Posts

Showing posts from October, 2018

जलवायु राजस्थान

Image
राजस्थान की जलवायु(climate,) :★महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली★: 🔰परिभाषा   ➖किसी भी भू भाग अथवा स्थान पर लम्बी अवधि के दौरान विभिन्न समयो में विभिन्न मौसम की औसत अवस्था उस भू भाग जलवायु है अर्थात तापमान ,आर्द्रता, वर्षा ,वायुदाब आदि मौसमी दशाओं के लंबे समय तक बने रहने को जलवायु कहते हैं ➖राजस्थान की जलवायु शुष्क से उपआर्द्र मानसूनी जलवायु है अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर निम्न आर्द्रता तथा तीव्रहवाओं युक्त जलवायु है। दुसरी और अरावली के पुर्व में अर्द्रशुष्क एवं उपआर्द्र जलवायु है। ➖जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक - 👉अक्षांशीय स्थिती, 👉समुद्रतल से दुरी, 👉समुद्र तल से ऊंचाई, 👉अरावली पर्वत श्रेणियों कि स्थिति एवं दिशा आदि ➖राजस्थान की जलवायु कि प्रमुख विशेषताएं - 1.शुष्क एवं आर्द्र जलवायु कि प्रधानता 2.अपर्याप्त एंव अनिश्चित वर्षा 3.वर्षा का अनायस वितरण 4.अधिकांश वर्षा जुन से सितम्बर तक 5.वर्षा की परिर्वतनशीलता एवं न्यूनता के कारण सुखा एवं अकाल कि स्थिती अधिक होना। ➖राजस्थान कर्क रेखा के उत्तर दिशा में स्थित है। अतः राज्य...

राजस्‍थान लोक सेवा आयोग (RPSC)

Image
🔰राजस्‍थान लोक सेवा आयोग (RPSC) गुरुकुल कोटपूतली महेश रहीसा ➖राजस्‍थान लोक सेवा आयोग का अभूतपूर्व इतिहास है। वर्ष 1923 में ली कमिशन ने भारत में एक संघ लोक सेवा आयोग की स्‍थापना की सिफारिश की थी किन्‍तु इस कमिशन ने प्रांतो में लोक सेवा आयोगों की स्‍थापना के बारें में कोई विचार नहीं किया। ➖प्रांतीय सरकारे अपनी आवश्‍यकतानुसार नियुक्तियां करने एवं राज्‍य सेवा नियम बनाने हेतु स्‍वतंत्र थी। ➖राजस्‍थान राज्‍य के गठन के समय कुल 22 प्रांतों में से मात्र 3 प्रांत-जयपुर, जोधपुर एवं बीकानेर में ही लोक सेवा आयोग कार्यरत थे । ➖रियासतों के एकीकरण के बाद गठित राजस्‍थान राज्‍य के तत्‍कालीन प्रबंधन ने 16 अगस्‍त, 1949 को एक अध्‍यादेश के अधीन राजस्‍थान लोक सेवा आयोग की स्‍थापना जयपुर में की । ➖ इस अध्‍यादेश का प्रकाशन राजस्‍थान के राजपत्र में 20 अगस्‍त 1949 को हुआ और इसी तिथी से अध्‍यादेश प्रभाव में आया । ➖ इस अध्‍यादेश के द्वारा राज्‍य में कार्यरत अन्‍य लोक सेवा आयोग एवं लोक सेवा आयोग की तरह कार्यरत अन्‍य संस्‍थाऐं बंद कर दी गयी । ➖अध्‍यादेश में आयोग के गठन, कर्मचारीगण एवं आयोग के कार्य...

जैन धर्म

Image
जैन धर्म शिक्षण महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली ➖जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। ➖'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं। ➖'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'। ➖जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान्‌ का धर्म। ➖अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है ➖जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था 🔰जैन धर्म मे 24 तीर्थंकरों को माना जाता है। तीर्थंकर धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करते है। इस काल के 24 तीर्थंकर है- क्रमांक तीर्थंकर 1 ऋषभदेव- इन्हें 'आदिनाथ' भी कहा जाता है 2 अजितनाथ 3 सम्भवनाथ 4 अभिनंदन जी 5 सुमतिनाथ जी 6 पद्ममप्रभु जी 7 ...

बौद्ध धर्म

Image
🔰Budhism and Jainism – Teachings, Causes of rise and fall of Buddhism. बौद्ध धर्म और जैन धर्म - शिक्षण, बौद्ध धर्म के उदय और पतन के कारण ➖ ईसा पूर्व छठी शताब्दी में उत्तर भारत की मध्य गंगा घाटी क्षेत्र में जहां एक ओर मगध के विशाल साम्राज्य की नींव पड़ रही थी वही दूसरी और वैदिक ब्राह्मणों कर्मकांड व दोषों के खिलाफ धार्मिक आंदोलन की सुरुवात हुई ➖इस समय अनेक संप्रदाय अस्तित्व में आए जिनमें केवल बौद्ध धर्म और जैन धर्म ही प्रसिद्ध हुए ➖ प्रमुख संप्रदाय एवं उनके संस्थापक चित्र ➖बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परम्परा से निकला धर्म और महान दर्शन है। ➖ ईसा पूर्व 6 वी शताब्धी में गौतम बुद्ध द्वारा बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है। 🔰महात्मा बुद्ध का परिचय ➖बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में नेपाल की तराई में स्थित कपिलवस्तु के लुंबिनी (आधुनिक रुम्मिनदेई) ग्राम में शाक्य क्षत्रिय  कुल में हुवा ➖बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ था ➖ सिद्धार्थ का गोत्र गोतम था अतः उन्हें गौतम कहा गया ➖सिद्धार्थ (बुद्ध) के पिता शुद्धोदन शाक्यों के राजा थे। शाक्य अपने आपको इश्य्वकु वंस का मानते थे ...

वैदिक सभ्यता

Image
वैदिक युग - सामाजिक और धार्मिक जीवन Vedic Age - Social and religious life . महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली ➖सिंधु सभ्यता के पतन के बाद जो नवीन संस्कृति प्रकाश में आयी उसके विषय में हमें सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है। इसलिए इस काल को हम 'वैदिक काल' अथवा वैदिक सभ्यता के नाम से जानते हैं।  ➖ इस संस्कृति के प्रवर्तक आर्य लोग थे इसलिए कभी-कभी आर्य सभ्यता का नाम भी दिया जाता है। ➖ यहाँ आर्य शब्द का अर्थ- श्रेष्ठ, उदात्त, अभिजात्य, कुलीन, उत्कृष्ट, स्वतंत्र आदि हैं। यह काल 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक अस्तित्व में रहा ➖वैदिक सभ्यता का नाम ऐसा इस लिए पड़ा कि वेद उस काल की जानकारी का प्रमुख स्रोत हैं। ➖वेद चार है - ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद। इनमें से ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी। ऋग्वेद में ही गायत्री मन्त्र है जो सविता(सूर्य) को समर्पित है। ➖वैदिक काल को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है- ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल। ➖ऋग्वैदिक काल आर्यों के आगमन के तुरंत बाद का काल था जिसमें कर्मकांड गौण थे पर उत्तरवैदिक काल में हिन्दू धर्म में कर्मकांडों की प...