व्यापार चक्र के सिद्धांत
6.Theories of trade cycle; Counter Cyclical Policies
🔰व्यापार चक्र के सिद्धांत : प्रतिचक्रीय नीतियां
⭕ व्यापार चक्र से अभिप्राय आर्थिक क्रियाओं के उतार चढ़ाव से है और यह उतार चढ़ाव एक नियमित क्रम में उत्पन्न होते है तथा एक क्रम समाप्त होते ही दूसरा क्रम स्वत उतपन्न हो जाता है
➖व्यापार चक्र कुल रोजगार, आय उत्पादन,तथा कीमत स्तरों में आवर्ती के उतार चढ़ाव से सम्बंधित है
➖प्रायः इसे ट्रेड साइकल कहते है अमेरिकी अर्थशास्त्री ने इसे बिजनिस साइकल कहा जाता है
➖प्रो ली ने दोनों सब्दो को भ्रामक कहा और इसे इकोनॉमी साइकल कहा
➖गुणक व त्वरक की पारस्परिक क्रिया के द्वारा व्यापार चक्र पैदा होते है
➖श्रेष्ठ का सम्बंध हिक्स का व्यापार चक्र से है
♻सुमपिटर ने व्यापार चक्रों की 4 अवस्था बताई है
1.सम्रद्धि अवस्था
2.प्रतिसार अवस्था
3.अवसाद अवस्था
4.पुनरोद्धार अवस्था
➖अवसाद अवस्था वह अवस्था है जिसमें आय और रोजगार के स्तर इस प्रकार घटते चले जाते हैं कि देश में मानवीय और गैर मानवीय संसाधनों का प्रयोग कम होता चला जाता है वर्ष 1930 की महामंदी इस अवस्था का एक उदाहरण है
➖पुनरोद्धार से अभिप्राय है उस मोड़ बिंदु से है जहां अर्थव्यवस्था अनेक उपायों द्वारा अवसाद में समृद्धि में प्रवेश के लिए प्रेरित की जाती है इन उपायों में सम्मिलित है
1.सरकारी स्वतंत्र विनियोग
2.नवप्रवर्तन
3.उत्पादन तकनीक में परिवर्तन
4.कम ब्याज दर
➖ पुनरोद्धार में किया गया स्वतंत्र सरकारी विनियोग प्रेरित विनियोग में वर्द्धि करता है जैसे बैंकों द्वारा साख निर्माण का कार्य आरंभ होता है
➖पुनरोद्धार अवस्था में निरंतर बढ़ते विनीयोग से अर्थव्यवस्था में से आरंभ होती है सरपट स्फीति में बढ़ती कीमतें स्वविनास के बीज स्वम बोती है
⭕व्यापार चक्र
1.व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था
चित्र
2. अर्थव्यवस्था की आर्थिक क्रियाओं में नियमित रूप से विस्तार एवं संकुचन की दशाएं उत्पन्न होती रहती है जिसके कारण आर्थिक क्रियाओं के विभिन्न घटकों( जैसे विनियोग ,उत्पादन ,रोजगार ,आय,उपभोग, कीमत आदि) में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं जिन्हें आर्थिक उच्यावच कहा जाता है अर्थशास्त्री इन्ही आर्थिक उच्चावच को व्यापार चक्र का नाम देते हैं
⭕व्यापार चक्रों का वर्गीकरण
1.प्रमुख चक्र
इसका प्रतिपादक क्लीमेंटजगलर ने 1862 में किया
इसकी समयावधि 9 या 10 वर्ष होती है
इन चक्रों को जगलर चक्र कहते है
2.लघु चक्र
इसका प्रतिपादक जोसेफ़कीचन है
समयावधि 40 महीने से साढ़े तीन साल है
इन्हें किचन वक्र कहते है
3.दीर्घ चक्र
प्रतिपादक कॉन्द्रातिफ
समयावधि 50 वर्ष
♻विशेषतायें
1. व्यापार चक्र उत्पन्न का कारण उतार-चढ़ाव के परिणाम स्वरुप होता है
2.उतार-चढ़ाव में सामयिकता का गुण पाया जाता है
3. व्यापार चक्र की गति लहरों के समान होती है ज्यादा ऊंचे तो चढ़ाव ज्यादा कम ऊंचे तो चढ़ाव कम होते हैं
4.व्यापार चक्रों के प्रभाव में सकर्मिता पाई जाती है
🔰प्रमुख सिद्धान्त
♻1.हिक्स का व्यापार चक्र सिद्धात
♻2.सेम्युसल का गुणक त्वरक अंतर्क्रिया मॉडल
♻3.कोलडोर का मॉडल
♻4.गुडवीन का व्यापार चक्र मॉडल
♻5.केन्ज का सिद्धात
♻6.पिगू का मनोवैज्ञानिक सिद्धात
♻7.मौद्रिक सिद्धात हाट्रे तथा हेयक का सिद्धात
♻8.सुपिटर का नव प्रवर्तन सिद्धात
⭕हिक्स का व्यापार चक्र सिद्धात
1950 में हिक्स ने पुस्तक "ए कंस्ट्रयूसन टू द थ्योरी आफ ट्रेड साइकल" में सिद्धात प्रस्तुत किया
➖इसमे यह स्पस्ट किया कि व्यापार चक्र गुणक व त्वरक की परस्पर क्रिया के फलस्वरूप उतपन्न होता है
हिक्स के मॉडल के तत्व
वर्द्धि की इचित दर
उपभोग फलन
स्वायत विनियोजन फलन
प्रेरित विनियोजन फलन
गुणक व त्वरक सिद्धात
➖हिक्स ने दो सीमाएं उच्य सिमा व निम्न सिमा के मध्य व्यापार चक्र पैदा होते है
➖हिक्स ने अपने मॉडल में विकास पथ को शामिल किया है
➖हिक्स ने अपने विकास के साथ साथ स्वायत विनियोग को एक निश्चित दर से समलित किया है एक निश्चित दर में वर्द्धि करनी पड़ती है
चित्र
चित्र में
➖L व F के मध्य होने वाली प्रक्रिया को व्यापार चक्र कहते है
➖AA लाइन स्वचालित विनियोग विकास पथ रेखा है
➖LL लाइन निम्नतम आय विकास रेखा है जो गुणक की क्रियासिलता के कारण उतपन्न होता है
➖EE संतुलन विकास पथ रेखा यह त्वरक के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है
➖FF पूर्ण क्षमता विकास पथ रेखा ,पूर्ण रोजगार रेखा, सिलिग रेखा, ऊपरी रेखा है
➖EP तक गुणक व त्वरक समलित रूप में कार्य करता है
➖P1,P2 तक अविष्कार का प्रभाव है
➖P3,P4 मंदी के समय त्वरक काम नही करने के कारण गिरता है केवल गुणक मिलता है उत्पादन बढ़ गया लेकिन आय नही
➖P5 ,P6 स्वचालित विनियोग करने पर आय बढ़ेगी तो वापस ऊपर चली जायेगी
⭕सेमयूल्सन का व्यापार चक्र मॉडल
➖सेमयूल्सन का व्यापार चक्र सिद्धांत गुणक व त्वरक की अंतर क्रिया पर आधारित है
➖ सेमयूल्सन के अनुसार गुणक जैसा किन्स ने प्रस्तुत किया है अकेला व्यापार चक्र की व्याख्या में समर्थ नहीं है सेमयूल्सन ने इस तथ्य पर बल देता है कि अर्थव्यवस्था की आर्थिक क्रियाओं के विश्लेषण में गुणक तथा त्वरक के प्रभाव को अलग नहीं किया जा सकता
➖सेमयूल्सन के मॉडल के प्रमुख तत्व
क. वर्तमान समय की आय (राष्ट्रीय आय) उपभोग व्यय ,प्रेरित विनियोग व्यय तथा सरकारी व्यय का परिणाम है अर्थात
Yt =Ct +It +Gt
ख. वर्तमान उपभोग पिछली अवधि की आय पर निर्भर करता है
Ct =a Yt-1
यहां a सीमांत उपभोग प्रवृत्ति है
ग.सेमयूल्सन का विनियोग को उपभोग परिवर्तन के फलन के रूप में परिभाषित किया है
It =B (Ct-Ct-1)
यहां B त्वरक गुणाक है
➖ यह मानकर की सीमात उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य शून्य से अधिक एक से कम है तथा त्वरक का मूल्य शून्य से अधिक है
सेमयूल्सन ने 5 उतार-चढ़ाव की व्याख्या की है
चित्र
स्थति 1 व्यापार चक्र की आरंभिक अवस्था है जो सेम्युलसन के चक्रहीन पथ व्यक्त करती है क्योंकि यह केवल गुणक प्रभाव पर आधरित है और त्वरक इसमे कोई कार्य नही करता
स्थति 2 परिमन्दित चक्रीय पथ को व्यक्त करता है इस अवस्था मे राष्ट्रीय आय के आकर में उत्तरोत्तर कमी होती जाएगी
स्थति 3 स्थति विस्तार अथवा नियमित चक्र की अवस्था है इस अवस्था मे उतार चढ़ाव प्रतिमन्दित और अपरिमित रूप में निरंतर स्वम को दोहराने वाला है
स्थति 4 प्रति मन्दित अथवा विस्फोटक चक्रों को प्रकट करता है
स्थति 5 चक्रहीन विस्फोटक उदर्गामी पथ
♻सेमयूल्सन के अनुसार
1.yt =ct +It +Gt
वर्तमान समय की आय =उपभोग व्यय +प्रेरित व्यय +सरकारी व्यय का परिणाम है
2.ct =ayt -1
वर्तमान उपभोग व्यय =पिछली अवधि की आय पर निर्भर करता है
a =सीमान्त उपभोग परवर्ती
3.It =B (ct -ct-1)
विनियोग उपभोग परिवर्तन के फलन के रूप में है
B त्वरक गुणाक है
⭕कोलडोर का व्यापार चक्र
➖बचत व विनियोग से व्यापार चक्रों को समझता है
➖बचत व विनियोग यदि रेखीय है तो कोई व्यापार चक्र पैदा नही होगा
➖व्यापार चक्र के लिए बचत विनियोग वक्र अरेखीय होना चाइए
➖कोलडोर ने व्यापार चक्रों के साम्य अवस्था बताई है दो अवस्था संतुलन की ओर एक असंतुलन की बताई है
चित्र
➖I ज्यादा S कम
➖B से C की तरफ चलने पर रोजगार उत्पादन आय में वर्द्धि होगी
➖B से A की तरफ चलने पर उत्पादन रोजगार आय में कमी आएगी
B स्थिरता बिंदु है
स्थिरता के बिंदु वहा पर होंगे जहा पर विनियोग वक्र बचत वक्र को उपर से काटे
🔰 प्रतिचक्रिय नीतियां
➖व्यापार चक्र को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न प्रतिचक्रीय नीतियों का सहारा लिया जाता है
♻1.निवारक उपाय
निवारक उपाय उन कारणों को दूर करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं जिनके फलस्वरूप व्यापार चक्रों का उदय होता है
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा प्रकृति पर अर्थव्यवस्था की निर्भरता को समाप्त करना
2. मांग एवं पूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना
3.कुल उपभोग तथा कुल उत्पादन में संतुलन बनाए रखने के लिए आधारभूत उद्योगो को पर्याप्त विकास किया जाना चाहिए
4.सट्टा बाजार पर प्रभावी नियंत्रण किया जाना चाहिए
सरकार को पिछले पहले से ही मौद्रिक तथा राजकोषीय नीतियों को इस तरह समन्वित प्रयोग करना चाहिए ताकि व्यापार चक्र से नियंत्रित रहे
♻2.चिकित्सात्मक उपाय
अ. राजकोषीय नीति
राजकोषीय नीति के उपकरण है बजट नीति ,कर नीती ,सार्वजनिक व्यय तथा सार्वजनिक ऋण
राजकोषीय नीति की अपनी कुछ कमियां है
1. मंदी का पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता
2. आए दिन सार्वजनिक व्यय तथा कर नीति में परिवर्तन करना सहज नहीं होता
3. सरकारी योजना भी जल्दी जल्दी नहीं जा सकती
4.राजकोषीय नीति दो धारी तलवार की भांति होती है यदि सरकार व्यय की दिशा थोड़ी भी गलत हुई तो या तो स्फीति आ जाएगी या मंदी आ जाएगी
ब. मौद्रिक नीति
मौद्रिक नीति के अंतर्गत वे सभी उपाय आते हैं जिनके द्वारा केंद्रीय बैंक साख मुद्रा का नियंत्रण करता है
साख नियंत्रण के उपाय
1.परिमाणात्मक अथवा अप्रत्यक्ष साख नियंत्रण इसके अंतर्गत आते हैं
बैंक दर नीति
खुले बाजार की क्रिया तथा
बैंक के नगद कोष में परिवर्तन की नीति
- गुणात्मक अथवा चयनाआत्मक साख नियंत्रण के अंतर्गत आते हैं
साख की राशनिंग
उपभोक्ता साख का नियमन
प्रतिभूति ऋणों की आवश्यकता सीमा या मार्जिन में परिवर्तन आदि
स. भौतिक नियंत्रण
इसके अंतर्गत कीमत समर्थन नीति ,कीमत नियंत्रण तथा राशनिग आय आते हैं
व्यापार चक्र एक जटिल समस्या है व्यापार चक्र के आवर्तन को स्थापत करने में कोई अकेली नीति सफल नहीं हो सकती वास्तव में प्रति चक्रे नीतियों के सभी अंगों मौद्रिक नीति राजकोषीय नीति भौतिक नियंत्रण एवं संचालित स्थानीय कारकों को एक साथ प्रयुक्त कर इसकी की विभीषिका को कुछ हद तक स्थगित किया जा सकता है
♻व्यापार चक्रों को रोकने के उपाय
1.राजकोषीय उपाय
2.मौद्रिक उपाय
3.अन्य उपाय
👉कीमत बढ़ने की स्थति में यदि कीमत बढ़ रही है तो स्फीति अवस्था है तब सरकार नियंत्रण के लिए सरकार अपने बचत के बजट बनाये व खर्चो में कमी करे
👉सरकार अपने टैक्स में वर्द्धि करे
👉सरकार जनता से उधार ले
♻मंदी की अवस्था मे कीमतें मंदी कि स्थति में
सरकार घाटे के बजट बनाये
टैक्सो में छूट प्रदान करे
हिनार्थ प्रबंधन करे
अनुदान दे
♻मौद्रिक उपाय
♻चयनात्मक/गुणात्मक उपाय
➖साख की राशनिग
➖चयनित साख नियंत्रण
➖न्यूनतम मार्जनिग की आवश्यकता
➖उधार की न्यूतम दरें
अन्य उपाय
नैतिक दबाव
प्रत्यक्ष कार्यवाही
प्रचार
🔰व्यापार चक्र के सिद्धांत : प्रतिचक्रीय नीतियां
⭕ व्यापार चक्र से अभिप्राय आर्थिक क्रियाओं के उतार चढ़ाव से है और यह उतार चढ़ाव एक नियमित क्रम में उत्पन्न होते है तथा एक क्रम समाप्त होते ही दूसरा क्रम स्वत उतपन्न हो जाता है
➖व्यापार चक्र कुल रोजगार, आय उत्पादन,तथा कीमत स्तरों में आवर्ती के उतार चढ़ाव से सम्बंधित है
➖प्रायः इसे ट्रेड साइकल कहते है अमेरिकी अर्थशास्त्री ने इसे बिजनिस साइकल कहा जाता है
➖प्रो ली ने दोनों सब्दो को भ्रामक कहा और इसे इकोनॉमी साइकल कहा
➖गुणक व त्वरक की पारस्परिक क्रिया के द्वारा व्यापार चक्र पैदा होते है
➖श्रेष्ठ का सम्बंध हिक्स का व्यापार चक्र से है
♻सुमपिटर ने व्यापार चक्रों की 4 अवस्था बताई है
1.सम्रद्धि अवस्था
2.प्रतिसार अवस्था
3.अवसाद अवस्था
4.पुनरोद्धार अवस्था
➖अवसाद अवस्था वह अवस्था है जिसमें आय और रोजगार के स्तर इस प्रकार घटते चले जाते हैं कि देश में मानवीय और गैर मानवीय संसाधनों का प्रयोग कम होता चला जाता है वर्ष 1930 की महामंदी इस अवस्था का एक उदाहरण है
➖पुनरोद्धार से अभिप्राय है उस मोड़ बिंदु से है जहां अर्थव्यवस्था अनेक उपायों द्वारा अवसाद में समृद्धि में प्रवेश के लिए प्रेरित की जाती है इन उपायों में सम्मिलित है
1.सरकारी स्वतंत्र विनियोग
2.नवप्रवर्तन
3.उत्पादन तकनीक में परिवर्तन
4.कम ब्याज दर
➖ पुनरोद्धार में किया गया स्वतंत्र सरकारी विनियोग प्रेरित विनियोग में वर्द्धि करता है जैसे बैंकों द्वारा साख निर्माण का कार्य आरंभ होता है
➖पुनरोद्धार अवस्था में निरंतर बढ़ते विनीयोग से अर्थव्यवस्था में से आरंभ होती है सरपट स्फीति में बढ़ती कीमतें स्वविनास के बीज स्वम बोती है
⭕व्यापार चक्र
1.व्यापार चक्र की विभिन्न अवस्था
चित्र
2. अर्थव्यवस्था की आर्थिक क्रियाओं में नियमित रूप से विस्तार एवं संकुचन की दशाएं उत्पन्न होती रहती है जिसके कारण आर्थिक क्रियाओं के विभिन्न घटकों( जैसे विनियोग ,उत्पादन ,रोजगार ,आय,उपभोग, कीमत आदि) में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं जिन्हें आर्थिक उच्यावच कहा जाता है अर्थशास्त्री इन्ही आर्थिक उच्चावच को व्यापार चक्र का नाम देते हैं
⭕व्यापार चक्रों का वर्गीकरण
1.प्रमुख चक्र
इसका प्रतिपादक क्लीमेंटजगलर ने 1862 में किया
इसकी समयावधि 9 या 10 वर्ष होती है
इन चक्रों को जगलर चक्र कहते है
2.लघु चक्र
इसका प्रतिपादक जोसेफ़कीचन है
समयावधि 40 महीने से साढ़े तीन साल है
इन्हें किचन वक्र कहते है
3.दीर्घ चक्र
प्रतिपादक कॉन्द्रातिफ
समयावधि 50 वर्ष
♻विशेषतायें
1. व्यापार चक्र उत्पन्न का कारण उतार-चढ़ाव के परिणाम स्वरुप होता है
2.उतार-चढ़ाव में सामयिकता का गुण पाया जाता है
3. व्यापार चक्र की गति लहरों के समान होती है ज्यादा ऊंचे तो चढ़ाव ज्यादा कम ऊंचे तो चढ़ाव कम होते हैं
4.व्यापार चक्रों के प्रभाव में सकर्मिता पाई जाती है
🔰प्रमुख सिद्धान्त
♻1.हिक्स का व्यापार चक्र सिद्धात
♻2.सेम्युसल का गुणक त्वरक अंतर्क्रिया मॉडल
♻3.कोलडोर का मॉडल
♻4.गुडवीन का व्यापार चक्र मॉडल
♻5.केन्ज का सिद्धात
♻6.पिगू का मनोवैज्ञानिक सिद्धात
♻7.मौद्रिक सिद्धात हाट्रे तथा हेयक का सिद्धात
♻8.सुपिटर का नव प्रवर्तन सिद्धात
⭕हिक्स का व्यापार चक्र सिद्धात
1950 में हिक्स ने पुस्तक "ए कंस्ट्रयूसन टू द थ्योरी आफ ट्रेड साइकल" में सिद्धात प्रस्तुत किया
➖इसमे यह स्पस्ट किया कि व्यापार चक्र गुणक व त्वरक की परस्पर क्रिया के फलस्वरूप उतपन्न होता है
हिक्स के मॉडल के तत्व
वर्द्धि की इचित दर
उपभोग फलन
स्वायत विनियोजन फलन
प्रेरित विनियोजन फलन
गुणक व त्वरक सिद्धात
➖हिक्स ने दो सीमाएं उच्य सिमा व निम्न सिमा के मध्य व्यापार चक्र पैदा होते है
➖हिक्स ने अपने मॉडल में विकास पथ को शामिल किया है
➖हिक्स ने अपने विकास के साथ साथ स्वायत विनियोग को एक निश्चित दर से समलित किया है एक निश्चित दर में वर्द्धि करनी पड़ती है
चित्र
चित्र में
➖L व F के मध्य होने वाली प्रक्रिया को व्यापार चक्र कहते है
➖AA लाइन स्वचालित विनियोग विकास पथ रेखा है
➖LL लाइन निम्नतम आय विकास रेखा है जो गुणक की क्रियासिलता के कारण उतपन्न होता है
➖EE संतुलन विकास पथ रेखा यह त्वरक के परिणामस्वरूप प्राप्त होता है
➖FF पूर्ण क्षमता विकास पथ रेखा ,पूर्ण रोजगार रेखा, सिलिग रेखा, ऊपरी रेखा है
➖EP तक गुणक व त्वरक समलित रूप में कार्य करता है
➖P1,P2 तक अविष्कार का प्रभाव है
➖P3,P4 मंदी के समय त्वरक काम नही करने के कारण गिरता है केवल गुणक मिलता है उत्पादन बढ़ गया लेकिन आय नही
➖P5 ,P6 स्वचालित विनियोग करने पर आय बढ़ेगी तो वापस ऊपर चली जायेगी
⭕सेमयूल्सन का व्यापार चक्र मॉडल
➖सेमयूल्सन का व्यापार चक्र सिद्धांत गुणक व त्वरक की अंतर क्रिया पर आधारित है
➖ सेमयूल्सन के अनुसार गुणक जैसा किन्स ने प्रस्तुत किया है अकेला व्यापार चक्र की व्याख्या में समर्थ नहीं है सेमयूल्सन ने इस तथ्य पर बल देता है कि अर्थव्यवस्था की आर्थिक क्रियाओं के विश्लेषण में गुणक तथा त्वरक के प्रभाव को अलग नहीं किया जा सकता
➖सेमयूल्सन के मॉडल के प्रमुख तत्व
क. वर्तमान समय की आय (राष्ट्रीय आय) उपभोग व्यय ,प्रेरित विनियोग व्यय तथा सरकारी व्यय का परिणाम है अर्थात
Yt =Ct +It +Gt
ख. वर्तमान उपभोग पिछली अवधि की आय पर निर्भर करता है
Ct =a Yt-1
यहां a सीमांत उपभोग प्रवृत्ति है
ग.सेमयूल्सन का विनियोग को उपभोग परिवर्तन के फलन के रूप में परिभाषित किया है
It =B (Ct-Ct-1)
यहां B त्वरक गुणाक है
➖ यह मानकर की सीमात उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य शून्य से अधिक एक से कम है तथा त्वरक का मूल्य शून्य से अधिक है
सेमयूल्सन ने 5 उतार-चढ़ाव की व्याख्या की है
चित्र
स्थति 1 व्यापार चक्र की आरंभिक अवस्था है जो सेम्युलसन के चक्रहीन पथ व्यक्त करती है क्योंकि यह केवल गुणक प्रभाव पर आधरित है और त्वरक इसमे कोई कार्य नही करता
स्थति 2 परिमन्दित चक्रीय पथ को व्यक्त करता है इस अवस्था मे राष्ट्रीय आय के आकर में उत्तरोत्तर कमी होती जाएगी
स्थति 3 स्थति विस्तार अथवा नियमित चक्र की अवस्था है इस अवस्था मे उतार चढ़ाव प्रतिमन्दित और अपरिमित रूप में निरंतर स्वम को दोहराने वाला है
स्थति 4 प्रति मन्दित अथवा विस्फोटक चक्रों को प्रकट करता है
स्थति 5 चक्रहीन विस्फोटक उदर्गामी पथ
♻सेमयूल्सन के अनुसार
1.yt =ct +It +Gt
वर्तमान समय की आय =उपभोग व्यय +प्रेरित व्यय +सरकारी व्यय का परिणाम है
2.ct =ayt -1
वर्तमान उपभोग व्यय =पिछली अवधि की आय पर निर्भर करता है
a =सीमान्त उपभोग परवर्ती
3.It =B (ct -ct-1)
विनियोग उपभोग परिवर्तन के फलन के रूप में है
B त्वरक गुणाक है
⭕कोलडोर का व्यापार चक्र
➖बचत व विनियोग से व्यापार चक्रों को समझता है
➖बचत व विनियोग यदि रेखीय है तो कोई व्यापार चक्र पैदा नही होगा
➖व्यापार चक्र के लिए बचत विनियोग वक्र अरेखीय होना चाइए
➖कोलडोर ने व्यापार चक्रों के साम्य अवस्था बताई है दो अवस्था संतुलन की ओर एक असंतुलन की बताई है
चित्र
➖I ज्यादा S कम
➖B से C की तरफ चलने पर रोजगार उत्पादन आय में वर्द्धि होगी
➖B से A की तरफ चलने पर उत्पादन रोजगार आय में कमी आएगी
B स्थिरता बिंदु है
स्थिरता के बिंदु वहा पर होंगे जहा पर विनियोग वक्र बचत वक्र को उपर से काटे
🔰 प्रतिचक्रिय नीतियां
➖व्यापार चक्र को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न प्रतिचक्रीय नीतियों का सहारा लिया जाता है
♻1.निवारक उपाय
निवारक उपाय उन कारणों को दूर करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं जिनके फलस्वरूप व्यापार चक्रों का उदय होता है
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि तथा प्रकृति पर अर्थव्यवस्था की निर्भरता को समाप्त करना
2. मांग एवं पूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करना
3.कुल उपभोग तथा कुल उत्पादन में संतुलन बनाए रखने के लिए आधारभूत उद्योगो को पर्याप्त विकास किया जाना चाहिए
4.सट्टा बाजार पर प्रभावी नियंत्रण किया जाना चाहिए
सरकार को पिछले पहले से ही मौद्रिक तथा राजकोषीय नीतियों को इस तरह समन्वित प्रयोग करना चाहिए ताकि व्यापार चक्र से नियंत्रित रहे
♻2.चिकित्सात्मक उपाय
अ. राजकोषीय नीति
राजकोषीय नीति के उपकरण है बजट नीति ,कर नीती ,सार्वजनिक व्यय तथा सार्वजनिक ऋण
राजकोषीय नीति की अपनी कुछ कमियां है
1. मंदी का पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता
2. आए दिन सार्वजनिक व्यय तथा कर नीति में परिवर्तन करना सहज नहीं होता
3. सरकारी योजना भी जल्दी जल्दी नहीं जा सकती
4.राजकोषीय नीति दो धारी तलवार की भांति होती है यदि सरकार व्यय की दिशा थोड़ी भी गलत हुई तो या तो स्फीति आ जाएगी या मंदी आ जाएगी
ब. मौद्रिक नीति
मौद्रिक नीति के अंतर्गत वे सभी उपाय आते हैं जिनके द्वारा केंद्रीय बैंक साख मुद्रा का नियंत्रण करता है
साख नियंत्रण के उपाय
1.परिमाणात्मक अथवा अप्रत्यक्ष साख नियंत्रण इसके अंतर्गत आते हैं
बैंक दर नीति
खुले बाजार की क्रिया तथा
बैंक के नगद कोष में परिवर्तन की नीति
- गुणात्मक अथवा चयनाआत्मक साख नियंत्रण के अंतर्गत आते हैं
साख की राशनिंग
उपभोक्ता साख का नियमन
प्रतिभूति ऋणों की आवश्यकता सीमा या मार्जिन में परिवर्तन आदि
स. भौतिक नियंत्रण
इसके अंतर्गत कीमत समर्थन नीति ,कीमत नियंत्रण तथा राशनिग आय आते हैं
व्यापार चक्र एक जटिल समस्या है व्यापार चक्र के आवर्तन को स्थापत करने में कोई अकेली नीति सफल नहीं हो सकती वास्तव में प्रति चक्रे नीतियों के सभी अंगों मौद्रिक नीति राजकोषीय नीति भौतिक नियंत्रण एवं संचालित स्थानीय कारकों को एक साथ प्रयुक्त कर इसकी की विभीषिका को कुछ हद तक स्थगित किया जा सकता है
♻व्यापार चक्रों को रोकने के उपाय
1.राजकोषीय उपाय
2.मौद्रिक उपाय
3.अन्य उपाय
👉कीमत बढ़ने की स्थति में यदि कीमत बढ़ रही है तो स्फीति अवस्था है तब सरकार नियंत्रण के लिए सरकार अपने बचत के बजट बनाये व खर्चो में कमी करे
👉सरकार अपने टैक्स में वर्द्धि करे
👉सरकार जनता से उधार ले
♻मंदी की अवस्था मे कीमतें मंदी कि स्थति में
सरकार घाटे के बजट बनाये
टैक्सो में छूट प्रदान करे
हिनार्थ प्रबंधन करे
अनुदान दे
♻मौद्रिक उपाय
♻चयनात्मक/गुणात्मक उपाय
➖साख की राशनिग
➖चयनित साख नियंत्रण
➖न्यूनतम मार्जनिग की आवश्यकता
➖उधार की न्यूतम दरें
अन्य उपाय
नैतिक दबाव
प्रत्यक्ष कार्यवाही
प्रचार
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