 लाख टन (1.36 कम)
दलहन - 18.67 लाख टन (0.16 कम)
गन्ना - 2.73 लाख टन ( 28.53 कम)
कपास का उत्पादन - 20.27 ( 7.08 कम)
▪राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा 2007-08 में प्रारम्भ 60:40
14 जिले गेंहू के लिए व 11 जिले मोटा अनाज के लिए चिन्हित
▪राजस्थान कृषक ऋण माफी योजना 2019 - 24.44 लाख किसानों के लगभग 9513 करोड़ ऋण माफ
▪राजीव गांधी कृषक सारथी योजना - कृषक मजदूर हम्मालों की दुर्घटना पर मृत्यु पर 2 लाख राशी देना
▪किसान कलेवा योजना - अ व ब श्रेणियों की मंडियों के लिए बेचने वालो के लिए भोजन
▪महात्मा ज्योतिबा फुले मंडी श्रमिक कल्याण योजना - मण्डी के व्यक्तियों के लिए प्रसूति सहायता,चिकित्सा, पितृत्व अवकाश योजना
▪राष्ट्रीय कृषि विकास योजना - केंद्र की योजना में वर्ष 2018-19 में 91.2 करोड़ की उद्यान की विकास की परियोजना
▪अनार उत्कृष्टता केंद्र - बस्सी जयपुर
▪खट्टे फलों के लिए - नान्त कोटा
▪राष्ट्रीय आयुष मिशन योजना - 2009-10 ओषधि पौधा रोपण
▪राजस्थान राज्य भंडारण निगम की स्थापना की गई – 30 दिसंबर, 1957 को
▪किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले उर्वरक समुचित व समयानुसार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इफ्को की स्थापना की गई – 3 नवंबर, 1967 को
▪कृषिगत वित्त निगम की स्थापना की गई – अप्रैल, 1968 में
▪राज्य कृषि उद्योग निगम की स्थापना की गई – 1969 में
▪राजस्थान राज्य कृषि विपणन बोर्ड की स्थापना की गई – 6 जून, 1976 को
▪प्रथम कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना की गई – फतेहपुर (राजस्थान) में1976 में
▪राजस्थान राज्य बीज प्रमाणीकरण संस्था की स्थापना की गई – 30 दिसंबर, 1977 को
▪राजस्थान राज्य बीज निगम की स्थापना की गई – 28 मार्च, 1978 को
▪कृषि विपणन निदेशालय की स्थापना की गई – 1980 में
▪कृभको की स्थापना – 17 अप्रैल, 1980 को
▪राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की गई – 12 जुलाई,1982 को
▪सरसो अनुसन्धान केंद्र सेवर भरतपुर - 20 अक्टूबर 1993 में
▪किसान सेवा केंद्र सादरी द्वारा जोधपुर में कब की गई – 1998 में
▪राजस्थान में 62% लोग कृषि पर आधारित है जिनका मुख्य कृषि व्यवसाय है
▪राजस्थान में 49.53 % लोग कृषि में सलंग्न है व 30 % कृषि भूमि सिंचित है
▪भारत का 11 % कृषि राजस्थान में विस्तार है
▪GVA में योगदान ( आधारवर्ष 2011-12)
:- स्थीर मूल्य पर (2016-17) - 24.61 % (2.7 कम)
:- चालू मूल्यों पर - 24.76 % ( 7.2 वर्द्धि)
▪खाद पार्क (4) - जयपुर ,कोटा, अलवर ,जोधपुर
▪सतान्तरित खेती गरासिया करते है - [भील वालरा] - [चिमाता असम] - [पाई - आंध्रप्रदेश]
▪राजस्थान सर्वाधिक उत्पादन - सरसों, बाजरा,ग्वार,मोठ,मेथी,इसबगोल, जीरा धनिया,वूलन आदि
▪खदान में - अलवर /दलहन में - नागौर /तिलहन में - बीकानेर /हरी सब्जी - जयपुर / फल - गंगानगर /मसाला- झालावाड़
▪सर्वाधिक बुवाई - बाड़मेर में
▪कम बुवाई - जैसलमेर में
▪सर्वाधिक सिंचित छेत्र- गनागंगर
▪न्यूनतम सिंचित छेत्र - चुरू
▪जोत के हिसाब से 10 जॉन मण्डल है
▪गेंहू - UP 5वां गनागंगर
▪जो - UP दूसरा जयपुर
▪चना- MP तीसरा बीकानेर
▪मोठ- राजस्थान - बीकानेर
▪बाजरा - राजस्थान - अलवर / बोया बाड़मेर
▪ज्वार - महाराट्र - 5वा अजमेर अनुसन्धान बलभनगर उदयपुर
▪मक्का - कर्नाटक - 9 - भीलवाड़ा
▪मुगफली- गुजराज - बीकानेर
▪सोयाबीन- MP - बारा
▪अफीम - UP - चितोड़
▪तंबाखू - आंध्र - जालौर
▪सरसो राजस्थान- अलवर
▪गन्ना UP- गनागंगर
☯ हरित क्रांति [ Green Revolution ]
▪ कृषि क्षेत्र की उत्पादकता में क्रांतिकारी परिवर्तन करने के उद्देश्य से अपनाएं गए कार्यक्रम को हरित क्रांति का नाम दिया गया
◆ हरित क्रांति का अर्थ और इतिहास
▪ हरित क्रांति शब्द का प्रयोग 1940 और 1960 के समयकाल में विकासशील देशों में कृषि क्षेत्र में किया गया था। इस समय कृषि के पारंपरिक तरीकों को आधुनिक तकनीक और उपकरणों के प्रयोग पर बल दिया गया
-:- हरित क्रांति की सुरुवात 1966 - 67 में हुई थी
▪ हरित क्रांति’ इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग डॉ. विलियम गैड ने किया था। परंतु जिस व्यक्ति ने इस शब्द को एक शाब्दिक अर्थ प्रदान किया वह डा. नॉरमन बॉरलाग हैं। उन्हें विश्व में ‘‘हरित क्रांति के जनक’’ के रूप में जाना जाता है।
▪ हरित क्रान्ति के जनक अमरीकी कृषि वैज्ञानिक नौरमन बोरलॉग (नोबल विजेता) माने जाते है
▪ भारत मे हरित क्रान्ति के जनक एम एस स्वामीनाथन माने जाते है
▪ 1965 में भारत के तत्कालीन कृषि मंत्री श्री सी. सुब्रह्मण्यम ने हरित क्रांति का बिगुल उन्नत तकनीक के गहूँ के बीजों का आयात करके किया था।
▪ उन्होनें कृषि क्षेत्र को उधयोग का दर्जा देते हुए उसे औध्योगिक तकनीक व उपकरणों का समन्वय कर दिया
▪दूसरी पंचवर्षीय योजना के उत्तरार्ध में फोर्ड फाउंडेशन के विशेषज्ञों के एक दल को कृषि उत्पादन और उत्पादकता के साधन बढ़ाने के लिए नये तरीके सुझाने के लिए भारत सरकार द्वारा आमंत्रित किया गया था
▪ इस टीम की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 1960 में सात राज्यों से चयनित सात जिलों में एक गहन विकास कार्यक्रम आरम्भ किया और इस कार्यक्रम को गहन क्षेत्र विकास कार्यक्रम (IADP) का नाम दिया गया था
▪ इस नई 'कृषि रणनीति' को पहली बार भारत में 1966 के खरीफ के मौसम में अमल में लाया गया और इसे उच्च उपज देने वाली किस्म कार्यक्रम (HYVP) का नाम दिया गया था
▪ उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि - HYVP केवल पांच फसलों के लिए सीमित था- गेहूं, चावल, जवार, बाजरा और मक्का
◆ हरित क्रांति के लाभ
इसका सबसे ज्यादा लाभ गेहू के उत्पादन पर पड़ा है इसका उत्पादन 1960-61 में 11.0 मिलियन टन था जो -2011-12 में 88.31मिलियन पर पहुच गया
-:- एम एस स्वामीनाथन ने भारत मे कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए सदाबहार क्रांति सब्द का प्रयोग किया था इन्होने 1966 में मेक्सिको के बीज व पंजाब के घरेलू बीज का मिश्रण कर संकर किस्म का बीज विकसित किया था इस कारण पद्म भूषण से 1972 में सम्मनित किया गया था
-:- 1966 में चावल की " टाइचुंग नेटिव " उच्य किस्म का प्रयोग किया गया
▪ द्वितीय हरित क्रांति ए पी जे अब्दुल कलाम ने नई दिल्ली 22-24नवम्बर 2006 को आयोजित किया गया जिसका विषय नॉलेज एग्रीकल्चर था
▪राजस्थान बेरोजगारी भत्ता
: 1 मार्च 2019 से बढ़ाने की घोषणा की गई है इस योजना से बेरोजगार युवाओं को बहुत लाभ मिलेगा
: बेरोजगार लड़कियों को 3500 रुपए
: लड़कों को 3000 रुपए वार्षिक 2 वर्ष तक प्रदान
राजस्थान स्कॉलरशिप योजना 2019
बारहवीं कक्षा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर से होनी चाहिए|
12वीं कक्षा में कम से कम 60% अंक प्राप्त किए होने चाहिए|
पहला एक लाख स्थान बोर्ड की प्राथमिकता लिस्ट में होना चाहिए
वार्षिक पारिवारिक आय 2 लाख 50 हजार रुपए से कम होनी चाहिए
छात्र-छात्राओं को मासिक 500 रुपए प्रदान करवाएं जाएंगे 1 वर्ष में केवल 10 महीने ही यह राशि प्रदान करवाई जाएगी
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