जैन धर्म
जैन धर्म शिक्षण
महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली
➖जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है।
➖'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं।
➖'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'।
➖जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म।
➖अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है
➖जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था
🔰जैन धर्म मे 24 तीर्थंकरों को माना जाता है। तीर्थंकर धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करते है। इस काल के 24 तीर्थंकर है-
क्रमांक तीर्थंकर
1 ऋषभदेव- इन्हें 'आदिनाथ' भी कहा जाता है
2 अजितनाथ
3 सम्भवनाथ
4 अभिनंदन जी
5 सुमतिनाथ जी
6 पद्ममप्रभु जी
7 सुपार्श्वनाथ जी
8 चंदाप्रभु जी
9 सुविधिनाथ- इन्हें 'पुष्पदन्त' भी कहा जाता है
10 शीतलनाथ जी
11 श्रेयांसनाथ
12 वासुपूज्य जी
13 विमलनाथ जी
14 अनंतनाथ जी
15 धर्मनाथ जी
16 शांतिनाथ
17 कुंथुनाथ
18 अरनाथ जी
19 मल्लिनाथ जी
20 मुनिसुव्रत जी
21 नमिनाथ जी
22 अरिष्टनेमि जी - इन्हें 'नेमिनाथ' भी कहा जाता है। जैन मान्यता में ये नारायण श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे।
23 पार्श्वनाथ
24 वर्धमान महावीर - इन्हें वर्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर भी कहा जाता है।
➖जैन धर्म में अहिंसा को परमधर्म माना गया है। सब जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता, अतएव इस धर्म में प्राणिवध के त्याग का सर्वप्रथम उपदेश है।
➖ केवल प्राणों का ही वध नहीं, बल्कि दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाले असत्य भाषण को भी हिंसा का एक अंग बताया है।
➖जैनधर्म का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत है कर्म।
➖जैनधर्म में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल नाम के छ: द्रव्य माने गए हैं। ये द्रव्य लोकाकाश में पाए जाते हैं, अलोकाकाश में केवल आकाश ही है। जीव, अजीव, आस्रव, बंध संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व है
➖अनेकान्तवाद जैनधर्म का तीसरा मुख्य सिद्धांत है।
➖जैन ग्रंथों में सात तत्त्वों का वर्णन मिलता हैं। यह हैं-
🔖1.जीव- जैन दर्शन में आत्मा के लिए "जीव" शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरुप है।
🔖2.अजीव- जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है।
🔖3.आस्रव - पुद्गल कर्मों का आस्रव करना
🔖4.बन्ध- आत्मा से कर्म बन्धना
🔖5.संवर- कर्म बन्ध को रोकना
🔖6.निर्जरा- कर्मों को क्षय करना
🔖7.मोक्ष - जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं।
जैन धर्म में श्रावक और मुनि दोनों के लिए पाँच व्रत बताए गए है। तीर्थंकर आदि महापुरुष जिनका पालन करते है, वह महाव्रत कहलाते है
👉अहिंसा - किसी भी जीव को मन, वचन, काय से पीड़ा नहीं पहुँचाना। किसी जीव के प्राणों का घात नहीं करना।
👉सत्य - हित, मित, प्रिय वचन बोलना।
👉अस्तेय - बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करना।
👉ब्रह्मचर्य - मन, वचन, काय से मैथुन कर्म का त्याग करना।
👉अपरिग्रह- पदार्थों के प्रति ममत्वरूप परिणमन का बुद्धिपूर्वक त्याग
मुनि इन व्रतों का सूक्ष्म रूप से पालन करते है, वही श्रावक स्थूल रूप से करते है।
➖जैन ग्रंथों के अनुसार जीव और अजीव, यह दो मुख्य पदार्थ हैं।
आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य, पाप अजीव द्रव्य के भेद हैं
⭕6 द्रव्य
जैन धर्म के अनुसार लोक 6 द्रव्यों (substance) से बना है। यह 6 द्रव्य शाश्वत हैं अर्थात इनको बनाया या मिटाया नहीं जा सकता।यह है जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
चित्र द्रव्य
⭕रत्नत्रय
सम्यक् दर्शन
सम्यक् ज्ञान
सम्यक् चारित्र
यह रत्नत्रय आत्मा को छोड़कर अन्य किसी द्रव्य में नहीं रहता।
सम्यक्त्व के आठ अंग है —
निःशंकितत्त्व,
निःकांक्षितत्त्व,
निर्विचिकित्सत्त्व,
अमूढदृष्टित्व,
उपबृंहन / उपगूहन,
स्थितिकरण,
प्रभावना,
वात्सल्य।
जैन धर्म के प्रमुख त्यौहार इस प्रकार हैं।
पंचकल्याणक
महावीर जयंती
पर्युषण
ऋषिपंचमी
जैन धर्म में दीपावली
ज्ञान पंचमी
दशलक्षण धर्म
👉जैन धर्म की दो प्रमुख शाखाए है
दिगम्बर और श्वेताम्बर
➖जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने गए हैं, जिन्हें इस धर्म में भगवान के समान माना जाता है। वर्धमान महावीर, जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री ऋषभनाथ की परम्परा में 24वें तीर्थंकर थे।
🔰ऋषभदेव
➖जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम दिगम्बर जैन मुनि थे
➖ इसके अन्य नामो में आदिनाथ, ऋषभनाथ, वृषभनाथ है इनकी शिक्षाएं अहिंसा है
🔰भगवान महावीर
➖जैन धर्म के चौंबीसवें (24वें) तीर्थंकर है।
➖भगवान महावीर का जन्म(ईसा से 599 वर्ष पूर्व, वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था।
➖तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये।
➖12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया।
➖ 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई।
➖इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे।
➖जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।
➖क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था।
➖ ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्धमान रखा गया था।
➖ जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है
🔰विवाह
🔖दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। भोगों में उनकी रूचि नहीं थी। परन्तु इनके माता-पिता शादी करवाना चाहते थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था।
🔖श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ
🔰तपस्या
➖भगवान महावीर का साधना काल 12 वर्ष का था दीक्षा लेने के उपरान्त भगवान महावीर ने दिगम्बर साधु की कठिन चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे। श्वेतांबर सम्प्रदाय जिसमें साधु श्वेत वस्त्र धारण करते है के अनुसार भी महावीर दीक्षा उपरान्त कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति भी दिगम्बर अवस्था में ही की। अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे। इन वर्षों में उन पर कई ऊपसर्ग भी हुए जिनका उल्लेख कई प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है।
🔰पाँच व्रत
🔖सत्य ―
सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
🔖अहिंसा –
इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रीयों वाले जीव) है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
🔖अचौर्य -
दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।
अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
🔖ब्रह्मचर्य-
महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
➖जैन मुनि, आर्यिका इन्हें पूर्ण रूप से पालन करते है, इसलिए उनके महाव्रत होते है और श्रावक, श्राविका इनका एक देश पालन करते है, इसलिए उनके अणुव्रत कहे जाते है।
🖋पार्श्वनाथ ने जैन धर्म मे स्त्रियों को प्रवेश दिया था
🖋महावीर के 11 शिष्य थे जो गणधर कहलाये अथवा गंधर्व कहलाये
🖋वैदिक मंत्रों में केवल ऋषभदेव व अरिष्टनेमि का उल्लेख मिलता है
🖋 ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महावीर स्वामी को केवलीन की उपाधि मिली
🖋 ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महावीर स्वामी ने पावापुरी में जैन संघ की स्थापना की
🖋जैन धर्म के त्रिरत्न
🔖सम्यक दर्शन
🔖सम्यक ज्ञान
🔖सम्यक आचरण
🖋निर्जरा संचित कर्मो को नस्ट होना निर्जरा कहलाता है
⭕शार्ट ट्रिक्स जैन धर्म के अनुयायी-:
Trick :- “KAACU” काकू
K= कलिंग नरेश खारवेल
A= अजातशत्रु
A= अमोघवर्ष …
C= चंद्रगुप्त मौर्य
U= उदयिन
⭕जाने क्यों जाम पाया पाटली वाला
जाने ➖जैन धर्म
क्यो ➖कुंडग्राम
जाम ➖जम्भिक
पाटली➖प्रथम जैन संगति
वाला ➖वल्लभी द्वितीय जैन संगति
गुरुकुल एक कदम सफलता की औऱ
महेश रहीसा गुरुकुल कोटपूतली
➖जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है।
➖'जैन धर्म' का अर्थ है - 'जिन द्वारा प्रवर्तित धर्म'। जो 'जिन' के अनुयायी हों उन्हें 'जैन' कहते हैं।
➖'जिन' शब्द बना है 'जि' धातु से। 'जि' माने - जीतना। 'जिन' माने जीतने वाला। जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया और विशिष्ट ज्ञान को पाकर सर्वज्ञ या पूर्णज्ञान प्राप्त किया उन आप्त पुरुष को जिनेश्वर या 'जिन' कहा जाता है'।
➖जैन धर्म अर्थात 'जिन' भगवान् का धर्म।
➖अहिंसा जैन धर्म का मूल सिद्धान्त है
➖जैन ग्रंथों के अनुसार इस काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव आदिनाथ द्वारा जैन धर्म का प्रादुर्भाव हुआ था
🔰जैन धर्म मे 24 तीर्थंकरों को माना जाता है। तीर्थंकर धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करते है। इस काल के 24 तीर्थंकर है-
क्रमांक तीर्थंकर
1 ऋषभदेव- इन्हें 'आदिनाथ' भी कहा जाता है
2 अजितनाथ
3 सम्भवनाथ
4 अभिनंदन जी
5 सुमतिनाथ जी
6 पद्ममप्रभु जी
7 सुपार्श्वनाथ जी
8 चंदाप्रभु जी
9 सुविधिनाथ- इन्हें 'पुष्पदन्त' भी कहा जाता है
10 शीतलनाथ जी
11 श्रेयांसनाथ
12 वासुपूज्य जी
13 विमलनाथ जी
14 अनंतनाथ जी
15 धर्मनाथ जी
16 शांतिनाथ
17 कुंथुनाथ
18 अरनाथ जी
19 मल्लिनाथ जी
20 मुनिसुव्रत जी
21 नमिनाथ जी
22 अरिष्टनेमि जी - इन्हें 'नेमिनाथ' भी कहा जाता है। जैन मान्यता में ये नारायण श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे।
23 पार्श्वनाथ
24 वर्धमान महावीर - इन्हें वर्धमान, सन्मति, वीर, अतिवीर भी कहा जाता है।
➖जैन धर्म में अहिंसा को परमधर्म माना गया है। सब जीव जीना चाहते हैं, मरना कोई नहीं चाहता, अतएव इस धर्म में प्राणिवध के त्याग का सर्वप्रथम उपदेश है।
➖ केवल प्राणों का ही वध नहीं, बल्कि दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाले असत्य भाषण को भी हिंसा का एक अंग बताया है।
➖जैनधर्म का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धांत है कर्म।
➖जैनधर्म में जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल नाम के छ: द्रव्य माने गए हैं। ये द्रव्य लोकाकाश में पाए जाते हैं, अलोकाकाश में केवल आकाश ही है। जीव, अजीव, आस्रव, बंध संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व है
➖अनेकान्तवाद जैनधर्म का तीसरा मुख्य सिद्धांत है।
➖जैन ग्रंथों में सात तत्त्वों का वर्णन मिलता हैं। यह हैं-
🔖1.जीव- जैन दर्शन में आत्मा के लिए "जीव" शब्द का प्रयोग किया गया हैं। आत्मा द्रव्य जो चैतन्यस्वरुप है।
🔖2.अजीव- जड़ या की अचेतन द्रव्य को अजीव (पुद्गल) कहा जाता है।
🔖3.आस्रव - पुद्गल कर्मों का आस्रव करना
🔖4.बन्ध- आत्मा से कर्म बन्धना
🔖5.संवर- कर्म बन्ध को रोकना
🔖6.निर्जरा- कर्मों को क्षय करना
🔖7.मोक्ष - जीवन व मरण के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहते हैं।
जैन धर्म में श्रावक और मुनि दोनों के लिए पाँच व्रत बताए गए है। तीर्थंकर आदि महापुरुष जिनका पालन करते है, वह महाव्रत कहलाते है
👉अहिंसा - किसी भी जीव को मन, वचन, काय से पीड़ा नहीं पहुँचाना। किसी जीव के प्राणों का घात नहीं करना।
👉सत्य - हित, मित, प्रिय वचन बोलना।
👉अस्तेय - बिना दी हुई वस्तु को ग्रहण नहीं करना।
👉ब्रह्मचर्य - मन, वचन, काय से मैथुन कर्म का त्याग करना।
👉अपरिग्रह- पदार्थों के प्रति ममत्वरूप परिणमन का बुद्धिपूर्वक त्याग
मुनि इन व्रतों का सूक्ष्म रूप से पालन करते है, वही श्रावक स्थूल रूप से करते है।
➖जैन ग्रंथों के अनुसार जीव और अजीव, यह दो मुख्य पदार्थ हैं।
आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य, पाप अजीव द्रव्य के भेद हैं
⭕6 द्रव्य
जैन धर्म के अनुसार लोक 6 द्रव्यों (substance) से बना है। यह 6 द्रव्य शाश्वत हैं अर्थात इनको बनाया या मिटाया नहीं जा सकता।यह है जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल।
चित्र द्रव्य
⭕रत्नत्रय
सम्यक् दर्शन
सम्यक् ज्ञान
सम्यक् चारित्र
यह रत्नत्रय आत्मा को छोड़कर अन्य किसी द्रव्य में नहीं रहता।
सम्यक्त्व के आठ अंग है —
निःशंकितत्त्व,
निःकांक्षितत्त्व,
निर्विचिकित्सत्त्व,
अमूढदृष्टित्व,
उपबृंहन / उपगूहन,
स्थितिकरण,
प्रभावना,
वात्सल्य।
जैन धर्म के प्रमुख त्यौहार इस प्रकार हैं।
पंचकल्याणक
महावीर जयंती
पर्युषण
ऋषिपंचमी
जैन धर्म में दीपावली
ज्ञान पंचमी
दशलक्षण धर्म
👉जैन धर्म की दो प्रमुख शाखाए है
दिगम्बर और श्वेताम्बर
➖जैन धर्म में 24 तीर्थंकर माने गए हैं, जिन्हें इस धर्म में भगवान के समान माना जाता है। वर्धमान महावीर, जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री ऋषभनाथ की परम्परा में 24वें तीर्थंकर थे।
🔰ऋषभदेव
➖जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम दिगम्बर जैन मुनि थे
➖ इसके अन्य नामो में आदिनाथ, ऋषभनाथ, वृषभनाथ है इनकी शिक्षाएं अहिंसा है
🔰भगवान महावीर
➖जैन धर्म के चौंबीसवें (24वें) तीर्थंकर है।
➖भगवान महावीर का जन्म(ईसा से 599 वर्ष पूर्व, वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था।
➖तीस वर्ष की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये।
➖12 वर्षो की कठिन तपस्या के बाद उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ जिसके पश्चात् उन्होंने समवशरण में ज्ञान प्रसारित किया।
➖ 72 वर्ष की आयु में उन्हें पावापुरी से मोक्ष की प्राप्ति हुई।
➖इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे।
➖जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती तथा उनके मोक्ष दिवस को दीपावली के रूप में धूम धाम से मनाया जाता है।
➖क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ चैत्र शुक्ल तेरस को हुआ था।
➖ ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म के बाद राज्य में उन्नति होने से उनका नाम वर्धमान रखा गया था।
➖ जैन ग्रंथ उत्तरपुराण में वर्धमान, वीर, अतिवीर, महावीर और सन्मति ऐसे पांच नामों का उल्लेख है
🔰विवाह
🔖दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर बाल ब्रह्मचारी थे। भगवान महावीर शादी नहीं करना चाहते थे क्योंकि ब्रह्मचर्य उनका प्रिय विषय था। भोगों में उनकी रूचि नहीं थी। परन्तु इनके माता-पिता शादी करवाना चाहते थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने इसके लिए मना कर दिया था।
🔖श्वेतांबर परम्परा के अनुसार इनका विवाह यशोदा नामक सुकन्या के साथ सम्पन्न हुआ था और कालांतर में प्रियदर्शिनी नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका युवा होने पर राजकुमार जमाली के साथ विवाह हुआ
🔰तपस्या
➖भगवान महावीर का साधना काल 12 वर्ष का था दीक्षा लेने के उपरान्त भगवान महावीर ने दिगम्बर साधु की कठिन चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे। श्वेतांबर सम्प्रदाय जिसमें साधु श्वेत वस्त्र धारण करते है के अनुसार भी महावीर दीक्षा उपरान्त कुछ समय छोड़कर निर्वस्त्र रहे और उन्होंने केवल ज्ञान की प्राप्ति भी दिगम्बर अवस्था में ही की। अपने पूरे साधना काल के दौरान महावीर ने कठिन तपस्या की और मौन रहे। इन वर्षों में उन पर कई ऊपसर्ग भी हुए जिनका उल्लेख कई प्राचीन जैन ग्रंथों में मिलता है।
🔰पाँच व्रत
🔖सत्य ―
सत्य के बारे में भगवान महावीर स्वामी कहते हैं, हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ। जो बुद्धिमान सत्य की ही आज्ञा में रहता है, वह मृत्यु को तैरकर पार कर जाता है।
🔖अहिंसा –
इस लोक में जितने भी त्रस जीव (एक, दो, तीन, चार और पाँच इंद्रीयों वाले जीव) है उनकी हिंसा मत कर, उनको उनके पथ पर जाने से न रोको। उनके प्रति अपने मन में दया का भाव रखो। उनकी रक्षा करो। यही अहिंसा का संदेश भगवान महावीर अपने उपदेशों से हमें देते हैं।
🔖अचौर्य -
दुसरे के वस्तु बिना उसके दिए हुआ ग्रहण करना जैन ग्रंथों में चोरी कहा गया है।
अपरिग्रह – परिग्रह पर भगवान महावीर कहते हैं जो आदमी खुद सजीव या निर्जीव चीजों का संग्रह करता है, दूसरों से ऐसा संग्रह कराता है या दूसरों को ऐसा संग्रह करने की सम्मति देता है, उसको दुःखों से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। यही संदेश अपरिग्रह का माध्यम से भगवान महावीर दुनिया को देना चाहते हैं।
🔖ब्रह्मचर्य-
महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के बारे में अपने बहुत ही अमूल्य उपदेश देते हैं कि ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है। तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है। जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।
➖जैन मुनि, आर्यिका इन्हें पूर्ण रूप से पालन करते है, इसलिए उनके महाव्रत होते है और श्रावक, श्राविका इनका एक देश पालन करते है, इसलिए उनके अणुव्रत कहे जाते है।
🖋पार्श्वनाथ ने जैन धर्म मे स्त्रियों को प्रवेश दिया था
🖋महावीर के 11 शिष्य थे जो गणधर कहलाये अथवा गंधर्व कहलाये
🖋वैदिक मंत्रों में केवल ऋषभदेव व अरिष्टनेमि का उल्लेख मिलता है
🖋 ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महावीर स्वामी को केवलीन की उपाधि मिली
🖋 ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महावीर स्वामी ने पावापुरी में जैन संघ की स्थापना की
🖋जैन धर्म के त्रिरत्न
🔖सम्यक दर्शन
🔖सम्यक ज्ञान
🔖सम्यक आचरण
🖋निर्जरा संचित कर्मो को नस्ट होना निर्जरा कहलाता है
⭕शार्ट ट्रिक्स जैन धर्म के अनुयायी-:
Trick :- “KAACU” काकू
K= कलिंग नरेश खारवेल
A= अजातशत्रु
A= अमोघवर्ष …
C= चंद्रगुप्त मौर्य
U= उदयिन
⭕जाने क्यों जाम पाया पाटली वाला
जाने ➖जैन धर्म
क्यो ➖कुंडग्राम
जाम ➖जम्भिक
पाटली➖प्रथम जैन संगति
वाला ➖वल्लभी द्वितीय जैन संगति
गुरुकुल एक कदम सफलता की औऱ
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