मुद्रा की मांग का सिद्धांत ,तरलता जाल

🔰मुद्रा की मांग का सिद्धांत ,तरलता जाल

8.Theories of demand for Money, Liquidity Trap

➖मुद्रा की मांग का सिद्धात प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री व केम्ब्रिज अर्थशास्त्री ने दिया किन्स ने मुद्रा की मांग के उद्देश्य को स्पष्ट किया है

➖आधुनिक अर्थशास्त्री में
मिल्टन फ्रीडमैन
बोमेल
टोबीन
गर्लेशा सामिल है

 ➖इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे. एम. कीन्स (J. M. Keynes) ने 1936 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘General Theory of Employment, Interest and Money’ में किया

➖मुद्रा की मांग का प्रयोग विनिमय कार्यो हेतु किया जाता है अतः मुद्रा की मांग व्युत्पन्न मांग कहलाती है

➖मुद्रा की मांग का निर्धारण किसी निश्चित समय अवधि में वस्तुओं ,सेवाओ तथा सम्पत्ति के व्यवसाय पर निर्भर करता है

➖मुद्रा की कुल मांग =विनिमय सौदा मूल्य(P)×वस्तु तथा सेवा की मात्रा (T) है

🔰केम्ब्रिज अर्थशास्त्री के अनुसार

➖मुद्रा की मांग का निर्धारण में मुद्रा के सचय कार्य को महत्व दिया है

➖केम्ब्रिज अर्थशास्त्री मुद्रा की मांग का अर्थ नगद शेष मांग से लगया जाता है इसमे राष्ट्रीय आय में शामिल होने वाली वस्तु हिती है लेकिन सभी वस्तु नही

➖नगद शेष के रूप में मुद्रा की मांग बढ़ने पर मुद्रा का प्रचलन वेग कम हो जाता है इनमे विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है

➖आय का प्रचलन वेग नगद कोष के रूप में मांग करने से सम्बंधित वेग है

🔖केम्ब्रिज अर्थशास्त्री के अनुसार मुद्रा की मांग लोगो की तरलता पसन्दगी पर निर्भर करती है

🔰किन्स
(मुद्रा की लेनदेन मांग)

सौदा उद्देश्य के लिए की जाने वाली मुद्रा की मांग आय पर निर्भर करती है कुल मांग के अंतर्गत सौदा, दूरदर्शिता, सट्टा उद्देश्य को शामिल किया जाता है
कुल मुद्रा (M) लेनदेन व सतर्कता M1 तथा सट्टा M2 द्वारा व्यक्त किया जाता है

M=M1 +M2 या
M1=L1(Y)+L2(r) या
M=L(yr)
यहा M1 सक्रिय मुद्रा है तथा M2 व्यर्थ मुद्रा है

➖किन्स ने मुद्रा की मांग को तरलता पसन्दगी कहा है

🔰किन्स का तरलता पसन्दगी सिद्धात

➖तरलता पसन्दगी सिद्धात में 'ब्याज दर का निर्धारण होता है'

➖मांग व पूर्ति शक्तियों द्वारा ब्याज दर का निर्धारण होता है

➖MD =L1+L2 +L3 (मुद्रा की मांग =सौदा +सतर्कता +सट्टा उद्देश)

A. मुद्रा की माँग (Demand of Money):

➖कीन्स के अनुसार, मुद्रा की माँग का अभिप्राय मुद्रा की उस राशि से है जो लोग अपने पास तरल (अर्थात् नकद) रूप में रखना चाहते हैं । कीन्स के अनुसार, लोग मुद्रा को नकद या तरल रूप में रखने की माँग तीन उद्देश्यों से करते हैं

1. सौदा उद्देश्  (Transactive Motive):

➖व्यक्तियों को आय एक निश्चित अवधि के बाद मिलती है जबकि व्यय करने की आवश्यकता दैनिक जीवन में प्रतिदिन पड़ती रहती है । इस प्रकार आय प्राप्त करने तथा व्यय करने के बीच एक अन्तर रहता है ।

दूसरे शब्दों में, दैनिक लेन-देन (अर्थात् क्रय-विक्रय) करने के लिए व्यक्तियों द्वारा नकद मुद्रा की कुछ मात्रा सदैव अपने पास रखी जाती है ताकि दैनिक आवश्यकता की पूर्ति हो सके । इस प्रकार एक अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्ति, परिवार और फर्में दैनिक खर्चे के लिए जो मुद्रा की माँग करते हैं उसे सौदा उद्देश्य वाली माँग कहा जाता है ।

यह माँग निम्नलिखित तत्वों पर निर्भर करती हैं:

(i) आय तथा रोजगार का स्तर

देश में आय, उत्पादन एवं रोजगार का स्तर जितना अधिक होगा उतनी ही क्रय-विक्रय के निकट मुद्रा की माँग अधिक होगी । कीमतें तथा मजदूरी बढ़ जाने से भी नकदी की क्रय-विक्रय के लिए माँग बढ़ जाती है ।

(ii) आय प्राप्ति की आवृत्ति

नकदी की माँग आय के परिणाम पर ही निर्भर नहीं करती बल्कि इस बात पर भी निर्भर करती है कि आय कितने अन्तराल के बाद प्राप्त हो रही है । आय प्राप्ति की अवधि में वृद्धि के साथ सौदा उद्देश्य के लिए नकदी की माँग बढ़ जाती है ।

(iii) व्यय की अवधि

व्यय की अवधि भी नकदी की माँग को प्रभावित करती है । खर्चों का भुगतान जितनी लम्बी अवधि के बाद किया जायेगा उतनी ही दैनिक क्रय-विक्रय के लिए धन की माँग कम होगी

2. दूरदर्शिता उद्देश्य ( सतर्कता उद्देश्य ):

भविष्य की अनिश्चितताओं जैसे – बेकारी, बीमारी, दुर्घटना, मृत्यु आदि की दशाओं में सुरक्षित रहने के लिए अथवा भविष्य में सामाजिक रीति-रिवाजों को पूरा करने के लिए व्यक्ति नकद मुद्रा की मात्रा अपने पास रखना चाहता है । नकदी का संचय भी अनिश्चित भविष्य के प्रति सतर्कता के उद्देश्य से किया जाता है ।

ऐसी आपातकालीन परिस्थितियों से बचने के लिए व्यक्ति मुद्रा की कुछ मात्रा नकद के रूप में रखता है जिसे दूरदर्शिता उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग कहा जाता है । यह माँग मुख्यतः व्यक्तियों के आय स्तर पर निर्भर करती है तथा यह माँग ब्याज की दर से प्रभावित नहीं होती

सौदा उद्देश्य तथा दूरदर्शिता उद्देश्य दोनों के अन्तर्गत होने वाली मुद्रा की माँग आय पर निर्भर करती है । यदि दोनों उद्देश्यों के लिए माँगी गयी मुद्रा की मात्रा L1 हो तब, L1 = f (Y)

अर्थात् सौदा उद्देश्य एवं दूरदर्शिता उद्देश्य के लिए माँगी जाने वाली मुद्रा की मात्रा के स्तर (Y) का एक फलन होती है

 3. सट्टा उद्देश्य

व्यक्ति अपने पास नकद मुद्रा इसलिए भी रखना चाहता है ताकि भविष्य में ब्याज दूर, बॉण्ड तथा प्रतिभूतियों की कीमतों में होने वाले परिवर्तन का लाभ उठा सके ।

प्रो. कीन्स के अनुसार, ”भविष्य के सम्बन्ध में बाजार की तुलना में अधिक जानकारी द्वारा लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य को सट्टा उद्देश्य कहा जाता है ।”

व्यक्ति सट्टा उद्देश्य के अन्तर्गत नकद मुद्रा की माँग इस इच्छा से करता है जिससे व्यक्ति बॉण्डों आदि की कीमतों में होने वाले परिवर्तनों का लाभ उठा सके ।

सट्टा उद्देश्य के लिए रखी जाने वाली नकद मुद्रा की मात्रा ब्याज की दर पर निर्भर करती है । बॉण्ड की कीमतों तथा ब्याज की दर में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है । कम बॉण्ड कीमतें ऊँची ब्याज दरों को तथा ऊँची बॉण्ड कीमतें कम ब्याज दरों को प्रकट करती हैं ।

बॉण्ड कीमतों में वृद्धि (अर्थात् ब्याज दर में कमी) की सम्भावना दशा में लोग अधिक बॉण्ड खरीदेंगे ताकि भविष्य में उनकी कीमतें बढ़ने पर उन्हें बेचकर लाभ कमाया जा सके । इस स्थिति में सट्टा उद्देश्य के अंन्तर्गत रखी गयी नकद मुद्रा की मात्रा में कमी हो जाती है ।

इसके विपरीत, यदि भविष्य में बॉण्ड की कीमतें गिरने की सम्भावना होती है (अर्थात् ब्याज की दर बढ़ने की सम्भावना होती है) तब ऐसी दशा में सट्टा उद्देश्य के अन्तर्गत अधिक मुद्रा की मात्रा रखी जायेगी ।

इस प्रकार ब्याज की दर जितनी ऊँची होगी सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग उतनी ही कम होगी तथा ब्याज की दर जितनी कम होगी सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग उतनी ही अधिक होगी । सट्टा उद्देश्य के अन्तर्गत रखी गयी मुद्रा निष्क्रिय पड़ी रहती है । अतः इस मुद्रा को निष्क्रिय मुद्रा (Idle Money) भी कहा जाता है ।

यदि सट्टा उद्देश्य के लिए नकद मुद्रा की माँग को L2 द्वारा प्रदर्शित किया जाए, तब L2 = f (r)

अर्थात् सट्टा उद्देश्य के लिए नकद मुद्रा की मात्रा ब्याज की दर (r) पर निर्भर करती है L2 तथा r में विपरीत सम्बन्ध होने के कारण सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग का वक्र बायें से दायें नीचे गिरता हुआ होता है ।

इस प्रकार मुद्रा की कुल माँग के अन्तर्गत सौदा, दूरदर्शिता तथा सट्टा उद्देश्यों के लिए माँगी गयी मुद्रा की माँगे सम्मिलित हैं ।

कुल मुद्रा की माँग (L) (अर्थात् तरलता पसन्दगी) = L1 + L2

या L = f (Y) + f (r)

या L = f (Y, r)

उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि आय स्थिर होने के कारण सौदा तथा दूरदर्शिता उद्देश्यों के लिए मुद्रा की माँग (अर्थात्‌ सक्रिय मुद्रा) का ब्याज की दर पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव नहीं पड़ता किन्तु सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग व्यक्ति की प्रत्याशा तथा मनोवैज्ञानिक स्थिति पर निर्भर करती है । अतः कहा जा सकता है कि ब्याज की दर का परिवर्तन ही सट्टे के लिए मुद्रा की माँग उत्पन्न करता है ।

🔰तरलता जाल (Liquidity Trap):

तरलता पसन्दगी रेखा (LP line) का आकार एवं ढाल  ब्याज की दर (r) तथा सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग (L2) द्वारा निर्धारित होता है ।

 हम यह स्पष्ट कर चुके हैं कि r तथा L2 में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है जो LP रेखा के ऋणात्मक ढाल को बतलाता है । चित्र 5 में तरलता पसन्दगी रेखा (LP Curve) को ABC द्वारा दिखाया गया है


चित्र में


LP रेखा का AB भाग ऋणात्मक ढाल वाला होने के कारण बायें से दायें नीचे गिरता हुआ होता है ।

➖ऋणात्मक ढाल वाला AB भाग यह बताता है कि ऊँची ब्याज पर सट्टा उद्देश्य के लिए नकद मुद्रा की माँग कम होगी तथा इसके विपरीत कम ब्याज दर पर सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग अधिक होगी ।

➖LP रेखा बिन्दु B के बाद अपने BC भाग में एक पड़ी रेखा के रूप में हो जाती है जिसका अभिप्राय यह है कि बहुत कम ब्याज दर (चित्र में r0) पर सट्टा उद्देश्य के लिए मुद्रा की माँग पूर्णतया लोचदार  हो जाती है अर्थात् व्यक्ति अपनी समस्त मुद्रा को अपने पास नकद रूप में रखने को इच्छुक होंगे ।

➖LP वक्र के पूर्ण लोचदार भाग को ही कीन्स ने तरलता जाल का नाम दिया । तरलता पसन्दगी वक्र  के पूर्ण लोचदार होने की दशा में लोगों का नकदी अधिमान पूर्ण या चरम स्तर तक पहुँच जाता है । इसे पूर्ण नकदी अधिमान अवस्था या तरल जाल (Liquidite Trap) कहा जाता है


इस न्यूनतम ब्याज की दर (r0) पर लोगों में बॉण्ड खरीदने की प्रवृत्ति नहीं होगी । परिणामस्वरूप लोग बॉण्ड खरीदने के स्थान पर अपने पास नकद मुद्रा ही रखना चाहेंगे ।

आय स्तर (Y) में परिवर्तन की दशा में तरलता पसन्दगी वक्र (LP Curve) की स्थिति (Position) भी बदल जाती है । चित्र 6 में विभिन्न आय स्तरों Y, Y1 तथा Y2 पर LP वक्रों की स्थिति स्पष्ट की गयी है
चित्र 6


आरम्भिक आय स्तर Y पर तरलता पसन्दगी वक्र L (Y) द्वारा प्रदर्शित किया गया है । यदि अन्य बातों के समान रहते हुए आय स्तर बढ़कर Y1 हो जाता है तब सौदा तथा दूरदर्शिता उद्देश्यों के लिए माँग की नकद मुद्रा की मात्रा (L1) में वृद्धि होने के कारण LP वक्र परिवर्तित होकर L (Y1) की स्थिति में आ जायेगा ।

इसके विपरीत आय स्तर के घटकर Y2 हो जाने की दशा में LP वक्र परिवर्तित होकर L (Y2) की स्थिति में आ जाता है । बिन्दु B पर सभी आय स्तरों के LP वक्र मिलकर पूर्णतया लोचदार हो जाते हैं ।

🔰मिल्टन फ्रीडमैन का मुद्रा की मांग दृष्टिकोण

➖मिल्टन फ्रीडमैन एक अमेरिकी अर्थशास्त्री थे जो खपत विश्लेषण, मौद्रिक इतिहास और सिद्धांत और स्थिरीकरण नीति की जटिलता पर अपना शोध करते थे।

➖ इस ही काम के लिए उन्हें 1976 में आर्थिक विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

➖ 1960 के दशक में उन्होंने मुख्य अधिवक्ता कीनेसियन सरकार की नीतियों का विरोध किया

➖मिल्टन फ्रीडमैन ने मुद्रा को संचय की जाने वाली परिसम्पत्ति माना है

➖मुद्रा के परिमाण सिद्धात को मुद्रा की मांग सिद्धात माना है

➖किसी भी देश की मुद्रा निर्धारण के लिए 4 तत्व आवश्यक है

1.सामान्य कीमत स्तर
2.वास्तविक आय या उत्पादन स्तर
3.ब्याज की प्रचलित दर
4.सामान्य कीमत स्तर में वर्द्धि

➖कीमत स्तर तथा वास्तविक आय के परिवर्तन को उसी दिशा में परिवर्तन करते है

➖सामान्य ब्याज तथा सामान्य कीमत स्तर विपरीत दिशा में परिवर्तन करते है

चित्र सूत्र



समीकरण Md/P =फक्शन£(rm,rb,re,1/p,.Dp/dt, yp, w, u)

 Md =मुद्रा की मांग का मौद्रिक स्तर
P =कीमत स्तर
rm=मुद्रा पर प्रतिफल दर,
rb=बॉन्ड पर प्रतिफल
re=इकलवीटी पर प्रतिफल डर
1/p,.Dp/dt =कीमत स्तर में प्रत्याशित परिवर्तन दर
yp =चिर आय
w =गैर मानवीय रुप मे रखी सम्पति
u= रुचि ओर अधिमान

➖वास्तविक आय के मांग निर्धारक का प्रमुख तत्व माना जाता है

➖वास्तविक आय में परिवर्तन से अनुपात में अधिक परिवर्तन होता है

∆M/∆Y>1

➖मिल्टन फ्रीडमैन ने मुद्रा की मांग की इकाई लोच 1.8 बताई थी

 मुद्रा के 5 भाग होते है
🔖नगद
🔖बॉन्ड्स
🔖शेयर
🔖मानवीय पूजी
🔖गैर मानवीय पूजी

🔰बोमेल का मांग दृष्टिकोण 1952

बोमेल ने स्टॉक के आधार पर मुद्रा की मांग का विश्लेषण किया था

➖कोई फर्म सौदे के लिए मुद्रा का अनुकूलतम स्टॉक अपने पास रखती है

➖स्टॉक को नगद रखने का दूसरा तरीका बॉन्ड है जिस पर ब्याज मिलता है ब्याज जितना अधिक होगा नगद उतना ही कम रहेगा

➖बोमेल के अनुसार जब आय में परिवर्तन होता है तब मुद्रा की सौदा उद्देश्य हेतु मांग में अनुपात से कम परिवर्तन होगा

दो प्रकार की लागते आती है
1.अवसर लागते(ब्याज लागते)
2.गैर ब्याज लागते

n = कुल लागत =ब्याज लागत +गैर ब्याज लागत


🔰मान्यताएं

⭕सौदे का पूर्वानुमान किया जा सकता है
⭕मुद्रा को बांड में ,बॉन्ड को मुद्रा में आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है
⭕नगदी रखने में दो प्रकार की लागते आती है
ब्याज लागत
गैर ब्याज लागत
⭕ब्याज लागत ही अवसर लागत है क्योंकि नगदी रखने पर ब्याज का नुकसान होता है
⭕सौदा हेतु नगदी ऋण लेकर या विनिवेश से प्राप्त किया जाता है

🔰टोबीन का दृष्टिकोण
(जोखिम निवारण तरलता अधिमान सिद्धात)

टोबीन ने तरलता पसन्दगी का जोखिम के प्रति व्यवहार में तरलता अधिमान प्रस्तुत किया

➖टोबीन ने मौद्रिक सिद्धात को पूजी सिद्धात के साथ समन्वय करता है तथा यह बताता है कि मुद्रा की मांग का आकार मुद्रा के प्रतिस्थापन सम्पतियों से प्राप्त होने वाली आय पर निर्भर है

➖ब्याज परिसम्पत्तियों से पूजी लाभ अथवा हानि का प्रत्याशित मूल्य हमेशा शून्य होता है

➖किसी भी परिसम्पत्ति की मांग एक ब्याज दर पर निरभर ना होकर बहुत ब्याज दरों पर निर्भर है

➖एक परिसम्पत्ति की ब्याज दर केवल उसकी पूर्ति पर निर्भर नही बल्कि अन्यं परिसम्पत्तियों की पूर्ति पर निर्भर है

➖बॉन्ड व मुद्रा के चुनाव के बजाय मिश्रण को पसंद करता है

🔰गुर्लेशा की विचारधारा 1959 ग्रेट ब्रिटेन

मुद्रा एवम कीमतों में पूर्णता में ना केवल नगदी की मांग आती है बल्कि तरल सम्पति का समावेश होता है

➖गुर्लेशा ने तरलता पर विचार दिया

➖मांग राशियों के अतिरिक्त अन्य तरल परिसम्पत्ति को सामील किया है

🔜नोट पोर्टफ़ोलियो सिद्धात अलग अलग परिसम्पत्तियों की अलग अलग ब्याज दर मानता है जबकि तरलता सिद्धात एक ही ब्याज दर मानता है
🔵किन्स से टोबीन की श्रेष्ठता

टोबीन ने स्वम माना है कि नगदी की मांग व ब्याज दर में उल्टा सम्बंध होता है टोबीन ने किन्स के तरलता जाल को शामिल नही किया है इससे  द्वि विभाजन की समस्या दूर हो गई

एक निवेशक एक समय मे बॉन्ड्स व नगदी दोनों को विभिन्न अनुपात में जमा रख सकता है जबकि किन्स केवल एक को अपने पास रखता है
 1.मुद्रा की सापेक्ष मांग निर्भर करती है ?
A.ब्याज दर पर
B.आय पर
C.लाभ पर
D.उत्पादन पर

2.किन्स के अनुसार तरलता पसन्दगी किन बातों पर निर्भर करती है ?
A.सौदा उद्देश्य
B.सट्टा उद्देश्य
C.सतर्कता उद्देश्य
D.सभी

3.वह सिद्धात जिसमे मुद्रा की लेनदेन संबंधित मांग ब्याज की दर पर निर्भर करती है प्रस्तुत किया था ?
A.किन्स और पिगू
B.बोमेल और टोबीन
C.हिक्स और सोलो
D.सेम्युसन और मिड

4.मुद्रा की मांग का पोर्टफोलियो दृष्टिकोण दिया ?
A.मिल्टन फ्रीडमैन
B.बोमेल
C.टोबीन
D.सभी

5.तरलता जाल वहा से प्रारम्भ होता है जहाँ से
A.मुद्रा की पूर्ति बढ़ाने पर भी ब्याज की दर नीचे नही गिरती
B.तरलता पसन्दगी वक्र Xअक्ष के समांतर हो जाता है
C.मुद्रा की पूर्ति बढ़ाने पर ब्याज दर नीचे गिर जाती है
D.A और B दोनों

6.मालसूची दृष्टिकोण दिया था है
A.डब्ल्यू जे बोमेल
B.मिल्टन फ्रीडमैन
C.टोबीन
D.किन्स

7.माल सूची दृष्टिकोण की मान्यता नही है
A.सौदा से पूर्व अनुमान किया जा सकता है
B.मुद्रा को बांड में और बॉन्ड को मुद्रा में आशनी से बदला नही जा सकता
C.दी हुई समय अवधि में ब्याज की दर स्थिर रहती है
D.नगदी को धारण करने की दो प्रकार की लागते आती है ब्याज लागत व गैर ब्याज लागत

8.माल सूची दृष्टिकोण में कुल लागत n =bt/c+rc/2 है यहां rc/2 प्रकट करता है ?
A.नगदी जमा करने की वार्षिक ब्याज लागत
B.नगदी जमा ना करने की वार्षिक ब्याज लागत
C.दलाल की फीस
D.कोई नही

9.माल सूची दृष्टिकोण में bt/c प्रकट करता है ?
A.नगदी के जमा रखने के ब्याज लागत
B.दलाली फीस
C.औसत धारित नगदी
D.नगदी जमा रखने की वार्षिक ब्याज लागत है

10.बोमेल का दृष्टिकोण किन्स के दृष्टिकोण से श्रेष्ठ है क्योंकि ?
A.मुद्रा की सौदा मांग और आय दोनों में सम्बन्ध अनुपात से कम होता है
B.मुद्रा की सौदा मांग और आय रेखीय ओर आनुपातिक  सम्बन्ध माना जाता है
C.मुद्रा की सौदा मांग ब्याज निरपेक्ष है
D.सौदा व सट्टा में विभाजन मौजूद है

12.बोमेल दृष्टिकोण में b का अर्थ है?
A.ब्याज लागत
B.गैर ब्याज लागत
C.दोनों
D.कोई नही

13.मुद्रा की मांग के दृष्टिकोण के सिद्धांतों का कालक्रम सही है ?
A.बोमेल 1952
B.मिल्टन फ्रीडमैन 1956
C.टोबीन 1958
D.किन्स 1936
E.उपरोक्त सभी

14.टोबीन की मुद्रा मांग का सिद्धांत है ?
A.जोखिम निवारण तरलता अधिमान सिद्धात
B.पोर्टफोलियो दृष्टिकोण
C.ब्याज दर में वर्द्धि होने पर सम्पति धारक की अपेक्षकृत अधिक अंस ऋण पत्रों में रखते है
D.उपयुक्त सभी

15.मुद्रा की मांग का सिद्धात है?
A.फ्रीडमैन
B.बोमेल
C.टोबीन
D.सभी

16.किंस सिद्धन्त से टोबीन के सिद्धांत की श्रेष्ठता नही है ?
A.विविध निवेश सूची
B.द्वि विभाजन को समाप्त करना
C.अधिक यथार्थ वादी है
D.रोचक दृष्टिकोण पेश नही करता है

17.मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार सम्पति के प्रकार है
A.मुद्रा और बॉन्ड
B.शेयर
C.भौतिक व मानवीय पूजी
D.उपयुक्त सभी

18.मिल्टन फ्रीडमैन दृष्टिकोण में w=y/r है यह समीकरण प्रकट करता है ?
A.W कुल सम्पति का चालू मूल्य
B.Y सम्पति की पांच किस्मो में प्रत्याशित आय का कुल प्रवाह
C.r ब्याज की दर
D.सम्पति पूजीकृत आय है
E.उपयुक्त सभी

19.मिल्टन फ्रीडमैन ने मुद्रा की मांग व आय में क्या सम्बंद पाया है
A. मुद्रा की मांग की आय लोच इकाई के बराबर है
B.मुद्रा की मांग की आय लोच इकाई से ज्यादा है
C.मुद्रा की मांग की आय लोच 1.8  है
D. उपयुक्त में कोई नही

20.मिल्टन फ्रीडमैन के अनुसार मुद्रा परिमाण सिद्धात है
A.मुद्रा की मांग का सिद्धात
B.कीमत स्तर के निर्धारण सिद्धात
C.मुद्रा की पूर्ति सिद्धात
D.वास्तविक उत्पादन निर्धारण सिद्धात

 21.मिल्टन फ्रीडमैन समीकरण में rb का अर्थ है ?
A.शेयरों के लाभांश
B.ऋण पत्रों पर ब्याज
C.सम्पति का प्रतिफल
D.बैंकों की ब्याज दर

22.सूची मिलान कीजिए
अ.मुद्रा की मांग का सिद्धात 1.फ्रीडमैन
ब.मालसूची सिद्धात।          2.बोमेल
स.जोखिम निवारण तरलता अधिमान सिद्धात।                           3.टोबीन
द.मुद्रा के लेनदेन मांग         4.किन्स

A.1 2 3 4
B.2 3 4 1
C.3 2 4 1
D.4 3 2 1

23.किन्स के अनुसार लोगो को तरल नगदी रखने की इच्छा के निम्नलिखित में से कोनसे उद्देश्य होते है ?
A.लेनदेन उद्देश्य
B.सतर्कता उद्देश्य
C.सट्टा उद्देश्य
D.उपरोक्त सभी

24.किन्स के अनुसार मुद्रा की कुल मांग फलन है ?
M=L(y,r)
M=L(Y)
M=L(r)
M=L(s)

उतर सूची..
1.A, 2.D, 3.B, 4.D, 5.D, 6.A 7.B
8.A, 9.B, 10.A, 12.B, 13.E 14.A
15.D, 16.D, 17.D, 18.E, 19.C,20.A
21.B, 22.A, 23.D 24.A

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