जलवायु राजस्थान

राजस्थान की जलवायु(climate,)

:★महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली★:

🔰परिभाषा 

➖किसी भी भू भाग अथवा स्थान पर लम्बी अवधि के दौरान विभिन्न समयो में विभिन्न मौसम की औसत अवस्था उस भू भाग जलवायु है अर्थात तापमान ,आर्द्रता, वर्षा ,वायुदाब आदि मौसमी दशाओं के लंबे समय तक बने रहने को जलवायु कहते हैं

➖राजस्थान की जलवायु शुष्क से उपआर्द्र मानसूनी जलवायु है अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर निम्न आर्द्रता तथा तीव्रहवाओं युक्त जलवायु है। दुसरी और अरावली के पुर्व में अर्द्रशुष्क एवं उपआर्द्र जलवायु है।

➖जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक -
👉अक्षांशीय स्थिती,
👉समुद्रतल से दुरी,
👉समुद्र तल से ऊंचाई,
👉अरावली पर्वत श्रेणियों कि स्थिति एवं दिशा आदि

➖राजस्थान की जलवायु कि प्रमुख विशेषताएं -
1.शुष्क एवं आर्द्र जलवायु कि प्रधानता
2.अपर्याप्त एंव अनिश्चित वर्षा
3.वर्षा का अनायस वितरण
4.अधिकांश वर्षा जुन से सितम्बर तक
5.वर्षा की परिर्वतनशीलता एवं न्यूनता के कारण सुखा एवं अकाल कि स्थिती अधिक होना।

➖राजस्थान कर्क रेखा के उत्तर दिशा में स्थित है। अतः राज्य उपोष्ण कटिबंध में स्थित है। केवल डुंगरपुर और बांसवाड़ा जिले का कुछ हिस्सा उष्ण कटिबंध में स्थित है।

➖अरावली पर्वत श्रेणीयों ने जलवायु कि दृष्टि से राजस्थान को दो भागों में विभक्त कर दिया है।

➖अरावली पर्वत श्रेणीयां मानसुनी हवाओं के चलने कि दिशाओं के अनुरूप होने के कारण मार्ग में बाधक नहीं बन पाती अतः मानसुनी पवनें सीधी निकल जाति है और वर्षा नहीं करा पाती। इस प्रकार पश्चिमी क्षेत्र अरावली का दृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण अल्प वर्षा प्राप्त करताह है।

➖जब कर्क रेखा पर सुर्य सीधा चमकता है तो इसकी किरणें बांसवाड़ा पर सीधी व गंगानगर जिले पर तिरछी पड़ती है।

➖ राजस्थान का औसतन वार्षिक तापमान 37 डिग्री से 38 डिग्री सेंटीग्रेड है।

🔰राजस्थान को जलवायु की दृष्टि से पांच भागों में बांटा है।
1.शुष्क जलवायु प्रदेश(0-20 सेमी.)
2.अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश(20-40 सेमी.)
3.उपआर्द्र जलवायु प्रदेश(40-60 सेमी.)
4.आर्द्र जलवायु प्रदेश(60-80 सेमी.)
5.अति आर्द्र जलवायु प्रदेश(80-100 सेमी.)


1. शुष्क प्रदेश

क्षेत्र - जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर, दक्षिणी गंगानगर तथा बीकानेर व जोधपुर का पश्चिमी भाग। औसत वर्षा - 0-20 सेमी.।

इन सभी क्षेत्रों के मरुस्थलीय होने के कारण कम वर्षा तथा गर्मी अधिक पड़ती है।

वर्षा की मात्रा 10 से 20 सेंटीमीटर होती है

 शीतकाल में यहां तापमान 11 डिग्री सेल्सियस तथा दैनिक तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।

2. अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - चुरू, गंगानगर, हनुमानगढ़, द. बाड़मेर, जोधपुर व बीकानेर का पूर्वी भाग तथा पाली, जालौर, सीकर,नागौर व झुझुनू का पश्चिमी भाग।

औसत वर्षा - 20-40 सेमी.।

वर्षा की अनिश्चितता अनियमितता एवं तूफानी तथा वर्षा की मात्रा 20 से 40 सेंटीमीटर होती है

ग्रीष्म ऋतु का तापमान 32 सेंटीमीटर से 36 सेंटीमीटर आदि

प्रदेश की विशेषताएं इस क्षेत्र के अंतर्गत  वनस्पति विकास एवं कंटीली झाड़ियां प्रमुख है।

घग्घर का मैदान, शेखावटी प्रदेश, लूणी बेसिन आदि

 3. उपआर्द्ध जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - अलवर, जयपुर, अजमेर, पाली, जालौर, नागौर व झुझुनू का पूर्वी भाग तथा टोंक, भीलवाड़ा व सिरोही का उत्तरी-पश्चिमी भाग।

औसत वर्षा - 40-60 सेमी.

ग्रीष्म ऋतु का तापमान 27 डिग्री सेंटीमीटर से 34 डिग्री सेंटीमीटर तक तथा शीत ऋतु में 18 डिग्री सेंटीमीटर से दक्षिण क्षेत्र में एवं उत्तरी क्षेत्र में 12 सेंटीमीटर रहता है

यहां की वनस्पति सघन, विरल प्रकार की है।

 4. आर्द्र जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - भरतपुर, धौलपुर, कोटा, बुंदी, सवाईमाधोपुर, उ.पू. उदयपुर, द.पू. टोंक तथा चित्तौड़गढ़।

औसत वर्षा - 60-80 सेमी.

गर्मियों का औसत तापमान 32 डिग्री सेंटीमीटर से 34 डिग्री सेंटीमीटर एवं शीतकाल में 14 डिग्री सेंटीमीटर से 17 डिग्री सेंटीमीटर तक जाती है

 5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - द.पू. कोटा, बारां, झालावाड़, बांसवाडा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, द.पू. उदयपुर तथा माउण्ट आबू क्षेत्र।

औसत वर्षा - 60-80 सेमी.

इस क्षेत्र में वर्षा 80 से अधिक सेंटीमीटर तक होती है। अतः यहां की वनस्पति सघन एवं सदाबहार है।

⭕डा.ब्लादीमीर कोपेन, ट्रिवार्था, थार्नेवेट के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार राजस्थान को 4 जलवायु प्रदेशों में बांटा गया।

1.Aw उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश
2.BShw अर्द्ध शुष्क कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश
3.BWhw उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश
4.Cwgउप आर्द्र जलवायु प्रदेश

 ⭕कोपेन के अनुसार राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण- 1918 में कोपेन ने राज्य की जलवायु को चार भागों में बांटा-

🔖(Aw) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश-

डूंगरपुर के दक्षिण में तथा बांसवाड़ा जिला।कर्क रेखा पर स्थित

🔖(BShw) अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश

बाड़मेर, नागौर, चुरू, जालौर, जोधपुर तथा दक्षिण -पूर्वी गंगानगर आदि क्षेत्र

तापमान 32-50 सितकाल में 50° ग्रीष्म काल मे

🔖(BWhw) शुष्क उष्ण मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश-

उत्तरी-पश्चिमी जोधपुर, जैसलमेर, पश्चिमी बीकानेर तथा गंगानगर।

🔖(Cwg) शुष्क शीत जलवायु प्रदेश- अरावली पर्वत के दक्षिणी – पूर्वी तथा पूर्वी भाग (हाड़ौती,मेवात एवं डांग क्षेत्र)।

🔰राजस्थान को कृषि की दृष्टि से निम्न लिखित दस जलवायु प्रदेशों में बांटा गया है।

1.शुष्क पश्चिमी मैदानी
2.सिंचित उत्तरी पश्चिमी मैदानी
3.शुष्क आंशिक सिंचित पश्चिमी मैदानी
4.अंन्त प्रवाही
5.लुनी बेसिन
6.पूर्वी मैदानी(भरतपुर, धौलपुर, करौली जिले)
7.अर्द्र शुष्क जलवायु प्रदेश
8.उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
9.आर्द्र जलवायु प्रदेश
10.अति आर्द्र जलवायु प्रदेश

🔰थार्नवेट

➖CAW ग्रीष्म में वर्षा दक्षिण पूर्व राजस्थान

➖DAW ग्रीष्मकाल में उच्च तापमान अर्ध मरुस्थली

➖ DBw शीतकाल में कुछ उत्तरी राजस्थान

➖EAD पश्चिमी राजस्थान

 🔰टीवार्र्थ

➖AW उष्ण आद्र जलवायु दक्षिण पूर्वी राजस्थान में

➖ BSH उष्ण व अर्ध शुष्क मध्य पश्चिमी राजस्थान में

➖BWH उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश

➖CAW अर्द्ध उष्ण पूर्व राजस्थान में

🔰 मुख्य बाते

➖राजस्थान के सबसे गर्म महिने मई - जुन है तथा ठण्डे महिने दिसम्बर - जनवरी है।

➖राजस्थान का सबसे गर्म व ठण्डा जिला - चुरू

➖राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर पश्चिमी क्षेत्र में रहता है।

➖राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर वाला जिला -जैसलमेर

➖राजस्थान में वर्षा का औसत 57 सेमी. है जिसका वितरण 10 से 100 सेमी. के बीच होता है।

➖वर्षा का असमान वितरण अपर्याप्त और अनिश्चित मात्रा हि राजस्थान में हर वर्ष सुखे व अकाल का कारण बनती है।

➖राजस्थान में वर्षा की मात्रा दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर घटती है।

➖अरब सागरीय मानसुन हवाओं से राज्य के दक्षिण व दक्षिण पूर्वी जिलों में पर्याप्त वर्षा हो जाती है।

➖राज्य में होने वाली वर्षा की कुल मात्रा का 34 प्रतिशत जुलाई माह में, 33 प्रतिशत अगस्त माह में होती है।

➖जिला स्तर पर सर्वाधिक वर्षा - झालावाड़(100 सेमी.)

➖जिला स्तर पर न्यूनतम वर्षा - जैसलमेर(10 सेमी.)

➖राजस्थान में वर्षा होने वाले दिनों की औसत संख्या 29 है।

➖वर्षा के दिनों की सर्वाधिक संख्या - झालावाड़(40 दिन), बांसवाड़ा(38 दिन)

➖वर्षा के दिनों की न्यूनतम संख्या - जैसलमेेर(5 दिन)

➖राजस्थान का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान - माउण्ट आबु(120-140 सेमी.) है यहीं पर वर्षा के सर्वाधिक दिन(48 दिन) मिलते हैं।

➖वर्षा के दिनों की संख्या उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर बढ़ती है।

➖राजस्थान में सबसे कम आर्द्रता - अप्रैल माह में

➖राजस्थान मे सबसे अधिक आर्द्रता - अगस्त माह में

➖राजस्थान में सबसे सम तापमान - अक्टुबर माह में रहता है।

➖सबसे कम वर्षा वाला स्थान - सम(जैसलमेर) 5 सेमी.

➖राजस्थान को 50 सेमी. रेखा दो भागों में बांटती है। 50 सेमी. वर्षा रेखा की उत्तर-पश्चिम में कम होती है। जबकि दक्षिण पूर्व में वर्षा अधिक होती है।

➖यह 50 सेमी. मानक रेखा अरावली पर्वत माला को माना जाता है।

➖राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला जिला झालावाड़ तथा न्यूनतम जिला जैसलमेर है। राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला स्थान माउण्ट आबू तथा कम आर्द्रता फलौदी(जोधपुर) है।

➖राजस्थान में सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला महिना मार्च-अप्रैल है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में होती है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला जिला जयपुर है।

➖राजस्थान में हवाऐं पाय पश्चिम व दक्षिण पश्चिम की ओर चलती है।

➖हवाओं की सर्वाधिक गति - जून माह

➖हवाओं की मंद गति - नवम्बर माह

➖ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम क्षेत्र क्षेत्र का वायुदाब पूर्वी क्षेत्र से कम होता है।

➖ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम की तरफ से गर्म हवाऐं चलती है जिन्हें लू कहते है। इस लू के कारण यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस निम्न वायुदाब की पूर्ती हेतु दुसरे क्षेत्र से (उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से) तेजी से हवा उठकर आती है जो अपने साथ धुल व मिट्टी उठाकर ले आती है इसे ही आंधी कहते हैं।

➖आंधियों की सर्वाधिक संख्या - श्रीगंगानगर(27 दिन)

➖आंधियों की न्यूनतम संख्या - झालावाड़ (3 दिन)

➖राजस्थान के उत्तरी भागों में धुल भरी आधियां जुन माह में और दक्षिणी भागों में मई माह में आति है।

➖राजस्थान में पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में तुफान(आंधी + वर्षा) अधिक आते है।

🔰आर्द्रता

वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते है। आपेक्षिक आर्द्रता मार्च-अप्रैल में सबसे कम व जुलाई-अगस्त में सर्वाधिक होती है।

🔰लू
मरूस्थलीय भाग में चलने वाली शुष्क व अति गर्म हवाएं लू कहलाती है।

समुद्र तल से ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है। इसके घटने की यह सामान्य दर 165 मी. की ऊंचाई पर 1 डिग्री से.ग्रे. है।

⭕राजस्थान में जलवायु का अध्ययन करने पर तीन प्रकार की ऋतुएं पाई जाती हैः-

ग्रीष्म ऋतु: (मार्च से मध्य जून तक)
वर्षा ऋतु : (मध्य जून से सितम्बर तक)
शीत ऋतु : (नवम्बर से फरवरी तक)

🔰ग्रीष्म ऋतु

➖राजस्थान में मार्च से मध्य जून तक ग्रीष्म ऋतु होती है। इसमें मई व जून के महीने में सर्वाधिक गर्मी पड़ती है।

➖अधिक गर्मी के वायु मे नमी समाप्त हो जाती है। परिणाम स्वरूप वायु हल्की होकर उपर चली जाती है। अतः राजस्थान में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है परिणामस्वरूप उच्च वायुदाब से वायु निम्न वायुदाब की और तेजगति से आती है इससे गर्मियों में आंधियों का प्रवाह बना रहता है।

➖सबसे अधिक गर्मी मई और जून महीने में पड़ती है इस अवधि में यहां का तापमान विशेषकर पश्चिम भाग का 45 डिग्री सेल्सियस से 51 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।

➖मार्च में सूर्य के उत्तरायण आने पर तापमान में वृद्धि होने लगती है।

➖अप्रैल में हवाएँ पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं हवाएँ चूँकि गर्म थार मरुस्थल को पार करती हुई आती है, अत: शुष्क एवं गर्म होती है। अप्रैल और मई के महीनों में सूर्य लगभग लंबवत् चमकता है। जिस कारण दिन के तापमान में वृद्धि होती है।

➖राजस्थान के पश्चिमी भागों में मुख्य रुप से बीकानेर, जैसलमेर, फलौदी और बाड़मेर में अधिकतम दैनिक तापमान इन महीनों में 40 डिग्री से० से 45 डिग्री से० तक चला जाता है।

➖गंगानगर में उच्चतम तापमान 50  डिग्री से० तक पहुँच जाता है।

➖ जोधपुर, बीकानेर, बाडमेर में तापमान 49 डिग्री से०, जयपुर और कोटा में 48 डिग्री तक पहुँच जाता है दिन के समय उच्च तापक्रम मौसम को अति कष्टकर बना देतें हैं।

➖संपूर्ण राजस्थान में दोपहर के समय लू (तेज गर्म हवाएँ) व रेत की आंधियाँ चलती है किन्तु पश्चिमी व उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थली भागों में ये आंधियाँ भयंकर होती है।

🔰वर्षा ऋतु

राजस्थान में मध्य जून से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है।

राजस्थान में 3 प्रकार के मानसूनों से वर्षा होती है।

1. बंगाल की खाड़ी का मानसून

यह मानसून राजस्थान में पूर्वी दिशा से प्रवेश करता है। पूर्वी दिशा से प्रवेश करने के कारण मानसूनी हवाओं को पूरवइयां के नाम से जाना जाता है यह मानसून राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा करवाता है इस मानसून से राजस्थान के उत्तरी, उत्तरी-पूर्वी, दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों में वर्षा होती है।

2. अरब सागर का मानसून

यह मानसून राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है यह मानसून राजस्थान में अधिक वर्षा नहीं कर पाता क्योंकि यह अरावली पर्वतमाला के समान्तर निकल जाता है। राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व कि ओर है यदि राज्य में अरावली का विस्तार उत्तरी-पश्चिमी से दक्षिणी-पूर्व कि ओर होता तो राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र में वर्षा होती।

राजस्थान में सर्वप्रथम अरबसागर का मानसून प्रवेश करता है

3. भूमध्यसागरीय मानसून

यह मानसून राजस्थान में पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है। पश्चिमी दिशा से प्रवेश करने के कारण इस मानसून को पश्चिमी विक्षोभों का मानसून के उपनाम से जाना जाता है। इस मानसून से राजस्थान में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में वर्षा होती है। यह मानसून मुख्यतः सर्दीयों में वर्षा करता है सर्दियों में होने वाली वर्षा को स्थानीय भाषा में मावठ कहते हैं यह वर्षा गेहुं की फसल के लिए सर्वाधिक लाभदायक होती है। इन वर्षा कि बूदों को गोल्डन ड्रोप्स या सोने कि बुंद के उप नाम से जाना जाता है।

➖राजस्थान में वर्षा ऋतु जून से अक्टूबर के प्रथम तक रहता है

➖ राज्य में दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं से वर्षा होती ह

➖राजस्थान में वर्षा ॠतु जून से मध्य सितंबर तक रहती है।

➖यहां वर्षा लगभग नही के बराबर होती है।

➖इस भाग में बंगाल की खाड़ी से आने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं से औसत वर्षा 12 से 15 से०मी० तक हो जाती है।

➖अरब सागर से उठने वाला मानसून मालवा के पठार तक ही वर्षा कर पाता है।

➖इसके उत्तर में यह अरावली पर्वत के समान्तर उत्तर की ओर बढ़ जाती है। अरावली के पूर्व में वर्षा का औसत 80 से०मी० तक पाया जाता है। जबकि पश्चिम भागों में यह औसत 25 से०मी० से भी कम होता है।

➖दक्षिणी राजस्थान की स्थिति वर्षा करने वाली हवाओं के अनुकूल है जिसके कारण आबू पर्वत में राजस्थान की सर्वाधिक वर्षा 150 से०मी० तक अंकित की जाती है।

➖भारत-पाक सीमा के क्षेत्रों में वर्षा 10 से०मी० तथा जैसलमेर में लगभग 21 से०मी० होती है। राजस्थान में अधिकांश वर्षा जुलाई और अगस्त महीनों में ही होती है।

➖दक्षिणी पश्चिमी मानसून हिंद महासागर से उत्पन्न हो कर दो शाखाओं में बंगाल की खाड़ी की शाखा एवं अरब सागर की शाखा के रूप में राज्य में प्रवेश करती है

➖राज्य को इस शाखा से केवल 59.9 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इसका कारण अरावली श्रृंखला का दक्षिण पश्चिम विशाखा के समानांतर होना है।

🔰शीत ऋतु

राजस्थान में नम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। इन चार महीनों में जनवरी माह में सर्वाधिक सर्दी पड़ती है।शीत ऋतु में भूमध्यसागर में उठने वाले चक्रवातों के कारण राजस्थान के उतरी पश्चिमी भाग में वर्षा होती है। जिसे "मावट/मावठ" कहा जाता है। यह वर्षा माघ महीने में होती है। शीतकालीन वर्षा मावट को - गोल्डन ड्रोप (अमृत बूदे) भी कहा जाता है। यह रवि की फसल के लिए लाभदायक है।

राज्य में हवाएं प्राय पश्चिम और उतर-पश्चिम की ओर चलती है।

➖ जनवरी सबसे ठंडा महीना होता है इस काल में सूर्य की स्थिति उत्तरायण और दक्षिणायन होने लगती है जिसके फलस्वरूप तापमान गिरने लगता है तथा वायु दाब बढ़ने लगता है वर्षा ऋतु में ना के बराबर होती है

➖ राजस्थान में शीत ॠतु का समय अक्तूबर से फरवरी तक रहता है। शीत ॠतु तक धीरे-धीरे तापमान गिरने लगता है तथा संपूर्ण राजस्थान में अक्तूबर के महीने में एक सा तापमान रहता है। इन दिनों में अधिकतम तापमान 30 डिग्री से० से 36 डिग्री से० तक तथा न्युनतम तापमान 17 डिग्री से० से 21  डिग्री से० तक रहता है।

➖नवम्बर के महीने में अपेक्षाकृत अधिक सर्दी रहती है। दिसंबर और जनवरी में कठोर सर्दी पड़ती है। राजस्थान के उत्तरी जिलों में जनवरी का औसत तापमान 12 डिग्री से० से 16 डिग्री से० तक रहता है।

➖आबू पर्वत पर ऊचाई के कारण यहां का तापमान इस समय औसत 8 डिग्री से० रहता है।कश्मीर, हिमाचल प्रदेश आदि क्षेत्रों में हिमपात के कारण शीत लहर आने पर यहां सर्दी बहुत बढ़ जाती है। उत्तरी क्षेत्रों में लहर के कारण तापमान कभी-कभी पाला के साथ हिमांक बिंदु तक पहुँच जाता है।

➖मध्य एशिया उच्च भार के कारण कई बार पछुआ पवनों की एक शाखा पश्चिम दिशा से राजस्थान में प्रवेश करती है तथा इन चक्रवातों के कारण कई बार उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान में आकाश की स्वच्छता मेघाच्छन्न स्थिति में परिवर्तित हो जाती है। इन चक्रवातों से राजस्थान में कभी-कभी वर्षा हो जाती है जिसे 'महावट' कहते हैं। इन चक्रवातों में 5 से 10 से०मी० तक वर्षा होती है।

➖राज्य के गंगानगर, चुरु, बीकानेर, और सीकर जिलों में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। इस ॠतु में सुबह के समय ओस पड़ना तथा प्रात: आठ बजे के बाद तक कोहरा रहना एक समान्य लक्षण है।

 ➖इस काल में सूर्य की स्थिति उत्तरायण और दक्षिणायन होने लगती है जिसके फलस्वरूप तापमान गिरने लगता है तथा वायु दाब बढ़ने लगता है वर्षा ऋतु में ना के बराबर होती है

🔰आंधियों के नाम

➖उत्तर की ओर से आने वाली - उत्तरा, उत्तराद, धरोड, धराऊ

➖दक्षिण की ओर से आने वाली - लकाऊ

➖पूर्व की ओर से आने वाली - पूरवईयां, पूरवाई, पूरवा, आगुणी

➖पश्चिम की ओर से आने वाली - पिछवाई, पच्छऊ, पिछवा, आथूणी।

➖अन्य
उत्तर-पूर्व के मध्य से - संजेरी

➖पूर्व-दक्षिण के मध्य से - चीर/चील

➖दक्षिण-पश्चिम के मध्य से - समंदरी/समुन्द्री

➖उत्तर-पश्चिम के मध्य से - सूर्या

🙏तथ्य
विश्व का सबसे गर्म स्थान - अल-अजीजिया(लिबिया) सहारा मरूस्थल

भारत का सबसे गर्म राज्य - राजस्थान

भारत का सबसे गर्म स्थान - फलौदी(जोधपुर)

राजस्थान का सबसे गर्म जिला - चुरू

राजस्थान का सबसे गर्म स्थान - फलौदी(जोधपुर)

विश्व का सबसे ठण्डा स्थान - बखोयांस(रूस)

भारत का सबसे ठण्डा राज्य - जम्मू-कश्मीर

भारता का सबसे ठण्डा स्थान - लोह(-46)

राजस्थान का सबसे ठण्डा जिला - चुरू

राजस्थान का सबसे ठण्डा स्थान - माउण्ट आबू(सिरोही)

विश्व का सबसे आर्द्र स्थान - मौसिनराम(मेघालय) भारत

भारत का सबसे आर्द्र राज्य - केरल

भारत का सबसे आर्द्र स्थान - मौसिनराम(मेघालय)

राजस्थान का सबसे आर्द्र जिला - झालावाड़

राजस्थान का सबसे आर्द्र स्थान - माउण्ट आबु

विश्व का सबसे वर्षा वाला स्थान - मोसिनराम(मेघालय)

भारत का सबसे वर्षा वाला स्थान - मोसिनराम(मेघालय)

भारत का सबसे वर्षा वाला राज्य - केरल

राजस्थान का सबसे वर्षा वाल स्थान - माउण्ट आबू

राजस्थान का सबसे वर्षा वाला जिला - झालावाड़

विश्व का सबसे शुष्क स्थान - वखौयांस

भारत का सबसे शुष्क राज्य - राजस्थान

भारत का सबसे शुष्क स्थान - लेह(जम्मु-कश्मीर)

राजस्थान का सबसे शुष्क जिला - जैसलमेर

राजस्थान का सबसे शुष्क स्थान - सम(जैसलमेर) और फलौद(जोधपुर)

विश्व में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - बखौयांस

भारत में सबसे कम वर्षा वाला राज्य - पंजाब

भारत में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - लेह

राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला जिला - जैसलमेर

राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - सम(जैसलमेर)

भारत का सर्वाधिक तापान्तर वाला राज्य - राजस्थान

राजस्थान का सर्वाधिक तापान्तर वाला जिला(वार्षिक) - चुरू

राजस्थान का सर्वाधिक तापान्तर वाला जिला(दैनिक) - जैसलमेर

राजस्थान का वनस्पति रहित क्षेत्र - सम(जैसलमेर)

साइबेरिया ठण्डी हवा एवं हिमालय हिमपात के कारण राजस्थान में जो शीत लहर चलती है वह कहलाती है - जाड़ा

गर्मीयों में थार के मरूस्थल में चलने वाली गर्म पवनें - लू

राजस्थान में सर्वाधिक धुल भरी आधियां चलती है - गंगानर में

राजस्थान में पाला - दक्षिणी तथा दक्षिणी पूर्वी भागों में अधिक ठण्ड के कारण पाला पड़ता है।

दक्षिण राजस्थान में तेज हवाओं के साथ जो मुसलाधार वर्षा होती है - चक्रवाती वर्षा

राजस्थान में मानसून का प्रवेश द्वार - झालावाड़ और बांसवाड़ा

राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा की विषमता वाला जिला - बाड़मेर और जैसलमेर

राजस्थान में वर्षा की सबसे कम विषमता वाला जिला -बांसवाड़ा

21 जून को राजस्थान के किस जिले में सूर्य की किरणे सीधी पड़ती है

22 दिसम्बर को राजस्थान के किस जिले को सुर्य की किरणें तीरछी पड़ती है - श्री गंगानगर

राजस्थान की जलवायु है - उपोष्ण कटिबंधीय

🔰महत्वपुर्ण तथ्य

🔖नाॅर्वेस्टर - छोटा नागपुर का पठार पर ग्रीष्म काल में चलने वाली पवनें नाॅर्वेस्टर कहलाती है। यह बिहार एवं झारखण्ड राज्य को प्रभावित करती है।

जब नाॅर्वेस्टर पवनें पूर्व की ओर आगे बढ़ कर पश्चिम बंगाल राज्य में पहुंचती है तो इन्हें काल वैशाली कहा जाता है। तथा जब यही पवनें पूर्व की ओर आगे पहुंच कर असम राज्य में पहुंचती है तो यहां 50 सेमी. वर्षा होती है। यह वर्षा चाय की खेती के लिए अत्यंत उपयोगी होती है इसलिए इसे चाय वर्षा या टी. शावर कहा जाता है।

🔖मैंगो शावर - तमिलनाडू, केरल एवम् आन्ध्रप्रदेश राज्यों में मानसुन पूर्व जो वर्षा होती है जिससे यहां की आम की फसलें पकती है वह वर्षा मैंगो शाॅवर कहलाती है।

🔖चैरी ब्लाॅस्म - कर्नाटक राज्य में मानसून पूर्व जो वर्षा होती है जो कि यहां की कहवा की फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है चैरी ब्लाॅस्म या फुलों की बौछार कहलाती है।

🔖मानसून की विभंगता - मानसून के द्वारा किसी एक स्थान पर वर्षा हो जाने तथा उसी स्थान पर होने वाली अगली वर्षा के मध्य का समय अनिश्चित होता है उसे ही मानसून की विभंगता कहा जाता है।

🔖मानसून का फटना - दक्षिण भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान केरल के मालाबार तट पर तेज हवाओं एवम् बिजली की चमक के साथ बादल की तेज गर्जना के साथ जो मानसून की प्रथम मुसलाधार वर्षा होती है उसे मानसून का फटना कहा जाता है।

🔖वृष्टि प्रदेश एवं वृष्टि छाया प्रदेश
चित्र

🔖अल-नीनो - यह एक मर्ग जल धारा है जो कि दक्षिण अमेरिका महाद्विप के पश्चिम में प्रशान्त महासागर में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान सक्रिय होती है इससे भारतीय मानसून कमजोर पड़ जाता है। और भारत एवम् पड़ौसी देशों में अल्पवृष्टि एवम् सुखा की स्थिति पैदा हो जाती है।

🔖ला-नीनो - यह एक ठण्डी जल धारा है जो कि आस्टेलिया यह महाद्वीप के उत्तर-पूर्व में अल-नीनों के विपरित उत्पन्न होती है इससे भारतीय मानसून की शक्ति बढ़ जाती है और भारत तथा पड़ौसी देशों में अतिवृष्टि की स्थिति पैदा हो जाती है।

गुरुकुल एक कदम सफलता की और

:★महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली★:

🔰परिभाषा 

➖किसी भी भू भाग अथवा स्थान पर लम्बी अवधि के दौरान विभिन्न समयो में विभिन्न मौसम की औसत अवस्था उस भू भाग जलवायु है अर्थात तापमान ,आर्द्रता, वर्षा ,वायुदाब आदि मौसमी दशाओं के लंबे समय तक बने रहने को जलवायु कहते हैं

➖राजस्थान की जलवायु शुष्क से उपआर्द्र मानसूनी जलवायु है अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर निम्न आर्द्रता तथा तीव्रहवाओं युक्त जलवायु है। दुसरी और अरावली के पुर्व में अर्द्रशुष्क एवं उपआर्द्र जलवायु है।

➖जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक -
👉अक्षांशीय स्थिती,
👉समुद्रतल से दुरी,
👉समुद्र तल से ऊंचाई,
👉अरावली पर्वत श्रेणियों कि स्थिति एवं दिशा आदि

➖राजस्थान की जलवायु कि प्रमुख विशेषताएं -
1.शुष्क एवं आर्द्र जलवायु कि प्रधानता
2.अपर्याप्त एंव अनिश्चित वर्षा
3.वर्षा का अनायस वितरण
4.अधिकांश वर्षा जुन से सितम्बर तक
5.वर्षा की परिर्वतनशीलता एवं न्यूनता के कारण सुखा एवं अकाल कि स्थिती अधिक होना।

➖राजस्थान कर्क रेखा के उत्तर दिशा में स्थित है। अतः राज्य उपोष्ण कटिबंध में स्थित है। केवल डुंगरपुर और बांसवाड़ा जिले का कुछ हिस्सा उष्ण कटिबंध में स्थित है।

➖अरावली पर्वत श्रेणीयों ने जलवायु कि दृष्टि से राजस्थान को दो भागों में विभक्त कर दिया है।

➖अरावली पर्वत श्रेणीयां मानसुनी हवाओं के चलने कि दिशाओं के अनुरूप होने के कारण मार्ग में बाधक नहीं बन पाती अतः मानसुनी पवनें सीधी निकल जाति है और वर्षा नहीं करा पाती। इस प्रकार पश्चिमी क्षेत्र अरावली का दृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण अल्प वर्षा प्राप्त करताह है।

➖जब कर्क रेखा पर सुर्य सीधा चमकता है तो इसकी किरणें बांसवाड़ा पर सीधी व गंगानगर जिले पर तिरछी पड़ती है।

➖ राजस्थान का औसतन वार्षिक तापमान 37 डिग्री से 38 डिग्री सेंटीग्रेड है।

🔰राजस्थान को जलवायु की दृष्टि से पांच भागों में बांटा है।
1.शुष्क जलवायु प्रदेश(0-20 सेमी.)
2.अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश(20-40 सेमी.)
3.उपआर्द्र जलवायु प्रदेश(40-60 सेमी.)
4.आर्द्र जलवायु प्रदेश(60-80 सेमी.)
5.अति आर्द्र जलवायु प्रदेश(80-100 सेमी.)

1. शुष्क प्रदेश

क्षेत्र - जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर, दक्षिणी गंगानगर तथा बीकानेर व जोधपुर का पश्चिमी भाग। औसत वर्षा - 0-20 सेमी.।

इन सभी क्षेत्रों के मरुस्थलीय होने के कारण कम वर्षा तथा गर्मी अधिक पड़ती है।

वर्षा की मात्रा 10 से 20 सेंटीमीटर होती है

 शीतकाल में यहां तापमान 11 डिग्री सेल्सियस तथा दैनिक तापमान 34 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।

2. अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - चुरू, गंगानगर, हनुमानगढ़, द. बाड़मेर, जोधपुर व बीकानेर का पूर्वी भाग तथा पाली, जालौर, सीकर,नागौर व झुझुनू का पश्चिमी भाग।

औसत वर्षा - 20-40 सेमी.।

वर्षा की अनिश्चितता अनियमितता एवं तूफानी तथा वर्षा की मात्रा 20 से 40 सेंटीमीटर होती है

ग्रीष्म ऋतु का तापमान 32 सेंटीमीटर से 36 सेंटीमीटर आदि

प्रदेश की विशेषताएं इस क्षेत्र के अंतर्गत  वनस्पति विकास एवं कंटीली झाड़ियां प्रमुख है।

घग्घर का मैदान, शेखावटी प्रदेश, लूणी बेसिन आदि

 3. उपआर्द्ध जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - अलवर, जयपुर, अजमेर, पाली, जालौर, नागौर व झुझुनू का पूर्वी भाग तथा टोंक, भीलवाड़ा व सिरोही का उत्तरी-पश्चिमी भाग।

औसत वर्षा - 40-60 सेमी.

ग्रीष्म ऋतु का तापमान 27 डिग्री सेंटीमीटर से 34 डिग्री सेंटीमीटर तक तथा शीत ऋतु में 18 डिग्री सेंटीमीटर से दक्षिण क्षेत्र में एवं उत्तरी क्षेत्र में 12 सेंटीमीटर रहता है

यहां की वनस्पति सघन, विरल प्रकार की है।

 4. आर्द्र जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - भरतपुर, धौलपुर, कोटा, बुंदी, सवाईमाधोपुर, उ.पू. उदयपुर, द.पू. टोंक तथा चित्तौड़गढ़।

औसत वर्षा - 60-80 सेमी.

गर्मियों का औसत तापमान 32 डिग्री सेंटीमीटर से 34 डिग्री सेंटीमीटर एवं शीतकाल में 14 डिग्री सेंटीमीटर से 17 डिग्री सेंटीमीटर तक जाती है

 5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश

क्षेत्र - द.पू. कोटा, बारां, झालावाड़, बांसवाडा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, द.पू. उदयपुर तथा माउण्ट आबू क्षेत्र।

औसत वर्षा - 60-80 सेमी.

इस क्षेत्र में वर्षा 80 से अधिक सेंटीमीटर तक होती है। अतः यहां की वनस्पति सघन एवं सदाबहार है।

⭕डा.ब्लादीमीर कोपेन, ट्रिवार्था, थार्नेवेट के जलवायु वर्गीकरण के अनुसार राजस्थान को 4 जलवायु प्रदेशों में बांटा गया।

1.Aw उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश
2.BShw अर्द्ध शुष्क कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश
3.BWhw उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश
4.Cwgउप आर्द्र जलवायु प्रदेश

 ⭕कोपेन के अनुसार राजस्थान की जलवायु का वर्गीकरण- 1918 में कोपेन ने राज्य की जलवायु को चार भागों में बांटा-

🔖(Aw) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश-

डूंगरपुर के दक्षिण में तथा बांसवाड़ा जिला।कर्क रेखा पर स्थित

🔖(BShw) अर्द्ध शुष्क जलवायु प्रदेश

बाड़मेर, नागौर, चुरू, जालौर, जोधपुर तथा दक्षिण -पूर्वी गंगानगर आदि क्षेत्र

तापमान 32-50 सितकाल में 50° ग्रीष्म काल मे

🔖(BWhw) शुष्क उष्ण मरुस्थलीय जलवायु प्रदेश-

उत्तरी-पश्चिमी जोधपुर, जैसलमेर, पश्चिमी बीकानेर तथा गंगानगर।

🔖(Cwg) शुष्क शीत जलवायु प्रदेश- अरावली पर्वत के दक्षिणी – पूर्वी तथा पूर्वी भाग (हाड़ौती,मेवात एवं डांग क्षेत्र)।

🔰राजस्थान को कृषि की दृष्टि से निम्न लिखित दस जलवायु प्रदेशों में बांटा गया है।

1.शुष्क पश्चिमी मैदानी
2.सिंचित उत्तरी पश्चिमी मैदानी
3.शुष्क आंशिक सिंचित पश्चिमी मैदानी
4.अंन्त प्रवाही
5.लुनी बेसिन
6.पूर्वी मैदानी(भरतपुर, धौलपुर, करौली जिले)
7.अर्द्र शुष्क जलवायु प्रदेश
8.उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
9.आर्द्र जलवायु प्रदेश
10.अति आर्द्र जलवायु प्रदेश

🔰थार्नवेट

➖CAW ग्रीष्म में वर्षा दक्षिण पूर्व राजस्थान

➖DAW ग्रीष्मकाल में उच्च तापमान अर्ध मरुस्थली

➖ DBw शीतकाल में कुछ उत्तरी राजस्थान

➖EAD पश्चिमी राजस्थान

 🔰टीवार्र्थ

➖AW उष्ण आद्र जलवायु दक्षिण पूर्वी राजस्थान में

➖ BSH उष्ण व अर्ध शुष्क मध्य पश्चिमी राजस्थान में

➖BWH उष्ण मरुस्थलीय प्रदेश

➖CAW अर्द्ध उष्ण पूर्व राजस्थान में

🔰 मुख्य बाते

➖राजस्थान के सबसे गर्म महिने मई - जुन है तथा ठण्डे महिने दिसम्बर - जनवरी है।

➖राजस्थान का सबसे गर्म व ठण्डा जिला - चुरू

➖राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर पश्चिमी क्षेत्र में रहता है।

➖राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर वाला जिला -जैसलमेर

➖राजस्थान में वर्षा का औसत 57 सेमी. है जिसका वितरण 10 से 100 सेमी. के बीच होता है।

➖वर्षा का असमान वितरण अपर्याप्त और अनिश्चित मात्रा हि राजस्थान में हर वर्ष सुखे व अकाल का कारण बनती है।

➖राजस्थान में वर्षा की मात्रा दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर घटती है।

➖अरब सागरीय मानसुन हवाओं से राज्य के दक्षिण व दक्षिण पूर्वी जिलों में पर्याप्त वर्षा हो जाती है।

➖राज्य में होने वाली वर्षा की कुल मात्रा का 34 प्रतिशत जुलाई माह में, 33 प्रतिशत अगस्त माह में होती है।

➖जिला स्तर पर सर्वाधिक वर्षा - झालावाड़(100 सेमी.)

➖जिला स्तर पर न्यूनतम वर्षा - जैसलमेर(10 सेमी.)

➖राजस्थान में वर्षा होने वाले दिनों की औसत संख्या 29 है।

➖वर्षा के दिनों की सर्वाधिक संख्या - झालावाड़(40 दिन), बांसवाड़ा(38 दिन)

➖वर्षा के दिनों की न्यूनतम संख्या - जैसलमेेर(5 दिन)

➖राजस्थान का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान - माउण्ट आबु(120-140 सेमी.) है यहीं पर वर्षा के सर्वाधिक दिन(48 दिन) मिलते हैं।

➖वर्षा के दिनों की संख्या उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर बढ़ती है।

➖राजस्थान में सबसे कम आर्द्रता - अप्रैल माह में

➖राजस्थान मे सबसे अधिक आर्द्रता - अगस्त माह में

➖राजस्थान में सबसे सम तापमान - अक्टुबर माह में रहता है।

➖सबसे कम वर्षा वाला स्थान - सम(जैसलमेर) 5 सेमी.

➖राजस्थान को 50 सेमी. रेखा दो भागों में बांटती है। 50 सेमी. वर्षा रेखा की उत्तर-पश्चिम में कम होती है। जबकि दक्षिण पूर्व में वर्षा अधिक होती है।

➖यह 50 सेमी. मानक रेखा अरावली पर्वत माला को माना जाता है।

➖राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला जिला झालावाड़ तथा न्यूनतम जिला जैसलमेर है। राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला स्थान माउण्ट आबू तथा कम आर्द्रता फलौदी(जोधपुर) है।

➖राजस्थान में सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला महिना मार्च-अप्रैल है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में होती है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला जिला जयपुर है।

➖राजस्थान में हवाऐं पाय पश्चिम व दक्षिण पश्चिम की ओर चलती है।

➖हवाओं की सर्वाधिक गति - जून माह

➖हवाओं की मंद गति - नवम्बर माह

➖ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम क्षेत्र क्षेत्र का वायुदाब पूर्वी क्षेत्र से कम होता है।

➖ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम की तरफ से गर्म हवाऐं चलती है जिन्हें लू कहते है। इस लू के कारण यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस निम्न वायुदाब की पूर्ती हेतु दुसरे क्षेत्र से (उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से) तेजी से हवा उठकर आती है जो अपने साथ धुल व मिट्टी उठाकर ले आती है इसे ही आंधी कहते हैं।

➖आंधियों की सर्वाधिक संख्या - श्रीगंगानगर(27 दिन)

➖आंधियों की न्यूनतम संख्या - झालावाड़ (3 दिन)

➖राजस्थान के उत्तरी भागों में धुल भरी आधियां जुन माह में और दक्षिणी भागों में मई माह में आति है।

➖राजस्थान में पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में तुफान(आंधी + वर्षा) अधिक आते है।

🔰आर्द्रता

वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते है। आपेक्षिक आर्द्रता मार्च-अप्रैल में सबसे कम व जुलाई-अगस्त में सर्वाधिक होती है।

🔰लू
मरूस्थलीय भाग में चलने वाली शुष्क व अति गर्म हवाएं लू कहलाती है।

समुद्र तल से ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है। इसके घटने की यह सामान्य दर 165 मी. की ऊंचाई पर 1 डिग्री से.ग्रे. है।

⭕राजस्थान में जलवायु का अध्ययन करने पर तीन प्रकार की ऋतुएं पाई जाती हैः-

ग्रीष्म ऋतु: (मार्च से मध्य जून तक)
वर्षा ऋतु : (मध्य जून से सितम्बर तक)
शीत ऋतु : (नवम्बर से फरवरी तक)

🔰ग्रीष्म ऋतु

➖राजस्थान में मार्च से मध्य जून तक ग्रीष्म ऋतु होती है। इसमें मई व जून के महीने में सर्वाधिक गर्मी पड़ती है।

➖अधिक गर्मी के वायु मे नमी समाप्त हो जाती है। परिणाम स्वरूप वायु हल्की होकर उपर चली जाती है। अतः राजस्थान में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है परिणामस्वरूप उच्च वायुदाब से वायु निम्न वायुदाब की और तेजगति से आती है इससे गर्मियों में आंधियों का प्रवाह बना रहता है।

➖सबसे अधिक गर्मी मई और जून महीने में पड़ती है इस अवधि में यहां का तापमान विशेषकर पश्चिम भाग का 45 डिग्री सेल्सियस से 51 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।

➖मार्च में सूर्य के उत्तरायण आने पर तापमान में वृद्धि होने लगती है।

➖अप्रैल में हवाएँ पश्चिम से पूर्व की ओर चलती हैं हवाएँ चूँकि गर्म थार मरुस्थल को पार करती हुई आती है, अत: शुष्क एवं गर्म होती है। अप्रैल और मई के महीनों में सूर्य लगभग लंबवत् चमकता है। जिस कारण दिन के तापमान में वृद्धि होती है।

➖राजस्थान के पश्चिमी भागों में मुख्य रुप से बीकानेर, जैसलमेर, फलौदी और बाड़मेर में अधिकतम दैनिक तापमान इन महीनों में 40 डिग्री से० से 45 डिग्री से० तक चला जाता है।

➖गंगानगर में उच्चतम तापमान 50  डिग्री से० तक पहुँच जाता है।

➖ जोधपुर, बीकानेर, बाडमेर में तापमान 49 डिग्री से०, जयपुर और कोटा में 48 डिग्री तक पहुँच जाता है दिन के समय उच्च तापक्रम मौसम को अति कष्टकर बना देतें हैं।

➖संपूर्ण राजस्थान में दोपहर के समय लू (तेज गर्म हवाएँ) व रेत की आंधियाँ चलती है किन्तु पश्चिमी व उत्तर-पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थली भागों में ये आंधियाँ भयंकर होती है।

🔰वर्षा ऋतु

राजस्थान में मध्य जून से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है।

राजस्थान में 3 प्रकार के मानसूनों से वर्षा होती है।

1. बंगाल की खाड़ी का मानसून

यह मानसून राजस्थान में पूर्वी दिशा से प्रवेश करता है। पूर्वी दिशा से प्रवेश करने के कारण मानसूनी हवाओं को पूरवइयां के नाम से जाना जाता है यह मानसून राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा करवाता है इस मानसून से राजस्थान के उत्तरी, उत्तरी-पूर्वी, दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों में वर्षा होती है।

2. अरब सागर का मानसून

यह मानसून राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है यह मानसून राजस्थान में अधिक वर्षा नहीं कर पाता क्योंकि यह अरावली पर्वतमाला के समान्तर निकल जाता है। राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व कि ओर है यदि राज्य में अरावली का विस्तार उत्तरी-पश्चिमी से दक्षिणी-पूर्व कि ओर होता तो राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र में वर्षा होती।

राजस्थान में सर्वप्रथम अरबसागर का मानसून प्रवेश करता है

3. भूमध्यसागरीय मानसून

यह मानसून राजस्थान में पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है। पश्चिमी दिशा से प्रवेश करने के कारण इस मानसून को पश्चिमी विक्षोभों का मानसून के उपनाम से जाना जाता है। इस मानसून से राजस्थान में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में वर्षा होती है। यह मानसून मुख्यतः सर्दीयों में वर्षा करता है सर्दियों में होने वाली वर्षा को स्थानीय भाषा में मावठ कहते हैं यह वर्षा गेहुं की फसल के लिए सर्वाधिक लाभदायक होती है। इन वर्षा कि बूदों को गोल्डन ड्रोप्स या सोने कि बुंद के उप नाम से जाना जाता है।

➖राजस्थान में वर्षा ऋतु जून से अक्टूबर के प्रथम तक रहता है

➖ राज्य में दक्षिणी पश्चिमी मानसूनी हवाओं से वर्षा होती ह

➖राजस्थान में वर्षा ॠतु जून से मध्य सितंबर तक रहती है।

➖यहां वर्षा लगभग नही के बराबर होती है।

➖इस भाग में बंगाल की खाड़ी से आने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी हवाओं से औसत वर्षा 12 से 15 से०मी० तक हो जाती है।

➖अरब सागर से उठने वाला मानसून मालवा के पठार तक ही वर्षा कर पाता है।

➖इसके उत्तर में यह अरावली पर्वत के समान्तर उत्तर की ओर बढ़ जाती है। अरावली के पूर्व में वर्षा का औसत 80 से०मी० तक पाया जाता है। जबकि पश्चिम भागों में यह औसत 25 से०मी० से भी कम होता है।

➖दक्षिणी राजस्थान की स्थिति वर्षा करने वाली हवाओं के अनुकूल है जिसके कारण आबू पर्वत में राजस्थान की सर्वाधिक वर्षा 150 से०मी० तक अंकित की जाती है।

➖भारत-पाक सीमा के क्षेत्रों में वर्षा 10 से०मी० तथा जैसलमेर में लगभग 21 से०मी० होती है। राजस्थान में अधिकांश वर्षा जुलाई और अगस्त महीनों में ही होती है।

➖दक्षिणी पश्चिमी मानसून हिंद महासागर से उत्पन्न हो कर दो शाखाओं में बंगाल की खाड़ी की शाखा एवं अरब सागर की शाखा के रूप में राज्य में प्रवेश करती है

➖राज्य को इस शाखा से केवल 59.9 सेंटीमीटर वर्षा प्राप्त होती है इसका कारण अरावली श्रृंखला का दक्षिण पश्चिम विशाखा के समानांतर होना है।

🔰शीत ऋतु

राजस्थान में नम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। इन चार महीनों में जनवरी माह में सर्वाधिक सर्दी पड़ती है।शीत ऋतु में भूमध्यसागर में उठने वाले चक्रवातों के कारण राजस्थान के उतरी पश्चिमी भाग में वर्षा होती है। जिसे "मावट/मावठ" कहा जाता है। यह वर्षा माघ महीने में होती है। शीतकालीन वर्षा मावट को - गोल्डन ड्रोप (अमृत बूदे) भी कहा जाता है। यह रवि की फसल के लिए लाभदायक है।

राज्य में हवाएं प्राय पश्चिम और उतर-पश्चिम की ओर चलती है।

➖ जनवरी सबसे ठंडा महीना होता है इस काल में सूर्य की स्थिति उत्तरायण और दक्षिणायन होने लगती है जिसके फलस्वरूप तापमान गिरने लगता है तथा वायु दाब बढ़ने लगता है वर्षा ऋतु में ना के बराबर होती है

➖ राजस्थान में शीत ॠतु का समय अक्तूबर से फरवरी तक रहता है। शीत ॠतु तक धीरे-धीरे तापमान गिरने लगता है तथा संपूर्ण राजस्थान में अक्तूबर के महीने में एक सा तापमान रहता है। इन दिनों में अधिकतम तापमान 30 डिग्री से० से 36 डिग्री से० तक तथा न्युनतम तापमान 17 डिग्री से० से 21  डिग्री से० तक रहता है।

➖नवम्बर के महीने में अपेक्षाकृत अधिक सर्दी रहती है। दिसंबर और जनवरी में कठोर सर्दी पड़ती है। राजस्थान के उत्तरी जिलों में जनवरी का औसत तापमान 12 डिग्री से० से 16 डिग्री से० तक रहता है।

➖आबू पर्वत पर ऊचाई के कारण यहां का तापमान इस समय औसत 8 डिग्री से० रहता है।कश्मीर, हिमाचल प्रदेश आदि क्षेत्रों में हिमपात के कारण शीत लहर आने पर यहां सर्दी बहुत बढ़ जाती है। उत्तरी क्षेत्रों में लहर के कारण तापमान कभी-कभी पाला के साथ हिमांक बिंदु तक पहुँच जाता है।

➖मध्य एशिया उच्च भार के कारण कई बार पछुआ पवनों की एक शाखा पश्चिम दिशा से राजस्थान में प्रवेश करती है तथा इन चक्रवातों के कारण कई बार उत्तरी व पश्चिमी राजस्थान में आकाश की स्वच्छता मेघाच्छन्न स्थिति में परिवर्तित हो जाती है। इन चक्रवातों से राजस्थान में कभी-कभी वर्षा हो जाती है जिसे 'महावट' कहते हैं। इन चक्रवातों में 5 से 10 से०मी० तक वर्षा होती है।

➖राज्य के गंगानगर, चुरु, बीकानेर, और सीकर जिलों में कड़ाके की सर्दी पड़ती है। इस ॠतु में सुबह के समय ओस पड़ना तथा प्रात: आठ बजे के बाद तक कोहरा रहना एक समान्य लक्षण है।

 ➖इस काल में सूर्य की स्थिति उत्तरायण और दक्षिणायन होने लगती है जिसके फलस्वरूप तापमान गिरने लगता है तथा वायु दाब बढ़ने लगता है वर्षा ऋतु में ना के बराबर होती है

🔰आंधियों के नाम

➖उत्तर की ओर से आने वाली - उत्तरा, उत्तराद, धरोड, धराऊ

➖दक्षिण की ओर से आने वाली - लकाऊ

➖पूर्व की ओर से आने वाली - पूरवईयां, पूरवाई, पूरवा, आगुणी

➖पश्चिम की ओर से आने वाली - पिछवाई, पच्छऊ, पिछवा, आथूणी।

➖अन्य
उत्तर-पूर्व के मध्य से - संजेरी

➖पूर्व-दक्षिण के मध्य से - चीर/चील

➖दक्षिण-पश्चिम के मध्य से - समंदरी/समुन्द्री

➖उत्तर-पश्चिम के मध्य से - सूर्या

🙏तथ्य
विश्व का सबसे गर्म स्थान - अल-अजीजिया(लिबिया) सहारा मरूस्थल

भारत का सबसे गर्म राज्य - राजस्थान

भारत का सबसे गर्म स्थान - फलौदी(जोधपुर)

राजस्थान का सबसे गर्म जिला - चुरू

राजस्थान का सबसे गर्म स्थान - फलौदी(जोधपुर)

विश्व का सबसे ठण्डा स्थान - बखोयांस(रूस)

भारत का सबसे ठण्डा राज्य - जम्मू-कश्मीर

भारता का सबसे ठण्डा स्थान - लोह(-46)

राजस्थान का सबसे ठण्डा जिला - चुरू

राजस्थान का सबसे ठण्डा स्थान - माउण्ट आबू(सिरोही)

विश्व का सबसे आर्द्र स्थान - मौसिनराम(मेघालय) भारत

भारत का सबसे आर्द्र राज्य - केरल

भारत का सबसे आर्द्र स्थान - मौसिनराम(मेघालय)

राजस्थान का सबसे आर्द्र जिला - झालावाड़

राजस्थान का सबसे आर्द्र स्थान - माउण्ट आबु

विश्व का सबसे वर्षा वाला स्थान - मोसिनराम(मेघालय)

भारत का सबसे वर्षा वाला स्थान - मोसिनराम(मेघालय)

भारत का सबसे वर्षा वाला राज्य - केरल

राजस्थान का सबसे वर्षा वाल स्थान - माउण्ट आबू

राजस्थान का सबसे वर्षा वाला जिला - झालावाड़

विश्व का सबसे शुष्क स्थान - वखौयांस

भारत का सबसे शुष्क राज्य - राजस्थान

भारत का सबसे शुष्क स्थान - लेह(जम्मु-कश्मीर)

राजस्थान का सबसे शुष्क जिला - जैसलमेर

राजस्थान का सबसे शुष्क स्थान - सम(जैसलमेर) और फलौद(जोधपुर)

विश्व में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - बखौयांस

भारत में सबसे कम वर्षा वाला राज्य - पंजाब

भारत में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - लेह

राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला जिला - जैसलमेर

राजस्थान में सबसे कम वर्षा वाला स्थान - सम(जैसलमेर)

भारत का सर्वाधिक तापान्तर वाला राज्य - राजस्थान

राजस्थान का सर्वाधिक तापान्तर वाला जिला(वार्षिक) - चुरू

राजस्थान का सर्वाधिक तापान्तर वाला जिला(दैनिक) - जैसलमेर

राजस्थान का वनस्पति रहित क्षेत्र - सम(जैसलमेर)

साइबेरिया ठण्डी हवा एवं हिमालय हिमपात के कारण राजस्थान में जो शीत लहर चलती है वह कहलाती है - जाड़ा

गर्मीयों में थार के मरूस्थल में चलने वाली गर्म पवनें - लू

राजस्थान में सर्वाधिक धुल भरी आधियां चलती है - गंगानर में

राजस्थान में पाला - दक्षिणी तथा दक्षिणी पूर्वी भागों में अधिक ठण्ड के कारण पाला पड़ता है।

दक्षिण राजस्थान में तेज हवाओं के साथ जो मुसलाधार वर्षा होती है - चक्रवाती वर्षा

राजस्थान में मानसून का प्रवेश द्वार - झालावाड़ और बांसवाड़ा

राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा की विषमता वाला जिला - बाड़मेर और जैसलमेर

राजस्थान में वर्षा की सबसे कम विषमता वाला जिला -बांसवाड़ा

21 जून को राजस्थान के किस जिले में सूर्य की किरणे सीधी पड़ती है

22 दिसम्बर को राजस्थान के किस जिले को सुर्य की किरणें तीरछी पड़ती है - श्री गंगानगर

राजस्थान की जलवायु है - उपोष्ण कटिबंधीय

🔰महत्वपुर्ण तथ्य

🔖नाॅर्वेस्टर - छोटा नागपुर का पठार पर ग्रीष्म काल में चलने वाली पवनें नाॅर्वेस्टर कहलाती है। यह बिहार एवं झारखण्ड राज्य को प्रभावित करती है।

जब नाॅर्वेस्टर पवनें पूर्व की ओर आगे बढ़ कर पश्चिम बंगाल राज्य में पहुंचती है तो इन्हें काल वैशाली कहा जाता है। तथा जब यही पवनें पूर्व की ओर आगे पहुंच कर असम राज्य में पहुंचती है तो यहां 50 सेमी. वर्षा होती है। यह वर्षा चाय की खेती के लिए अत्यंत उपयोगी होती है इसलिए इसे चाय वर्षा या टी. शावर कहा जाता है।

🔖मैंगो शावर - तमिलनाडू, केरल एवम् आन्ध्रप्रदेश राज्यों में मानसुन पूर्व जो वर्षा होती है जिससे यहां की आम की फसलें पकती है वह वर्षा मैंगो शाॅवर कहलाती है।

🔖चैरी ब्लाॅस्म - कर्नाटक राज्य में मानसून पूर्व जो वर्षा होती है जो कि यहां की कहवा की फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है चैरी ब्लाॅस्म या फुलों की बौछार कहलाती है।

🔖मानसून की विभंगता - मानसून के द्वारा किसी एक स्थान पर वर्षा हो जाने तथा उसी स्थान पर होने वाली अगली वर्षा के मध्य का समय अनिश्चित होता है उसे ही मानसून की विभंगता कहा जाता है।

🔖मानसून का फटना - दक्षिण भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान केरल के मालाबार तट पर तेज हवाओं एवम् बिजली की चमक के साथ बादल की तेज गर्जना के साथ जो मानसून की प्रथम मुसलाधार वर्षा होती है उसे मानसून का फटना कहा जाता है।

🔖वृष्टि प्रदेश एवं वृष्टि छाया प्रदेश
चित्र

🔖अल-नीनो - यह एक मर्ग जल धारा है जो कि दक्षिण अमेरिका महाद्विप के पश्चिम में प्रशान्त महासागर में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान सक्रिय होती है इससे भारतीय मानसून कमजोर पड़ जाता है। और भारत एवम् पड़ौसी देशों में अल्पवृष्टि एवम् सुखा की स्थिति पैदा हो जाती है।

🔖ला-नीनो - यह एक ठण्डी जल धारा है जो कि आस्टेलिया यह महाद्वीप के उत्तर-पूर्व में अल-नीनों के विपरित उत्पन्न होती है इससे भारतीय मानसून की शक्ति बढ़ जाती है और भारत तथा पड़ौसी देशों में अतिवृष्टि की स्थिति पैदा हो जाती है।


गुरुकुल एक कदम सफलता की और

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