राजस्थान के प्राकृतिक संसाधन
🔰Rajasthan Natural resources
(राजस्थान के प्राकृतिक संसाधन )
➖संसाधन मानव समाज की आर्थिक वृद्धि एवं विकास के मूल आधार होते हैं क्योंकि इन्हीं पर सभी जीव धारियों का अस्तित्व एवं जीवन निर्भर करता है वास्तव में समाज के सभी पक्ष सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रकारों से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं
➖नॉर्टन गिन्सबर्ग (1957) के अनुसार-
“मनुष्य के कार्यक्षेत्र में प्रकृति द्वारा मुक्त रूप में प्रदान किए जाने वाले भौतिक पदार्थ तथा अवस्थिति की अतिरिक्त भौतिक गुणवत्ता प्राकृतिक संसाधन है*
➖आर एफ दासमैन के अनुसार-
“प्रारंभ में वे पदार्थ प्राकृतिक संसाधन थे जो मनुष्य की किसी खास संस्कृति के लिए उपयोगी एवं मूल्यवान थे
प्राकृतिक संसाधन अपने आप में संसाधन नहीं होते हैं क्योंकि वह सक्रिय नहीं है वह संसाधन तब होते हैं जब उनका उपयोग किया जाता है इससे यह स्पष्ट होता है कि संसाधनों का मनुष्य के क्रियाकलापों तथा प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के बीच कार्यकलाप संबंध होता है
🔀प्राकृतिक संसाधन
- वह संसाधन जो हमें प्रकृति से प्राप्त होते हैं और जिनका प्रयोग हम सीधा आधार उसमें कोई भी बदलाव किए बिना करते हैं प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं जैसे जल हवा पानी मिट्टी खनिज पदार्थ लकड़ी आदि
संसाधन दो शब्दों से मिलकर बना है Re+Sources जिसमें “Re” का अर्थ दीर्घ अवधि से और “Sources” का अर्थ साजन से है यह वह साधन हैं जिनका उपयोग मानव दीर्घ अवधि तक कर सकता है
🔀प्राकृतिक संसाधनों को तीन भागों में बांटा जा सकता है
1-विकास और प्रयोग के आधार पर– इस प्रकार के संसाधनों में वास्तविक संसाधन और संभावी संसाधन आते हैं वास्तविक संसाधन के तहत- वह वस्तुएं जिनकी संख्या या मात्रा हमें पता है जिनका इस्तेमाल हम इस समय कर रहे हैं जैसे जर्मनी देश के कोयले की मात्रा पश्चिमी एशिया में खनिज तेल की मात्रा और महाराष्ट्र की काली मिट्टी
संभाव्य संसाधन वह हैं-
जिनकी मात्रा निश्चित या जिसका अनुमान हम नहीं लगा सकते हैं और जिनका प्रयोग अभी हम नहीं कर रहे हैं लेकिन आगे आने वाले समय में कर सकते हैं जैसे पवन चक्कियां एक संभावित संसाधन थी लेकिन आज आधुनिक तकनीक के कारण इसका प्रयोग कर रहे हैं
2-उद्गम या उत्पत्ति के आधार पर-
इस प्रकार के संसाधनों में जैविक और अजैविक दोनों प्रकार के संसाधन आते हैं
जैसे जैविक संसाधन- जीव जंतु पेड़ पौधे मनुष्य और अजैविक संसाधन- कुर्सी इमेज पुस्तकें आदि
3-भंडारण और वितरण के आधार पर-
इस प्रकार के संसाधन में सर्व व्यापक और स्थानीय संसाधन आते हैं
सर्वव्यापक संसाधन जो वस्तुएं सभी जगह पाई जाती है और आसानी से उपलब्ध हो जाती है जैसे वायु एक सर्वव्यापक संसाधन है क्योंकि यह पूरे संसार में पाई जाती है
स्थानीय संसाधन जो–
वस्तुओं कुछ गिने-चुने स्थानों पर ही पाई जाती है जैसे तांबा लोहा अयस्क आदि
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से क्या तात्पर्य है ?
- प्राकृतिक संसाधनों के तहत जल हवा पेड़ पौधे वायु वनस्पति खनिज पदार्थ लकड़ी आदि आते हैं जिनका उपयोग हम हमारे दैनिक जीवन में और आने वाले भविष्य में कर करेंगे अतः प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है प्राकृतिक संपदाओं का योजनाबद्ध और विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए तो उनसे अधिक दिनों तक लाभ उठाया जा सकता है भविष्य के लिए संरक्षित रह सकती है संपदाओं या संसाधनों का योजना बस समुचित और विवेकपूर्ण उपयोगी इनका संरक्षण है संरक्षण का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि प्राकृतिक साधनों का प्रयोग ना कर उनकी रक्षा की जाए उनके उपयोग में कंजूसी की जाए या उनकी आवश्यकता के बावजूद उन्हें बचाकर भविष्य के लिए रखा जाए बल्कि संरक्षण से हमारा तात्पर्य है कि संसाधनों या संपदाओं का अधिक अधिक समय तक अधिकाधिक मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकाधिक उपयोग किया जाए इसके लिए हमें जल संसाधनों को सुरक्षित और लंबे समय तक बनाए रखने के लिए उस में सहयोग करना वनों से प्राप्त वस्तुओं के लिए हमें अत्यधिक मात्रा में लगाना और उनकी रक्षा करना मिट्टी के कटाव को रोकने आदि प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण हैं
🔀प्राकृतिक संसाधनों ( Natural resources) को सामान्यतः दो भागों में बांटा गया है
1. जैविक संसाधन
2. अजैविक संसाधन
1. जैविक संसाधन (Biological resources)- सभी सजीवी को जैविक संसाधन के अंतर्गत रखा जाता है इसके अंतर्गत वनस्पति एवं पौधे, जंतु, पशुधन तथा मनुष्य को शामिल किया जाता है
2. अजैविक संसाधन ( Anti Biological resources )-इसके अंतर्गत सभी तत्व शामिल किए जाते हैं जो कि मानव एवं सजीवों के निर्वाह के लिए अनिवार्य है इसके अंतर्गत स्थल, भूमि, जल, वायु, मिट्टी, खनिज आदि सम्मिलित किए जाते हैं
🔰राजस्थान में जल संसाधन
(Water Resources in Rajasthan )
➖राज्य में देश का सतही जल मात्र 1.16% और भूजल 1.70% है देश के कुल जल का लगभग 1% पानी राजस्थान में है
➖राजस्थान के 237 ब्लॉक में से 200 लगभग डार्क जोन में आ गए हैं जबकि भूजल का करीब 20% जल पीने के लिए तथा 80% जल सिंचाई के उपयोग में किया जाता है
➖राजस्थान की 90% आबादी पेयजल के लिए भूजल स्त्रोतों पर निर्भर है 60-70% आबादी कृषि कार्यों के लिए भू जल स्रोतों पर का उपयोग करती है
उसके पश्चात उद्योग एवं कारखानों में 15 – 20% तथा अन्य घरेलू कार्यों में उपयोग में किया जाता है
➖राजस्थान में भूजल दोहन 137 प्रतिशत तक पहुंच गया है राज्य में प्रतिवर्ष भूजल स्तर 2 मीटर नीचे जा रहा है
🔀उपलब्धता (Availability )
वर्तमान में राजस्थान में पानी की मांग और पूर्ति में 8 बीएमसी (बिलियन घन मीटर) का अंतर है राज्य में भू जल की उपलब्धता 10000 बीएमसी मानी जाती है लेकिन दोहन 13000 बीएमसी होता है
➖ वैसे तो पूरे राज्य में पानी के लिए हालत खराब है लेकिन अजमेर शहर और आसपास के कस्बों, नागौर, टोंक, पाली, राजसमंद, भीलवाड़ा में हालत चिंताजनक है
🔀गुणवत्ता (Quality)
राजस्थान के दक्षिण एवं दक्षिणी पूर्वी भाग में मीठा पानी एवं पश्चिमी तथा मध्य भाग में खारा पानी अधिकता में पाया जाता है खारे पानी होने की वजह पश्चिमी राजस्थान में रासायनिक गुणवत्ता की अधिकता होना है 2010 की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के करीब 27 जिलों में पानी का खारापन, 30 जिलों में अत्यधिक फ्लोराइड, 28 जिलों में अत्यधिक लोहयुक्त तत्व निर्धारित मापदंड से अधिक है
➖राजस्थान के 30 जिले ऐसे हैं जिनमें पानी के अंदर फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिली से अधिक है और करीब 28 जिलों में आयरन की मात्रा 1 मिग्रा/मिली है जो आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक है
🔀भू जल विभाग (Ground water department)
➖राज्य में भूमिगत जल विकास का कार्य 1950 ईस्वी में प्रारंभ हुआ जब भारत सरकार द्वारा राजस्थान भूमिगत जल बोर्ड की स्थापना की गई
➖1955 में इस बोर्ड का नियंत्रण राजस्थान सरकार को दे दिया गया तथा 1971 ईस्वी से इस बोर्ड को भ-ूजल विभाग के नाम से जाना जाता है
➖ इसका प्रधान कार्यालय जोधपुर में स्थित है तथा राज्य में भ-ूजल की रासायनिक जांच हेतु जयपुर जोधपुर और उदयपुर में प्रयोगशालाएं स्थित हैं
➖ राजस्थान राज्य में भू जल की उपलब्धता वाले 595 क्षेत्र हैं इसके अंतर्गत 206 ब्लॉक ऐसे हैं जिनमें भूमिगत जल का निकास 85% से अधिक होता है
🔰मृदा संसाधन (Soil Resources)
मृदा भूमि की ऊपरी सतह होती है जो चट्टानों के टूटने फूटने व विघटन से उत्पन्न सामग्री तथा उस पर पड़े जलवायु वनस्पति एवं अन्य जैविक कारकों के प्रभाव से विकसित होती है यह एक अनवरत प्रक्रिया का प्रतिफल है जो भूगर्भिक युगो में होती रहती है
➖मृदा की प्रकृति उस मूल सेल की संरचना पर निर्भर करती है जिसके विखंडन से उसकी उत्पत्ति हुई है लेकिन इस लंबी प्रक्रिया में अनेक भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते हैं साथ ही उसमें जीवाशम व वनस्पति अंश सम्मिलित होकर उसे एक निश्चित स्वरुप प्रदान कर देते हैं
➖ प्राय मृदा की सतह 30 से 40 सेंटीमीटर मानी जाती है किंतु यह 150 सेंटीमीटर अथवा इस से भी अधिक गहराई तक हो सकती है
➖ मृदा पौधों की वृद्धि का एक प्राकृतिक माध्यम है तथा मृदा की उत्पादकता ही क्षेत्रीय कृषि विकास का एक आधार होता है
🔀मृदा के प्रकार व वितरण (Types and Soil Formations)
राजस्थान की मृदाओं को उनके उपजाऊपन कृषि के लिए उपयोगिता एवं अन्य विशेषताओं के आधार पर अग्रलिखित भागों में विभक्त किया जाता है-
⚜1. रेतीली व बलुई मिट्टी
शुष्क प्रदेश बाड़मेर जैसलमेर जोधपुर बीकानेर नागौर चूरू झुंझुनूं
नमी धारण की निम्न क्षमता नाइट्रोजन कार्बनिक लवण की न्यूनता तथा कैल्शियम लवणों की अधिकता
बाजरा मोठ मूंग की फसल हेतु उपयुक्त
⚜2 काली मिट्टी
दक्षिणी पूर्वी भागों में
बारीक कण नमी धारण की क्षमता अधिक फास्फेट नाइट्रोजन जैविक पदार्थों की अल्पता कैल्शियम व पोटाश की पर्याप्त
कपास में नगदी फसलों हेतु उपयुक्त
⚜3 लाल दोमट मिट्टी
उदयपुर डूंगरपुर बांसवाड़ा तथा चित्तौड़गढ़
बारिक कण नमी धारण की अद्भुत क्षमता पोटाश व लौह तत्वों की अधिकता नाइट्रोजन फास्फोरस कैल्शियम लवणों की अल्पता
मक्का की फसल हेतु उपयुक्त
⚜4 मिश्रित लाल काली मिट्टी
उदयपुर चित्तौड़गढ़ डूंगरपुर बांसवाड़ा भीलवाड़ा
फॉस्फेट नाइट्रोजन कैल्शियम तथा कार्बनिक पदार्थों की अल्पता
⚜5 भूरी मिट्टी
भीलवाड़ा अजमेर सवाई माधोपुर टोंक
नाइट्रोजन और फास्फोरस तत्वों का अभाव
बनास के प्रवाह क्षेत्र की मृदा
रंग पीला भूरा उर्वरा शक्ति की कमी
⚜6 भूरी रेतीली मिट्टी
नागौर पाली जालोर झुंझुनू सीकर
नाइट्रोजन कार्बनिक पदार्थों व जैविक अंश की कमी
⚜7 मिश्रित लाल पीली मिट्टी
सवाई माधोपुर भीलवाड़ा अजमेर सिरोही
नाइट्रोजन कैल्शियम कार्बनिक यौगिकों में ह्यूमस की अल्पता
⚜8 जलोढ़ व कछारी मिट्टी
अलवर भरतपुर धौलपुर जयपुर टोंक सवाई माधोपुर कोटा बुंदी
जल धारण की पर्याप्त क्षमता व अत्यधिक उपजाऊ
फॉस्फेट में कैल्शियम तत्वों की अल्पता तथा नाइट्रोजन तत्वों की बहूलता
गेहूं चावल कपास तथा तंबाकू के लिए उपयुक्त है
⚜9.पर्वतीय मृदा
अरावली की उपत्यका में सिरोही उदयपुर पाली अजमेर अलवर जिलों के पहाड़ी भागों में
मिट्टी की गहराई कम होने के कारण खेती के लिए अनुपयुक्त
⚜10 लवणीय मिट्टी
गंगानगर बीकानेर बाड़मेर व जालोर
क्षरीय व लवणीय तत्व की अधिकता के कारण अनुपजाऊ
प्राकृतिक रूप से निम्न भूभागों में उपलब्ध
🔝👉IMPORTANT FACTS
1.अंजन- यह हर मौसम में उगने वाली घास है गायो व घोड़ो के लिए उपयुक्त है
2.भालू अभ्यारण्य- जालोर -सिरोही के मध्य जसवंतपूरा क्षेत्र के सुंधामाता क्षेत्र को भालुओ का अभ्यारण्य घोषित किया गया है
3.चौसिंगा- चौसिंगा विश्व का एक मात्र ऐसा हिरन है जिसके नर के चार सींग होते है यह मर्ग केवल हमारे देश में ही पाया जाता है.यह सीता माता अभ्यारण्य में सर्वाधिक पाया जाता है
4.खिंचन- फ़लौदी( जोधपुर ) के निकट स्थित इस गांव में रूस उक्रेन व कजाकिस्तान से प्रवासी पक्षी कुरंजा बड़ी संख्या में आते है प्रवासी पक्षी कुरजां जो शताब्दियों से राजस्थान आता रहा है राजस्थानी लोक संस्कृति में समाहित हो गया है इसे मारवाड़ में विरहणियों का संदेशवाहक पक्षी माना जाता है “कुर्जा ऐ म्हारे भंवर मिला दिज्यो ए”
5.वन नीति – राजस्थान सरकार द्वारा 8 फ़रवरी,2010 में अपनी पहली राज्य वन नीति घोषित की गयी है साथ ही राजस्थान वन व पर्यावरण नीति लागु करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है इस नीति के तहत 45 हजार वर्ग मि मी अतिरिक्त क्षेत्र में वन विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है वन्य जीवो के संरक्षण की दृष्टि से राज्य में 3 राष्ट्रीय उद्यान सहित 26 वन्य जीव अभ्यारण्य तथा 9 संरक्षित क्षेत्र विकसित किये जा चुके है वन नीति में प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का न्यूनतम पांच प्रतिशत क्षेत्र जैव विविधता संरक्खन के उद्देश्ये से विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है
🔀विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों
1- जलवायु (Climate )
2- मृदा (soil)
3- प्राकृतिक वनस्पति और वन संसाधन
4 ऊर्जा संसाधन (Energy resources)
परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत
गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत
5 खनिज संसाधन (Mineral resources)
6 जल संसाधन (Water resources )
7 वन्य जीव और जैव विविधता ( Wildlife and biodiversity )
8 जैव विविधता (Biodiversity)
: नोट उपरोक्त बिंदुवार सभी सलेबस में शामिल है इनकी व्याख्या अगले टॉपिक में होगी इसमे जल संसाधन की चर्चा करेंगे
➖राज्य में मृदा संरक्षण कार्यक्रमों को अर्धशतक से पहले कृषि विभाग द्वारा और 1991 के बाद वाटरशेड विकास विभाग द्वारा निष्पादित किया जा रहा है।
इन कार्यक्रमों के माध्यम से बहुत कुछ सीखा है। अर्धशतक में, केवल मिट्टी संरक्षण कार्यों को व्यक्तिगत क्षेत्र के आधार पर लिया गया था। सत्तर के शुरुआती दिनों में अच्छी संभावित फसल किस्मों, नमी संरक्षण प्रथाओं, इनपुट उन्मुख फसल पर जोर दिया गया था, लेकिन यह गरीब किसानों के संसाधनों के साथ वर्षा की तीव्रता और तीव्रता की अनिश्चितताओं के कारण लंबे समय तक नहीं जा सका। इसलिए, सत्तर के अंत में जोर जल संरक्षण और जल संचयन तकनीकों में स्थानांतरित हो गया। अच्छे परिणाम प्राप्त किए गए लेकिन वनस्पति संरक्षण उपायों की आवश्यकता है और सरल कम लागत वाली जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना महसूस किया गया था। अस्सी के दशक की शुरुआत में, क्षेत्रीय दृष्टिकोण के आधार पर कम लागत वाली प्रौद्योगिकियों पर जोर दिया गया जहां वानिकी, बागवानी, मृदा संरक्षण, कृषि, पशुपालन इत्यादि की योजना बनाई गई थी और स्वतंत्र रूप से कार्यान्वित किया गया था, लेकिन एकीकृत विकास के लिए धन विभागों द्वारा उपलब्ध नहीं कराया गया था एक ही समय में और उसी क्षेत्र में। इसे देखते हुए, अस्सी के दशक के मध्य में एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन की अवधारणा अपनाई गई थी। हालांकि दृष्टिकोण समग्र था लेकिन परियोजना को वापस लेने के बाद टिकाऊ नहीं था। नब्बे के दशक की शुरुआत में, कार्यक्रमों के विकास के लिए भागीदारी एकीकृत एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन पर जोर दिया गया था और कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए एकीकृत जलविद्युत विकास कार्यों के लिए एनडब्ल्यूडीपीआरए, डीपीएपी, डीडीपी और आईडब्ल्यूडीपी के तहत भारत सरकार से धन में पर्याप्त वृद्धि हुई थी, 1 99 1 से वाटरशेड विकास और मृदा संरक्षण विभाग बनाया गया था।
23 वें संवैधानिक संशोधन के अनुपालन में, क्षेत्र कार्यकर्ताओं और बजट को पंचायती राज संस्थानों में स्थानांतरित कर दिया गया है और इसलिए विभिन्न योजनाओं के तहत सभी जल संसाधन विकास कार्य अब निर्वाचित सांविधिक निकाय अर्थात ग्राम पंचायत / पीआरआई के माध्यम से 1-4-04 से लागू किए जा रहे हैं।
राज्य में निदेशालय वाटरशेड विकास और मृदा संरक्षण द्वारा कार्यक्रम की निगरानी और निगरानी की जा रही है
➖राजस्थान राज्य के लोक निर्माण विभाग से अलग होने के बाद 14 दिसंबर 1949 को सिंचाई विभाग लागू हुआ।
➖आजादी के समय 1 प्रमुख परियोजना, 43 मध्यम और 2272 मामूली परियोजनाएं थीं और सिंचाई क्षमता केवल 4 लाख हेक्टेयर थी।
➖ इसलिए स्वतंत्रता के बाद राज्य सिंचाई विभाग का गठन 1 9 4 9 में खाद्य और चारा के उत्पादन में वृद्धि के उद्देश्य से किया गया था और सूखे और बाढ़ के कारण घाटे को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त सिंचाई प्रणाली स्थापित करने के उद्देश्य से। इस उद्देश्य से सिंचाई क्षमता बढ़ाने के लिए विभाग द्वारा कई परियोजनाएं शुरू की गईं।
➖राजस्थान देश के 10.41% भौगोलिक क्षेत्र,
➖कुल जनसंख्या का 5.5% और 2 / 3 हिस्सा रेगिस्तान है।
➖राज्य को 16 बेसिन में बांटा गया है, जिनमें से केवल दो बेसिन (चंबल और माही) में पर्याप्त वर्षा और उपज है।
➖जैसा कि ऊपर दिखाया गया है राजस्थान में 33 जिलों हैं।
➖ सिंचाई का निर्माण PMKSY, MJSA, AIBP, JICA इत्यादि जैसी विभिन्न विशेष योजनाओं के तहत संरचनाएं सिंचाई विभाग को सौंपी गई हैं।
➖सतही जल
राजस्थान में सतही जल की संयुक्त उपलब्धता 43.26 बीसीएम है।
राज्य सीमा के भीतर उपलब्ध सतह का पानी 25.38 बीसीएम है और विभिन्न अंतरराज्यीय संधि से आवंटित पानी 17.88 बीसीएम है।
राष्ट्रीय संसाधनों की कुल सतह जल उपलब्धता 1.16% है।
🔀जल संसाधन विभाग की वर्तमान स्थिति इस प्रकार है:
विवरण संख्या क्षमता (मैकम में)
1. मेजर टैंक 24 6296.48
2. मध्यम टैंक 84 2133.34
3. माइनर टैंक 3331 3455.38
4. डब्ल्यूएचएस 74271 2 9 42.2 9
कुल 77710 14827.4 9
मेजर / मध्यम / माइनर टैंक / डब्ल्यूएचएस का कुल सीसीए 1754608 हा है।
🔀भूमि जल
कुल भूजल उपलब्धता राष्ट्रीय संसाधनों का 1.72% है।
24 9 ब्लॉक हैं जिनमें से केवल 31 ब्लॉक सुरक्षित स्थिति में हैं।
🔀वर्षा
राज्य में जिलावार औसत वर्षा का हवाई वितरण जैसलमेर में 158.0 मिमी से सिरोही में 968.0 मिमी तक रहता है।
:★महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली★:
🔅राजस्थान की जलवायु🔅
✒ किसी भी भू भाग पर लम्बी अवधि के दौरान विभिन्न समयो में विभिन्न मौसम की अवस्था उस भू भाग जलवायु है
✒ उत्तर-पश्चिमी भारत में राजस्थान का जलवायु आम तौर पर शुष्क या अर्ध-शुष्क है और वर्ष भर में काफी गर्म तापमान पेश करता है, साथ ही गर्मी और सर्दियों दोनों में चरम तापमान होते हैं।
✒भारत का यह राज्य राजस्थान उत्तरी अक्षांश एवं पूर्वी देशांतर पर स्थित है।
✒ कर्क रेखा राजस्थान के दक्षिण अर्थात बांसवाड़ा जिले के मध्य (कुशलगढ़) से होकर गुजरती है इसलिए हर साल 21 जून को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले पर सूर्य सीधा चमकता है।
✒ राज्य का सबसे गर्म जिला चुरु है
✒ राज्य का सबसे गर्म स्थल जोधपुर जिले में स्थित फलोदी है।
✒ राज्य का सबसे शीत जिला चुरू है
✒ राजस्थान का सबसे शीत स्थान माउंट आबू सिरोही है
✒राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला जिला झालवाड़ है
✒राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला स्थान सम तहसील जैसलमेर
✒राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा विभिन्नता बाड़मेर है
✒राजस्थान में न्यूनतम वर्षा विभिन्नता वाला जिला डूंगरपुर है
✒राजस्थान में भौगोलिक विषमता के कारण जलवायु समान नहीं होती है
✒राजस्थान के पश्चिमी भाग में ग्रीष्म में उष्ण शीत में ठंडा वाष्प की मात्रा कम होती है
✒राजस्थान के पूर्वी भाग में शीत ऋतु कम ठण्डी ग्रीष्म ऋतु कम गर्म वायु में सदैव आद्रता बनी रहती है
✒राजस्थान का गर्मियों में सर्वाधिक दैनिक तापांतर वाला जिला जैसलमेर है
✒ राज्य में गर्मियों में सबसे ज्यादा धूल भरी आंधियां श्रीगंगानगर जिले में चलती है
✒राज्य में विशेषकर पश्चिमी रेगिस्तान में चलने वाली गर्म हवाओं को लू कहा जाता है
✒ राजस्थान में मानसून की सर्वप्रथम दक्षिण पश्चिम शाखा का प्रवेश करती है अरावली पर्वतमाला के मानसून की समानांतर होने के कारण राजस्थान में कम तथा अनियमित वर्षा होती है
✒राजस्थान में ऋतुएँ
🔅भौगोलिक दृष्टि से यहां तीन प्रमुख ॠतुएँ हैं-
१) ग्रीष्म ॠतु
२) वर्षा ॠतु
३) शीत ॠतु
🔅ग्रीष्मकाल
✒ राज्य में ग्रीष्मकाल ऋतु का समय मध्य मार्च से जून तक है।
✒सबसे अधिक गर्मी मई और जून महीने में पड़ती है इस अवधि में यहां का तापमान विशेषकर पश्चिम भाग का 45 डिग्री सेल्सियस से 51 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
✒राजस्थान में ग्रीष्म ॠतु मार्च से प्रारंभ होकर मध्य जून तक रहती है।
✒मार्च में सूर्य के उत्तरायण आने पर तापमान में वृद्धि होने लगती है।
✒तापमान वृद्धि के कारण वायुमंड़लीय दवाव निरंतर गर्म सतह पर गिरने लगता है।
✒अप्रैल में हवाएँ पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं।
✒हवाएँ चूँकि गर्म थार मरुस्थल को पार करती हुई आती है, अत: शुष्क एवं गर्म होती है। अप्रैल और मई के महीनों में सूर्य लगभग लंबवत् चमकता है। जिस कारण दिन के तापमान में वृद्धि होती है।
✒राजस्थान के पश्चिमी भागों में मुख्य रुप से बीकानेर, जैसलमेर, फलौदी और बाड़मेर में अधिकतम दैनिक तापमान इन महीनों में 40 डिग्री से० से 45 डिग्री से० तक चला जाता है।
✒गंगानगर में उच्चतम तापमान 50 डिग्री से० तक पहुँच जाता है।
✒ जोधपुर, बीकानेर, बाडमेर में तापमान 49 डिग्री से०, जयपुर और कोटा में 48 डिग्री तक पहुँच जाता है।
✒दिन के समय उच्च तापक्रम मौसम को अति कष्टकर बना देतें हैं। संपूर्ण राजस्थान में दोपहर के समय लू (तेज गर्म हवाएँ) व रेत की आंधियाँ चलती है किन्तु पश्चिमी व उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थली भागों में ये आंधियाँ भयंकर होती है।
🔅वर्षा ऋतु
✒राजस्थान में वर्षा ऋतु जून से अक्टूबर के प्रथम तक रहता है
✒ राज्य में दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं से वर्षा होती ह
✒राजस्थान में वर्षा ॠतु जून से मध्य सितंबर तक रहती है।
✒यहां वर्षा लगभग नही के बराबर होती है।
✒इस भाग में बंगाल की खाड़ी से आने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं से औसत वर्षा 12 से 15 से०मी० तक हो जाती है।
✒अरब सागर से उठने वाला मानसून मालवा के पठार तक ही वर्षा कर पाता है।
✒ इसके उत्तर में यह अरावली पर्वत के समान्तर उत्तर की ओर बढ़ जाती है। अरावली के पूर्व में वर्षा का औसत 80 से०मी० तक पाया जाता है। जबकि पश्चिम भागों में यह औसत 25 से०मी० से भी कम होता है।
✒दक्षिणी राजस्थान की स्थिति वर्षा करने वाली हवाओं के अनुकूल है जिसके कारण आबू पर्वत में राजस्थान की सर्वाधिक वर्षा 150 से०मी० तक अंकित की जाती है।
✒भारत-पाक सीमा के क्षेत्रों में वर्षा 10 से०मी० तथा जैसलमेर में लगभग 21 से०मी० होती है। राजस्थान में अधिकांश वर्षा जुलाई और अगस्त महीनों में ही होती है।
✒दक्षिणी पश्चिमी मानसून हिंद महासागर से उत्पन्न हो कर दो शाखाओं में बंगाल की खाड़ी की शाखा एवं अरब सागर की शाखा के रूप में राज्य में प्रवेश करती है
✒राज्य को इस शाखा से केवल 59.9 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इसका कारण अरावली श्रृंखला का दक्षिण पश्चिम विशाखा के समानांतर होना है।
🔅शीतकाल
✒राजस्थान में इस मौसम की अवधि नवंबर से मध्य मार्च तक है
✒ जनवरी सबसे ठंडा महीना होता है
✒इस काल में सूर्य की स्थिति उत्तरायण और दक्षिणायन होने लगती है जिसके फलस्वरूप तापमान गिरने लगता है तथा वायु दाब बढ़ने लगता है वर्षा ऋतु में ना के बराबर होती है
✒ राजस्थान में शीत ॠतु का समय अक्तूबर से फरवरी तक रहता है।
✒शीत ॠतु तक धीरे-धीरे तापमान गिरने लगता है तथा संपूर्ण राजस्थान में अक्तूबर के महीने में एक सा तापमान रहता है।
✒इन दिनों में अधिकतम तापमान 30 डिग्री से० से 36 डिग्री से० तक तथा न्युनतम तापमान 17 डिग्री से० से 21 डिग्री से० तक रहता है।
✒नवम्बर के महीने में अपेक्षाकृत अधिक सर्दी रहती है। दिसंबर और जनवरी में कठोर सर्दी पड़ती है। राजस्थान के उत्तरी जिलों में जनवरी का औसत तापमान 12 डिग्री से० से 16 डिग्री से० तक रहता है।
✒आबू पर्वत पर ऊचाई के कारण यहां का तापमान इस समय औसत 8 डिग्री से० रहता है।
✒कश्मीर, हिमाचल प्रदेश आदि क्षेत्रों में हिमपात के कारण शीत लहर आने पर यहां सर्दी बहुत बढ़ जाती है। उत्तरी क्षेत्रों में लहर के कारण तापमान कभी-कभी पाला के साथ हिमांक बिंदु तक पहुँच जाता है।
✒मध्य एशिया उच्च भार के कारण कई बार पछुआ पवनों की एक शाखा पश्चिम दिशा से राजस्थान में प्रवेश करती है तथा इन चक्रवातों के कारण कई बार उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान में आकाश की स्वच्छता मेघाच्छन्न स्थिति में परिवर्तित हो जाती है। इन चक्रवातों से राजस्थान में कभी-कभी वर्षा हो जाती है जिसे 'महावट' कहते हैं। इन चक्रवातों में ५ से १० से०मी० तक वर्षा होती है।
✒राज्य के गंगानगर, चुरु, बीकानेर, और सीकर जिलों में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। इस ॠतु में सुबह के समय ओस पड़ना तथा प्रात: आठ बजे के बाद तक कोहरा रहना एक समान्य लक्षण है।
✒इस काल में सूर्य की स्थिति उत्तरायण और दक्षिणायन होने लगती है जिसके फलस्वरूप तापमान गिरने लगता है तथा वायु दाब बढ़ने लगता है वर्षा ऋतु में ना के बराबर होती है
🔅मौसम
वायुमंडलीय दशाओं का योग मौसम कहते हैं सामान्यतः परिवर्तित है
✒राजस्थान की जलवायु मानसूनी है
🔅जलवायु भिन्नता के क्या कारण है ?
✒अक्षांशीय स्थिति का होना
✒समुद्र-तट से दूरी का होना
✒समुद्र तल से औसत ऊंचाई में भिन्नता होना
✒जलीय भागों में की उपस्थिति होना
✒वायु की दिशा
✒धरातलीय स्वरूप यह सब जलवायु की भिन्नता के कारण होता है
🔅राजस्थान के जलवायु प्रदेश
१. शुष्क जलवायु प्रदेश
२. अर्ध शुष्क जलवायु प्रदेश
३. उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
४. आर्द्र जलवायु प्रदेश
५. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश
🔅शुष्क जलवायु प्रदेश
✒जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर का पश्चिमी भाग जोधपुर का उत्तरी भाग एवं श्रीगंगानगर जिले के दक्षिणी भाग आदि इस प्रदेश के अंतर्गत आते हैं
✒ इन सभी क्षेत्रों के मरुस्थलीय होने के कारण कम वर्षा तथा गर्मी अधिक पड़ती है।
✒ वर्षा की मात्रा 10 से 20 सेंटीमीटर होती है
✒ शीतकाल में यहां तापमान 11 डिग्री सेल्सियस तथा दैनिक तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।
🔅अर्ध शुष्क जलवायु प्रदेश
✒वर्षा की अनिश्चितता अनियमितता एवं तूफानी तथा वर्षा की मात्रा 20 से 40 सेंटीमीटर होती है
✒ग्रीष्म ऋतु का तापमान 32 सेंटीमीटर से 36 सेंटीमीटर आदि
✒प्रदेश की विशेषताएं इस क्षेत्र के अंतर्गत बीकानेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर का अधिकांश भाग सीकर, झुंझुनू, चूरू, नागौर, जालौर और पाली जिला का पश्चिमी भाग आते हैं यहां वनस्पति विकास एवं कंटीली झाड़ियां प्रमुख है।
✒घग्घर का मैदान, शेखावटी प्रदेश, लूणी बेसिन आदि
🔅३. उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
✒इस प्रदेश के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र जयपुर, अजमेर, अलवर एवं सीकर, झुंझुनू, पाली, जालोर आदि जिलों का पूर्व विभाग भीलवाड़ा, टोंक और सिरोही का उत्तर पश्चिमी भाग जाते हैं।
✒यहां वर्षा का वार्षिक औसत 40 से 60 सेंटीमीटर है
✒ग्रीष्म ऋतु का तापमान 27 डिग्री सेंटीमीटर से 34 डिग्री सेंटीमीटर तक तथा शीत ऋतु में 18 डिग्री सेंटीमीटर से दक्षिण क्षेत्र में एवं उत्तरी क्षेत्र में 12 सेंटीमीटर रहता है
✒यहां की वनस्पति सघन, विरल प्रकार की है।
🔅आर्द्र जलवायु प्रदेश
✒धौलपुर, सवाई माधोपुर भरतपुर, कोटा, बूंदी जिले, टोंक का दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र चित्तौड़गढ़ का उत्तरी क्षेत्र इस जलवायु प्रदेश के अंतर्गत आते हैं।
✒यहां वर्षा की मात्रा 70 से 80 सेंटीमीटर होती है
✒गर्मियों का औसत तापमान 32 डिग्री सेंटीमीटर से 34 डिग्री सेंटीमीटर एवं शीतकाल में 14 डिग्री सेंटीमीटर से 17 डिग्री सेंटीमीटर तक जाती है
🔅अति आर्द्र जलवायु
✒प्रदेश जलवायु प्रदेश के अंतर्गत बांसवाड़ा, झालावाड़, कोटाका दक्षिणी पूर्वी भाग उदयपुर का दक्षिणी पश्चिमी भाग एवं आबू पर्वत का सीमांत क्षेत्र आदि आते है।
✒इस क्षेत्र में वर्षा 80 से अधिक सेंटीमीटर तक होती है। अतः यहां की वनस्पति सघन एवं सदाबहार है।
🔅जलवायु का समान्य अभिप्राय है - किसी क्षेत्र में मौसम की औसत दशाएँ।
🔅 समान्यत: मौसम की औसत दशाओं का ज्ञान किसी क्षेत्र के तापमान, आर्दता, वर्षा, वायुदाव आदि का दीर्घकाल तक अध्ययन करने से होता है।
🔅 राजस्थान के जलवायु को मोटे तौर पर मानसूनी कहा जाता है।
🔅 यहां वर्षा मानसूनी हवाओं से होती है। तापमान की दृष्टि से इसके मरुस्थलीय क्षेत्रों में पर्याप्त विषमता पाई जाती है।
🔅 कोपेन के अनुसार राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण- 1918 में कोपेन ने राज्य की जलवायु को चार भागों में बांटा-
🔅(Aw) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश-
✒डूंगरपुर के दक्षिण में तथा बांसवाड़ा जिला।कर्क रेखा पर स्थित
🔅(BShw) अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश
- बाड़मेर, नागौर, चुरू, जालौर, जोधपुर तथा दक्षिण -पूर्वी गंगानगर आदि क्षेत्र
तापमान 32-50 सितकाल में 50° ग्रीष्म काल मे
🔅(BWhw) शुष्क उष्ण मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश-
✒उत्तरी-पश्चिमी जोधपुर, जैसलमेर, पश्चिमी बीकानेर तथा गंगानगर।
🔅(Cwg) शुष्क शीत जलवायु प्रदेश- अरावली पर्वत के दक्षिणी – पूर्वी तथा पूर्वी भाग (हाड़ौती,मेवात एवं डांग क्षेत्र)।
✒राजस्थान में अकाल 1956 में पड़ा
✒ राजस्थान में सर्वाधिक व्यर्थ बंजर भूमि जैसलमेर में स्थित है
✒राजस्थान में सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि बाड़मेर में है
✒राजस्थान में प्रतिशत अनुपूरक भूमि राजसमंद में है
✒राजस्थान बंजर व्यर्थ विकास विभाग की स्थापना 1982 में हुई
✒ सुजलम योजना खारे पानी को मीठे पानी में बदलने की एक योजना है
✒पहल योजना एकीकृत बंजर भूमि विकास योजना है
✒राजस्थान में कुल व्यर्थ भूमि का 66 प्रतिशत भाग राजस्थान के 12 जिलों में स्थित है
✒राजस्थान के 12 जिलो का कुल क्षेत्रफल 61.11% भूभाग है
✒जलधारा योजना पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने हेतु जुलाई 1994 में प्रारंभ की गई
✒ मरू विकास कार्यक्रम का प्रारंभ अप्रैल 1995 में 16 जिलों में हुआ
✒घमण, सेवण, अंजन, आइबो मिक्स यह सब घास के प्रकार है
🔅 प्रमुख देसी महीने
✒बसंत --चैत्र -वैशाख(मार्च-अप्रैल)
✒ग्रीष्म-- जेष्ठ-आषाढ(मई-जून)
✒वर्षा --श्रावण-भाद्रपद(जुलाई-अगस्त)
✒शरद--अश्विन-कार्तिक(सितंबर-अक्टूबर)
✒हेमंत-- मार्गशीर्ष -पोष नवम्बर-दिसंबर
✒शिशिर-- माघ फाल्गुन( जनवरी-फरवरी)
🔅कवास बाड़मेर में भीषण बाढ़ 2006 में आई
🔅थार्नवेट
✒CAW ग्रीष्म में वर्षा दक्षिण पूर्व राजस्थान
✒DAW ग्रीष्मकाल में उच्च तापमान अर्ध मरुस्थली
✒ DBw शीतकाल में कुछ उत्तरी राजस्थान
✒EAD पश्चिमी राजस्थान
🔅टीवार्र्थ
✒AW उष्ण आद्र जलवायु दक्षिण पूर्वी राजस्थान में
✒ BSH उष्ण व अर्ध शुष्क मध्य पश्चिमी राजस्थान में
✒BWH उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश
✒CAW अर्द्ध उष्ण पूर्व राजस्थान में
✒राजस्थान में सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला महिना मार्च-अप्रैल है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में होती है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला जिला जयपुर है।
✒राजस्थान में हवाऐं पाय पश्चिम व दक्षिण पश्चिम की ओर चलती है।
✒हवाओं की सर्वाधिक गति - जून माह
✒हवाओं की मंद गति - नवम्बर माह
✒ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम की तरफ से गर्म हवाऐं चलती है जिन्हें लू कहते है। इस लू के कारण यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस निम्न वायुदाब की पूर्ती हेतु दुसरे क्षेत्र से (उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से) तेजी से हवा उठकर आती है जो अपने साथ धुल व मिट्टी उठाकर ले आती है इसे ही आंधी कहते हैं।
✒आंधियों की सर्वाधिक संख्या - श्रीगंगानगर(27 दिन)
✒आंधियों की न्यूनतम संख्या - झालावाड़ (3 दिन)
✒राजस्थान के उत्तरी भागों में धुल भरी आधियां जुन माह में और दक्षिणी भागों में मई माह में आति है।
✒राजस्थान में पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में तुफान(आंधी + वर्षा) अधिक आते है
🔅आंधियों के नाम
✒उत्तर की ओर से आने वाली - उत्तरा, उत्तराद, धरोड, धराऊ
✒दक्षिण की ओर से आने वाली - लकाऊ
✒पूर्व की ओर से आने वाली - पूरवईयां, पूरवाई, पूरवा, आगुणी
✒पश्चिम की ओर से आने वाली - पिछवाई, पच्छऊ, पिछवा, आथूणी।
✒अन्य
उत्तर-पूर्व के मध्य से - संजेरी
पूर्व-दक्षिण के मध्य से - चीर/चील
दक्षिण-पश्चिम के मध्य से - समंदरी/समुन्द्री
उत्तर-पश्चिम के मध्य से - सूर्या
✒पृथ्वी के परिक्रमण काल में 21 मार्च एवम् 23 सितम्बर को सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं फलस्वरूप सम्पूर्ण पृथ्वी पर रात-दिन की अवधि बराबर होती है।
🔅उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन - 21 जुन
🔅दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात - 21 जुन
🔅उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात - 21 जुन
🔅दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन - 21 जुन
🔅दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन - 22 दिसम्बर
🔅उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात - 22 दिसम्बर
🔅दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात - 22 दिसम्बर
🔅उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन - 22 दिसम्बर
🔅मावठ
सर्दीयों में पश्चिमी विक्षोभ/भुमध्य सागरिय विक्षोप के कारण भारत में उतरी मैदानी क्षेत्र में जो वर्षा होती है उसे मावठ कहते हैं।
मावठ का प्रमुख कारण - जेटस्ट्रीम
जेटस्ट्रीम - सम्पूर्ण पृथ्वी पर पश्चिम से पूर्व कि ओर क्षोभमण्डल में चलने वाली पवनें।
मावठ रबी की फसल के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है। इसलिए इसे गोल्डन ड्राप्स या स्वर्णीम बुंदें कहा जाता है।
🔅राजस्थान की मिटिया
✒अमेरिकी मृदा विशेषज्ञ डा बैनेट के अनुसार
"मिट्टी भू पृष्ठ पर मिलने वाले अंसगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत है जो मूल चट्टानों व वनस्पति के योग से बनती है "
✒साधारणतया जिसे हम मिट्टी कहते हैं , वह चट्टानों का चूरा होता है।
✒ये चट्टानें मुख्यतया तीन प्रकार की होती हैं - स्तरीकृत , आग्नेय और परिवर्तित। क्षरण या नमीकरण के अभिकर्त्ता तापमान,वर्षा,हवा,हिमानी,बर्फ व नदियों द्वाया ये चट्टाने टुकड़ों में विभाजित होती हैं जो अंत में हमें के रूप में दिखाई देती हैं।
✒वैज्ञानिक दृष्टि से राजस्थान की मिट्टियों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है
इसे छ भागो में बाँटा गया है
🔅 रेतीली मिट्टी/मरुस्थली मिट्टी
✒राजस्थान में पश्चिमी भाग में रेतीली मिट्टी देखी जाती है।
✒इस क्षेत्र में पानी प्राय: 100 फुट की गहराई पर मिलता है।
✒राजस्थान के लगभग 38 % भू-भाग में यह मिट्टी देखने को मिलती है।
✒जालोर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, चूरू, झुंझुनूं, नागौर, आदि जिलों में पाई जाती है
✒यह मिट्टी कम उपजाऊ भूमि होती है
✒इसका निर्माण प्रधनत:भौतिक अपक्षय द्वारा होता है
✒ रेतीली बालू मृदा:- गंगानगर, बीकानेर, चूरु, जोधपुर ,जैसलमेर, बाड़मेर, और झुंझुनू जिले में विस्तार है
✒ लाल रेतीली मृदा :-नागौर ,जोधपुर, पाली, जालोर, चूरु और झुंझुनू में विस्तार है
✒पीली भूरी रेतीली मृदा:- नागौर और पाली जिले में है
✒ खारी मृदा :-बाड़मेर ,जैसलमेर, बीकानेर ,नागौर जिले की निम्न भूमियों अथवा गर्तों का विस्तार है
✒पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश भागों में पाई जाती है मोटे करने के कारण पानी शीघ्रता से विलीन हो जाता है
✒नाइट्रोजन, कार्बनिक लवण, सूक्ष्म पोषक तत्व ,मैगनीज, तांबा तत्वों की कमी पाई जाती है
✒कैल्शियम लवणों की अधिकता करने के लिए ग्वार व ढेचा के लिए उपयुक्त है इस मिट्टी में बाजरा मूंग मोठ का उत्पादन होता है
🔅 लाल व पीली मिट्टी
✒ इस प्रकार की मृदा सवाई माधोपुर, सिरोही ,राजसमंद, उदयपुर, भीलवाड़ा, जिले के पश्चिम भाग में पाई जाती है
✒ इस मिट्टी में उपजाऊ तत्वों की कमी होती है
✒यह मिट्टी ग्रेनाइट सिस्ट, व निस चट्टानों के विखंडन से निर्मित होती है
✒ इसमें चूना व नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है
✒इसमे लोह अंश के कारण इस मिट्टी का रंग लाल पीला होता है
✒यह मिट्टी मूंगफली में कपास की कृषि के लिए उपयुक्त है
✒हल्की बारिश से बुवाई संभव है इसलिए अर्ली सोली कहते हैं
-अर्ली सॉरी तुरंत बुवाई लाल मिट्टी
-लेट सोली लेट बुवाई काली मिट्टी की होती है
✒इस मृदा में कार्बोनेट की कमी होती है किंतु नमी अधिक समय तक धारण करने की क्षमता होती है
✒ इस मृदा पर जलवायु और स्थानीय भाषाओं का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है
✒ इसमें नाइट्रोजन और जैविक कार्बनिक योगिक की मात्रा बहुत कम होती है
🔅 लैटेराइट मिट्टी
✒यह डूंगरपुर ,उदयपुर के मध्य व दक्षिण भागों में व दक्षिण राजसमंद जिले में मिलती है
✒यह प्राचीन स्फटीय व कायांतरित चट्टानों से निर्मित है
✒इस नाइट्रोजन, फास्फोरस और हुयुम्स की कमी पाई जाती है
✒लोहतत्व की उपस्थिति के कारण इस मिट्टी का रंग लाल दिखाई देता है
✒इस मिट्टी में मक्का, चावल ,गन्ने की खेती होती है
✒इस प्रकार की मिट्टी बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ व कुशलगढ़ के कुछ क्षेत्रों में देखने को मिलती है।
✒इस माटी में चूना, नाइट्रेट व ह्यूमरस अल्पमात्रा में है। अतः वनस्पति उगाने के लिए अच्छा नहीं हैं।
🔅 मिश्रित लाल व काली मिट्टी
✒यह मिट्टी बांसवाड़ा ,पूर्वी उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ व भीलवाड़ा जिला में मिलती है
✒ इसमें चूना ,नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी पाई जाती है पर पोटाश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है
✒ इस मिट्टी में चीका की अधिकता पाई जाती है
✒यह उपजाऊ मिट्टी है इसमें कपास गन्ना मक्का आदि की खेती की जाती है
🔅 काली मिट्टी
✒ राजस्थान के दक्षिण पूर्वी जिलो कोटा, बूंदी ,बारा, झालावाड़ जिले में मिलती है
✒यह चिका प्रधान दोमट मिट्टी है इस मिट्टी में कैल्शियम और पोटाश की मात्रा में पाया जाता है पर नाइट्रोजन में कमी मिलती है
✒ यह उपजाऊ मिट्टी है जिसमें व्यापारिक फसलों गन्ना ,धनिया ,चावल व सोयाबीन की अच्छी पैदावार होती है
✒इस माटी में नमी को रोके रखने का विशेष गुण होता है। यह मिट्टी खूब उपजाऊ भी होती है।
✒ हाड़ौती के पठार में पाई जाती है
🔅 कछारी मिट्टी
✒यह राज्य के उत्तरी और पूर्वी जिले गंगानगर ,हनुमानगढ़ ,अलवर ,भरतपुर, धौलपुर ,करौली ,सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर ,टोंक में मिलती है
✒यह हल्के भूरे रंग की होती है
✒यह गठन में रेतीली दोमट मिट्टी के का ही प्रकार होती है
✒यह मिट्टी उपजाऊ होती है
✒इसमें चूना ,फास्फोरस ,पोटाश ,व लोहा अंश के पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं पर नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है
✒यह मिट्टी गेहूं ,सरसों, कपास, तंबाकू के लिए बहुत उपयोगी है
🔅 मिट्टी की समस्याएं मृदा
✒ अपरदन राजस्थान में मृदा अपरदन एक गंभीर समस्या है मृदा व उसकी उर्वरता के विनाश को देखते हुए इसे रेंगती मृत्यु कहते हैं
✒ राजस्थान में लगभग 4 लाख हेक्टर भूमि जलीय अपरदन से प्रभावित है
✒ चंबल व उसकी सहायक नदियों द्वारा हाड़ौती के पठार पर काफी अपरदन हुआ है
✒कोटा सवाई माधोपुर में धौलपुर जिले में नालीनुमा अपरदन से ग्रसित है जबकि पश्चिमी शुष्क मरुस्थल क्षेत्र वायु अपरदन से प्रभावित है
✒ तेजी से बहता हुआ जल, नालियों द्वारा बने खड्डे ,वनस्पति का अभाव, वनों की अंधाधुंध कटाई ,अत्याधिक पशुचारण, झूमिंग कृषि ,अवैज्ञानिक तरीके से कृषि, मृदा अपरदन को प्रभावित करती है
✒ राजस्थान में लगभग 7.2 लाख हेक्टेयर भूमि क्षारीय व लवणीय से प्रभावित है
✒ रासायनिक संरचना व अन्य गुणों के आधार पर वर्गीकरण
एरिड़ी सोइल्स
अल्फ़ी सोइल्स
एंटी सोइल्स
इनसेफ्टी सोइल्स
बर्टी सोइल्स
🔅एरीडी सोइल्स
यह शुष्क जलवायु मृदा समूह है
यह पश्चिमी राजस्थान नई प्रधानता है
🔅अल्फ़ी सोइल्स
जयपुर दोसा अलवर भरतपुर सवाई माधोपुर टोंक भीलवाड़ा चित्तौड़गढ़ बांसवाड़ा राजसमंद उदयपुर डूंगरपुर बूंदी कोटा 12 झालावाड़ जिला तक है विस्तार
🔅एण्टी सोइल्स
हल्का पीला भूरा पश्चिमी राजस्थान के अनेक भागों में
🔅 इन सेफ्टी सोइल्स
आद्र जलवायु प्रदेश पाए जाते हैं
🔅 वर्टी सोइल्स
✒भूपर्पटी की बाहरी संरन्दर एवं चरनिल स्पर्श टूटने से कार्बनिक पदार्थों के सड़ने से मृदा का निर्माण होता है
✒मृदा ठोश और द्रव, गैस अवस्था में विद्यमान है
✒मृदा की उत्पादकता से अभिप्राय है प्रति हेक्टर क्षमता से
✒मृदा का अध्ययन पेडालाजी में किया जाता है
✒भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद मिट्टी को 8 भागों में बांटा है
🔅जलोढ़/ कांप/कछारी
🔅 काली/रेगड़/वर्टी शाल/ कपासी
🔅लाल मिट्टी
🔅लैटेराइट मिट्टी
🔅लवणीय /क्षारीय मिट्टी
🔅 बलुई/रेतीली मिट्टी
🔅पर्वतीय मिट्टी/वनीय मिट्टी
🔅 दलदली मिट्टी/पिट/जवारिय
🔅अपरदन
✒जलवायु ऊपरी परत कट कर बह जाना मृदा अपरदन है
✒रेंगती मृत्यु/ मिट्टी का छय/TB उपनाम से जानी जाती है
✒सर्वाधिक अपरदन जून-जुलाई में होता है
✒उत्तर पश्चिमी राजस्थान में अपरदन वायु द्वारा होता है और नाले का अपरदन भारी वर्षा के कारण गहरे डाले बन जाते हैं कोटा बूंदी धौलपुर भरतपुर जयपुर सवाई माधोपुर चंबल में सर्वाधिक अवनालिका अपरदन पाया जाता है
✒ समोच्च रेखीय पद्धति ढालू भूमि में अपरदन रोकने की पद्धति है सर्वाधिक अपरदन जून-जुलाई में होता है
✒ सुब बुल वृक्षारोपण का सही समय है
✒ PH 5.55से कम होने पर मृदा अमलिय कहलाती है
✒कुल बंजर व्यर्थ भूमि का 20% है सर्वाधिक व्यर्थ भूमि जैसलमेर में 37.30% है
✒सर्वाधिक व्यर्थ पठारी क्षेत्र राजसमंद है
✒केंद्रीय भूमि संरक्षण बोर्ड सीकर व जयपुर में है
✒मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला :-जयपुर जोधपुर कोटा श्रीगंगानगर अलवर बांसवाड़ा सवाई माधोपुर करौली में है
✒मिट्टी नमी मापने का यंत्र टेंसियोंमीटर और न्यूट्रॉननो मीटर है
✒उर्वरता के आधार पर मिट्टी को 12 भागों में बांटा गया है
✒ राजस्थान में प्रमुख मृदा के प्रकार एंटीसोल है
✒अम्ल वर्षा के सुधार में प्रयोग लाने के हेतु चूने का प्रयोग किया जाता है
✒मृदा में कमी होती है N, P, Zn
✒एरोलीयन मृदा में सबसे कम जल्द संचयन की छमता होती है
✒भूमि स्थानीय लक्षण मृदा विन्यास होता है
✒मृदा के रंग के कारण खनिज पदार्थ व कार्बनिक पदार्थ होते है
✒लोहा अंस अधिकता के कारण रंग काला हो जाता है
✒PH 7 =उदासीन
✒PH 7 से कम तो उदासीन
✒PH 7 से अधिक क्षारीय
✒Indo_Dutch परियोजना मिट्टी की सम समस्या समाधान के लिए चलाई गई योजना है
✒काजरी स्थापना 1959 में हुई इसका पूरा नाम
केंद्रीय शुष्क मरुभूमि अनुसंधान संस्थान
(राजस्थान के प्राकृतिक संसाधन )
➖संसाधन मानव समाज की आर्थिक वृद्धि एवं विकास के मूल आधार होते हैं क्योंकि इन्हीं पर सभी जीव धारियों का अस्तित्व एवं जीवन निर्भर करता है वास्तव में समाज के सभी पक्ष सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रकारों से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं
➖नॉर्टन गिन्सबर्ग (1957) के अनुसार-
“मनुष्य के कार्यक्षेत्र में प्रकृति द्वारा मुक्त रूप में प्रदान किए जाने वाले भौतिक पदार्थ तथा अवस्थिति की अतिरिक्त भौतिक गुणवत्ता प्राकृतिक संसाधन है*
➖आर एफ दासमैन के अनुसार-
“प्रारंभ में वे पदार्थ प्राकृतिक संसाधन थे जो मनुष्य की किसी खास संस्कृति के लिए उपयोगी एवं मूल्यवान थे
प्राकृतिक संसाधन अपने आप में संसाधन नहीं होते हैं क्योंकि वह सक्रिय नहीं है वह संसाधन तब होते हैं जब उनका उपयोग किया जाता है इससे यह स्पष्ट होता है कि संसाधनों का मनुष्य के क्रियाकलापों तथा प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के बीच कार्यकलाप संबंध होता है
🔀प्राकृतिक संसाधन
- वह संसाधन जो हमें प्रकृति से प्राप्त होते हैं और जिनका प्रयोग हम सीधा आधार उसमें कोई भी बदलाव किए बिना करते हैं प्राकृतिक संसाधन कहलाते हैं जैसे जल हवा पानी मिट्टी खनिज पदार्थ लकड़ी आदि
संसाधन दो शब्दों से मिलकर बना है Re+Sources जिसमें “Re” का अर्थ दीर्घ अवधि से और “Sources” का अर्थ साजन से है यह वह साधन हैं जिनका उपयोग मानव दीर्घ अवधि तक कर सकता है
🔀प्राकृतिक संसाधनों को तीन भागों में बांटा जा सकता है
1-विकास और प्रयोग के आधार पर– इस प्रकार के संसाधनों में वास्तविक संसाधन और संभावी संसाधन आते हैं वास्तविक संसाधन के तहत- वह वस्तुएं जिनकी संख्या या मात्रा हमें पता है जिनका इस्तेमाल हम इस समय कर रहे हैं जैसे जर्मनी देश के कोयले की मात्रा पश्चिमी एशिया में खनिज तेल की मात्रा और महाराष्ट्र की काली मिट्टी
संभाव्य संसाधन वह हैं-
जिनकी मात्रा निश्चित या जिसका अनुमान हम नहीं लगा सकते हैं और जिनका प्रयोग अभी हम नहीं कर रहे हैं लेकिन आगे आने वाले समय में कर सकते हैं जैसे पवन चक्कियां एक संभावित संसाधन थी लेकिन आज आधुनिक तकनीक के कारण इसका प्रयोग कर रहे हैं
2-उद्गम या उत्पत्ति के आधार पर-
इस प्रकार के संसाधनों में जैविक और अजैविक दोनों प्रकार के संसाधन आते हैं
जैसे जैविक संसाधन- जीव जंतु पेड़ पौधे मनुष्य और अजैविक संसाधन- कुर्सी इमेज पुस्तकें आदि
3-भंडारण और वितरण के आधार पर-
इस प्रकार के संसाधन में सर्व व्यापक और स्थानीय संसाधन आते हैं
सर्वव्यापक संसाधन जो वस्तुएं सभी जगह पाई जाती है और आसानी से उपलब्ध हो जाती है जैसे वायु एक सर्वव्यापक संसाधन है क्योंकि यह पूरे संसार में पाई जाती है
स्थानीय संसाधन जो–
वस्तुओं कुछ गिने-चुने स्थानों पर ही पाई जाती है जैसे तांबा लोहा अयस्क आदि
प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से क्या तात्पर्य है ?
- प्राकृतिक संसाधनों के तहत जल हवा पेड़ पौधे वायु वनस्पति खनिज पदार्थ लकड़ी आदि आते हैं जिनका उपयोग हम हमारे दैनिक जीवन में और आने वाले भविष्य में कर करेंगे अतः प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता है प्राकृतिक संपदाओं का योजनाबद्ध और विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए तो उनसे अधिक दिनों तक लाभ उठाया जा सकता है भविष्य के लिए संरक्षित रह सकती है संपदाओं या संसाधनों का योजना बस समुचित और विवेकपूर्ण उपयोगी इनका संरक्षण है संरक्षण का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि प्राकृतिक साधनों का प्रयोग ना कर उनकी रक्षा की जाए उनके उपयोग में कंजूसी की जाए या उनकी आवश्यकता के बावजूद उन्हें बचाकर भविष्य के लिए रखा जाए बल्कि संरक्षण से हमारा तात्पर्य है कि संसाधनों या संपदाओं का अधिक अधिक समय तक अधिकाधिक मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अधिकाधिक उपयोग किया जाए इसके लिए हमें जल संसाधनों को सुरक्षित और लंबे समय तक बनाए रखने के लिए उस में सहयोग करना वनों से प्राप्त वस्तुओं के लिए हमें अत्यधिक मात्रा में लगाना और उनकी रक्षा करना मिट्टी के कटाव को रोकने आदि प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण हैं
🔀प्राकृतिक संसाधनों ( Natural resources) को सामान्यतः दो भागों में बांटा गया है
1. जैविक संसाधन
2. अजैविक संसाधन
1. जैविक संसाधन (Biological resources)- सभी सजीवी को जैविक संसाधन के अंतर्गत रखा जाता है इसके अंतर्गत वनस्पति एवं पौधे, जंतु, पशुधन तथा मनुष्य को शामिल किया जाता है
2. अजैविक संसाधन ( Anti Biological resources )-इसके अंतर्गत सभी तत्व शामिल किए जाते हैं जो कि मानव एवं सजीवों के निर्वाह के लिए अनिवार्य है इसके अंतर्गत स्थल, भूमि, जल, वायु, मिट्टी, खनिज आदि सम्मिलित किए जाते हैं
🔰राजस्थान में जल संसाधन
(Water Resources in Rajasthan )
➖राज्य में देश का सतही जल मात्र 1.16% और भूजल 1.70% है देश के कुल जल का लगभग 1% पानी राजस्थान में है
➖राजस्थान के 237 ब्लॉक में से 200 लगभग डार्क जोन में आ गए हैं जबकि भूजल का करीब 20% जल पीने के लिए तथा 80% जल सिंचाई के उपयोग में किया जाता है
➖राजस्थान की 90% आबादी पेयजल के लिए भूजल स्त्रोतों पर निर्भर है 60-70% आबादी कृषि कार्यों के लिए भू जल स्रोतों पर का उपयोग करती है
उसके पश्चात उद्योग एवं कारखानों में 15 – 20% तथा अन्य घरेलू कार्यों में उपयोग में किया जाता है
➖राजस्थान में भूजल दोहन 137 प्रतिशत तक पहुंच गया है राज्य में प्रतिवर्ष भूजल स्तर 2 मीटर नीचे जा रहा है
🔀उपलब्धता (Availability )
वर्तमान में राजस्थान में पानी की मांग और पूर्ति में 8 बीएमसी (बिलियन घन मीटर) का अंतर है राज्य में भू जल की उपलब्धता 10000 बीएमसी मानी जाती है लेकिन दोहन 13000 बीएमसी होता है
➖ वैसे तो पूरे राज्य में पानी के लिए हालत खराब है लेकिन अजमेर शहर और आसपास के कस्बों, नागौर, टोंक, पाली, राजसमंद, भीलवाड़ा में हालत चिंताजनक है
🔀गुणवत्ता (Quality)
राजस्थान के दक्षिण एवं दक्षिणी पूर्वी भाग में मीठा पानी एवं पश्चिमी तथा मध्य भाग में खारा पानी अधिकता में पाया जाता है खारे पानी होने की वजह पश्चिमी राजस्थान में रासायनिक गुणवत्ता की अधिकता होना है 2010 की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के करीब 27 जिलों में पानी का खारापन, 30 जिलों में अत्यधिक फ्लोराइड, 28 जिलों में अत्यधिक लोहयुक्त तत्व निर्धारित मापदंड से अधिक है
➖राजस्थान के 30 जिले ऐसे हैं जिनमें पानी के अंदर फ्लोराइड की मात्रा 1.5 मिली से अधिक है और करीब 28 जिलों में आयरन की मात्रा 1 मिग्रा/मिली है जो आम आदमी के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही ज्यादा खतरनाक है
🔀भू जल विभाग (Ground water department)
➖राज्य में भूमिगत जल विकास का कार्य 1950 ईस्वी में प्रारंभ हुआ जब भारत सरकार द्वारा राजस्थान भूमिगत जल बोर्ड की स्थापना की गई
➖1955 में इस बोर्ड का नियंत्रण राजस्थान सरकार को दे दिया गया तथा 1971 ईस्वी से इस बोर्ड को भ-ूजल विभाग के नाम से जाना जाता है
➖ इसका प्रधान कार्यालय जोधपुर में स्थित है तथा राज्य में भ-ूजल की रासायनिक जांच हेतु जयपुर जोधपुर और उदयपुर में प्रयोगशालाएं स्थित हैं
➖ राजस्थान राज्य में भू जल की उपलब्धता वाले 595 क्षेत्र हैं इसके अंतर्गत 206 ब्लॉक ऐसे हैं जिनमें भूमिगत जल का निकास 85% से अधिक होता है
🔰मृदा संसाधन (Soil Resources)
मृदा भूमि की ऊपरी सतह होती है जो चट्टानों के टूटने फूटने व विघटन से उत्पन्न सामग्री तथा उस पर पड़े जलवायु वनस्पति एवं अन्य जैविक कारकों के प्रभाव से विकसित होती है यह एक अनवरत प्रक्रिया का प्रतिफल है जो भूगर्भिक युगो में होती रहती है
➖मृदा की प्रकृति उस मूल सेल की संरचना पर निर्भर करती है जिसके विखंडन से उसकी उत्पत्ति हुई है लेकिन इस लंबी प्रक्रिया में अनेक भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते हैं साथ ही उसमें जीवाशम व वनस्पति अंश सम्मिलित होकर उसे एक निश्चित स्वरुप प्रदान कर देते हैं
➖ प्राय मृदा की सतह 30 से 40 सेंटीमीटर मानी जाती है किंतु यह 150 सेंटीमीटर अथवा इस से भी अधिक गहराई तक हो सकती है
➖ मृदा पौधों की वृद्धि का एक प्राकृतिक माध्यम है तथा मृदा की उत्पादकता ही क्षेत्रीय कृषि विकास का एक आधार होता है
🔀मृदा के प्रकार व वितरण (Types and Soil Formations)
राजस्थान की मृदाओं को उनके उपजाऊपन कृषि के लिए उपयोगिता एवं अन्य विशेषताओं के आधार पर अग्रलिखित भागों में विभक्त किया जाता है-
⚜1. रेतीली व बलुई मिट्टी
शुष्क प्रदेश बाड़मेर जैसलमेर जोधपुर बीकानेर नागौर चूरू झुंझुनूं
नमी धारण की निम्न क्षमता नाइट्रोजन कार्बनिक लवण की न्यूनता तथा कैल्शियम लवणों की अधिकता
बाजरा मोठ मूंग की फसल हेतु उपयुक्त
⚜2 काली मिट्टी
दक्षिणी पूर्वी भागों में
बारीक कण नमी धारण की क्षमता अधिक फास्फेट नाइट्रोजन जैविक पदार्थों की अल्पता कैल्शियम व पोटाश की पर्याप्त
कपास में नगदी फसलों हेतु उपयुक्त
⚜3 लाल दोमट मिट्टी
उदयपुर डूंगरपुर बांसवाड़ा तथा चित्तौड़गढ़
बारिक कण नमी धारण की अद्भुत क्षमता पोटाश व लौह तत्वों की अधिकता नाइट्रोजन फास्फोरस कैल्शियम लवणों की अल्पता
मक्का की फसल हेतु उपयुक्त
⚜4 मिश्रित लाल काली मिट्टी
उदयपुर चित्तौड़गढ़ डूंगरपुर बांसवाड़ा भीलवाड़ा
फॉस्फेट नाइट्रोजन कैल्शियम तथा कार्बनिक पदार्थों की अल्पता
⚜5 भूरी मिट्टी
भीलवाड़ा अजमेर सवाई माधोपुर टोंक
नाइट्रोजन और फास्फोरस तत्वों का अभाव
बनास के प्रवाह क्षेत्र की मृदा
रंग पीला भूरा उर्वरा शक्ति की कमी
⚜6 भूरी रेतीली मिट्टी
नागौर पाली जालोर झुंझुनू सीकर
नाइट्रोजन कार्बनिक पदार्थों व जैविक अंश की कमी
⚜7 मिश्रित लाल पीली मिट्टी
सवाई माधोपुर भीलवाड़ा अजमेर सिरोही
नाइट्रोजन कैल्शियम कार्बनिक यौगिकों में ह्यूमस की अल्पता
⚜8 जलोढ़ व कछारी मिट्टी
अलवर भरतपुर धौलपुर जयपुर टोंक सवाई माधोपुर कोटा बुंदी
जल धारण की पर्याप्त क्षमता व अत्यधिक उपजाऊ
फॉस्फेट में कैल्शियम तत्वों की अल्पता तथा नाइट्रोजन तत्वों की बहूलता
गेहूं चावल कपास तथा तंबाकू के लिए उपयुक्त है
⚜9.पर्वतीय मृदा
अरावली की उपत्यका में सिरोही उदयपुर पाली अजमेर अलवर जिलों के पहाड़ी भागों में
मिट्टी की गहराई कम होने के कारण खेती के लिए अनुपयुक्त
⚜10 लवणीय मिट्टी
गंगानगर बीकानेर बाड़मेर व जालोर
क्षरीय व लवणीय तत्व की अधिकता के कारण अनुपजाऊ
प्राकृतिक रूप से निम्न भूभागों में उपलब्ध
🔝👉IMPORTANT FACTS
1.अंजन- यह हर मौसम में उगने वाली घास है गायो व घोड़ो के लिए उपयुक्त है
2.भालू अभ्यारण्य- जालोर -सिरोही के मध्य जसवंतपूरा क्षेत्र के सुंधामाता क्षेत्र को भालुओ का अभ्यारण्य घोषित किया गया है
3.चौसिंगा- चौसिंगा विश्व का एक मात्र ऐसा हिरन है जिसके नर के चार सींग होते है यह मर्ग केवल हमारे देश में ही पाया जाता है.यह सीता माता अभ्यारण्य में सर्वाधिक पाया जाता है
4.खिंचन- फ़लौदी( जोधपुर ) के निकट स्थित इस गांव में रूस उक्रेन व कजाकिस्तान से प्रवासी पक्षी कुरंजा बड़ी संख्या में आते है प्रवासी पक्षी कुरजां जो शताब्दियों से राजस्थान आता रहा है राजस्थानी लोक संस्कृति में समाहित हो गया है इसे मारवाड़ में विरहणियों का संदेशवाहक पक्षी माना जाता है “कुर्जा ऐ म्हारे भंवर मिला दिज्यो ए”
5.वन नीति – राजस्थान सरकार द्वारा 8 फ़रवरी,2010 में अपनी पहली राज्य वन नीति घोषित की गयी है साथ ही राजस्थान वन व पर्यावरण नीति लागु करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है इस नीति के तहत 45 हजार वर्ग मि मी अतिरिक्त क्षेत्र में वन विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है वन्य जीवो के संरक्षण की दृष्टि से राज्य में 3 राष्ट्रीय उद्यान सहित 26 वन्य जीव अभ्यारण्य तथा 9 संरक्षित क्षेत्र विकसित किये जा चुके है वन नीति में प्रदेश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का न्यूनतम पांच प्रतिशत क्षेत्र जैव विविधता संरक्खन के उद्देश्ये से विकसित करने का लक्ष्य रखा गया है
🔀विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों
1- जलवायु (Climate )
2- मृदा (soil)
3- प्राकृतिक वनस्पति और वन संसाधन
4 ऊर्जा संसाधन (Energy resources)
परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत
गैर परंपरागत ऊर्जा स्त्रोत
5 खनिज संसाधन (Mineral resources)
6 जल संसाधन (Water resources )
7 वन्य जीव और जैव विविधता ( Wildlife and biodiversity )
8 जैव विविधता (Biodiversity)
: नोट उपरोक्त बिंदुवार सभी सलेबस में शामिल है इनकी व्याख्या अगले टॉपिक में होगी इसमे जल संसाधन की चर्चा करेंगे
➖राज्य में मृदा संरक्षण कार्यक्रमों को अर्धशतक से पहले कृषि विभाग द्वारा और 1991 के बाद वाटरशेड विकास विभाग द्वारा निष्पादित किया जा रहा है।
इन कार्यक्रमों के माध्यम से बहुत कुछ सीखा है। अर्धशतक में, केवल मिट्टी संरक्षण कार्यों को व्यक्तिगत क्षेत्र के आधार पर लिया गया था। सत्तर के शुरुआती दिनों में अच्छी संभावित फसल किस्मों, नमी संरक्षण प्रथाओं, इनपुट उन्मुख फसल पर जोर दिया गया था, लेकिन यह गरीब किसानों के संसाधनों के साथ वर्षा की तीव्रता और तीव्रता की अनिश्चितताओं के कारण लंबे समय तक नहीं जा सका। इसलिए, सत्तर के अंत में जोर जल संरक्षण और जल संचयन तकनीकों में स्थानांतरित हो गया। अच्छे परिणाम प्राप्त किए गए लेकिन वनस्पति संरक्षण उपायों की आवश्यकता है और सरल कम लागत वाली जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना महसूस किया गया था। अस्सी के दशक की शुरुआत में, क्षेत्रीय दृष्टिकोण के आधार पर कम लागत वाली प्रौद्योगिकियों पर जोर दिया गया जहां वानिकी, बागवानी, मृदा संरक्षण, कृषि, पशुपालन इत्यादि की योजना बनाई गई थी और स्वतंत्र रूप से कार्यान्वित किया गया था, लेकिन एकीकृत विकास के लिए धन विभागों द्वारा उपलब्ध नहीं कराया गया था एक ही समय में और उसी क्षेत्र में। इसे देखते हुए, अस्सी के दशक के मध्य में एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन की अवधारणा अपनाई गई थी। हालांकि दृष्टिकोण समग्र था लेकिन परियोजना को वापस लेने के बाद टिकाऊ नहीं था। नब्बे के दशक की शुरुआत में, कार्यक्रमों के विकास के लिए भागीदारी एकीकृत एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन पर जोर दिया गया था और कार्यक्रम के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए एकीकृत जलविद्युत विकास कार्यों के लिए एनडब्ल्यूडीपीआरए, डीपीएपी, डीडीपी और आईडब्ल्यूडीपी के तहत भारत सरकार से धन में पर्याप्त वृद्धि हुई थी, 1 99 1 से वाटरशेड विकास और मृदा संरक्षण विभाग बनाया गया था।
23 वें संवैधानिक संशोधन के अनुपालन में, क्षेत्र कार्यकर्ताओं और बजट को पंचायती राज संस्थानों में स्थानांतरित कर दिया गया है और इसलिए विभिन्न योजनाओं के तहत सभी जल संसाधन विकास कार्य अब निर्वाचित सांविधिक निकाय अर्थात ग्राम पंचायत / पीआरआई के माध्यम से 1-4-04 से लागू किए जा रहे हैं।
राज्य में निदेशालय वाटरशेड विकास और मृदा संरक्षण द्वारा कार्यक्रम की निगरानी और निगरानी की जा रही है
➖राजस्थान राज्य के लोक निर्माण विभाग से अलग होने के बाद 14 दिसंबर 1949 को सिंचाई विभाग लागू हुआ।
➖आजादी के समय 1 प्रमुख परियोजना, 43 मध्यम और 2272 मामूली परियोजनाएं थीं और सिंचाई क्षमता केवल 4 लाख हेक्टेयर थी।
➖ इसलिए स्वतंत्रता के बाद राज्य सिंचाई विभाग का गठन 1 9 4 9 में खाद्य और चारा के उत्पादन में वृद्धि के उद्देश्य से किया गया था और सूखे और बाढ़ के कारण घाटे को नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त सिंचाई प्रणाली स्थापित करने के उद्देश्य से। इस उद्देश्य से सिंचाई क्षमता बढ़ाने के लिए विभाग द्वारा कई परियोजनाएं शुरू की गईं।
➖राजस्थान देश के 10.41% भौगोलिक क्षेत्र,
➖कुल जनसंख्या का 5.5% और 2 / 3 हिस्सा रेगिस्तान है।
➖राज्य को 16 बेसिन में बांटा गया है, जिनमें से केवल दो बेसिन (चंबल और माही) में पर्याप्त वर्षा और उपज है।
➖जैसा कि ऊपर दिखाया गया है राजस्थान में 33 जिलों हैं।
➖ सिंचाई का निर्माण PMKSY, MJSA, AIBP, JICA इत्यादि जैसी विभिन्न विशेष योजनाओं के तहत संरचनाएं सिंचाई विभाग को सौंपी गई हैं।
➖सतही जल
राजस्थान में सतही जल की संयुक्त उपलब्धता 43.26 बीसीएम है।
राज्य सीमा के भीतर उपलब्ध सतह का पानी 25.38 बीसीएम है और विभिन्न अंतरराज्यीय संधि से आवंटित पानी 17.88 बीसीएम है।
राष्ट्रीय संसाधनों की कुल सतह जल उपलब्धता 1.16% है।
🔀जल संसाधन विभाग की वर्तमान स्थिति इस प्रकार है:
विवरण संख्या क्षमता (मैकम में)
1. मेजर टैंक 24 6296.48
2. मध्यम टैंक 84 2133.34
3. माइनर टैंक 3331 3455.38
4. डब्ल्यूएचएस 74271 2 9 42.2 9
कुल 77710 14827.4 9
मेजर / मध्यम / माइनर टैंक / डब्ल्यूएचएस का कुल सीसीए 1754608 हा है।
🔀भूमि जल
कुल भूजल उपलब्धता राष्ट्रीय संसाधनों का 1.72% है।
24 9 ब्लॉक हैं जिनमें से केवल 31 ब्लॉक सुरक्षित स्थिति में हैं।
🔀वर्षा
राज्य में जिलावार औसत वर्षा का हवाई वितरण जैसलमेर में 158.0 मिमी से सिरोही में 968.0 मिमी तक रहता है।
:★महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली★:
🔅राजस्थान की जलवायु🔅
✒ किसी भी भू भाग पर लम्बी अवधि के दौरान विभिन्न समयो में विभिन्न मौसम की अवस्था उस भू भाग जलवायु है
✒ उत्तर-पश्चिमी भारत में राजस्थान का जलवायु आम तौर पर शुष्क या अर्ध-शुष्क है और वर्ष भर में काफी गर्म तापमान पेश करता है, साथ ही गर्मी और सर्दियों दोनों में चरम तापमान होते हैं।
✒भारत का यह राज्य राजस्थान उत्तरी अक्षांश एवं पूर्वी देशांतर पर स्थित है।
✒ कर्क रेखा राजस्थान के दक्षिण अर्थात बांसवाड़ा जिले के मध्य (कुशलगढ़) से होकर गुजरती है इसलिए हर साल 21 जून को राजस्थान के बांसवाड़ा जिले पर सूर्य सीधा चमकता है।
✒ राज्य का सबसे गर्म जिला चुरु है
✒ राज्य का सबसे गर्म स्थल जोधपुर जिले में स्थित फलोदी है।
✒ राज्य का सबसे शीत जिला चुरू है
✒ राजस्थान का सबसे शीत स्थान माउंट आबू सिरोही है
✒राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा वाला जिला झालवाड़ है
✒राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला स्थान सम तहसील जैसलमेर
✒राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा विभिन्नता बाड़मेर है
✒राजस्थान में न्यूनतम वर्षा विभिन्नता वाला जिला डूंगरपुर है
✒राजस्थान में भौगोलिक विषमता के कारण जलवायु समान नहीं होती है
✒राजस्थान के पश्चिमी भाग में ग्रीष्म में उष्ण शीत में ठंडा वाष्प की मात्रा कम होती है
✒राजस्थान के पूर्वी भाग में शीत ऋतु कम ठण्डी ग्रीष्म ऋतु कम गर्म वायु में सदैव आद्रता बनी रहती है
✒राजस्थान का गर्मियों में सर्वाधिक दैनिक तापांतर वाला जिला जैसलमेर है
✒ राज्य में गर्मियों में सबसे ज्यादा धूल भरी आंधियां श्रीगंगानगर जिले में चलती है
✒राज्य में विशेषकर पश्चिमी रेगिस्तान में चलने वाली गर्म हवाओं को लू कहा जाता है
✒ राजस्थान में मानसून की सर्वप्रथम दक्षिण पश्चिम शाखा का प्रवेश करती है अरावली पर्वतमाला के मानसून की समानांतर होने के कारण राजस्थान में कम तथा अनियमित वर्षा होती है
✒राजस्थान में ऋतुएँ
🔅भौगोलिक दृष्टि से यहां तीन प्रमुख ॠतुएँ हैं-
१) ग्रीष्म ॠतु
२) वर्षा ॠतु
३) शीत ॠतु
🔅ग्रीष्मकाल
✒ राज्य में ग्रीष्मकाल ऋतु का समय मध्य मार्च से जून तक है।
✒सबसे अधिक गर्मी मई और जून महीने में पड़ती है इस अवधि में यहां का तापमान विशेषकर पश्चिम भाग का 45 डिग्री सेल्सियस से 51 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
✒राजस्थान में ग्रीष्म ॠतु मार्च से प्रारंभ होकर मध्य जून तक रहती है।
✒मार्च में सूर्य के उत्तरायण आने पर तापमान में वृद्धि होने लगती है।
✒तापमान वृद्धि के कारण वायुमंड़लीय दवाव निरंतर गर्म सतह पर गिरने लगता है।
✒अप्रैल में हवाएँ पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं।
✒हवाएँ चूँकि गर्म थार मरुस्थल को पार करती हुई आती है, अत: शुष्क एवं गर्म होती है। अप्रैल और मई के महीनों में सूर्य लगभग लंबवत् चमकता है। जिस कारण दिन के तापमान में वृद्धि होती है।
✒राजस्थान के पश्चिमी भागों में मुख्य रुप से बीकानेर, जैसलमेर, फलौदी और बाड़मेर में अधिकतम दैनिक तापमान इन महीनों में 40 डिग्री से० से 45 डिग्री से० तक चला जाता है।
✒गंगानगर में उच्चतम तापमान 50 डिग्री से० तक पहुँच जाता है।
✒ जोधपुर, बीकानेर, बाडमेर में तापमान 49 डिग्री से०, जयपुर और कोटा में 48 डिग्री तक पहुँच जाता है।
✒दिन के समय उच्च तापक्रम मौसम को अति कष्टकर बना देतें हैं। संपूर्ण राजस्थान में दोपहर के समय लू (तेज गर्म हवाएँ) व रेत की आंधियाँ चलती है किन्तु पश्चिमी व उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थली भागों में ये आंधियाँ भयंकर होती है।
🔅वर्षा ऋतु
✒राजस्थान में वर्षा ऋतु जून से अक्टूबर के प्रथम तक रहता है
✒ राज्य में दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं से वर्षा होती ह
✒राजस्थान में वर्षा ॠतु जून से मध्य सितंबर तक रहती है।
✒यहां वर्षा लगभग नही के बराबर होती है।
✒इस भाग में बंगाल की खाड़ी से आने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं से औसत वर्षा 12 से 15 से०मी० तक हो जाती है।
✒अरब सागर से उठने वाला मानसून मालवा के पठार तक ही वर्षा कर पाता है।
✒ इसके उत्तर में यह अरावली पर्वत के समान्तर उत्तर की ओर बढ़ जाती है। अरावली के पूर्व में वर्षा का औसत 80 से०मी० तक पाया जाता है। जबकि पश्चिम भागों में यह औसत 25 से०मी० से भी कम होता है।
✒दक्षिणी राजस्थान की स्थिति वर्षा करने वाली हवाओं के अनुकूल है जिसके कारण आबू पर्वत में राजस्थान की सर्वाधिक वर्षा 150 से०मी० तक अंकित की जाती है।
✒भारत-पाक सीमा के क्षेत्रों में वर्षा 10 से०मी० तथा जैसलमेर में लगभग 21 से०मी० होती है। राजस्थान में अधिकांश वर्षा जुलाई और अगस्त महीनों में ही होती है।
✒दक्षिणी पश्चिमी मानसून हिंद महासागर से उत्पन्न हो कर दो शाखाओं में बंगाल की खाड़ी की शाखा एवं अरब सागर की शाखा के रूप में राज्य में प्रवेश करती है
✒राज्य को इस शाखा से केवल 59.9 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इसका कारण अरावली श्रृंखला का दक्षिण पश्चिम विशाखा के समानांतर होना है।
🔅शीतकाल
✒राजस्थान में इस मौसम की अवधि नवंबर से मध्य मार्च तक है
✒ जनवरी सबसे ठंडा महीना होता है
✒इस काल में सूर्य की स्थिति उत्तरायण और दक्षिणायन होने लगती है जिसके फलस्वरूप तापमान गिरने लगता है तथा वायु दाब बढ़ने लगता है वर्षा ऋतु में ना के बराबर होती है
✒ राजस्थान में शीत ॠतु का समय अक्तूबर से फरवरी तक रहता है।
✒शीत ॠतु तक धीरे-धीरे तापमान गिरने लगता है तथा संपूर्ण राजस्थान में अक्तूबर के महीने में एक सा तापमान रहता है।
✒इन दिनों में अधिकतम तापमान 30 डिग्री से० से 36 डिग्री से० तक तथा न्युनतम तापमान 17 डिग्री से० से 21 डिग्री से० तक रहता है।
✒नवम्बर के महीने में अपेक्षाकृत अधिक सर्दी रहती है। दिसंबर और जनवरी में कठोर सर्दी पड़ती है। राजस्थान के उत्तरी जिलों में जनवरी का औसत तापमान 12 डिग्री से० से 16 डिग्री से० तक रहता है।
✒आबू पर्वत पर ऊचाई के कारण यहां का तापमान इस समय औसत 8 डिग्री से० रहता है।
✒कश्मीर, हिमाचल प्रदेश आदि क्षेत्रों में हिमपात के कारण शीत लहर आने पर यहां सर्दी बहुत बढ़ जाती है। उत्तरी क्षेत्रों में लहर के कारण तापमान कभी-कभी पाला के साथ हिमांक बिंदु तक पहुँच जाता है।
✒मध्य एशिया उच्च भार के कारण कई बार पछुआ पवनों की एक शाखा पश्चिम दिशा से राजस्थान में प्रवेश करती है तथा इन चक्रवातों के कारण कई बार उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान में आकाश की स्वच्छता मेघाच्छन्न स्थिति में परिवर्तित हो जाती है। इन चक्रवातों से राजस्थान में कभी-कभी वर्षा हो जाती है जिसे 'महावट' कहते हैं। इन चक्रवातों में ५ से १० से०मी० तक वर्षा होती है।
✒राज्य के गंगानगर, चुरु, बीकानेर, और सीकर जिलों में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। इस ॠतु में सुबह के समय ओस पड़ना तथा प्रात: आठ बजे के बाद तक कोहरा रहना एक समान्य लक्षण है।
✒इस काल में सूर्य की स्थिति उत्तरायण और दक्षिणायन होने लगती है जिसके फलस्वरूप तापमान गिरने लगता है तथा वायु दाब बढ़ने लगता है वर्षा ऋतु में ना के बराबर होती है
🔅मौसम
वायुमंडलीय दशाओं का योग मौसम कहते हैं सामान्यतः परिवर्तित है
✒राजस्थान की जलवायु मानसूनी है
🔅जलवायु भिन्नता के क्या कारण है ?
✒अक्षांशीय स्थिति का होना
✒समुद्र-तट से दूरी का होना
✒समुद्र तल से औसत ऊंचाई में भिन्नता होना
✒जलीय भागों में की उपस्थिति होना
✒वायु की दिशा
✒धरातलीय स्वरूप यह सब जलवायु की भिन्नता के कारण होता है
🔅राजस्थान के जलवायु प्रदेश
१. शुष्क जलवायु प्रदेश
२. अर्ध शुष्क जलवायु प्रदेश
३. उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
४. आर्द्र जलवायु प्रदेश
५. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश
🔅शुष्क जलवायु प्रदेश
✒जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर का पश्चिमी भाग जोधपुर का उत्तरी भाग एवं श्रीगंगानगर जिले के दक्षिणी भाग आदि इस प्रदेश के अंतर्गत आते हैं
✒ इन सभी क्षेत्रों के मरुस्थलीय होने के कारण कम वर्षा तथा गर्मी अधिक पड़ती है।
✒ वर्षा की मात्रा 10 से 20 सेंटीमीटर होती है
✒ शीतकाल में यहां तापमान 11 डिग्री सेल्सियस तथा दैनिक तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।
🔅अर्ध शुष्क जलवायु प्रदेश
✒वर्षा की अनिश्चितता अनियमितता एवं तूफानी तथा वर्षा की मात्रा 20 से 40 सेंटीमीटर होती है
✒ग्रीष्म ऋतु का तापमान 32 सेंटीमीटर से 36 सेंटीमीटर आदि
✒प्रदेश की विशेषताएं इस क्षेत्र के अंतर्गत बीकानेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर का अधिकांश भाग सीकर, झुंझुनू, चूरू, नागौर, जालौर और पाली जिला का पश्चिमी भाग आते हैं यहां वनस्पति विकास एवं कंटीली झाड़ियां प्रमुख है।
✒घग्घर का मैदान, शेखावटी प्रदेश, लूणी बेसिन आदि
🔅३. उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
✒इस प्रदेश के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र जयपुर, अजमेर, अलवर एवं सीकर, झुंझुनू, पाली, जालोर आदि जिलों का पूर्व विभाग भीलवाड़ा, टोंक और सिरोही का उत्तर पश्चिमी भाग जाते हैं।
✒यहां वर्षा का वार्षिक औसत 40 से 60 सेंटीमीटर है
✒ग्रीष्म ऋतु का तापमान 27 डिग्री सेंटीमीटर से 34 डिग्री सेंटीमीटर तक तथा शीत ऋतु में 18 डिग्री सेंटीमीटर से दक्षिण क्षेत्र में एवं उत्तरी क्षेत्र में 12 सेंटीमीटर रहता है
✒यहां की वनस्पति सघन, विरल प्रकार की है।
🔅आर्द्र जलवायु प्रदेश
✒धौलपुर, सवाई माधोपुर भरतपुर, कोटा, बूंदी जिले, टोंक का दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र चित्तौड़गढ़ का उत्तरी क्षेत्र इस जलवायु प्रदेश के अंतर्गत आते हैं।
✒यहां वर्षा की मात्रा 70 से 80 सेंटीमीटर होती है
✒गर्मियों का औसत तापमान 32 डिग्री सेंटीमीटर से 34 डिग्री सेंटीमीटर एवं शीतकाल में 14 डिग्री सेंटीमीटर से 17 डिग्री सेंटीमीटर तक जाती है
🔅अति आर्द्र जलवायु
✒प्रदेश जलवायु प्रदेश के अंतर्गत बांसवाड़ा, झालावाड़, कोटाका दक्षिणी पूर्वी भाग उदयपुर का दक्षिणी पश्चिमी भाग एवं आबू पर्वत का सीमांत क्षेत्र आदि आते है।
✒इस क्षेत्र में वर्षा 80 से अधिक सेंटीमीटर तक होती है। अतः यहां की वनस्पति सघन एवं सदाबहार है।
🔅जलवायु का समान्य अभिप्राय है - किसी क्षेत्र में मौसम की औसत दशाएँ।
🔅 समान्यत: मौसम की औसत दशाओं का ज्ञान किसी क्षेत्र के तापमान, आर्दता, वर्षा, वायुदाव आदि का दीर्घकाल तक अध्ययन करने से होता है।
🔅 राजस्थान के जलवायु को मोटे तौर पर मानसूनी कहा जाता है।
🔅 यहां वर्षा मानसूनी हवाओं से होती है। तापमान की दृष्टि से इसके मरुस्थलीय क्षेत्रों में पर्याप्त विषमता पाई जाती है।
🔅 कोपेन के अनुसार राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण- 1918 में कोपेन ने राज्य की जलवायु को चार भागों में बांटा-
🔅(Aw) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश-
✒डूंगरपुर के दक्षिण में तथा बांसवाड़ा जिला।कर्क रेखा पर स्थित
🔅(BShw) अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश
- बाड़मेर, नागौर, चुरू, जालौर, जोधपुर तथा दक्षिण -पूर्वी गंगानगर आदि क्षेत्र
तापमान 32-50 सितकाल में 50° ग्रीष्म काल मे
🔅(BWhw) शुष्क उष्ण मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश-
✒उत्तरी-पश्चिमी जोधपुर, जैसलमेर, पश्चिमी बीकानेर तथा गंगानगर।
🔅(Cwg) शुष्क शीत जलवायु प्रदेश- अरावली पर्वत के दक्षिणी – पूर्वी तथा पूर्वी भाग (हाड़ौती,मेवात एवं डांग क्षेत्र)।
✒राजस्थान में अकाल 1956 में पड़ा
✒ राजस्थान में सर्वाधिक व्यर्थ बंजर भूमि जैसलमेर में स्थित है
✒राजस्थान में सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि बाड़मेर में है
✒राजस्थान में प्रतिशत अनुपूरक भूमि राजसमंद में है
✒राजस्थान बंजर व्यर्थ विकास विभाग की स्थापना 1982 में हुई
✒ सुजलम योजना खारे पानी को मीठे पानी में बदलने की एक योजना है
✒पहल योजना एकीकृत बंजर भूमि विकास योजना है
✒राजस्थान में कुल व्यर्थ भूमि का 66 प्रतिशत भाग राजस्थान के 12 जिलों में स्थित है
✒राजस्थान के 12 जिलो का कुल क्षेत्रफल 61.11% भूभाग है
✒जलधारा योजना पेयजल सुविधा उपलब्ध कराने हेतु जुलाई 1994 में प्रारंभ की गई
✒ मरू विकास कार्यक्रम का प्रारंभ अप्रैल 1995 में 16 जिलों में हुआ
✒घमण, सेवण, अंजन, आइबो मिक्स यह सब घास के प्रकार है
🔅 प्रमुख देसी महीने
✒बसंत --चैत्र -वैशाख(मार्च-अप्रैल)
✒ग्रीष्म-- जेष्ठ-आषाढ(मई-जून)
✒वर्षा --श्रावण-भाद्रपद(जुलाई-अगस्त)
✒शरद--अश्विन-कार्तिक(सितंबर-अक्टूबर)
✒हेमंत-- मार्गशीर्ष -पोष नवम्बर-दिसंबर
✒शिशिर-- माघ फाल्गुन( जनवरी-फरवरी)
🔅कवास बाड़मेर में भीषण बाढ़ 2006 में आई
🔅थार्नवेट
✒CAW ग्रीष्म में वर्षा दक्षिण पूर्व राजस्थान
✒DAW ग्रीष्मकाल में उच्च तापमान अर्ध मरुस्थली
✒ DBw शीतकाल में कुछ उत्तरी राजस्थान
✒EAD पश्चिमी राजस्थान
🔅टीवार्र्थ
✒AW उष्ण आद्र जलवायु दक्षिण पूर्वी राजस्थान में
✒ BSH उष्ण व अर्ध शुष्क मध्य पश्चिमी राजस्थान में
✒BWH उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश
✒CAW अर्द्ध उष्ण पूर्व राजस्थान में
✒राजस्थान में सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला महिना मार्च-अप्रैल है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में होती है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला जिला जयपुर है।
✒राजस्थान में हवाऐं पाय पश्चिम व दक्षिण पश्चिम की ओर चलती है।
✒हवाओं की सर्वाधिक गति - जून माह
✒हवाओं की मंद गति - नवम्बर माह
✒ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम की तरफ से गर्म हवाऐं चलती है जिन्हें लू कहते है। इस लू के कारण यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस निम्न वायुदाब की पूर्ती हेतु दुसरे क्षेत्र से (उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से) तेजी से हवा उठकर आती है जो अपने साथ धुल व मिट्टी उठाकर ले आती है इसे ही आंधी कहते हैं।
✒आंधियों की सर्वाधिक संख्या - श्रीगंगानगर(27 दिन)
✒आंधियों की न्यूनतम संख्या - झालावाड़ (3 दिन)
✒राजस्थान के उत्तरी भागों में धुल भरी आधियां जुन माह में और दक्षिणी भागों में मई माह में आति है।
✒राजस्थान में पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में तुफान(आंधी + वर्षा) अधिक आते है
🔅आंधियों के नाम
✒उत्तर की ओर से आने वाली - उत्तरा, उत्तराद, धरोड, धराऊ
✒दक्षिण की ओर से आने वाली - लकाऊ
✒पूर्व की ओर से आने वाली - पूरवईयां, पूरवाई, पूरवा, आगुणी
✒पश्चिम की ओर से आने वाली - पिछवाई, पच्छऊ, पिछवा, आथूणी।
✒अन्य
उत्तर-पूर्व के मध्य से - संजेरी
पूर्व-दक्षिण के मध्य से - चीर/चील
दक्षिण-पश्चिम के मध्य से - समंदरी/समुन्द्री
उत्तर-पश्चिम के मध्य से - सूर्या
✒पृथ्वी के परिक्रमण काल में 21 मार्च एवम् 23 सितम्बर को सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं फलस्वरूप सम्पूर्ण पृथ्वी पर रात-दिन की अवधि बराबर होती है।
🔅उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन - 21 जुन
🔅दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात - 21 जुन
🔅उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात - 21 जुन
🔅दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन - 21 जुन
🔅दक्षिणी गोलार्द्ध का सबसे बड़ा दिन - 22 दिसम्बर
🔅उत्तरी गोलार्द्ध की सबसे बड़ी रात - 22 दिसम्बर
🔅दक्षिणी गोलार्द्ध की सबसे छोटी रात - 22 दिसम्बर
🔅उत्तरी गोलार्द्ध का सबसे छोटा दिन - 22 दिसम्बर
🔅मावठ
सर्दीयों में पश्चिमी विक्षोभ/भुमध्य सागरिय विक्षोप के कारण भारत में उतरी मैदानी क्षेत्र में जो वर्षा होती है उसे मावठ कहते हैं।
मावठ का प्रमुख कारण - जेटस्ट्रीम
जेटस्ट्रीम - सम्पूर्ण पृथ्वी पर पश्चिम से पूर्व कि ओर क्षोभमण्डल में चलने वाली पवनें।
मावठ रबी की फसल के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है। इसलिए इसे गोल्डन ड्राप्स या स्वर्णीम बुंदें कहा जाता है।
🔅राजस्थान की मिटिया
✒अमेरिकी मृदा विशेषज्ञ डा बैनेट के अनुसार
"मिट्टी भू पृष्ठ पर मिलने वाले अंसगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत है जो मूल चट्टानों व वनस्पति के योग से बनती है "
✒साधारणतया जिसे हम मिट्टी कहते हैं , वह चट्टानों का चूरा होता है।
✒ये चट्टानें मुख्यतया तीन प्रकार की होती हैं - स्तरीकृत , आग्नेय और परिवर्तित। क्षरण या नमीकरण के अभिकर्त्ता तापमान,वर्षा,हवा,हिमानी,बर्फ व नदियों द्वाया ये चट्टाने टुकड़ों में विभाजित होती हैं जो अंत में हमें के रूप में दिखाई देती हैं।
✒वैज्ञानिक दृष्टि से राजस्थान की मिट्टियों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है
इसे छ भागो में बाँटा गया है
🔅 रेतीली मिट्टी/मरुस्थली मिट्टी
✒राजस्थान में पश्चिमी भाग में रेतीली मिट्टी देखी जाती है।
✒इस क्षेत्र में पानी प्राय: 100 फुट की गहराई पर मिलता है।
✒राजस्थान के लगभग 38 % भू-भाग में यह मिट्टी देखने को मिलती है।
✒जालोर, बाड़मेर, जोधपुर, बीकानेर, चूरू, झुंझुनूं, नागौर, आदि जिलों में पाई जाती है
✒यह मिट्टी कम उपजाऊ भूमि होती है
✒इसका निर्माण प्रधनत:भौतिक अपक्षय द्वारा होता है
✒ रेतीली बालू मृदा:- गंगानगर, बीकानेर, चूरु, जोधपुर ,जैसलमेर, बाड़मेर, और झुंझुनू जिले में विस्तार है
✒ लाल रेतीली मृदा :-नागौर ,जोधपुर, पाली, जालोर, चूरु और झुंझुनू में विस्तार है
✒पीली भूरी रेतीली मृदा:- नागौर और पाली जिले में है
✒ खारी मृदा :-बाड़मेर ,जैसलमेर, बीकानेर ,नागौर जिले की निम्न भूमियों अथवा गर्तों का विस्तार है
✒पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश भागों में पाई जाती है मोटे करने के कारण पानी शीघ्रता से विलीन हो जाता है
✒नाइट्रोजन, कार्बनिक लवण, सूक्ष्म पोषक तत्व ,मैगनीज, तांबा तत्वों की कमी पाई जाती है
✒कैल्शियम लवणों की अधिकता करने के लिए ग्वार व ढेचा के लिए उपयुक्त है इस मिट्टी में बाजरा मूंग मोठ का उत्पादन होता है
🔅 लाल व पीली मिट्टी
✒ इस प्रकार की मृदा सवाई माधोपुर, सिरोही ,राजसमंद, उदयपुर, भीलवाड़ा, जिले के पश्चिम भाग में पाई जाती है
✒ इस मिट्टी में उपजाऊ तत्वों की कमी होती है
✒यह मिट्टी ग्रेनाइट सिस्ट, व निस चट्टानों के विखंडन से निर्मित होती है
✒ इसमें चूना व नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है
✒इसमे लोह अंश के कारण इस मिट्टी का रंग लाल पीला होता है
✒यह मिट्टी मूंगफली में कपास की कृषि के लिए उपयुक्त है
✒हल्की बारिश से बुवाई संभव है इसलिए अर्ली सोली कहते हैं
-अर्ली सॉरी तुरंत बुवाई लाल मिट्टी
-लेट सोली लेट बुवाई काली मिट्टी की होती है
✒इस मृदा में कार्बोनेट की कमी होती है किंतु नमी अधिक समय तक धारण करने की क्षमता होती है
✒ इस मृदा पर जलवायु और स्थानीय भाषाओं का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है
✒ इसमें नाइट्रोजन और जैविक कार्बनिक योगिक की मात्रा बहुत कम होती है
🔅 लैटेराइट मिट्टी
✒यह डूंगरपुर ,उदयपुर के मध्य व दक्षिण भागों में व दक्षिण राजसमंद जिले में मिलती है
✒यह प्राचीन स्फटीय व कायांतरित चट्टानों से निर्मित है
✒इस नाइट्रोजन, फास्फोरस और हुयुम्स की कमी पाई जाती है
✒लोहतत्व की उपस्थिति के कारण इस मिट्टी का रंग लाल दिखाई देता है
✒इस मिट्टी में मक्का, चावल ,गन्ने की खेती होती है
✒इस प्रकार की मिट्टी बाँसवाड़ा, प्रतापगढ़ व कुशलगढ़ के कुछ क्षेत्रों में देखने को मिलती है।
✒इस माटी में चूना, नाइट्रेट व ह्यूमरस अल्पमात्रा में है। अतः वनस्पति उगाने के लिए अच्छा नहीं हैं।
🔅 मिश्रित लाल व काली मिट्टी
✒यह मिट्टी बांसवाड़ा ,पूर्वी उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ व भीलवाड़ा जिला में मिलती है
✒ इसमें चूना ,नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी पाई जाती है पर पोटाश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है
✒ इस मिट्टी में चीका की अधिकता पाई जाती है
✒यह उपजाऊ मिट्टी है इसमें कपास गन्ना मक्का आदि की खेती की जाती है
🔅 काली मिट्टी
✒ राजस्थान के दक्षिण पूर्वी जिलो कोटा, बूंदी ,बारा, झालावाड़ जिले में मिलती है
✒यह चिका प्रधान दोमट मिट्टी है इस मिट्टी में कैल्शियम और पोटाश की मात्रा में पाया जाता है पर नाइट्रोजन में कमी मिलती है
✒ यह उपजाऊ मिट्टी है जिसमें व्यापारिक फसलों गन्ना ,धनिया ,चावल व सोयाबीन की अच्छी पैदावार होती है
✒इस माटी में नमी को रोके रखने का विशेष गुण होता है। यह मिट्टी खूब उपजाऊ भी होती है।
✒ हाड़ौती के पठार में पाई जाती है
🔅 कछारी मिट्टी
✒यह राज्य के उत्तरी और पूर्वी जिले गंगानगर ,हनुमानगढ़ ,अलवर ,भरतपुर, धौलपुर ,करौली ,सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर ,टोंक में मिलती है
✒यह हल्के भूरे रंग की होती है
✒यह गठन में रेतीली दोमट मिट्टी के का ही प्रकार होती है
✒यह मिट्टी उपजाऊ होती है
✒इसमें चूना ,फास्फोरस ,पोटाश ,व लोहा अंश के पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं पर नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है
✒यह मिट्टी गेहूं ,सरसों, कपास, तंबाकू के लिए बहुत उपयोगी है
🔅 मिट्टी की समस्याएं मृदा
✒ अपरदन राजस्थान में मृदा अपरदन एक गंभीर समस्या है मृदा व उसकी उर्वरता के विनाश को देखते हुए इसे रेंगती मृत्यु कहते हैं
✒ राजस्थान में लगभग 4 लाख हेक्टर भूमि जलीय अपरदन से प्रभावित है
✒ चंबल व उसकी सहायक नदियों द्वारा हाड़ौती के पठार पर काफी अपरदन हुआ है
✒कोटा सवाई माधोपुर में धौलपुर जिले में नालीनुमा अपरदन से ग्रसित है जबकि पश्चिमी शुष्क मरुस्थल क्षेत्र वायु अपरदन से प्रभावित है
✒ तेजी से बहता हुआ जल, नालियों द्वारा बने खड्डे ,वनस्पति का अभाव, वनों की अंधाधुंध कटाई ,अत्याधिक पशुचारण, झूमिंग कृषि ,अवैज्ञानिक तरीके से कृषि, मृदा अपरदन को प्रभावित करती है
✒ राजस्थान में लगभग 7.2 लाख हेक्टेयर भूमि क्षारीय व लवणीय से प्रभावित है
✒ रासायनिक संरचना व अन्य गुणों के आधार पर वर्गीकरण
एरिड़ी सोइल्स
अल्फ़ी सोइल्स
एंटी सोइल्स
इनसेफ्टी सोइल्स
बर्टी सोइल्स
🔅एरीडी सोइल्स
यह शुष्क जलवायु मृदा समूह है
यह पश्चिमी राजस्थान नई प्रधानता है
🔅अल्फ़ी सोइल्स
जयपुर दोसा अलवर भरतपुर सवाई माधोपुर टोंक भीलवाड़ा चित्तौड़गढ़ बांसवाड़ा राजसमंद उदयपुर डूंगरपुर बूंदी कोटा 12 झालावाड़ जिला तक है विस्तार
🔅एण्टी सोइल्स
हल्का पीला भूरा पश्चिमी राजस्थान के अनेक भागों में
🔅 इन सेफ्टी सोइल्स
आद्र जलवायु प्रदेश पाए जाते हैं
🔅 वर्टी सोइल्स
✒भूपर्पटी की बाहरी संरन्दर एवं चरनिल स्पर्श टूटने से कार्बनिक पदार्थों के सड़ने से मृदा का निर्माण होता है
✒मृदा ठोश और द्रव, गैस अवस्था में विद्यमान है
✒मृदा की उत्पादकता से अभिप्राय है प्रति हेक्टर क्षमता से
✒मृदा का अध्ययन पेडालाजी में किया जाता है
✒भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद मिट्टी को 8 भागों में बांटा है
🔅जलोढ़/ कांप/कछारी
🔅 काली/रेगड़/वर्टी शाल/ कपासी
🔅लाल मिट्टी
🔅लैटेराइट मिट्टी
🔅लवणीय /क्षारीय मिट्टी
🔅 बलुई/रेतीली मिट्टी
🔅पर्वतीय मिट्टी/वनीय मिट्टी
🔅 दलदली मिट्टी/पिट/जवारिय
🔅अपरदन
✒जलवायु ऊपरी परत कट कर बह जाना मृदा अपरदन है
✒रेंगती मृत्यु/ मिट्टी का छय/TB उपनाम से जानी जाती है
✒सर्वाधिक अपरदन जून-जुलाई में होता है
✒उत्तर पश्चिमी राजस्थान में अपरदन वायु द्वारा होता है और नाले का अपरदन भारी वर्षा के कारण गहरे डाले बन जाते हैं कोटा बूंदी धौलपुर भरतपुर जयपुर सवाई माधोपुर चंबल में सर्वाधिक अवनालिका अपरदन पाया जाता है
✒ समोच्च रेखीय पद्धति ढालू भूमि में अपरदन रोकने की पद्धति है सर्वाधिक अपरदन जून-जुलाई में होता है
✒ सुब बुल वृक्षारोपण का सही समय है
✒ PH 5.55से कम होने पर मृदा अमलिय कहलाती है
✒कुल बंजर व्यर्थ भूमि का 20% है सर्वाधिक व्यर्थ भूमि जैसलमेर में 37.30% है
✒सर्वाधिक व्यर्थ पठारी क्षेत्र राजसमंद है
✒केंद्रीय भूमि संरक्षण बोर्ड सीकर व जयपुर में है
✒मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला :-जयपुर जोधपुर कोटा श्रीगंगानगर अलवर बांसवाड़ा सवाई माधोपुर करौली में है
✒मिट्टी नमी मापने का यंत्र टेंसियोंमीटर और न्यूट्रॉननो मीटर है
✒उर्वरता के आधार पर मिट्टी को 12 भागों में बांटा गया है
✒ राजस्थान में प्रमुख मृदा के प्रकार एंटीसोल है
✒अम्ल वर्षा के सुधार में प्रयोग लाने के हेतु चूने का प्रयोग किया जाता है
✒मृदा में कमी होती है N, P, Zn
✒एरोलीयन मृदा में सबसे कम जल्द संचयन की छमता होती है
✒भूमि स्थानीय लक्षण मृदा विन्यास होता है
✒मृदा के रंग के कारण खनिज पदार्थ व कार्बनिक पदार्थ होते है
✒लोहा अंस अधिकता के कारण रंग काला हो जाता है
✒PH 7 =उदासीन
✒PH 7 से कम तो उदासीन
✒PH 7 से अधिक क्षारीय
✒Indo_Dutch परियोजना मिट्टी की सम समस्या समाधान के लिए चलाई गई योजना है
✒काजरी स्थापना 1959 में हुई इसका पूरा नाम
केंद्रीय शुष्क मरुभूमि अनुसंधान संस्थान
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