वैदिक सभ्यता
वैदिक युग - सामाजिक और धार्मिक जीवन
Vedic Age - Social and religious life.
महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली
➖सिंधु सभ्यता के पतन के बाद जो नवीन संस्कृति प्रकाश में आयी उसके विषय में हमें सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है। इसलिए इस काल को हम 'वैदिक काल' अथवा वैदिक सभ्यता के नाम से जानते हैं।
➖ इस संस्कृति के प्रवर्तक आर्य लोग थे इसलिए कभी-कभी आर्य सभ्यता का नाम भी दिया जाता है।
➖ यहाँ आर्य शब्द का अर्थ- श्रेष्ठ, उदात्त, अभिजात्य, कुलीन, उत्कृष्ट, स्वतंत्र आदि हैं। यह काल 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक अस्तित्व में रहा
➖वैदिक सभ्यता का नाम ऐसा इस लिए पड़ा कि वेद उस काल की जानकारी का प्रमुख स्रोत हैं।
➖वेद चार है - ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद। इनमें से ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी। ऋग्वेद में ही गायत्री मन्त्र है जो सविता(सूर्य) को समर्पित है।
➖वैदिक काल को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है- ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल।
➖ऋग्वैदिक काल आर्यों के आगमन के तुरंत बाद का काल था जिसमें कर्मकांड गौण थे पर उत्तरवैदिक काल में हिन्दू धर्म में कर्मकांडों की प्रमुखता बढ़ गई।
🔰ऋग्वैदिक काल
➖इस काल की तिथि निर्धारण जितनी विवादास्पद रही है उतनी ही इस काल के लोगों के बारे में सटीक जानकारी।
➖इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि इस समय तक केवल इसी ग्रंथ (ऋग्वेद) की रचना हुई थी।
➖मैक्स मूलर के अनुसार आर्य का मूल निवास मध्य ऐशिया है।आर्यो द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक काल कहलाई।
➖आर्यो द्वारा विकसित सभ्य्ता ग्रामीण सभ्यता कहलायी। आर्यों की भाषा संस्कृत थी
➖प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल थी। एक कुल में एक घर में एक छत के नीचे रहने वाले लोग शामिल थे।
➖ एक ग्राम कई कुलों से मिलकर बना होता था। ग्रामों का संगठन विश् कहलाता था और विशों का संगठन जन। कई जन मिलकर राष्ट्र बनाते थे।
➖राष्ट्र (राज्य) का शासक राजन् (राजा) कहलाता था। जो राजा बड़े होते थे उन्हें सम्राट कहते थे।
➖वैदिक साहित्य में चार वेद एवं उनकी संहिताओं, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषदों एवं वेदांगों को शामिल किया जाता है।
➖वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
➖ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद विश्व के प्रथम प्रमाणिक ग्रन्थ है।
➖वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्त कराने के कारण वेदों को "श्रुति" की संज्ञा दी गई है।
⭕ऋग्वेद
➖ऋग्वेद देवताओं की स्तुति से सम्बंधित रचनाओं का संग्रह है।
➖यह 10 मंडलों में विभक्त है। इसमे 2 से 7 तक के मंडल प्राचीनतम माने जाते हैं।
➖प्रथम एवं दशम मंडल बाद में जोड़े गए हैं।
➖इसमें 1028 सूक्त हैं।
➖इसकी भाषा पद्यात्मक है।
➖ऋग्वेद में 33 प्रकार के देवों (दिव्य गुणो से युक्त पदार्थो) का उल्लेख मिलता है।
➖प्रसिद्ध गायत्री मंत्र जो सूर्य से सम्बंधित देवी गायत्री को संबोधित है, ऋग्वेद में सर्वप्रथम प्राप्त होता है।
➖' असतो मा सद्गमय ' वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है।
➖ऋग्वेद में मंत्र को कंठस्त करने में स्त्रियों के नाम भी मिलते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- लोपामुद्रा, घोषा, शाची, पौलोमी एवं काक्षावृती आदि
➖इसके पुरोहित क नाम होत्री है।
⭕यजुर्वेद
➖यजु का अर्थ होता है यज्ञ।
➖यजुर्वेद वेद में यज्ञ की विधियों का वर्णन किया गया है।
➖इसमे मंत्रों का संकलन आनुष्ठानिक यज्ञ के समय सस्तर पाठ करने के उद्देश्य से किया गया है।
➖इसमे मंत्रों के साथ साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी विवरण है जिसे मंत्रोच्चारण के साथ संपादित किए जाने का विधान सुझाया गया है।
➖यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक एवं गद्यात्मक दोनों है।
➖यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद।
➖कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएं हैं- मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता, कपिन्थल तथा संहिता
➖ शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- मध्यान्दीन तथा कण्व संहिता।
➖यह 40 अध्याय में विभाजित है।
इसी ग्रन्थ में पहली बार राजसूय तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोह का उल्लेख है
⭕सामवेद
➖सामवेद की रचना ऋग्वेद में दिए गए मंत्रों को गाने योग्य बनाने हेतु की गयी थी।
➖इसमे 1810 छंद हैं जिनमें 75 को छोड़कर शेष सभी ऋग्वेद में उल्लेखित हैं।
➖सामवेद तीन शाखाओं में विभक्त है- कौथुम, राणायनीय और जैमनीय।
➖सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है।
⭕अथर्ववेद
➖इसमें प्राक्-ऐतिहासिक युग की मूलभूत मान्यताओं, परम्पराओं का चित्रण है।
➖अथर्ववेद 20 अध्यायों में संगठित है।
➖ इसमें 731 सूक्त एवं 6000 के लगभग मंत्र हैं।
➖इसमें रोग तथा उसके निवारण के साधन के रूप में जानकारी दी गयी है।
➖अथर्ववेद की दो शाखाएं हैं- शौनक और पिप्पलाद
⭕ब्राह्मण
➖वैदिक मन्त्रों तथा संहिताओं को ब्रह्म कहा गया है वही ब्रह्म का विस्तारितरुपको ब्राह्मण कहा गया है।
➖ पुरातन ब्राह्मण में ऐतरेय, शतपथ, पंचविश, तैतरीय आदि विशेष महत्वपूर्ण हैं।
➖महर्षि याज्ञवल्क्यने मन्त्र सहित ब्राह्मण ग्रंथों की उपदेश आदित्यसे प्राप्त किया है।
➖संहिताओं के अन्तर्गत कर्मकांड की जो विधि उपदिष्ट है ब्राह्मण मे उसी की सप्रमाण व्याख्या देखने को मिलता है।
➖ प्राचीन परम्परा मे आश्रमानुरुप वेदों का पाठ करने की विधि थी। अतः ब्रह्मचारी ऋचाओं ही पाठ करते थे ,गृहस्थ ब्राह्मणों का, वानप्रस्थ आरण्यकों और संन्यासी उपनिषदों का। गार्हस्थ्यधर्म का मननीय वेदभाग ही ब्राह्मण है।
➖यह मुख्यतः गद्य शैली में उपदिष्ट है।
ब्राह्मण ग्रंथों से हमें बिम्बिसार के पूर्व की घटना का ज्ञान प्राप्त होता है।
➖ऐतरेय ब्राह्मण में आठ मंडल हैं और पाँच अध्याय हैं। इसे पंजिका भी कहा जाता है।
➖ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम प्राप्त होते हैं।
➖तैतरीय ब्राह्मण कृष्णयजुर्वेदका ब्राह्मण है।
➖शतपथ ब्राह्मण में 100 अध्याय,14 काण्ड और 438 ब्राह्मण है।
➖गान्धार, शल्य, कैकय, कुरु, पांचाल, कोसल, विदेह आदि स्थलों का भी उल्लेख होता है।
➖शतपथ ब्राह्मण ऐतिहासिक दृष्टी से सर्वाधिक महत्वपूर्ण ब्राह्मण है।
➖पंचविंश/ षड्विंश ब्राह्मण सामवेद सम्बद्ध ब्राह्मण है।
➖सर्वाधिक परवर्ती ब्राह्मण गोपथ है।
⭕आरण्यक
➖आरण्यक वेदों का वह भाग है जो गृहस्थाश्रम त्याग उपरान्त वानप्रस्थ लोग जंगल में पाठ किया करते थे | इसी कारण आरण्यक नामकरण किया गया।
➖इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय रहस्यवाद, प्रतीकवाद, यज्ञ और पुरोहित दर्शन है।
➖वर्तमान में सात अरण्यक उपलब्ध हैं।
सामवेद और अथर्ववेद का कोई आरण्यक स्पष्ट और भिन्न रूप में उपलब्ध नहीं है।
⭕उपनिषद
➖उपनिषद प्राचीनतम दार्शनिक विचारों का संग्रह है।
➖उपनिषदों में ‘वृहदारण्यक’ तथा ‘छान्दोन्य’, सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।
➖ इन ग्रन्थों से बिम्बिसार के पूर्व के भारत की अवस्था जानी जा सकती है। परीक्षित, उनके पुत्र जनमेजय तथा पश्चात कालीन राजाओं का उल्लेख इन्हीं उपनिषदों में किया गया है। इन्हीं उपनिषदों से यह स्पष्ट होता है कि आर्यों का दर्शन विश्व के अन्य सभ्य देशों के दर्शन से सर्वोत्तम तथा अधिक आगे था।
➖ आर्यों के आध्यात्मिक विकास, प्राचीनतम धार्मिक अवस्था और चिन्तन के जीते-जागते जीवन्त उदाहरण इन्हीं उपनिषदों में मिलते हैं।
➖उपनिषदों की रचना संभवतः बुद्ध के काल में हुई, क्योंकि भौतिक इच्छाओं पर सर्वप्रथम आध्यात्मिक उन्नति की महत्ता स्थापित करने का प्रयास बौद्ध और जैन धर्मों के विकास की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुआ।
➖कुल उपनिषदों की संख्या 108 है।
➖मुख्य रूप से शास्वत आत्मा, ब्रह्म, आत्मा-परमात्मा के बीच सम्बन्ध तथा विश्व की उत्पत्ति से सम्बंधित रहस्यवादी सिधान्तों का विवरण दिया गया है।
➖"सत्यमेव जयते" मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
➖मैत्रायणी उपनिषद् में त्रिमूर्ति और चार्तु आश्रम सिद्धांत का उल्लेख है।
⭕वेदांग
➖युगान्तर में वैदिक अध्ययन के लिए छः विधाओं (शाखाओं) का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते हैं।
➖वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग, तथापि इस साहित्य के पौरूषेय होने के कारण श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है।
➖वेदांग को स्मृति भी कहा जाता है, क्योंकि यह मनुष्यों की कृति मानी जाती है। वेदांग सूत्र के रूप में हैं इसमें कम शब्दों में अधिक तथ्य रखने का प्रयास किया गया है।
➖वेदांग की संख्या 6 है
शिक्षा- स्वर ज्ञान
कल्प- धार्मिक रीति एवं पद्धति
निरुक्त- शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र
व्याकरण- व्याकरण
छंद- छंद शास्त्र
ज्योतिष- खगोल विज्ञान
⭕सूत्र साहित्य
➖सूत्र साहित्य वैदिक साहित्य का अंग है। उसे समझने में सहायक भी है।
➖ब्रह्म सूत्र-भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री वेद व्यास ने वेदांत पर यह परमगूढ़ ग्रंथ लिखा है जिसमें परमसत्ता, परमात्मा, परमसत्य, ब्रह्मस्वरूप ईश्वर तथा उनके द्वारा सृष्टि और ब्रह्मतत्त्व वर गूढ़ विवेचना की गई है।
➖इसका भाष्य श्रीमद् आदिशंकराचार्य जी ने भगवान व्यास जी के कहने पर लिखा था।
👉कल्प सूत्र- ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण। वेदों का हस्त स्थानीय वेदांग।
👉श्रोत सूत्र- महायज्ञ से सम्बंधित विस्तृत विधि-विधानों की व्याख्या। वेदांग कल्पसूत्र का पहला भाग।
👉स्मार्तसूत्र - षोडश संस्कारों का विधान करने वाला कल्प का दुसरा भाग
👉शुल्बसूत्र- यज्ञ स्थल तथा अग्निवेदी के निर्माण तथा माप से सम्बंधित नियम इसमें हैं। इसमें भारतीय ज्यामिति का प्रारम्भिक रूप दिखाई देता है। कल्प का तीसरा भाग।
👉धर्म सूत्र- इसमें सामाजिक धार्मिक कानून तथा आचार संहिता है। कल्प का चौथा भाग
👉गृह्य सूत्र- परुवारिक संस्कारों, उत्सवों तथा वैयक्तिक यज्ञों से सम्बंधित विधि-विधानों की चर्चा है।
⭕राजनीतिक स्थिति
ऋग्वैदिक काल मुख्यतः एक कबीलाई व्यवस्था वाला शासन था जिसमें सैनिक भावना प्रमुख थी। राजा को गोमत भी कहा जाता था।
👉वैदिक काल में राजतंत्रात्मक प्रणाली प्रचलित थी। इसमें शासन का प्रमुख राजा होता था।
👉राजा वंशानुगत तो होता था परन्तु जनता उसे हटा सकती थी। वह क्षेत्र विशेष का नहीं बल्कि जन विशेष का प्रधान होता था।
👉राजा युद्ध का नेतृत्वकर्ता था। उसे कर वसूलने का अधिकार नही था। जनता द्वारा स्वेच्छा से दिए गए भाग एवं से उसका खर्च चलता था।
👉सभा, समिति तथा विदथ नामक प्रशासनिक संस्थाएं थीं।
👉अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।
👉समिति का महत्वपूर्ण कार्य राजा का चुनाव करना था।
👉 समिति का प्रधान ईशान या पति कहलाता था।
👉विदथ में स्त्री एवं पुरूष दोनों सम्मलित होते थे। नववधुओं का स्वागत, धार्मिक अनुष्ठान आदि सामाजिक कार्य विदथ में होते थे।
👉सभा श्रेष्ठ लोंगो की संस्था थी, समिति आम जनप्रतिनिधि सभा थी एवं विदथ सबसे प्राचीन संस्था थी।
👉 ऋग्वेद में सबसे ज्यादा बार उल्लेख विदथ का 122 बार हुआ है।
👉सैन्य संचालन वरात, गण व सर्ध नामक कबीलाई संगठन करते थे।
👉शतपथ ब्रह्मण के अनुसार अभिषेक होने पर राजा महँ बन जाता था। राजसूय यज्ञ करने वाले की उपाधि राजा तथा वाजपेय यज्ञ करने वाले की उपाधि सम्राट थी।
👉स्पर्श, गुप्तचरों को और पुरूप, दुर्गापति को कहा जाता था।
👉राजा का प्रशासनिक सहयोग पुरोहित एवं सेनानी आदि 12 रत्निन करते थे। चारागाह के प्रधान को वाज्रपति एवं लड़ाकू दलों के प्रधान को ग्रामिणी कहा जाता था।
🔖12 रत्निन
पुरोहित- राजा का प्रमुख परामर्शदाता,
➖सेनानी- सेना का प्रमुख,
➖ग्रामीण- ग्राम का सैनिक पदाधिकारी,
➖महिषी- राजा की पत्नी,
➖सूत- राजा का सारथी,
➖क्षत्रि- प्रतिहार,
➖संग्रहित- कोषाध्यक्ष,
➖भागदुध- कर एकत्र करने वाला अधिकारी,
➖अक्षवाप- लेखाधिकारी,
➖गोविकृत- वन का अधिकारी,
➖पालागल- राजा का मित्र।
🔖विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञ
➖होत्र- ऋग्वेद का पाठ करने वाला।
➖उदगाता- सामवेद की रिचाओं का गान करने वाला।
➖अध्वर्यु- यजुर्वेद का पाठ करने व
➖ब्रह्मा- संपूर्ण यज्ञों की देख रेख करने वाला।
⭕आर्थिक स्थिति
➖अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार पशुपालन एवं कृषि था।
➖ज्यादा पालतूपशु रखने वाले गोमत कहलाते थे। चारागाह के लिए ' उत्यति ' या ' गव्य ' शब्द का प्रयोग हुआ है। दूरी को ' गवयुती ', पुत्री को दुहिता (गाय दुहने वाली) तथा युद्धों के लिए ' गविष्टि ' का प्रयोग होता था।
➖राजा को जनता स्वेच्छा से भाग नजराना देती थी।
➖आवास घास-फूस एवं काष्ठ निर्मित होते थे।
➖ऋण लेने एवं देने की प्रथा प्रचलित थी जिसे ' कुसीद ' कहा जाता था।
➖बैलगाड़ी, रथ एवं नाव यातायात के प्रमुख साधन थे।
⭕कृषि
➖सर्वप्रथम शतपथ ब्राम्हण में कृषि की समस्त प्रक्रियाओं का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के प्रथम और दसम मंडलों में बुआई, जुताई, फसल की गहाई आदि का वर्णन है।
➖ऋग्वेद में केवल यव (जौ) नामक अनाज का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के चौथे मंडल में कृषि का वर्णन है।
➖परवर्ती वैदिक साहित्यों में ही अन्य अनाजों जैसे- गोधूम(गेंहू), ब्रीही (चावल) आदि की चर्चा की गई है।
➖काठक संहिता में 24 बैलों द्वारा हल खींचे जाने का, अथर्ववेद में वर्षा, कूप एवं नाहर का तथा यजुर्वेद में हल का ' सीर ' के नाम से उल्लेख है। उस काल में कृत्रिम सिंचाई की व्यवस्था भी थी।
⭕पशुपालन
➖पशुओं का चारण ही उनकी आजीविका का प्रमुख साधन था।
➖गाय ही विनिमय का प्रमुख साधन थी।
➖ ऋग्वैदिक काल में भूमिदान या व्यक्तिगत भू-स्वामित्व की धारणा विकसित नही हुई थी।
⭕व्यापार
➖आरम्भ में अत्यन्त सीमित व्यापार प्रथा का प्रचलन था। व्यापार विनिमय पद्धति पर आधारित था।
➖समाज का एक वर्ग 'पाणी' व्यापार किया करते थे। राजा को नियमित कर देने या भू-राजस्व देने की प्रथा नहीं थी।
➖ राजा को स्वेच्छा से भाग या नजराना दिया जाता था। पराजित कबीला भी विजयी राजा को भेंट देता था। अपने धन को राजा अपने अन्य साथियों के बीच बांटता था।
➖धातु एवं सिक्के : ऋग्वेद में उल्लेखित धातुओं में सर्वप्रथम धातू, अयस (ताँबा या कांसा) था। वे सोना (हिरव्य या स्वर्ण) एवं चांदी से भी परिचित थे। लेकिन ऋग्वेद में लोहे का उल्लेख नहीं है।
➖ ' निष्क ' संभवतः सोने का आभूषण या मुद्रा था जो विनिमय के काम में भी आता था।
➖उद्योग : ऋग्वैदिक काल के उद्योग घरेलु जरूरतों के पूर्ति हेतु थे। बढ़ई एवं धूकर का कार्य अत्यन्त महत्वपूर्व था।
➖ अन्य प्रमुख उद्योग वस्त्र, बर्तन, लकड़ी एवं चर्म कार्य था। स्त्रियाँ भी चटाई बनने का कार्य करतीं थीं।
⭕धार्मिक स्थिति
➖आर्य एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।
यहाँ प्राकृतिक मानव के हित के लिये ईश्वर से कामना की जाती थी। वे मुख्य रूप से केवळ बर्ह्मान्ड के धारण करने वाळे एकमात्र परमपिता परमेश्वर के पूजक थे।
➖वैदिक धर्म पुरूष प्रधान धर्म था। आरम्भ में स्वर्ग या अमरत्व की परिकल्पना नहीं थी।
➖वैदिक धर्म पुरोहितों से नियंत्रित धर्म था। पुरोहित ईश्वर एवं मानव के बीच मध्यस्थ था।
➖वैदिक देवताओं का स्वरुप महिमामंडित मानवों का है। ऋग्वेद में 33 प्रकार के तत्वों (दिव्य गुणो से युक्त पदार्थो) का उल्लेख है।
➖ऋग्वेद का यह काल विंटरनित्य ने निर्धारित किया
गुरुकुल ...एक कदम सफलता की और
https://www.facebook.com/Gurukul-GK-Word-Kotputli-195350767296787/
Like करो इस पेज को
Vedic Age - Social and religious life.
महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली
➖सिंधु सभ्यता के पतन के बाद जो नवीन संस्कृति प्रकाश में आयी उसके विषय में हमें सम्पूर्ण जानकारी वेदों से मिलती है। इसलिए इस काल को हम 'वैदिक काल' अथवा वैदिक सभ्यता के नाम से जानते हैं।
➖ इस संस्कृति के प्रवर्तक आर्य लोग थे इसलिए कभी-कभी आर्य सभ्यता का नाम भी दिया जाता है।
➖ यहाँ आर्य शब्द का अर्थ- श्रेष्ठ, उदात्त, अभिजात्य, कुलीन, उत्कृष्ट, स्वतंत्र आदि हैं। यह काल 1500 ई.पू. से 600 ई.पू. तक अस्तित्व में रहा
➖वैदिक सभ्यता का नाम ऐसा इस लिए पड़ा कि वेद उस काल की जानकारी का प्रमुख स्रोत हैं।
➖वेद चार है - ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद और यजुर्वेद। इनमें से ऋग्वेद की रचना सबसे पहले हुई थी। ऋग्वेद में ही गायत्री मन्त्र है जो सविता(सूर्य) को समर्पित है।
➖वैदिक काल को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है- ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल।
➖ऋग्वैदिक काल आर्यों के आगमन के तुरंत बाद का काल था जिसमें कर्मकांड गौण थे पर उत्तरवैदिक काल में हिन्दू धर्म में कर्मकांडों की प्रमुखता बढ़ गई।
🔰ऋग्वैदिक काल
➖इस काल की तिथि निर्धारण जितनी विवादास्पद रही है उतनी ही इस काल के लोगों के बारे में सटीक जानकारी।
➖इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि इस समय तक केवल इसी ग्रंथ (ऋग्वेद) की रचना हुई थी।
➖मैक्स मूलर के अनुसार आर्य का मूल निवास मध्य ऐशिया है।आर्यो द्वारा निर्मित सभ्यता वैदिक काल कहलाई।
➖आर्यो द्वारा विकसित सभ्य्ता ग्रामीण सभ्यता कहलायी। आर्यों की भाषा संस्कृत थी
➖प्रशासन की सबसे छोटी इकाई कुल थी। एक कुल में एक घर में एक छत के नीचे रहने वाले लोग शामिल थे।
➖ एक ग्राम कई कुलों से मिलकर बना होता था। ग्रामों का संगठन विश् कहलाता था और विशों का संगठन जन। कई जन मिलकर राष्ट्र बनाते थे।
➖राष्ट्र (राज्य) का शासक राजन् (राजा) कहलाता था। जो राजा बड़े होते थे उन्हें सम्राट कहते थे।
➖वैदिक साहित्य में चार वेद एवं उनकी संहिताओं, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषदों एवं वेदांगों को शामिल किया जाता है।
➖वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद।
➖ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद विश्व के प्रथम प्रमाणिक ग्रन्थ है।
➖वेदों को अपौरुषेय कहा गया है। गुरु द्वारा शिष्यों को मौखिक रूप से कंठस्त कराने के कारण वेदों को "श्रुति" की संज्ञा दी गई है।
⭕ऋग्वेद
➖ऋग्वेद देवताओं की स्तुति से सम्बंधित रचनाओं का संग्रह है।
➖यह 10 मंडलों में विभक्त है। इसमे 2 से 7 तक के मंडल प्राचीनतम माने जाते हैं।
➖प्रथम एवं दशम मंडल बाद में जोड़े गए हैं।
➖इसमें 1028 सूक्त हैं।
➖इसकी भाषा पद्यात्मक है।
➖ऋग्वेद में 33 प्रकार के देवों (दिव्य गुणो से युक्त पदार्थो) का उल्लेख मिलता है।
➖प्रसिद्ध गायत्री मंत्र जो सूर्य से सम्बंधित देवी गायत्री को संबोधित है, ऋग्वेद में सर्वप्रथम प्राप्त होता है।
➖' असतो मा सद्गमय ' वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है।
➖ऋग्वेद में मंत्र को कंठस्त करने में स्त्रियों के नाम भी मिलते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- लोपामुद्रा, घोषा, शाची, पौलोमी एवं काक्षावृती आदि
➖इसके पुरोहित क नाम होत्री है।
⭕यजुर्वेद
➖यजु का अर्थ होता है यज्ञ।
➖यजुर्वेद वेद में यज्ञ की विधियों का वर्णन किया गया है।
➖इसमे मंत्रों का संकलन आनुष्ठानिक यज्ञ के समय सस्तर पाठ करने के उद्देश्य से किया गया है।
➖इसमे मंत्रों के साथ साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी विवरण है जिसे मंत्रोच्चारण के साथ संपादित किए जाने का विधान सुझाया गया है।
➖यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक एवं गद्यात्मक दोनों है।
➖यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद।
➖कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएं हैं- मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता, कपिन्थल तथा संहिता
➖ शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- मध्यान्दीन तथा कण्व संहिता।
➖यह 40 अध्याय में विभाजित है।
इसी ग्रन्थ में पहली बार राजसूय तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोह का उल्लेख है
⭕सामवेद
➖सामवेद की रचना ऋग्वेद में दिए गए मंत्रों को गाने योग्य बनाने हेतु की गयी थी।
➖इसमे 1810 छंद हैं जिनमें 75 को छोड़कर शेष सभी ऋग्वेद में उल्लेखित हैं।
➖सामवेद तीन शाखाओं में विभक्त है- कौथुम, राणायनीय और जैमनीय।
➖सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है।
⭕अथर्ववेद
➖इसमें प्राक्-ऐतिहासिक युग की मूलभूत मान्यताओं, परम्पराओं का चित्रण है।
➖अथर्ववेद 20 अध्यायों में संगठित है।
➖ इसमें 731 सूक्त एवं 6000 के लगभग मंत्र हैं।
➖इसमें रोग तथा उसके निवारण के साधन के रूप में जानकारी दी गयी है।
➖अथर्ववेद की दो शाखाएं हैं- शौनक और पिप्पलाद
⭕ब्राह्मण
➖वैदिक मन्त्रों तथा संहिताओं को ब्रह्म कहा गया है वही ब्रह्म का विस्तारितरुपको ब्राह्मण कहा गया है।
➖ पुरातन ब्राह्मण में ऐतरेय, शतपथ, पंचविश, तैतरीय आदि विशेष महत्वपूर्ण हैं।
➖महर्षि याज्ञवल्क्यने मन्त्र सहित ब्राह्मण ग्रंथों की उपदेश आदित्यसे प्राप्त किया है।
➖संहिताओं के अन्तर्गत कर्मकांड की जो विधि उपदिष्ट है ब्राह्मण मे उसी की सप्रमाण व्याख्या देखने को मिलता है।
➖ प्राचीन परम्परा मे आश्रमानुरुप वेदों का पाठ करने की विधि थी। अतः ब्रह्मचारी ऋचाओं ही पाठ करते थे ,गृहस्थ ब्राह्मणों का, वानप्रस्थ आरण्यकों और संन्यासी उपनिषदों का। गार्हस्थ्यधर्म का मननीय वेदभाग ही ब्राह्मण है।
➖यह मुख्यतः गद्य शैली में उपदिष्ट है।
ब्राह्मण ग्रंथों से हमें बिम्बिसार के पूर्व की घटना का ज्ञान प्राप्त होता है।
➖ऐतरेय ब्राह्मण में आठ मंडल हैं और पाँच अध्याय हैं। इसे पंजिका भी कहा जाता है।
➖ऐतरेय ब्राह्मण में राज्याभिषेक के नियम प्राप्त होते हैं।
➖तैतरीय ब्राह्मण कृष्णयजुर्वेदका ब्राह्मण है।
➖शतपथ ब्राह्मण में 100 अध्याय,14 काण्ड और 438 ब्राह्मण है।
➖गान्धार, शल्य, कैकय, कुरु, पांचाल, कोसल, विदेह आदि स्थलों का भी उल्लेख होता है।
➖शतपथ ब्राह्मण ऐतिहासिक दृष्टी से सर्वाधिक महत्वपूर्ण ब्राह्मण है।
➖पंचविंश/ षड्विंश ब्राह्मण सामवेद सम्बद्ध ब्राह्मण है।
➖सर्वाधिक परवर्ती ब्राह्मण गोपथ है।
⭕आरण्यक
➖आरण्यक वेदों का वह भाग है जो गृहस्थाश्रम त्याग उपरान्त वानप्रस्थ लोग जंगल में पाठ किया करते थे | इसी कारण आरण्यक नामकरण किया गया।
➖इसका प्रमुख प्रतिपाद्य विषय रहस्यवाद, प्रतीकवाद, यज्ञ और पुरोहित दर्शन है।
➖वर्तमान में सात अरण्यक उपलब्ध हैं।
सामवेद और अथर्ववेद का कोई आरण्यक स्पष्ट और भिन्न रूप में उपलब्ध नहीं है।
⭕उपनिषद
➖उपनिषद प्राचीनतम दार्शनिक विचारों का संग्रह है।
➖उपनिषदों में ‘वृहदारण्यक’ तथा ‘छान्दोन्य’, सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं।
➖ इन ग्रन्थों से बिम्बिसार के पूर्व के भारत की अवस्था जानी जा सकती है। परीक्षित, उनके पुत्र जनमेजय तथा पश्चात कालीन राजाओं का उल्लेख इन्हीं उपनिषदों में किया गया है। इन्हीं उपनिषदों से यह स्पष्ट होता है कि आर्यों का दर्शन विश्व के अन्य सभ्य देशों के दर्शन से सर्वोत्तम तथा अधिक आगे था।
➖ आर्यों के आध्यात्मिक विकास, प्राचीनतम धार्मिक अवस्था और चिन्तन के जीते-जागते जीवन्त उदाहरण इन्हीं उपनिषदों में मिलते हैं।
➖उपनिषदों की रचना संभवतः बुद्ध के काल में हुई, क्योंकि भौतिक इच्छाओं पर सर्वप्रथम आध्यात्मिक उन्नति की महत्ता स्थापित करने का प्रयास बौद्ध और जैन धर्मों के विकास की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप हुआ।
➖कुल उपनिषदों की संख्या 108 है।
➖मुख्य रूप से शास्वत आत्मा, ब्रह्म, आत्मा-परमात्मा के बीच सम्बन्ध तथा विश्व की उत्पत्ति से सम्बंधित रहस्यवादी सिधान्तों का विवरण दिया गया है।
➖"सत्यमेव जयते" मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
➖मैत्रायणी उपनिषद् में त्रिमूर्ति और चार्तु आश्रम सिद्धांत का उल्लेख है।
⭕वेदांग
➖युगान्तर में वैदिक अध्ययन के लिए छः विधाओं (शाखाओं) का जन्म हुआ जिन्हें ‘वेदांग’ कहते हैं।
➖वेदांग का शाब्दिक अर्थ है वेदों का अंग, तथापि इस साहित्य के पौरूषेय होने के कारण श्रुति साहित्य से पृथक ही गिना जाता है।
➖वेदांग को स्मृति भी कहा जाता है, क्योंकि यह मनुष्यों की कृति मानी जाती है। वेदांग सूत्र के रूप में हैं इसमें कम शब्दों में अधिक तथ्य रखने का प्रयास किया गया है।
➖वेदांग की संख्या 6 है
शिक्षा- स्वर ज्ञान
कल्प- धार्मिक रीति एवं पद्धति
निरुक्त- शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र
व्याकरण- व्याकरण
छंद- छंद शास्त्र
ज्योतिष- खगोल विज्ञान
⭕सूत्र साहित्य
➖सूत्र साहित्य वैदिक साहित्य का अंग है। उसे समझने में सहायक भी है।
➖ब्रह्म सूत्र-भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्री वेद व्यास ने वेदांत पर यह परमगूढ़ ग्रंथ लिखा है जिसमें परमसत्ता, परमात्मा, परमसत्य, ब्रह्मस्वरूप ईश्वर तथा उनके द्वारा सृष्टि और ब्रह्मतत्त्व वर गूढ़ विवेचना की गई है।
➖इसका भाष्य श्रीमद् आदिशंकराचार्य जी ने भगवान व्यास जी के कहने पर लिखा था।
👉कल्प सूत्र- ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण। वेदों का हस्त स्थानीय वेदांग।
👉श्रोत सूत्र- महायज्ञ से सम्बंधित विस्तृत विधि-विधानों की व्याख्या। वेदांग कल्पसूत्र का पहला भाग।
👉स्मार्तसूत्र - षोडश संस्कारों का विधान करने वाला कल्प का दुसरा भाग
👉शुल्बसूत्र- यज्ञ स्थल तथा अग्निवेदी के निर्माण तथा माप से सम्बंधित नियम इसमें हैं। इसमें भारतीय ज्यामिति का प्रारम्भिक रूप दिखाई देता है। कल्प का तीसरा भाग।
👉धर्म सूत्र- इसमें सामाजिक धार्मिक कानून तथा आचार संहिता है। कल्प का चौथा भाग
👉गृह्य सूत्र- परुवारिक संस्कारों, उत्सवों तथा वैयक्तिक यज्ञों से सम्बंधित विधि-विधानों की चर्चा है।
⭕राजनीतिक स्थिति
ऋग्वैदिक काल मुख्यतः एक कबीलाई व्यवस्था वाला शासन था जिसमें सैनिक भावना प्रमुख थी। राजा को गोमत भी कहा जाता था।
👉वैदिक काल में राजतंत्रात्मक प्रणाली प्रचलित थी। इसमें शासन का प्रमुख राजा होता था।
👉राजा वंशानुगत तो होता था परन्तु जनता उसे हटा सकती थी। वह क्षेत्र विशेष का नहीं बल्कि जन विशेष का प्रधान होता था।
👉राजा युद्ध का नेतृत्वकर्ता था। उसे कर वसूलने का अधिकार नही था। जनता द्वारा स्वेच्छा से दिए गए भाग एवं से उसका खर्च चलता था।
👉सभा, समिति तथा विदथ नामक प्रशासनिक संस्थाएं थीं।
👉अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।
👉समिति का महत्वपूर्ण कार्य राजा का चुनाव करना था।
👉 समिति का प्रधान ईशान या पति कहलाता था।
👉विदथ में स्त्री एवं पुरूष दोनों सम्मलित होते थे। नववधुओं का स्वागत, धार्मिक अनुष्ठान आदि सामाजिक कार्य विदथ में होते थे।
👉सभा श्रेष्ठ लोंगो की संस्था थी, समिति आम जनप्रतिनिधि सभा थी एवं विदथ सबसे प्राचीन संस्था थी।
👉 ऋग्वेद में सबसे ज्यादा बार उल्लेख विदथ का 122 बार हुआ है।
👉सैन्य संचालन वरात, गण व सर्ध नामक कबीलाई संगठन करते थे।
👉शतपथ ब्रह्मण के अनुसार अभिषेक होने पर राजा महँ बन जाता था। राजसूय यज्ञ करने वाले की उपाधि राजा तथा वाजपेय यज्ञ करने वाले की उपाधि सम्राट थी।
👉स्पर्श, गुप्तचरों को और पुरूप, दुर्गापति को कहा जाता था।
👉राजा का प्रशासनिक सहयोग पुरोहित एवं सेनानी आदि 12 रत्निन करते थे। चारागाह के प्रधान को वाज्रपति एवं लड़ाकू दलों के प्रधान को ग्रामिणी कहा जाता था।
🔖12 रत्निन
पुरोहित- राजा का प्रमुख परामर्शदाता,
➖सेनानी- सेना का प्रमुख,
➖ग्रामीण- ग्राम का सैनिक पदाधिकारी,
➖महिषी- राजा की पत्नी,
➖सूत- राजा का सारथी,
➖क्षत्रि- प्रतिहार,
➖संग्रहित- कोषाध्यक्ष,
➖भागदुध- कर एकत्र करने वाला अधिकारी,
➖अक्षवाप- लेखाधिकारी,
➖गोविकृत- वन का अधिकारी,
➖पालागल- राजा का मित्र।
🔖विविध क्षेत्रों के विशेषज्ञ
➖होत्र- ऋग्वेद का पाठ करने वाला।
➖उदगाता- सामवेद की रिचाओं का गान करने वाला।
➖अध्वर्यु- यजुर्वेद का पाठ करने व
➖ब्रह्मा- संपूर्ण यज्ञों की देख रेख करने वाला।
⭕आर्थिक स्थिति
➖अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार पशुपालन एवं कृषि था।
➖ज्यादा पालतूपशु रखने वाले गोमत कहलाते थे। चारागाह के लिए ' उत्यति ' या ' गव्य ' शब्द का प्रयोग हुआ है। दूरी को ' गवयुती ', पुत्री को दुहिता (गाय दुहने वाली) तथा युद्धों के लिए ' गविष्टि ' का प्रयोग होता था।
➖राजा को जनता स्वेच्छा से भाग नजराना देती थी।
➖आवास घास-फूस एवं काष्ठ निर्मित होते थे।
➖ऋण लेने एवं देने की प्रथा प्रचलित थी जिसे ' कुसीद ' कहा जाता था।
➖बैलगाड़ी, रथ एवं नाव यातायात के प्रमुख साधन थे।
⭕कृषि
➖सर्वप्रथम शतपथ ब्राम्हण में कृषि की समस्त प्रक्रियाओं का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के प्रथम और दसम मंडलों में बुआई, जुताई, फसल की गहाई आदि का वर्णन है।
➖ऋग्वेद में केवल यव (जौ) नामक अनाज का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के चौथे मंडल में कृषि का वर्णन है।
➖परवर्ती वैदिक साहित्यों में ही अन्य अनाजों जैसे- गोधूम(गेंहू), ब्रीही (चावल) आदि की चर्चा की गई है।
➖काठक संहिता में 24 बैलों द्वारा हल खींचे जाने का, अथर्ववेद में वर्षा, कूप एवं नाहर का तथा यजुर्वेद में हल का ' सीर ' के नाम से उल्लेख है। उस काल में कृत्रिम सिंचाई की व्यवस्था भी थी।
⭕पशुपालन
➖पशुओं का चारण ही उनकी आजीविका का प्रमुख साधन था।
➖गाय ही विनिमय का प्रमुख साधन थी।
➖ ऋग्वैदिक काल में भूमिदान या व्यक्तिगत भू-स्वामित्व की धारणा विकसित नही हुई थी।
⭕व्यापार
➖आरम्भ में अत्यन्त सीमित व्यापार प्रथा का प्रचलन था। व्यापार विनिमय पद्धति पर आधारित था।
➖समाज का एक वर्ग 'पाणी' व्यापार किया करते थे। राजा को नियमित कर देने या भू-राजस्व देने की प्रथा नहीं थी।
➖ राजा को स्वेच्छा से भाग या नजराना दिया जाता था। पराजित कबीला भी विजयी राजा को भेंट देता था। अपने धन को राजा अपने अन्य साथियों के बीच बांटता था।
➖धातु एवं सिक्के : ऋग्वेद में उल्लेखित धातुओं में सर्वप्रथम धातू, अयस (ताँबा या कांसा) था। वे सोना (हिरव्य या स्वर्ण) एवं चांदी से भी परिचित थे। लेकिन ऋग्वेद में लोहे का उल्लेख नहीं है।
➖ ' निष्क ' संभवतः सोने का आभूषण या मुद्रा था जो विनिमय के काम में भी आता था।
➖उद्योग : ऋग्वैदिक काल के उद्योग घरेलु जरूरतों के पूर्ति हेतु थे। बढ़ई एवं धूकर का कार्य अत्यन्त महत्वपूर्व था।
➖ अन्य प्रमुख उद्योग वस्त्र, बर्तन, लकड़ी एवं चर्म कार्य था। स्त्रियाँ भी चटाई बनने का कार्य करतीं थीं।
⭕धार्मिक स्थिति
➖आर्य एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे।
यहाँ प्राकृतिक मानव के हित के लिये ईश्वर से कामना की जाती थी। वे मुख्य रूप से केवळ बर्ह्मान्ड के धारण करने वाळे एकमात्र परमपिता परमेश्वर के पूजक थे।
➖वैदिक धर्म पुरूष प्रधान धर्म था। आरम्भ में स्वर्ग या अमरत्व की परिकल्पना नहीं थी।
➖वैदिक धर्म पुरोहितों से नियंत्रित धर्म था। पुरोहित ईश्वर एवं मानव के बीच मध्यस्थ था।
➖वैदिक देवताओं का स्वरुप महिमामंडित मानवों का है। ऋग्वेद में 33 प्रकार के तत्वों (दिव्य गुणो से युक्त पदार्थो) का उल्लेख है।
➖ऋग्वेद का यह काल विंटरनित्य ने निर्धारित किया
गुरुकुल ...एक कदम सफलता की और
https://www.facebook.com/Gurukul-GK-Word-Kotputli-195350767296787/
Like करो इस पेज को
Comments
Post a Comment