गरीबी की अवधारणा


16.Concepts and Various measurement of poverty in India
🔰भारत मे गरीबी की अवधारणा एवम माप

♻गरीबी एवम असमानता
गरीबी का अर्थ निरपेक्ष गरीबी से है जिसका अभिप्राय मानव की आधारभूत आवश्यकताओ ,खाना, कपड़ा, स्वस्थ सुविधा आदि की पूर्ति हेतु प्रयाप्त वस्तुओं एवम सेवाओं को जुटा पाने की असमर्थता से है

➖सापेक्ष गरीबी आय व सम्पति की असमानता को प्रदर्शित करती है

♻गरीबी के माप
योजना आयोग द्वारा गठित विशेषज्ञ दल के अनुसार ग्रामीण छेत्रो में 2400 कैलोरी प्रतिदिन, तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रतिदिन का पोषण प्राप्त न करने वाले व्यक्ति को गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है
➖भारत मे गरीबी के नवीनतम आकलन के लिए प्रो.सुरेश तेंदुलकर की अद्यक्षता में गठित विसेसज्ञ रिपोर्ट के आधार पर बनाया गया है इस आधार पर जुलाई 2013 में नवीनतम रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी
➖निर्धनता या गरीबी को आमतौर पर न्यूनतम स्तर वाली आय में रहने वालों और कम उपभोग करने वालों के अर्थ में परिभाषित किया जाता है व्यक्तियों या परिवारों द्वारा जो स्वास्थ्य सक्रिय और सभ्य जीवन के लिए न्यूनतम आवश्यकताओं को वहन नहीं कर पाते वह निर्धनता या गरीब कहा जाता है

♻गरीबी की अवधारणा ( Concept of poverty )
गरीबी भूख है और उस अवस्था में जुड़ी हुई है निरन्तरता। यानी सतत् भूख की स्थिति का बने रहना। गरीबी है एक उचित रहवास का अभाव, गरीबी है बीमार होने पर स्वास्थ्य सुविधा का लाभ ले पाने में असक्षम होना, विद्यालय न जा पाना और पढ़ न पाना

➖प्रो.एम.रीन का उल्लेख करते हुये अमर्त्य सेन लिखते हैं कि ”लोगों को इतना गरीब नहीं होने देना चाहिये कि उनसे घिन आने लगे, या वे समाज को नुकसान पहुंचानें लगें।

⭕गरीबी के आधार ( Basis of poverty )
भारत में गरीबी रेखा को परिभाषित करना हमेशा से ही एक विवादास्पद मुद्दा रहा है, विशेष रूप से 1970 के मध्य में जब पहली बार इस तरह की गरीबी रेखा का निर्माण योजना आयोग द्वारा किया गया था जिसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमश: एक वयस्क के लिए 2,400 और 2,100 कैलोरी की न्यूनतम दैनिक आवश्यकता को आधार बनाया गया था।
खेती से जुड़ती गरीबी
विकास से बढ़ता अभाव

⭕निर्धनता के प्रकार ( Types of poverty )
यह दो प्रकार की होती है—
🔖सापेक्ष निर्धनता-
सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय विभिन्न वर्गों , प्रदेशों और देशों की तुलना में पाई जाने वाली निर्धनता से है
🔖निरपेक्ष निर्धनता-निरपेक्ष निर्धनता से अभिप्राय किसी देश की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है

➖निर्धनता रेखा- वह रेखा है जो उस प्रति व्यक्ति औसत मासिक व्यय को प्रकट करती है जिसके द्वारा लोग अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं को संतुष्ट करते हैं

⭕निर्धनता के कारण
1-राष्ट्रीय उत्पाद का निम्न स्तर
2-विकास की कम दर
3-कीमतों में वृद्धि
4-जनसंख्या का दबाव
5-बेरोजगारी
6-पूंजी की कमी
7-कुशल श्रम और तकनीकी ज्ञान की कमी
8-उचित औद्योगीकरण का अभाव
9-सामाजिक संस्थाएं

🔰निर्धनता मापन की विभिन्न समितियां
तत्कालिन योजना आयोग ने सितंबर 1989 में प्रोफेसर डी.टी. लकड़वाला की अध्यक्षता में एक विशेष समूह की नियुक्ति की जिसने प्रति व्यक्ति कैलोरी उपभोग को आधार बनाते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी प्रति व्यक्ति और शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति उपभोग को आधार माना है
भारत में सर्वप्रथम गरीबी का अध्ययन श्री बी एस मिन्हास ने किया और उन्होंने 1956-57 तथा 1967-68 के बीच गांव के निर्धनों के प्रतिशत में कमी होने के संकेत दिए

लोरेंज वक्र- द्वारा किसी देश के लोगों के बीच आई विषमता को मापा जाता है, गिनी गुणांक को इटालियन कोरेडो गिनी ने विकसित किया था
1. लकड़वाला समिति ( Lakadavala committee )-
समिति ने अपने फार्मूले में शहरी निर्धनता के आकलन के लिए औद्योगिक श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि श्रमिकों के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को आधार बनाया है
2. सुरेंद्र तेंदुलकर समिति ( Surendra Tendulkar Committee) –

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष सुरेंद्र तेंदुलकर की रिपोर्ट गरीबी का आंकड़ा 37.2% प्रतिशत बताती है
✍?देश में निर्धनता अनुपात का आकलन योजना आयोग द्वारा राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के माध्यम से किया जाता था इसके अनुसार 2012 में गरीबी रेखा के नीचे 22% लोग थे
✍?निर्धनों की निरपेक्ष संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश का स्थान जहां सबसे ऊपर है वहीं निर्धनता अनुपात के मामले में (कुल जनसंख्या में निर्धन जनसंख्या का प्रतिशत )ओडिशा (46.8%)का स्थान सर्वोच्च है भारत में राज्यों में न्यूनतम निर्धनता जम्मू कश्मीर में है जबकि संपूर्ण भारत में सबसे कम निर्धनता अंडमान निकोबार (0.4%) में है

3. रंगराजन समिति ( Rangarajan Committee )-
मनमोहन सिंह की सरकार में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख सी. रंगराजन ने गरीबी के आकलन पर तेंदुलकर समिति की कार्यपद्धति की समीक्षा की थी
योजना आयोग ने देशभर में गरीबों की संख्या के संबंध में विवाद पैदा होने के मद्देनजर गरीबी के आकलन के लिए तेंदुलकर समिति की पद्धति की समीक्षा के लिए मई 2012 में तत्कालीन सी. रंगराजन की अध्यक्षता में विशेषज्ञ समूह का गठन किया था।
रंगराजन समिति के अनुसार शहरों में प्रतिदिन ₹45 तक खर्च कर सकने वाले व्यक्ति को ही गरीब की श्रेणी में रखा जाए जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह सीमा ₹32 है औसत माहवार खर्चे के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में ₹972 प्रतिमाह से कम और शहरों में 1407 से कम प्रतिमाह कमाने वालों को गरीब माना जाएगा

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु ( Main point of report )
2009-10 में 38.2 प्रतिशत आबादी गरीब थी जो 2011-12 में घटकर 29.5 प्रतिशत पर आ गई
इसके विपरीत तेंदुलकर समिति ने कहा था कि 2009-10 में गरीबों की आबादी 29.8 प्रतिशत थी जो 2011-12 में घटकर 21.9 प्रतिशत रह गई
कोई शहरी व्यक्ति यदि एक महीने में 1,407 रुपये (47 रुपये प्रतिदिन) से कम खर्च करता है तो उसे गरीब समझा जाए, जबकि तेंदुलकर समिति के पैमाने में यह राशि प्रति माह 1,000 रुपए (33 रुपये प्रतिदिन) थी
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति माह 972 रुपये (32 रुपये प्रतिदिन) से कम खर्च करने वाले लोगों को गरीबी की श्रेणी में रखा है, जबकि तेंदुलकर समिति ने यह राशि 816 रुपये प्रति माह (27 रुपये प्रतिदिन) निर्धारित की थी
2011-12 में भारत में गरीबों की संख्या 36.3 करोड़ थी, जबकि 2009-10 में यह आंकड़ा 45.4 करोड़ था।तेंदुलकर समिति के अनुसार, 2009-10 में देश में गरीबों की संख्या 35.4 करोड़ थी जो 2011-12 में घटकर 26.9 करोड़ रह गई
आशा है कि समिति की इस रिपोर्ट से देश में गरीबों की संख्या के बारे में जो संशय बना था वह दूर हो जाएगा।विशेषज्ञ समूह को अपनी रिपोर्ट गठन के 7 से 9 माह में देनी थी,इसे कई बार विस्तार दिया गया
उल्लेखनीय है कि गरीबी के बारे में व्यक्त अनुमान को लेकर योजना आयोग को तब कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी थी जब उसने सितंबर 2011 में सर्वोच्च न्यायालय में दिए एक हलफनामे में यह कहा कि शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 32 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 26 रुपये प्रति व्यक्ति दैनिक खर्च करने वाला गरीब नहीं है।
तेंदुलकर पद्धति पर आधारित पिछले वर्ष जुलाई में जारी आयोग के अनुमान के अनुसार देश में गरीबी का अनुपात 2011-12 में घटकर 21.9 प्रतिशत रह गया जो कि 2004-05 में 37.2 प्रतिशत पर था।
बीपीएल जनसंख्या में भारतीय राज्यों की स्थिति
यह बहुत ही दयनीय स्थिति है कि, भारत को एक विकासशील देश भी कहा जाता है और अभी भी यहां गरीबी रेखा से नीचे इतनी बड़ी आबादी रहती है।

Poverty important facts –
.सामान्य रूप से भारत में 15 से 59 वर्ष के आयु वर्ग के व्यक्तियों को आर्थिक रुप से सक्रिय माना जाता है
.भारत में बेरोजगारी से संबंधित आंकड़े राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण द्वारा जारी किए जाते हैं
.वार्षिक रोजगार के आकलन के लिए कार्य दिवसों की मानक संख्या 270 है
.अगर किसी व्यक्ति के पास 35 दिनों से भी कम दिनों का रोजगार वह तो राष्ट्रीय स्तर तक उसे पूर्ण बेरोजगार मान लिया जाता है यदि उसके कार्य दिवस पर 30 दिनों से ज्यादा एवं 135 से कम दिनों का हो तो उसे अर्थ बेरोजगार माना जाता है वह 135 दिनों से ज्यादा दिनों के रोजगार की स्थिति हो तो उसे पूर्ण रोजगार कहा जाएगा

➖सापेक्ष गरीबी तुलनात्मक रूप से आय की असमानता को कहा जाता है
➖निरपेक्ष गरीबी-न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति जुटा पाने में असमर्थ है
➖आय गरीबी- भोजन, कपड़ा,की पूर्ति नही कर पाने वाला वर्ग
➖मानव गरीबी -जिनको संतोष जनक जीवन दीर्घ आयुता स्वस्थ रहनसहन से वंचित वर्ग

🔰आय के दृष्टिकोण
1.परम्परागत दृष्टिकोण
2.बहुआयामी दृष्टिकोण
↪तेंदुलकर समिती 2009 दृष्टिकोण
↪HDR दृष्टिकोण 2010 में प्रतिपादित बहुआयामी गरीबी निर्देशकांक (MPI)
↪रंगराजन कमेटी रिपोर्ट 2012

🔰लोरेंज वक्र विधि
➖ग्राफ पर 1905 में अमेरिकी अर्थशास्त्री मैक्स लोरेन्ज द्वारा विकसित धन वितरण की एक चित्रमय प्रतिनिधित्व, एक सीधे विकर्ण लाइन धन वितरण की सही समानता का प्रतिनिधित्व करता है
➖ लॉरेंज वक्र धन वितरण की वास्तविकता दिखा रहा है, यह नीचे झूठ। सीधी रेखा और घुमावदार लाइन के बीच के अंतर को धन वितरण, गिनी गुणांक द्वारा वर्णित एक आंकड़ा की असमानता की राशि है।


➖इसका प्रत्येक बिंदु परिस्थिति को व्यक्तं करता है अलग अलग आय वाले व्यक्तियों का अलग अलग प्रदर्शन बिंदु होता है
➖मापन 0 से 100 तक होता है इसमे मापन ऋणात्मक नही होता है
➖समता रेखा से ऊपर रेखा नहीं उठती
➖लोरेंज वक्र जितना पास होगा विषमता उतनी ही कम होगी जबकि रेखा जितनी दूर होगी विषमता ज्यादा होगी
चित्र

🔰गिनी गुणांक
➖एक सांख्यिकीय फैलाव का माप हैं, जिसका उद्देश्य किसी राष्ट्र के निवासियों के आय वितरण का प्रतिनिधित्व करना हैं, और यह सर्वाधिक प्रयोग होने वाला असमानता का माप हैं
➖इसका विकास समाजशास्त्री कोराडो गिनी द्वारा किया गया और यह उनके 1912 के पत्र "वरिएबिलिटी एण्ड म्युटेबिलिटी" में प्रकाशित हुआ
➖समाज मे व्याप्त आय एवं संपत्ति के असमान वितरण की माप सांख्यकी आधार पर करना गिनी गुणाक है
➖यदि गिनी गुणाक शून्य है तो समाज मे सभी व्यक्तियों की आय समान मानी जायेगी इसके विपरीत गिनी गुणाक का मान 1 का अर्थ है की समाज के कुछ विशेष वर्ग के पास देश की समस्त आय केंद्रित है
➖गिनी गुणांक, प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र संगठन के प्रावधानों के अनुसार:
कम से कम 0.2 :-पूर्ण आय मीन
0.2-0.3 :-औसत आय की तुलना
0.3-0.4 :-अपेक्षाकृत उचित आय
0.4-0.5 :-बड़ी आय की खाई
ऊपर 0.5 :-आय की खाई
G =छायांकित क्षेत्रफल A/समानता रेखा के नीचे का सम्पूर्ण क्षेत्रफल BCD
G=0 आय सभी मे समान है
G=1 एक ही व्यक्ति के पास आय है 


गिनी गुणाक में आय स्तर 0 से 1 के मध्य होती है
➖आयानगर व ब्रह्मनद 1 से 6 योजना काल तक के व्यय को उपभोग पर लोरेंज वक्र का गिनी गुणाक निकाला तो पाया पिछले बीस वर्षों से विषमता ज्यो की त्यों बरकरार है
➖काल्पनिक समता रेखा के नीचे का सम्पूर्ण क्षेत्रफल के अनुपात को प्रदर्शित करता है
➖गिनी गुणाक ×100 =गिनी सूचकांक कहलाता है


🔰निरपेक्ष गरीबी
➖सापेक्ष गरीबी मात्रा को नही बताती है इसकी कमी को दूर करने के लिए निरपेक्ष माप का प्रयोग किया जाता है
➖सर्वप्रथम प्रयोग FAO के प्रथम महानिदेशक R वाइड ने 1945 में किया था
➖गरीबी के निश्चित मापदण्ड को हम गरीबी रेखा कहते है
1978 में योजना आयोग द्वारा ग्रामीण स्तर पर 2400 क्लोरी प्रतिदिन तथा सहरी क्षेत्रों में 2100 क्लोरी प्रतिदिन मानी है
➖जिस व्यक्ति का दैनिक उपभोग व्यय स्तर नीचे होगा वह गरीबी है इस विधि को हम हैंड काउंट विधि कहते है सिर गणना विधि
🔰गरीबी का सेन दृष्टिकोण
➖उपरोक्त विद्या यह बताने में असक्षम रही की गरीबी रेखा के नीचे व्यक्ति कितना गरीब है वह उसमे कितनी असमानता है
➖ विषमता समायोजित प्रति व्यक्ति आय की धारणा अमर्त्यसेन ने 1973 में प्रस्तुत की इस में आय स्तर में वितरण का आयाम जोड़ कर एक नया माप विकसित किया
➖ w =u (1-G)
कल्याण =प्रतिव्यक्ति आय (1-विषमता की आय)
➖सेन निर्देशाक का विकसित किया की गरीबी रेखा से कितना नीचे गिरावट उस आधार पर गणना की जा सकती है
🔰भारत मे गरीबी के माप
क. पोषाहार का न्यूनतम स्तर
ख. पोषाहार लागत का निर्धारण
योजना आयोग का माप मान्य है भारत मे निर्धनता का प्रथम प्रयास जुलाई 1962 में किया गया योजना आयोग द्वारा एक कार्यदल
D R गाडगिल
अशोक मेहता
B N गांगुली
P S लोकनाथन
पीताम्बर पंत
VKRV राव
मंनरायन
अन्ना साहब
1961 में 20 रुपया वांछित न्यूतम उपभोग प्रस्तुत किया
जीवन की कुछ निर्दिस्ट आवश्यकता की पूर्ति से वंचित रहना गरीबी है
भारत मे आकलन के लिए योजना आयोग(नीति आयोग) द्वारा सुरेश तेंदुलकर की अद्यक्षता में expart group का गठन किया जिसमे 2009 में रिपोर्ट प्रस्तुत की
➖गरीबी का अनुमान प्रति 5 वर्ष में nsso द्वारा किया जाता है
श्रम विभाजन की धारणा का समर्थन स्मिथ ने किया था
⚜कौशल विकाश मई 2017 में प्रारंभ हुआ
⚜अपना गांव अपना काम योजना प्रारम्भ 1 जनवरी 1991 में हुवा इसका उद्देश्य गांव के प्रत्येक के लिए रोजगार उत्पन्न कर गरीबी दूर करना
⚜नियोजन गारन्टी योजना का ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम महाराष्ट्र से प्रारम्भ हुवा
⚜भारत मे बेरोजगारी का मापन चालू मासिक स्तर पर किया जाता है
⚜दांडेकर रथ फार्मूला का इस्तेमाल 1971 से किया गया उसने भोजन की क्लोरी की मात्रा को आधार माना
⚜सुरेश तेंदुलकर समिति ने कास्ट आफ लिविंग को निर्धनता की पहचान के लिए आधार स्वीकार किया
⚜छट्टी पंचवर्षीय योजना में गरीबी उन्मूलन का नारा दिया गया
♻लकड़वाला विसेसज्ञ दल 1989 में गठन किया गया व 1993 में रिपोर्ट प्रस्तुत  की गई 9 वी पंचवर्षीय योजना में निर्धनता माप को स्वीकार कर लिया गया परत7 राज्य में अलग अलग निर्धनता रेखा है प्रारंभ में 28 बाद में 35 रेखाएं है

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