मुद्रास्फीति
🔰मुद्रास्फीति- प्रकार और नियंत्रण, फिलिप वक्र
Inflation- Types and Control, Phillip curve
➖ सामान्य अर्थों में मुद्रास्फीति (अथवा मुद्रा प्रसार) वह स्थिति है जिसमें कीमत स्तर में वृद्धि होती है तथा मुद्रा का मूल्य गिरता है
➖ वेबस्टर के अनुसार
" मुद्रा स्फीति वह अवस्था है जब वस्तु की उपलब्ध मात्रा की तुलना में मुद्रा तथा साख की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है और परिणाम स्वरूप मूल्य स्तर में निरंतर और महत्वपूर्ण वृद्धि होती है
➖किन्स के अनुसार
-वास्तविक मुद्रास्फीति पूर्ण रोजगार बिंदु के बाद उत्पन्न होती है पूर्ण रोजगार बिंदु से पूर्व उत्पन्न होने वाली स्पीति आंशिक स्फीति कहलाती है जो प्रेरणात्मक होती है
क्राउथर के अनुसार
"मुद्रा स्फीति वह है जिसमे मुद्रा का मूल्य गिरता है और वस्तुओं का मूल्य बढ़ता है"
ग्रेगरी के अनुसार
"क्रय शक्ति की मात्रा में असाधारण वर्द्धि ही मुद्रा स्फीति है"
➖हिनार्थ प्रेरित स्फीति को 'पाल इंजिग ने बजटीय'स्फीति कहा है
मांग (D)>पूर्ति(S)
चित्र आशिक स्फीति/पूर्ण स्फीति
➖ मुद्रा स्फीति से अभिप्राय बढ़ती हुई कीमतों के क्रम से है न की बढ़ती हुई कीमतों की स्थिति से
1.अत्याधिक मुद्रा निर्गमन से उत्पन्न स्फीति को चलन स्फीति कहते हैं
2. उदार रणनीति के फलस्वरूप व्यापारिक बैंकों द्वारा अत्याधिक साख निर्गमन के कारण उत्पन्न स्फीति को साख स्फीति कहा जाता है
3.वस्तुओं एवं सेवाओं की तेजी से बढ़ती मांग और फलस्वरूप तेजी से बढ़ती हुई मुद्रा की सक्रियता के कारण बढ़ने वाली कीमतें मांग प्रेरित स्फीति उत्पन्न करती है
4. वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ जाने के कारण जब वस्तुओं की कीमतों को बढ़ाया जाता है तो उसे लागत प्रेरित स्फीति कहा जाता है
5 बजट के घाटे को पूरा करने के लिए हिनार्थ प्रबंधन के अंतर्गत नए नोट छापे जाना मुद्रा की पूर्ति का विस्तार करता है जिससे कीमतों में वृद्धि होती है इसे हिनार्थ प्रेरित स्फीति या बजटीय स्फीति कहा जाता है
6.अवमूल्यन के फलस्वरूप निर्यात बढ़ने तथा देश में आंतरिक पूर्ति घट जाने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगती है जिससे अवमूल्यन जनित स्फीति उत्पन्न होती है
खुली मुद्रास्फीति में समाज में बढ़ती हुई आय के उपभोग पर नियंत्रण नहीं लगाया जाता जबकि देबी मुद्रा स्पीति में उपभोग की मात्रा पर नियंत्रण लगा दिया जाता है
🔰फिलिप्स वक्र
फिलिप्स वक्र ब्रिटिश अर्थशास्त्री A W फिलिप्स ने 1958 में प्रस्तुत किया गया जिसके द्वारा ब्रिटेन में 1861-1913 की अवधि में मौद्रिक मजदूरी दरो तथा बेरोजगारी के बीच सम्बन्ध की व्याख्या की गई
➖ संबंधित आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर प्रोफेसर फिलिप्स ने यह बताया कि बेरोजगारी की दर (u)तथा मौद्रिक मजदूरी(w) में विपरीत संबंध होता है
➖ मूल रूप से फिलिप्स वक्र द्वारा केवल बेरोजगारी तथा मौद्रिक मजदूरी के बीच संबंध व्यक्त किया गया था परंतु बाद में इसका उपयोग बेरोजगारी तथा कीमतों में वृद्धि का संबंध दिखाने के लिए किया जाने लगा
➖ प्रस्तुत चित्र में जिसे फिलिप्स वक्र के नाम से जाना जाता है मजदूरी दर में वृद्धि, कीमतों में वृद्धि तथा बेरोजगारी में वृद्धि में पारस्परिक संबंध स्पष्ट करता है
➖ कीमतों में वृद्धि तथा मजदूरी दर में वर्द्धि का संबंध श्रम की उत्पादकता में वृद्धि पर निर्भर करता है
➖ नीचे की ओर गिरता हुआ वक्र यह दर्शाता है कि बेरोजगारी का स्तर बढ़ाकर कीमतों की वर्द्धि दर में कमी लाई जा सकती है
➖ अन्य शब्दों में मजदूरी वर्द्धि स्फीति को बेकारी का स्तर बढ़ाकर समाप्त किया जा सकता है
➖ इस तरह हम स्पीति का त्याग कर बदले में बेरोजगारी प्राप्त कर सकते हैं जिसे 'स्पीति बेरोजगारी ट्रेड ऑफ 'कहा जाता है
अतः कीमत स्थिरता तथा बेरोजगारी का संयोग चुनने की अपेक्षा नीति निर्धारक मंद स्फीति को अपनाना उचित समझते हैं ताकि बेरोजगारी की दर कम हो
➖फिलिप्स वक्र यह प्रदर्शित करता है कि मुद्रास्फीति तथा बेरोजगारी दोनों साथ उपस्थित रह सकते हैं
🔰मुद्रा स्फीति की तीव्रता
चित्र
OA रेंगती या साधारण स्फीति(2%कीमत वर्द्धि दर)
AB चलती स्फीति(5%)
BC दौड़ती स्फीति(10%)
CD सरपट भागती स्फीति(15%)
➖ सरपट दौड़ती हुई स्फीति को नियंत्रण करना प्राय असंभव होता है और उनको यदि अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो मुद्रा का विमुद्रीकरण करके नई मुद्रा का निर्गमन करना अनिवार्य हो जाता है
मुद्रा स्फीति के कारण सरकार की आर्थिक नीतिया है जो है
➖हिनार्थ प्रबंधन
➖अतिरिक्त मुद्रा निर्गमन
➖उदार ऋण व साख नीति
➖युद्ध जनित अनुत्पादकीय व्यय
➖घाटे के बजट की नीति
➖सरक्षणवादी व्यापार नीति
➖कठोर उद्योग नीति
➖प्रतिगामी कराधान नीति
➖मुद्रा स्फीति के प्रभाव
उत्पादक वर्ग को लाभ
निश्चित आय वर्ग वालो को हानि
पूर्ण रोजगार से पहले की स्थिति में श्रमिकों को लाभ
निश्चित आय वर्ग वेतन भोगी को हानि
धनी और अधिक धनी गरीब और अधिक गरीब
व्यापार संतुलन विपक्ष में आयात में वर्द्धि व निर्यात में कमी
ऋणदाता को हानि ऋणी को लाभ
चित्र नियंत्रण के उपाय
➖प्रो जे.एम किन्स ने 1940 में अपनी पुस्तक 'How to Pay for the War' में स्फीतिक अंतराल पर विचार किया
➖मुद्रा की पूर्ति उसकी मांग की तुलना में इतनी बढ़ जाए कि सामान्य कीमत स्तर में निरंतर वृद्धि होने लगे तथा मुद्रा की क्रय शक्ति में निरंतर कमी होने लगे तब यह कहा जाएगा कि अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रसार की दशाएं विद्यमान है यह अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थति को प्रदर्शित करता है
🔖मुद्रा स्फीति के कारण
इन्हें मुख्य रूप से दो भागो में बाँट सकते हैं:
1.मांग जनित कारक (demand pull)
2.मूल्य वृद्धि कारक (cost push)
🔖मुद्रास्फीति के सूचकांक
भारत में मुद्रास्फीति के दो प्रकार के सूचकांक प्रचलित है-
(क) थोक मूल्य सूचकांक (WPI) एवं
(ख) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) ।
🔰 अल्पकालिक फिलिप्स वक्र
नगद मजदूरी व मुद्रा स्फीति में परस्पर सीधा सम्बंध होता है इसलिए अल्पकाल में बेरोजगारी व मुद्रा स्फीति की दरों से सम्बंध स्थापित किया जा सकता है
🔰दीर्घकालिक फिलिप्स वक्र
Inflation- Types and Control, Phillip curve
➖ सामान्य अर्थों में मुद्रास्फीति (अथवा मुद्रा प्रसार) वह स्थिति है जिसमें कीमत स्तर में वृद्धि होती है तथा मुद्रा का मूल्य गिरता है
➖ वेबस्टर के अनुसार
" मुद्रा स्फीति वह अवस्था है जब वस्तु की उपलब्ध मात्रा की तुलना में मुद्रा तथा साख की मात्रा में अधिक वृद्धि होती है और परिणाम स्वरूप मूल्य स्तर में निरंतर और महत्वपूर्ण वृद्धि होती है
➖किन्स के अनुसार
-वास्तविक मुद्रास्फीति पूर्ण रोजगार बिंदु के बाद उत्पन्न होती है पूर्ण रोजगार बिंदु से पूर्व उत्पन्न होने वाली स्पीति आंशिक स्फीति कहलाती है जो प्रेरणात्मक होती है
क्राउथर के अनुसार
"मुद्रा स्फीति वह है जिसमे मुद्रा का मूल्य गिरता है और वस्तुओं का मूल्य बढ़ता है"
ग्रेगरी के अनुसार
"क्रय शक्ति की मात्रा में असाधारण वर्द्धि ही मुद्रा स्फीति है"
➖हिनार्थ प्रेरित स्फीति को 'पाल इंजिग ने बजटीय'स्फीति कहा है
मांग (D)>पूर्ति(S)
चित्र आशिक स्फीति/पूर्ण स्फीति
➖ मुद्रा स्फीति से अभिप्राय बढ़ती हुई कीमतों के क्रम से है न की बढ़ती हुई कीमतों की स्थिति से
1.अत्याधिक मुद्रा निर्गमन से उत्पन्न स्फीति को चलन स्फीति कहते हैं
2. उदार रणनीति के फलस्वरूप व्यापारिक बैंकों द्वारा अत्याधिक साख निर्गमन के कारण उत्पन्न स्फीति को साख स्फीति कहा जाता है
3.वस्तुओं एवं सेवाओं की तेजी से बढ़ती मांग और फलस्वरूप तेजी से बढ़ती हुई मुद्रा की सक्रियता के कारण बढ़ने वाली कीमतें मांग प्रेरित स्फीति उत्पन्न करती है
4. वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ जाने के कारण जब वस्तुओं की कीमतों को बढ़ाया जाता है तो उसे लागत प्रेरित स्फीति कहा जाता है
5 बजट के घाटे को पूरा करने के लिए हिनार्थ प्रबंधन के अंतर्गत नए नोट छापे जाना मुद्रा की पूर्ति का विस्तार करता है जिससे कीमतों में वृद्धि होती है इसे हिनार्थ प्रेरित स्फीति या बजटीय स्फीति कहा जाता है
6.अवमूल्यन के फलस्वरूप निर्यात बढ़ने तथा देश में आंतरिक पूर्ति घट जाने से वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगती है जिससे अवमूल्यन जनित स्फीति उत्पन्न होती है
खुली मुद्रास्फीति में समाज में बढ़ती हुई आय के उपभोग पर नियंत्रण नहीं लगाया जाता जबकि देबी मुद्रा स्पीति में उपभोग की मात्रा पर नियंत्रण लगा दिया जाता है
🔰फिलिप्स वक्र
फिलिप्स वक्र ब्रिटिश अर्थशास्त्री A W फिलिप्स ने 1958 में प्रस्तुत किया गया जिसके द्वारा ब्रिटेन में 1861-1913 की अवधि में मौद्रिक मजदूरी दरो तथा बेरोजगारी के बीच सम्बन्ध की व्याख्या की गई
➖ संबंधित आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर प्रोफेसर फिलिप्स ने यह बताया कि बेरोजगारी की दर (u)तथा मौद्रिक मजदूरी(w) में विपरीत संबंध होता है
➖ मूल रूप से फिलिप्स वक्र द्वारा केवल बेरोजगारी तथा मौद्रिक मजदूरी के बीच संबंध व्यक्त किया गया था परंतु बाद में इसका उपयोग बेरोजगारी तथा कीमतों में वृद्धि का संबंध दिखाने के लिए किया जाने लगा
➖ प्रस्तुत चित्र में जिसे फिलिप्स वक्र के नाम से जाना जाता है मजदूरी दर में वृद्धि, कीमतों में वृद्धि तथा बेरोजगारी में वृद्धि में पारस्परिक संबंध स्पष्ट करता है
➖ कीमतों में वृद्धि तथा मजदूरी दर में वर्द्धि का संबंध श्रम की उत्पादकता में वृद्धि पर निर्भर करता है
➖ नीचे की ओर गिरता हुआ वक्र यह दर्शाता है कि बेरोजगारी का स्तर बढ़ाकर कीमतों की वर्द्धि दर में कमी लाई जा सकती है
➖ अन्य शब्दों में मजदूरी वर्द्धि स्फीति को बेकारी का स्तर बढ़ाकर समाप्त किया जा सकता है
➖ इस तरह हम स्पीति का त्याग कर बदले में बेरोजगारी प्राप्त कर सकते हैं जिसे 'स्पीति बेरोजगारी ट्रेड ऑफ 'कहा जाता है
अतः कीमत स्थिरता तथा बेरोजगारी का संयोग चुनने की अपेक्षा नीति निर्धारक मंद स्फीति को अपनाना उचित समझते हैं ताकि बेरोजगारी की दर कम हो
➖फिलिप्स वक्र यह प्रदर्शित करता है कि मुद्रास्फीति तथा बेरोजगारी दोनों साथ उपस्थित रह सकते हैं
🔰मुद्रा स्फीति की तीव्रता
चित्र
OA रेंगती या साधारण स्फीति(2%कीमत वर्द्धि दर)
AB चलती स्फीति(5%)
BC दौड़ती स्फीति(10%)
CD सरपट भागती स्फीति(15%)
➖ सरपट दौड़ती हुई स्फीति को नियंत्रण करना प्राय असंभव होता है और उनको यदि अनियंत्रित छोड़ दिया जाए तो मुद्रा का विमुद्रीकरण करके नई मुद्रा का निर्गमन करना अनिवार्य हो जाता है
मुद्रा स्फीति के कारण सरकार की आर्थिक नीतिया है जो है
➖हिनार्थ प्रबंधन
➖अतिरिक्त मुद्रा निर्गमन
➖उदार ऋण व साख नीति
➖युद्ध जनित अनुत्पादकीय व्यय
➖घाटे के बजट की नीति
➖सरक्षणवादी व्यापार नीति
➖कठोर उद्योग नीति
➖प्रतिगामी कराधान नीति
➖मुद्रा स्फीति के प्रभाव
उत्पादक वर्ग को लाभ
निश्चित आय वर्ग वालो को हानि
पूर्ण रोजगार से पहले की स्थिति में श्रमिकों को लाभ
निश्चित आय वर्ग वेतन भोगी को हानि
धनी और अधिक धनी गरीब और अधिक गरीब
व्यापार संतुलन विपक्ष में आयात में वर्द्धि व निर्यात में कमी
ऋणदाता को हानि ऋणी को लाभ
चित्र नियंत्रण के उपाय
➖प्रो जे.एम किन्स ने 1940 में अपनी पुस्तक 'How to Pay for the War' में स्फीतिक अंतराल पर विचार किया
➖मुद्रा की पूर्ति उसकी मांग की तुलना में इतनी बढ़ जाए कि सामान्य कीमत स्तर में निरंतर वृद्धि होने लगे तथा मुद्रा की क्रय शक्ति में निरंतर कमी होने लगे तब यह कहा जाएगा कि अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रसार की दशाएं विद्यमान है यह अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की स्थति को प्रदर्शित करता है
🔖मुद्रा स्फीति के कारण
इन्हें मुख्य रूप से दो भागो में बाँट सकते हैं:
1.मांग जनित कारक (demand pull)
2.मूल्य वृद्धि कारक (cost push)
🔖मुद्रास्फीति के सूचकांक
भारत में मुद्रास्फीति के दो प्रकार के सूचकांक प्रचलित है-
(क) थोक मूल्य सूचकांक (WPI) एवं
(ख) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) ।
🔰 अल्पकालिक फिलिप्स वक्र
नगद मजदूरी व मुद्रा स्फीति में परस्पर सीधा सम्बंध होता है इसलिए अल्पकाल में बेरोजगारी व मुद्रा स्फीति की दरों से सम्बंध स्थापित किया जा सकता है
🔰दीर्घकालिक फिलिप्स वक्र
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