उपभोक्ता का व्यवहार
■ Theory of Consumer Behavior (उपभोक्ता का व्यवहार)
▪उपभोक्ता का व्यवहार सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण की प्रारंभिक कड़ी है
▪समाज मे उपभोक्ता का उपभोग समस्त आय पर निर्भर करता है जब आय बढ़ती है तो उपभोग की मात्रा भी बढ़ती है उपभोग व आय में सम्बन्ध को उपभोग फलन कहते है
▪उपभोक्ता का व्यवहार विश्व की समस्त विपणन क्रियाओं का केन्द्र बिन्दु उपभोक्ता है।
▪आज विपणन के क्षेत्र में जो कुछ भी किया जा रहा है उसके केन्द्र में कही न कही उपभोक्ता विद्यमान है इसलिए उपभोक्ता को बाजार का राजा या बाजार का मालिक कहा गया है।
▪सभी विपणन संस्थाए उपभोक्ता की आवश्यकताओं इच्छाओं, उसकी पंसद एवं नापंसद आदि पर पर्याप्त ध्यान देने लगी है इतना ही नहीं विपणनकर्ता उपभोक्ता के व्यवहार को जानने एवं समझने में लगे हुए है।
▪उपभोक्ता व्यवहार से आशय उपभोक्ता की उन क्रियाओं एवं प्रति क्रियाओं से है जो वह किसी उत्पादको क्रय करने एवं उपयोग के दौरान उससे पहले या बाद में करता है।
✒️ वाल्टर तथा पॉल के अनुसार-’’उपभोक्ता व्यवहार वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत लोग यह निर्णय लेते है कि कौन सा माल तथा सेवाए कब, कहॉ से, किस प्रकार तथा किससे खरीदनी है अथवा नहीं।’’
✒️कुर्ज तथा बून के अनुसार – " उपभोक्ता व्यवहार में लोगों की वे क्रियाएं सम्मिलित है जो वे माल तथा सेवाओं को प्राप्त करने एवं उनका उपयोग करने हेतु करते है तथा इनमें वे निर्णयन प्रक्रियाए भी सम्मिलित है जो उन क्रियाओं को निर्धारित करने तथा निर्धारित करने से पहले की जाती है।’’
✒️वेबस्टर के अनुसार -’’क्रेता व्यवहार भावी ग्राहकों का वह सम्पूर्ण मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा शारीरिक व्यवहार है जो वे उत्पादों तथा सेवाओं से अवगत होने, उनका मूल्यांकन करने, क्रय करने, उपभोग करने तथा उनके बारे में दूसरों को बताने में करते हैं।
▪निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि :-उपभोक्ता व्यवहार उपभोक्ताओं का वह व्यवहार है जो वे किसी उत्पाद या सेवा के क्रय या उपयोग से पूर्व, पश्चात एवं क्रय निर्णय प्रकिया के दौरान करते हैं
[महेश रहीसा:]
■ उपभोक्ता व्यवहार की विशेषताएँ/प्रकृति
1.क्रय निर्णयन प्रक्रिया – कुर्ज तथा बून के अनुसार ‘‘एक व्यक्ति का क्रय व्यवहार उसकी सम्पूर्ण क्रय निर्णयन प्रक्रिया है न कि केवल क्रय प्रक्रिया का एक चरण। ‘‘ इस कथन से स्पष्ट है कि उपभोक्ता व्यवहार एक उपभोक्ता के क्रय व्यवहार की एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा वह किसी उत्पाद या सेवा को क्रय करने का निर्णय लेता है।
2.प्रगटीकरण – एक उपभोक्ता के व्यवहार का प्रगटीकरण उसकी उन क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं से होता है जिनको वह किसी उत्पाद या सेवा के क्रय पूर्व, पश्चात या क्रय करने के दौरान करता है।
3.परिवर्तनशील -उपभोक्ता व्यवहार परिवर्तनशील होता है उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन के अनेक कारण होते है। उपभोक्ता विभिन्न श्रोतों से सूचनाएं एवं जानकारी प्राप्त करता है। इसके अलावा उपभोक्ता की आयु, आय तथा वातावरण में परिवर्तन होने पर उसके क्रय व्यवहार में परिवर्तन होता है। अत: यह कहा जा सकता है कि उपभोक्ता व्यवहार परिवर्तनशील है।
4.व्यवहार में भिन्नता – सभी उपभोक्ता एक प्रकार के नहीं होते हैं। उनकी आवश्यकताए दूसरों से भिन्न होती है तथा वे परिस्थितियॉ जिनमें उपभोक्ता जीवन यापन करता है दूसरों से भिन्न होती है। उपभोक्ता की आय, आयु , व्यवसाय व पेसा आदि में भी भिन्नता होती है अत: उपभोक्ता व्यवहार में भिन्नता पाई जाती है।
5.एक व्यापक शब्द – उपभोक्ता व्यवहार एक व्यापक शब्द है। जिसमें घरेलू उपभोक्ताओं के साथ-साथ संस्थागत एवं औद्योगिक उपभोक्ताओं का व्यवहार भी सम्मिलित हैं घरेलू उपभोक्ता वह उपभोक्ता है जो अपने स्वयं के या परिवार के उपभोग हेतु उत्पादों को क्रय करता है जबकि औद्योगिक एवं स्ंस्थागत उपभोक्ता वे उपभोक्ता है जो पुन: उत्पादन या पुन: विक्रय हेतु उत्पादों को क्रय करतें है। अत: उपभोक्ता व्यवहार में सभी प्रकार के उपभोक्ताओं का व्यवहार सम्मिलित है।
6.समझने में कठिनाई – उपभोक्ता व्यवहार एक जटिल पहेली है। उपभोक्ता किन परिस्थितियेां में कैसा व्यवहार करेगा इसकी पूर्व जानकारी करना या पता लगाना बहुत कठिन है। उपभोक्ता की अनेक आवश्यकताए होती है। अपनी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं का उपभोक्ता द्वारा प्रगटीकरण हो भी सकता है और नहीं भी। कई उपभोक्ता शर्मीले स्वभाव के होते है उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना बहुत कठिनकार्य होता है।
7.उपभोक्ता व्यवहार अध्ययन एवं विश्लेषण – उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन एवं विश्लेषण करने के बाद क्रय व्यवहार सम्बंधी कई प्रश्नों या समस्याओं को जाना एवं समझा जा सकता है। उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन एवं विश्लेषण कर निम्न प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किये जा सकते है :-
(क) वह किन उत्पादों को क्रय करना चाहता है उत्पाद का ब्रान्ड नाम एवं उत्पादक कौन है ?
(ख) वह उन उत्पादों को क्यो क्रय करना चाहता है तथा उन उत्पादों से उसे किस प्रकार की संतुष्टिप्राप्त होती है।
(ग) वह उन का क्रय किस प्रकार करना चाहता है।
(घ) उत्पादों का क्रय कहॉ से करना चाहता है फुटकर व्यापारी, माल या डिपार्टमेन्टल स्टोर से।
(ड़) उत्पादों का क्रय कब करना चाहता है? किसी भी समय या निश्चित अवसरों पर ?
(च) वह उनका क्रय किन से करना चाहता है।
8.संतुष्टि की व्याख्या - उपभोक्ता व्यवहार क्रेता या उपभोक्ता की संतुष्टि की व्याख्या करता है। यदि उत्पादके उपभोग से उसे संतुष्टि प्राप्त होती है तो वह पुन: उसी उत्पाद को खरीदने का प्रयास करता है। यदि उत्पाद का उपभोग करने के पश्चात उसे असंतुष्टि का अनुभव होता है। तो वह उस उत्पाद को पुन: क्रय नहीं करने का निर्णय लेता है।
[महेश रहीसा:]
● उपभोक्ता के व्यवहार दृष्टिकोण
1.गणनावाचक दृष्टीकोण
2.क्रमवाचक दृष्टीकोण
■ गणनावाचक दृष्टिकोण
▪गणना वाचक उपयोगिता विश्लेषण मांग आया सबसे प्राचीन सिद्धात है जिसे नव प्रतिशिष्ठ अर्थशास्त्रियों ने दिया था चुकी इस सिद्धात को अंतिम रूप मार्शल ने प्रदान किया था इसलिए इसे मार्शल का उपयोगिता विश्लेषण के नाम से जाना जाता है
▪यह दृष्टिकोण मार्शल ने दिया है तथा पिगू ने सहयोग दिया है (इसमे संतुष्टि को संख्याओं 1 2 3 4... में मापा जाता है) उदाहरण एक कफ चाय का उपभोग करते है तब संतुष्टि को दो इकाइयों के बराबर प्रकट कर सकते है इसे गणना वाचक माप कहते है
▪गणनावाचक माप को उपभोक्ता संतुलन का उपयोगिता विश्लेषण कहा जाता है
▪मार्शल के अनुसार उपयोगिता मापनीय है तथा इसे मुद्रा रूपी पैमाने से मापा जाता है
■ मार्शल के गणनावाचक उपयोगिता विश्लेषण की मान्यताएं
1.उपभोक्ता तर्कपूर्ण ढंग से व्यवहार करता है तथा वह अपनी उपयोगिता को अधिकतम करना चाहता है
2.वस्तु के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता का परिमाणात्मक माप सम्भव है और इसको गणना वाचक संख्याओं (Cardinal Numbers) में व्यक्त किया जा सकता है
3.मुद्रा की सीमांत उपयोगिता स्थीर है
4.उपयोगिता स्वतंत्र होती है अर्थात उपभोक्ता को एक वस्तु के उपभोग से जो उपयोगिता प्राप्त होती है वह पूर्णतया उस वस्तु की मात्रा पर निर्भर होती है
5.गणनावाचक विश्लेषण उपयोगिता को योगात्मक मानती है जिसका अर्थ है कि विभिन्न वस्तुओं से प्राप्त उपयोगिता को जोड़ कर क्रय की गई समस्त वस्तुओं के उपभोग से प्राप्त कुल उपयोगिता को प्राप्त किया जा सकता है
■ गणनावाचक दृष्टिकोण के माप
1.Total Utiliti कुल उपयोगिता
2.Marginal Utility सीमांत उपयोगिता
3.सीमान्त उपयोगिता हास्यमान नियम
● Total Utiliti कुल उपयोगिता
▪वस्तु की सभी इकाइयों के उपभोग से जो उपयोगिता उपभोक्ता को प्राप्त होती है उसे कुल उपयोगिता कहते है
▪उदहारण यदि उपभोक्ता वस्तु की कुल m इकाइयों का उपभोग करता है तब m इकाइयों से प्राप्त कुल उपयोगिता उपभोक्ता की कुल उपयोगिता कहलाती है
▪कुल उपयोगिता सीमान्त उपयोगिता का योग है इस प्रकार
TUm =MU1 +MU2 +MU3 +...MUm
▪यदि किसी वस्तु की 2 इकाइयों के उपभोग से पहली इकाई से 10 यूनिट संतुष्टि व दूसरी इकाई से 9 यूटील्स संतुष्टि प्राप्त होती है तो कुल उपयोगिता =10 यूटील्स +9 यूटील्स =19 यूटील्स कुल उपयोगिता है
▪सूत्र TUn =U1 +U2 ..+Un
▪यहा n इकाइयों का कुल जोड़ उपयोगिता है
▪वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग से प्राप्त सीमान्त उपयोगिताओं का कुल जोड़ कुल उपयोगिता कहलाता है
▪सूत्र ΣMU =TU
■ सीमांत उपयोगिता Marginal Utility
▪वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त उपयोगिता कहते है
▪सीमान्त उपयोगिता वस्तु की n इकाइयों से प्राप्त कुल उपयोगिता तथा n-1 इकाइयों से प्राप्त कुल उपयोगिता का अंतर होता है
▪उदहारण - 10 इकाई उपभोग से 100 यूटील्स संतुष्टि प्राप्त होती है 11वी एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से 105 संतुष्टि प्राप्त होती है तो सीमांत उपयोगिता 5 होगी जो MU से प्रदर्शित किया जाता है
▪सूत्र MUn th =TUn - TU n_1
▪यहा पर
MUnth - इकाइयों की सीमान्त उपयोगिता है
TUn - इकाइयों की कुल उपयोगिता है
TUn-1 इकाइयों की सीमांत उपयोगिता है
▪एक वस्तु की सभी इकाइयों से मिलने वाली सीमान्त उपयोगिता का कुल जोड़ कुल उपयोगिता है
▪सीमान्त उपयोगिता को निम्न प्रकार भी लिखा जा सकता है MU=d(TU) /dQ
अर्थात सीमान्त उपयोगिता कुल उपयोगिता में हुए परिवर्तन की वह दर है जो किसी वस्तु की मात्रा में एक निश्चित अल्प परिवर्तन के कारण होती है
● कुल उपयोगिता व सीमांत उपयोगिता में सम्बन्ध
1.जब कुल उपयोगिता घटती हुई दर से बढ़ रही होती है तो इसका तात्पर्य होता है कि सीमांत उपयोगिता घट रही है लेकिन धनात्मक है
2.जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है
3.जब कुल उपयोगिता घटने लगती है तब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है
चित्र ..
■ सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम (law of diminishing margainal utility)
▪इतिहास :- इस नियम का प्रतिपादन 1854 ई. में गोसेन ने किया इसे गोसेन का प्रथम नियम कहा जाता है मार्शल ने इसकी विस्तृत व्याख्या की थी
▪सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम फ़्रेन्च अर्थशास्त्री हरमैन हैनरिक गोसेन के नाम पर गोसेन का प्रथम नियम कहलाया है
▪व्याख्या :- सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम यह बताता है कि जैसे जैसे एक वस्तु का उपभोग किया जाता है वसे वसे प्रत्येक ईकाई से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है
▪इसे संतुष्टि का आधारभूत नियम या आधारभूत मनोवैज्ञानिक नियम कहा जाता है
▪इस नियम ध्यान देने योग्य बात है कि एक वस्तु के उपभोग में वृद्धि से उसकी सीमान्त उपयोगिता (marginal utility) में कमी आती है उसकी कुल उपयोगिता (total utility) में नही
▪इस प्रकार सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम का अर्थ यह है कि कुल उपयोगिता में वृद्धि होती है परन्तु घटती दर से
▪मार्शल जो कि सीमान्त उपयोगिता विश्लेषण का सुप्रसिद्ध प्रतिपादक था इन्होंने इस नियम का प्रतिपादन निम्न सब्दो से किया " एक वस्तु के स्टॉक में वृद्धि होने से व्यक्ति को जो अतिरिक्त संतुष्टि प्राप्त होती है वह भंडारण में हुई प्रत्येक वृद्धि से कम होती है "
▪अन्य बातें समान रहने का अर्थ -
1.उपभोग निरन्तर क्रम में हो रहा है
2.उपभोग इकाई का पर्याप्त आकार है
3.समरूप वस्तु इकाइयां होती है
4.स्थापन्न वस्तुओं की कीमतें स्थीर होती है
5.आय व उपभोग प्रवर्ती स्थीर होती है
6.उपभोक्ता की मानसिक दशा अपरिवर्तनीय होती है
■ सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की मान्यता
1.उपभोग प्रक्रिया के दौरान उपभोक्ता के स्वाद (tastes) अपरिवर्तित रहता है
2.वस्तु की सभी इकाइयां समान है अर्थात गुण एवम आकार में कोई परिवर्तन नही होता
3.वस्तु की दो इकाई के उपभोग में कोई अंतर नही पड़ता दूसरे सब्दो में बिना किसी समय अंतराल के उपभोग प्रक्रिया जारी रहती है
4.मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थीर रहती है
5.उपयोगिता का गणनात्मक संख्याओं का माप संभव है
6.उपभोग प्रक्रिया सतत होती है
7.उपभोक्ता की आय ,आदते,रुचि फैसन दिए हुए समय में कोई परिवर्तन नही होता है
■ सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम का स्पष्टीकरण
▪नियम का स्पष्टीकरण Explauation of law - दैनिक जीवन में देखा जाता है कि जब उपभोक्ता के पास किसी वस्तु की अधिक इकाइयां बढ़ती जाती है तो उस वस्तु की बाद में प्राप्त होने वाली इकाइयों से प्राप्त सीमांत उपयोगिता घटती जाती है इस नियम को निम्न प्रकार से तालिका एवं रेखा चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा रहा ह
सेबों की संख्या .सीमांत उपयोगिता . कुल उपयोगिता
1 8 8
2 7 15
3 6 21
4 4 25
5 2 27
6 0 27
7 -2 25
▪उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे सेबो की संख्या मात्रा का उपयोग किया जाता है वैसे वैसे सीमांत उपयोगिता घटती चली जाती है तथा सेब की छठी इकाई पर सीमांत उपयोगिता शून्य हो जाती हैं यह उपभोक्ता का तृप्त बिंदु कहलाता है तत्पश्चात सेबो का अधिक मात्रा में उपभोग करने पर इन से प्राप्त सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है
▪प्रस्तुत रेखा चित्र में X अक्ष पर सेबों की संख्या Y अक्ष पर सीमांत उपयोगिता मापी जाती है MU सीमांत उपयोगिता वक्र है जो गिरता हुआ है यह वक यह दर्शाता है कि जैसे जैसे सेवों का उपभोग बढ़ता जाता है वैसे वैसे उनमें प्राप्त सीमांत उपयोगिता घटती जाती हैं
■ सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम के उपयोग
1.वस्तुओं के मूल्य निर्धारण में
2.मूल्य विरोधाभास की व्याख्या करने में सहायक
3.हीरा पानी विरोधाभास समझने में
4.मार्शल की बचत धारणा समझने में
5.राजकोषीय नीति समझने में
6.प्रगतिशील कर प्रणाली का आधार है
■ हीरा पानी विरोधाभास
▪पानी जो जीवन के लिए उपयोगी है वह काफी सस्ता है जबकि हीरा जो जीवन के लिए आवश्यक नही है महंगा है ?
▪इस विरोधाभाष को समझने के लिए पानी जो जीवन के लिए आवश्यक है उसकी कुल उपयोगिता (TU) ज्यादा जबकि किसी वस्तु की कीमत MU पर निर्भर करता है ना कि TU पर
▪पानी की सीमान्त उपयोगिता कम होने के कारण सस्ता होता है जबकि हीरे की MU अधिक होने के कारण महंगा होता है हास्य नियम को इस विरोधाभाष से समझा जाता है
▪विनिमय मूल्य का सम्बंध सीमांत उपयोगिता से है जबकि प्रयोग मूल्य कुल उपयोगिता से सम्बंधित है हीरा पानी विरोधाभास इसी का उदहारण है
🔳 Law of Equi marginal Utility [सम सीमान्त उपयोगिता नियम]
▪सम सीमांत उपयोगिता नियम हमे यह बताता है कि " यदि किस व्यक्ति के पास कोई ऐसी वस्तु है जिसके अनेक प्रयोग में ला सकता है तो वह अनेक प्रयोगों में इस तरह बाटता है कि सभी प्रयोगों में सीमांत उपयोगिता बराबर हो जाए तो वह प्रयोग से वस्तु की मात्रा हटाकर और पहले में करके लाभ प्राप्त कर सकता है (मार्शल) "
▪उपयोगिता विश्लेषण में उपभोक्ता का संतुलन " सम सीमांत उपयोगिता द्वारा स्पष्ठ किया जाता है जिसे गोसेन का दूसरा नियम कहा जाता है
▪सम सीमांत उपयोगिता नियम :- MUx / Px = MUy / Py = MUz / Pz .....MUm (एक स्थीर राशी)
▪इसे आनुपातिकता का नियम अथवा अधिकतम संतुष्टि का नियम भी कहते है
▪मान लीजिए उपभोक्ता अपने निश्चित आय को जिन वस्तुओं पर व्यय करना चाहता है वे केवल दो है X और Y
▪उपभोक्ता का व्यवहार दो बातों से प्रभावित होगा :- पहला तो वस्तुओं से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता तथा दूसरा वस्तुओं की कीमते
▪उपभोक्ता अपनी मौद्रिक आय को विभिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार व्यय करेगा कि विभिन्न वस्तुओं से प्राप्त सीमांत उपयोगिता तथा कीमतों के अनुपात समान हो अतः उस समय संतुलन में होगा जब MUx / Px = MUy / Py
▪यदि MUx / Px तथा MUy / Py समान नही है MUx / Px > MUy / Py है तो उपभोक्ता Y वस्तु के स्थान पर X की सीमांत उपयोगिता घटेगी और Y की सीमान्त उपयोगिता बढ़ेगी जब तक दोनो समान नही हो जाते
▪व्याख्या :- मान लीजिए X की कीमत 3 रूपय और Y की कीमत 4 रूपय है तो सारणी प्रथम में वस्तुओं की विभिन्न इकाइयों से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता दिखाया गया है तथा सारणी 2 में वस्तु x की सीमान्त उपयोगिताओ (MUx) को तीन से तथा वस्तु Y को उपयोगिताओ (MUy) को चार से विभाजित करके प्राप्त किया गया है
▪सारणी -1 चित्र
▪सारणी -2 चित्र
●सम-सीमान्त उपयोगिता नियम की परिसीमाए
यह आवश्यक नहीं है कि सभी व्यक्ति अपनी आय को व्यय करने में इस नियम का पूर्णतया पालन करते हो इसके निम्न कारण है
1.उपभोक्ता विवेकशील नही होता कि सही प्रकार से सीमान्त उपयोगिता की गणना करे
2.उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक भावना होने के कारण इसकी माप गणनावाचक रूप से करना सम्भव नही है
3.अविभाज्य वस्तुओं की दशा में इसका पालन करना सम्भव नही है
▪उपभोक्ता का व्यवहार सूक्ष्म आर्थिक विश्लेषण की प्रारंभिक कड़ी है
▪समाज मे उपभोक्ता का उपभोग समस्त आय पर निर्भर करता है जब आय बढ़ती है तो उपभोग की मात्रा भी बढ़ती है उपभोग व आय में सम्बन्ध को उपभोग फलन कहते है
▪उपभोक्ता का व्यवहार विश्व की समस्त विपणन क्रियाओं का केन्द्र बिन्दु उपभोक्ता है।
▪आज विपणन के क्षेत्र में जो कुछ भी किया जा रहा है उसके केन्द्र में कही न कही उपभोक्ता विद्यमान है इसलिए उपभोक्ता को बाजार का राजा या बाजार का मालिक कहा गया है।
▪सभी विपणन संस्थाए उपभोक्ता की आवश्यकताओं इच्छाओं, उसकी पंसद एवं नापंसद आदि पर पर्याप्त ध्यान देने लगी है इतना ही नहीं विपणनकर्ता उपभोक्ता के व्यवहार को जानने एवं समझने में लगे हुए है।
▪उपभोक्ता व्यवहार से आशय उपभोक्ता की उन क्रियाओं एवं प्रति क्रियाओं से है जो वह किसी उत्पादको क्रय करने एवं उपयोग के दौरान उससे पहले या बाद में करता है।
✒️ वाल्टर तथा पॉल के अनुसार-’’उपभोक्ता व्यवहार वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत लोग यह निर्णय लेते है कि कौन सा माल तथा सेवाए कब, कहॉ से, किस प्रकार तथा किससे खरीदनी है अथवा नहीं।’’
✒️कुर्ज तथा बून के अनुसार – " उपभोक्ता व्यवहार में लोगों की वे क्रियाएं सम्मिलित है जो वे माल तथा सेवाओं को प्राप्त करने एवं उनका उपयोग करने हेतु करते है तथा इनमें वे निर्णयन प्रक्रियाए भी सम्मिलित है जो उन क्रियाओं को निर्धारित करने तथा निर्धारित करने से पहले की जाती है।’’
✒️वेबस्टर के अनुसार -’’क्रेता व्यवहार भावी ग्राहकों का वह सम्पूर्ण मनोवैज्ञानिक, सामाजिक तथा शारीरिक व्यवहार है जो वे उत्पादों तथा सेवाओं से अवगत होने, उनका मूल्यांकन करने, क्रय करने, उपभोग करने तथा उनके बारे में दूसरों को बताने में करते हैं।
▪निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि :-उपभोक्ता व्यवहार उपभोक्ताओं का वह व्यवहार है जो वे किसी उत्पाद या सेवा के क्रय या उपयोग से पूर्व, पश्चात एवं क्रय निर्णय प्रकिया के दौरान करते हैं
[महेश रहीसा:]
■ उपभोक्ता व्यवहार की विशेषताएँ/प्रकृति
1.क्रय निर्णयन प्रक्रिया – कुर्ज तथा बून के अनुसार ‘‘एक व्यक्ति का क्रय व्यवहार उसकी सम्पूर्ण क्रय निर्णयन प्रक्रिया है न कि केवल क्रय प्रक्रिया का एक चरण। ‘‘ इस कथन से स्पष्ट है कि उपभोक्ता व्यवहार एक उपभोक्ता के क्रय व्यवहार की एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा वह किसी उत्पाद या सेवा को क्रय करने का निर्णय लेता है।
2.प्रगटीकरण – एक उपभोक्ता के व्यवहार का प्रगटीकरण उसकी उन क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं से होता है जिनको वह किसी उत्पाद या सेवा के क्रय पूर्व, पश्चात या क्रय करने के दौरान करता है।
3.परिवर्तनशील -उपभोक्ता व्यवहार परिवर्तनशील होता है उपभोक्ता व्यवहार में परिवर्तन के अनेक कारण होते है। उपभोक्ता विभिन्न श्रोतों से सूचनाएं एवं जानकारी प्राप्त करता है। इसके अलावा उपभोक्ता की आयु, आय तथा वातावरण में परिवर्तन होने पर उसके क्रय व्यवहार में परिवर्तन होता है। अत: यह कहा जा सकता है कि उपभोक्ता व्यवहार परिवर्तनशील है।
4.व्यवहार में भिन्नता – सभी उपभोक्ता एक प्रकार के नहीं होते हैं। उनकी आवश्यकताए दूसरों से भिन्न होती है तथा वे परिस्थितियॉ जिनमें उपभोक्ता जीवन यापन करता है दूसरों से भिन्न होती है। उपभोक्ता की आय, आयु , व्यवसाय व पेसा आदि में भी भिन्नता होती है अत: उपभोक्ता व्यवहार में भिन्नता पाई जाती है।
5.एक व्यापक शब्द – उपभोक्ता व्यवहार एक व्यापक शब्द है। जिसमें घरेलू उपभोक्ताओं के साथ-साथ संस्थागत एवं औद्योगिक उपभोक्ताओं का व्यवहार भी सम्मिलित हैं घरेलू उपभोक्ता वह उपभोक्ता है जो अपने स्वयं के या परिवार के उपभोग हेतु उत्पादों को क्रय करता है जबकि औद्योगिक एवं स्ंस्थागत उपभोक्ता वे उपभोक्ता है जो पुन: उत्पादन या पुन: विक्रय हेतु उत्पादों को क्रय करतें है। अत: उपभोक्ता व्यवहार में सभी प्रकार के उपभोक्ताओं का व्यवहार सम्मिलित है।
6.समझने में कठिनाई – उपभोक्ता व्यवहार एक जटिल पहेली है। उपभोक्ता किन परिस्थितियेां में कैसा व्यवहार करेगा इसकी पूर्व जानकारी करना या पता लगाना बहुत कठिन है। उपभोक्ता की अनेक आवश्यकताए होती है। अपनी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं का उपभोक्ता द्वारा प्रगटीकरण हो भी सकता है और नहीं भी। कई उपभोक्ता शर्मीले स्वभाव के होते है उनके बारे में जानकारी प्राप्त करना बहुत कठिनकार्य होता है।
7.उपभोक्ता व्यवहार अध्ययन एवं विश्लेषण – उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन एवं विश्लेषण करने के बाद क्रय व्यवहार सम्बंधी कई प्रश्नों या समस्याओं को जाना एवं समझा जा सकता है। उपभोक्ता व्यवहार का अध्ययन एवं विश्लेषण कर निम्न प्रश्नों के उत्तर प्राप्त किये जा सकते है :-
(क) वह किन उत्पादों को क्रय करना चाहता है उत्पाद का ब्रान्ड नाम एवं उत्पादक कौन है ?
(ख) वह उन उत्पादों को क्यो क्रय करना चाहता है तथा उन उत्पादों से उसे किस प्रकार की संतुष्टिप्राप्त होती है।
(ग) वह उन का क्रय किस प्रकार करना चाहता है।
(घ) उत्पादों का क्रय कहॉ से करना चाहता है फुटकर व्यापारी, माल या डिपार्टमेन्टल स्टोर से।
(ड़) उत्पादों का क्रय कब करना चाहता है? किसी भी समय या निश्चित अवसरों पर ?
(च) वह उनका क्रय किन से करना चाहता है।
8.संतुष्टि की व्याख्या - उपभोक्ता व्यवहार क्रेता या उपभोक्ता की संतुष्टि की व्याख्या करता है। यदि उत्पादके उपभोग से उसे संतुष्टि प्राप्त होती है तो वह पुन: उसी उत्पाद को खरीदने का प्रयास करता है। यदि उत्पाद का उपभोग करने के पश्चात उसे असंतुष्टि का अनुभव होता है। तो वह उस उत्पाद को पुन: क्रय नहीं करने का निर्णय लेता है।
[महेश रहीसा:]
● उपभोक्ता के व्यवहार दृष्टिकोण
1.गणनावाचक दृष्टीकोण
2.क्रमवाचक दृष्टीकोण
■ गणनावाचक दृष्टिकोण
▪गणना वाचक उपयोगिता विश्लेषण मांग आया सबसे प्राचीन सिद्धात है जिसे नव प्रतिशिष्ठ अर्थशास्त्रियों ने दिया था चुकी इस सिद्धात को अंतिम रूप मार्शल ने प्रदान किया था इसलिए इसे मार्शल का उपयोगिता विश्लेषण के नाम से जाना जाता है
▪यह दृष्टिकोण मार्शल ने दिया है तथा पिगू ने सहयोग दिया है (इसमे संतुष्टि को संख्याओं 1 2 3 4... में मापा जाता है) उदाहरण एक कफ चाय का उपभोग करते है तब संतुष्टि को दो इकाइयों के बराबर प्रकट कर सकते है इसे गणना वाचक माप कहते है
▪गणनावाचक माप को उपभोक्ता संतुलन का उपयोगिता विश्लेषण कहा जाता है
▪मार्शल के अनुसार उपयोगिता मापनीय है तथा इसे मुद्रा रूपी पैमाने से मापा जाता है
■ मार्शल के गणनावाचक उपयोगिता विश्लेषण की मान्यताएं
1.उपभोक्ता तर्कपूर्ण ढंग से व्यवहार करता है तथा वह अपनी उपयोगिता को अधिकतम करना चाहता है
2.वस्तु के उपभोग से प्राप्त उपयोगिता का परिमाणात्मक माप सम्भव है और इसको गणना वाचक संख्याओं (Cardinal Numbers) में व्यक्त किया जा सकता है
3.मुद्रा की सीमांत उपयोगिता स्थीर है
4.उपयोगिता स्वतंत्र होती है अर्थात उपभोक्ता को एक वस्तु के उपभोग से जो उपयोगिता प्राप्त होती है वह पूर्णतया उस वस्तु की मात्रा पर निर्भर होती है
5.गणनावाचक विश्लेषण उपयोगिता को योगात्मक मानती है जिसका अर्थ है कि विभिन्न वस्तुओं से प्राप्त उपयोगिता को जोड़ कर क्रय की गई समस्त वस्तुओं के उपभोग से प्राप्त कुल उपयोगिता को प्राप्त किया जा सकता है
■ गणनावाचक दृष्टिकोण के माप
1.Total Utiliti कुल उपयोगिता
2.Marginal Utility सीमांत उपयोगिता
3.सीमान्त उपयोगिता हास्यमान नियम
● Total Utiliti कुल उपयोगिता
▪वस्तु की सभी इकाइयों के उपभोग से जो उपयोगिता उपभोक्ता को प्राप्त होती है उसे कुल उपयोगिता कहते है
▪उदहारण यदि उपभोक्ता वस्तु की कुल m इकाइयों का उपभोग करता है तब m इकाइयों से प्राप्त कुल उपयोगिता उपभोक्ता की कुल उपयोगिता कहलाती है
▪कुल उपयोगिता सीमान्त उपयोगिता का योग है इस प्रकार
TUm =MU1 +MU2 +MU3 +...MUm
▪यदि किसी वस्तु की 2 इकाइयों के उपभोग से पहली इकाई से 10 यूनिट संतुष्टि व दूसरी इकाई से 9 यूटील्स संतुष्टि प्राप्त होती है तो कुल उपयोगिता =10 यूटील्स +9 यूटील्स =19 यूटील्स कुल उपयोगिता है
▪सूत्र TUn =U1 +U2 ..+Un
▪यहा n इकाइयों का कुल जोड़ उपयोगिता है
▪वस्तु की उत्तरोत्तर इकाइयों के उपभोग से प्राप्त सीमान्त उपयोगिताओं का कुल जोड़ कुल उपयोगिता कहलाता है
▪सूत्र ΣMU =TU
■ सीमांत उपयोगिता Marginal Utility
▪वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से कुल उपयोगिता में जो वृद्धि होती है उसे सीमान्त उपयोगिता कहते है
▪सीमान्त उपयोगिता वस्तु की n इकाइयों से प्राप्त कुल उपयोगिता तथा n-1 इकाइयों से प्राप्त कुल उपयोगिता का अंतर होता है
▪उदहारण - 10 इकाई उपभोग से 100 यूटील्स संतुष्टि प्राप्त होती है 11वी एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से 105 संतुष्टि प्राप्त होती है तो सीमांत उपयोगिता 5 होगी जो MU से प्रदर्शित किया जाता है
▪सूत्र MUn th =TUn - TU n_1
▪यहा पर
MUnth - इकाइयों की सीमान्त उपयोगिता है
TUn - इकाइयों की कुल उपयोगिता है
TUn-1 इकाइयों की सीमांत उपयोगिता है
▪एक वस्तु की सभी इकाइयों से मिलने वाली सीमान्त उपयोगिता का कुल जोड़ कुल उपयोगिता है
▪सीमान्त उपयोगिता को निम्न प्रकार भी लिखा जा सकता है MU=d(TU) /dQ
अर्थात सीमान्त उपयोगिता कुल उपयोगिता में हुए परिवर्तन की वह दर है जो किसी वस्तु की मात्रा में एक निश्चित अल्प परिवर्तन के कारण होती है
● कुल उपयोगिता व सीमांत उपयोगिता में सम्बन्ध
1.जब कुल उपयोगिता घटती हुई दर से बढ़ रही होती है तो इसका तात्पर्य होता है कि सीमांत उपयोगिता घट रही है लेकिन धनात्मक है
2.जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है
3.जब कुल उपयोगिता घटने लगती है तब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है
चित्र ..
■ सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम (law of diminishing margainal utility)
▪इतिहास :- इस नियम का प्रतिपादन 1854 ई. में गोसेन ने किया इसे गोसेन का प्रथम नियम कहा जाता है मार्शल ने इसकी विस्तृत व्याख्या की थी
▪सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम फ़्रेन्च अर्थशास्त्री हरमैन हैनरिक गोसेन के नाम पर गोसेन का प्रथम नियम कहलाया है
▪व्याख्या :- सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम यह बताता है कि जैसे जैसे एक वस्तु का उपभोग किया जाता है वसे वसे प्रत्येक ईकाई से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है
▪इसे संतुष्टि का आधारभूत नियम या आधारभूत मनोवैज्ञानिक नियम कहा जाता है
▪इस नियम ध्यान देने योग्य बात है कि एक वस्तु के उपभोग में वृद्धि से उसकी सीमान्त उपयोगिता (marginal utility) में कमी आती है उसकी कुल उपयोगिता (total utility) में नही
▪इस प्रकार सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम का अर्थ यह है कि कुल उपयोगिता में वृद्धि होती है परन्तु घटती दर से
▪मार्शल जो कि सीमान्त उपयोगिता विश्लेषण का सुप्रसिद्ध प्रतिपादक था इन्होंने इस नियम का प्रतिपादन निम्न सब्दो से किया " एक वस्तु के स्टॉक में वृद्धि होने से व्यक्ति को जो अतिरिक्त संतुष्टि प्राप्त होती है वह भंडारण में हुई प्रत्येक वृद्धि से कम होती है "
▪अन्य बातें समान रहने का अर्थ -
1.उपभोग निरन्तर क्रम में हो रहा है
2.उपभोग इकाई का पर्याप्त आकार है
3.समरूप वस्तु इकाइयां होती है
4.स्थापन्न वस्तुओं की कीमतें स्थीर होती है
5.आय व उपभोग प्रवर्ती स्थीर होती है
6.उपभोक्ता की मानसिक दशा अपरिवर्तनीय होती है
■ सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम की मान्यता
1.उपभोग प्रक्रिया के दौरान उपभोक्ता के स्वाद (tastes) अपरिवर्तित रहता है
2.वस्तु की सभी इकाइयां समान है अर्थात गुण एवम आकार में कोई परिवर्तन नही होता
3.वस्तु की दो इकाई के उपभोग में कोई अंतर नही पड़ता दूसरे सब्दो में बिना किसी समय अंतराल के उपभोग प्रक्रिया जारी रहती है
4.मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थीर रहती है
5.उपयोगिता का गणनात्मक संख्याओं का माप संभव है
6.उपभोग प्रक्रिया सतत होती है
7.उपभोक्ता की आय ,आदते,रुचि फैसन दिए हुए समय में कोई परिवर्तन नही होता है
■ सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम का स्पष्टीकरण
▪नियम का स्पष्टीकरण Explauation of law - दैनिक जीवन में देखा जाता है कि जब उपभोक्ता के पास किसी वस्तु की अधिक इकाइयां बढ़ती जाती है तो उस वस्तु की बाद में प्राप्त होने वाली इकाइयों से प्राप्त सीमांत उपयोगिता घटती जाती है इस नियम को निम्न प्रकार से तालिका एवं रेखा चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा रहा ह
सेबों की संख्या .सीमांत उपयोगिता . कुल उपयोगिता
1 8 8
2 7 15
3 6 21
4 4 25
5 2 27
6 0 27
7 -2 25
▪उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे सेबो की संख्या मात्रा का उपयोग किया जाता है वैसे वैसे सीमांत उपयोगिता घटती चली जाती है तथा सेब की छठी इकाई पर सीमांत उपयोगिता शून्य हो जाती हैं यह उपभोक्ता का तृप्त बिंदु कहलाता है तत्पश्चात सेबो का अधिक मात्रा में उपभोग करने पर इन से प्राप्त सीमांत उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है
▪प्रस्तुत रेखा चित्र में X अक्ष पर सेबों की संख्या Y अक्ष पर सीमांत उपयोगिता मापी जाती है MU सीमांत उपयोगिता वक्र है जो गिरता हुआ है यह वक यह दर्शाता है कि जैसे जैसे सेवों का उपभोग बढ़ता जाता है वैसे वैसे उनमें प्राप्त सीमांत उपयोगिता घटती जाती हैं
■ सीमांत उपयोगिता ह्रास नियम के उपयोग
1.वस्तुओं के मूल्य निर्धारण में
2.मूल्य विरोधाभास की व्याख्या करने में सहायक
3.हीरा पानी विरोधाभास समझने में
4.मार्शल की बचत धारणा समझने में
5.राजकोषीय नीति समझने में
6.प्रगतिशील कर प्रणाली का आधार है
■ हीरा पानी विरोधाभास
▪पानी जो जीवन के लिए उपयोगी है वह काफी सस्ता है जबकि हीरा जो जीवन के लिए आवश्यक नही है महंगा है ?
▪इस विरोधाभाष को समझने के लिए पानी जो जीवन के लिए आवश्यक है उसकी कुल उपयोगिता (TU) ज्यादा जबकि किसी वस्तु की कीमत MU पर निर्भर करता है ना कि TU पर
▪पानी की सीमान्त उपयोगिता कम होने के कारण सस्ता होता है जबकि हीरे की MU अधिक होने के कारण महंगा होता है हास्य नियम को इस विरोधाभाष से समझा जाता है
▪विनिमय मूल्य का सम्बंध सीमांत उपयोगिता से है जबकि प्रयोग मूल्य कुल उपयोगिता से सम्बंधित है हीरा पानी विरोधाभास इसी का उदहारण है
🔳 Law of Equi marginal Utility [सम सीमान्त उपयोगिता नियम]
▪सम सीमांत उपयोगिता नियम हमे यह बताता है कि " यदि किस व्यक्ति के पास कोई ऐसी वस्तु है जिसके अनेक प्रयोग में ला सकता है तो वह अनेक प्रयोगों में इस तरह बाटता है कि सभी प्रयोगों में सीमांत उपयोगिता बराबर हो जाए तो वह प्रयोग से वस्तु की मात्रा हटाकर और पहले में करके लाभ प्राप्त कर सकता है (मार्शल) "
▪उपयोगिता विश्लेषण में उपभोक्ता का संतुलन " सम सीमांत उपयोगिता द्वारा स्पष्ठ किया जाता है जिसे गोसेन का दूसरा नियम कहा जाता है
▪सम सीमांत उपयोगिता नियम :- MUx / Px = MUy / Py = MUz / Pz .....MUm (एक स्थीर राशी)
▪इसे आनुपातिकता का नियम अथवा अधिकतम संतुष्टि का नियम भी कहते है
▪मान लीजिए उपभोक्ता अपने निश्चित आय को जिन वस्तुओं पर व्यय करना चाहता है वे केवल दो है X और Y
▪उपभोक्ता का व्यवहार दो बातों से प्रभावित होगा :- पहला तो वस्तुओं से प्राप्त होने वाली सीमांत उपयोगिता तथा दूसरा वस्तुओं की कीमते
▪उपभोक्ता अपनी मौद्रिक आय को विभिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार व्यय करेगा कि विभिन्न वस्तुओं से प्राप्त सीमांत उपयोगिता तथा कीमतों के अनुपात समान हो अतः उस समय संतुलन में होगा जब MUx / Px = MUy / Py
▪यदि MUx / Px तथा MUy / Py समान नही है MUx / Px > MUy / Py है तो उपभोक्ता Y वस्तु के स्थान पर X की सीमांत उपयोगिता घटेगी और Y की सीमान्त उपयोगिता बढ़ेगी जब तक दोनो समान नही हो जाते
▪व्याख्या :- मान लीजिए X की कीमत 3 रूपय और Y की कीमत 4 रूपय है तो सारणी प्रथम में वस्तुओं की विभिन्न इकाइयों से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता दिखाया गया है तथा सारणी 2 में वस्तु x की सीमान्त उपयोगिताओ (MUx) को तीन से तथा वस्तु Y को उपयोगिताओ (MUy) को चार से विभाजित करके प्राप्त किया गया है
▪सारणी -1 चित्र
▪सारणी -2 चित्र
●सम-सीमान्त उपयोगिता नियम की परिसीमाए
यह आवश्यक नहीं है कि सभी व्यक्ति अपनी आय को व्यय करने में इस नियम का पूर्णतया पालन करते हो इसके निम्न कारण है
1.उपभोक्ता विवेकशील नही होता कि सही प्रकार से सीमान्त उपयोगिता की गणना करे
2.उपयोगिता एक मनोवैज्ञानिक भावना होने के कारण इसकी माप गणनावाचक रूप से करना सम्भव नही है
3.अविभाज्य वस्तुओं की दशा में इसका पालन करना सम्भव नही है
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