रोजगार का क्लासिक सिद्धात

रोजगार का क्लासिकल सिद्धांत Classical theory of employment

▪रोजगार के क्लासिकी  सिद्धात का यह मानना कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के बिना पूर्ण  रोजगार की प्राप्ति नहीं हो सकती है अर्थात अर्थव्यवस्था में बिना स्फीति का पूर्ण रोजगार पाया जाता है

▪मजदूर- कीमत लोचशीलता (नम्यता) दिए हुई होने पर आर्थिक प्रणाली में स्वयं शक्तियां शक्तियां पाई जाती हैं तो पूर्ण रोजगार कायम रखने की प्रवृत्ति रहती हैं उसी स्तर पर उत्पादन भी होता है

▪ अत: रोजगार की स्थिति एक समान नहीं रहती है इस स्तर से विचलन की स्थिति असमान रह जाती हैं जो अपने आप पूर्ण रोजगार की और अग्रसर होती चली जाती है

■ मान्यताएं (Assumptions) रोजगार का क्लासिकी सिद्धात निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है -

1.बिना विदेशी व्यापार के तथा बिना सरकारी हस्तक्षेप के पूंजीवादी अर्थव्यवस्था पाई जाती है
2.श्रम और वस्तु बाजारों में पूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है
3.श्रम समरूप होता है
4.अर्थव्यवस्था का कुल उत्पादन उपभोग और निवेश पर व्यय हो जाता है
5.मुद्रा की मात्रा दी हुई होती है
6. मुद्रा मजदूरी और वास्तविक मजदूरी का सीधा और समानुपातिक संबंध होता है
7. मजदूरी और कीमतें नमन्यशील (लोचशील) है
8. ब्याज की दर  पूर्णतया लोचदार होती है
9. बिना विदेशी व्यापार के एक बन्द ,अबन्ध नीति वाली पूजीवादी अर्थव्यवस्था पाई जाती है
10. पूजी स्टाक और प्रौद्योगिकी ज्ञान दिए हुए हैं
11. बिना स्फीति के पूर्ण रोजगार पाया जाता है

▪प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री यह समझते थे कि यदि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में कीमत प्रणाली को स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाए तो देश में पूर्ण रोजगार होने की प्रवृत्ति होती है

▪प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री समझते थे कि पूर्ण रोजगार के स्तर से जो उतार चढ़ाव होते हैं वे कीमत प्रणाली के कार्य करने के फल स्वरूप स्वयं दूर हो जाते हैं

▪प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के इस रोजगार सिद्धांत को आधुनिक अर्थशास्त्री ठीक नहीं मानते हैं

■ प्रतिष्ठित रोजगार सिद्धांत की धारणाएं

▪ रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धांत दो आधारभूत धारणाओं पर आधारित था

▪प्रथम धारणा यह है कि पूर्ण रोजगार के स्तर पर उत्पादन को क्रय करने के लिए पर्याप्त खर्च होना अर्थात इस सिद्धांत में पूर्ण रोजगार के स्तर पर उत्पादित वस्तुओं को खरीदने के लिए  पर्याप्त व्यय के ना होने की संभावना नहीं मानी गई है

▪दूसरा सिद्धांत के अनुसार कुल व्यय में कमी हो भी जाती है तो भी कीमतों और मजदूरी मैं इस प्रकार परिवर्तन हो जाता है जिससे कुल व्यय में कमी होने पर भी वास्तविक उत्पादन रोजगार तथा वास्तविक आयु में कमी नहीं होगी

■ क्लासिकी सिद्धात की आलोचना

रोजगार के क्लासिकी सिद्धात की अवास्तविक मान्यताओं के कारण केन्ज ने इस सिद्धात की कड़ी आलोचना की है

1.अल्परोजगार संतुलन

केन्ज ने पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार को अवास्तविक माना है क्योंकि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में अनेछिक बेरोजगारी का अस्तित्व सिद्ध करता है कि अल्परोजगार एक सामान्य स्थति है और पूर्ण रोजगार संतुलन की स्थिति असाधारण तथा आस्मिक है

2.सामान्य से अधिक उत्पादन सम्भव

से द्वारा प्रतिपादित बाजार नियम की आलोचना की और कहा जब आय अर्जित होती है तो समस्त आय खर्च नही होती कुछ अंश बचा लिया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप कुल मांग में कमी आती है

3.अर्थव्यवस्था में स्वत संयोजन असम्भव - 

क्लासिक के अनुसार आर्थिक प्रणाली स्वम समायोजित होती है यह गलत है क्योकि पूंजीवादी समाज मे दो वर्ग है अमीर व गरीब अमीर सारे धन को व्यय नही करते जबकि गरीब के पास खरिदने के लिए धन का अभाव होता है इस प्रकार कुल पूर्ति कुल मांग की तुलना में अधिक होती है

4.मजदूरी कटौती का खण्डन

मुद्रा मजदूरी में कटौती से अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार लाया जा सकता है  इसका खंडन किया

5.वास्तविक मजदूरी तथा मुद्रा मजदूरी में प्रत्यक्ष सम्बन्ध नही होता है 

क्योंकि जब मुद्रा मजदूरी गिरती है तो वास्तविक मजदूरी बढ़ती है

6.मुद्रा निषप्रभावी नही है

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