गुणक Multiplier

🔰Multiplier गुणक

♻गुणक की अवधारणा

➖गुणक का सिद्धांत सर्वप्रथम " F. A. काहन" ने 1931 में रोजगार गुणक का प्रतिपादन किया

➖जब किसी अर्थव्यवस्था में विनियोग किया जाता है तो उससे आय में उतनी ही वर्द्धि नही होती जितना विनियोग बढ़ाया है बल्कि विनियोग से कुछ गुणा अधिक/कम वर्द्धि होती है ऐसा गुणक प्रभाव के कारण होता है

➖गुणक वह संख्या है जिसमे विनियोग के परिवर्तन का गुणा करने पर राष्ट्रीय आय में परिवर्तन मालूम होता है

विनियोग का परिवर्तन X =राष्ट्रीय आय में परिवर्तन

∆Y =  K ∆ I या K = ∆Y/∆I

Y -आय को दर्शाता है
∆ -परिवर्तन को दर्शाता है
K -गुणक को कहते है
I -विनियोग को दर्शाता है

♻समीकरण -
∆Y -आय में परिवर्तन को प्रदर्शित करता जे
K -गुणक को कहते है
∆I -विनियोग में परिवर्तन को प्रदर्शित करता है

👉∆Y/∆I =K अर्थात आय व विनियोग में परिवर्तन का अनुपात गुणक कहलाता है

⭐परिभाषा

प्रो.कुरिहार के अनुसार "गुणक निवेश में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप आय में होने वाले परिवर्तनों का अनुपात है "

गुणक का सूत्र ∆Y =K∆I या K =∆Y /∆I

प्रो किन्स ने गुणक को "K" नाम दिया है

किन्स के अनुसार "निवेश गुणक से ज्ञात होता है कि जब कुल निवेश में वर्द्धि की जाएगी तो आय में जो वर्द्धि होगी वह निवेश में होने वाली वर्द्धि से K गुणा अधिक होगी"

🔖 गुणक के अप्रत्यक्ष रूप से सिद्धांत का प्रतिपादन "नट वीकशेल" ने स्वीडन में 19वीं सदी में किया

🔖 गुणक का सविस्तार वर्णन 'एन. जोहानसेन 1903 में जर्मनी में किया लेकिन इसकी व्याख्या अपूर्ण रही

🔖किन्स द्वारा  व्याख्या 1929 में की गई

🔖 1931 में Economic Journal प्रकाशित लेख किया RF काहन ने सर्वप्रथम से प्रस्तुत किया

🔖 द रिलेशन ऑफ होम इन्वेस्टमेंट अनएंप्लॉयमेंट विकास किया है

🔖1936 में द जनरल थ्योरी का सिद्धांत किन्स दिया

जब निवेश बढ़ाया जाता है तो आय व रोजगार की मात्रा में वृद्धि हो जाती है

⭕गुणक को प्रभावित करने वाले तत्व

⭐बचत संग्रहण की मात्रा पर गुणक निर्भर करता है
⭐पूर्व कर्जो को चुकाना प्रभावित करता है
⭐निर्यात-आयात प्रभाव प्रभावित करता है
⭐उपभोग पदार्थ की उपलब्धि
⭐गुणक की अवधि
⭐रोजगार की अवस्था
⭐सरकारी व्ययों व करो का प्रभाव
गुणक को प्रभावित करते है

🔝प्रायोगिक गुणक को ज्यादा महत्वपूर्ण मानते है

🔖जब अर्थव्यवस्था में विनियोग किया जाता है तो आय में कितनी वर्द्धि हुई उसका अनुपात ही गुणक है (आय में वर्द्धि ÷विनियोग में वर्द्धि)

➖किन्स ने काहन के विचार को गृहण करके 'विनियोग गुणक 'का विचार दिया

➖गुणक एक अंक होता है जिसमे विनियोग के परिवर्तन से गुणा करने पर आय परिवर्तन निकल आता है

➖उपभोग की प्रबृती जितनी अधिक होगी गुणक की मात्रा भी उतनी अधिक होगी

➖काहन का रोजगार गुणक =कुल रोजगार सृजन/प्राम्भिक रोजगार
♻ K =N2/N1


➖गुणक का सम्बंध -(MPC) सीमांत उपभोग प्रवर्ति से प्रत्यक्ष सम्बंध है

MPS से गुणक का विलोम सम्बन्ध है

➖गुणक का मूल्य ( 0 < MPC <1) होता है अर्थात 0 से अधिक होती है MPC और 1 से कम होती है

1 ओर ळ् (अनन्त) के मध्य होता है

♻ MPC + MPS = 1 (दोनों का जोड़ हमेशा एक होता है)

➖ विनियोग में कमी होने पर गुणक विपरीत दिशा में क्रियाशील हो जाता है

♻ C = a +by किन्स का अल्पकालीन उपभोग फलन है

यहा
a स्वचालित उपभोग है(इसका आय से सम्बन्ध नही है)

by प्रेरित उपभोग है(इसका सम्बंध आय से है)

आय में वर्द्धि से जो उपभोग में परिवर्तन होता है उसे सीमान्त उपभोग प्रवर्ती कहते है

➖उपभोग फलन का ढाल MPC के मूल्य पर निर्भर करता है चित्र


➖उपभोग व आय में सीधा सम्बंध है
C £(Y)  यहा Y👆 बढ़ता है तो C 👆बढ़ता है

➖किन्स ने गुणक के सिद्धान्त  को विकसित किया है
(निवेश को बढ़ाया जाता है तो आय व रोजगार की मात्रा कई गुना बढ़ेगी)

➖गुणक की मात्रा उपभोग पर निर्भर होती है जितना उपभोग बढ़ेगा उतनी ही गुणक की मात्रा बढ़ेगी

➖गुणक में वर्द्धि आय में वर्द्धि /निवेश में वर्द्धि का अनुपात है (∆Y/∆I)

आय का साम्य स्तर Y =C+I है इसमे
निवेश में परिवर्तन(गुणक में परिवर्तन)कर दिया जाए तो
∆Y =∆C +∆I  इसमे किन्स ने निवेश परिवर्तन को स्वतंत्र माना है

उपभोग परिवर्तन -आय में परिवर्तन का फलन
C =a +by

A स्थिर b सीमान्त उपभोग परवर्ती स्थिर मानने पर उपभोग में जब ही परिवर्तन जब आय में परिवर्तन हो ∆C =b∆Y

B की सीमान्त उपभोग प्रवर्ति ∆Y/∆I =1/1-MPC =1/MPS होता है

गुणक में विनियोग बढ़ने से आय बढ़ती है और विनियोग घटने से आय घटती है लेकिन कितनी मात्रा में घटती/बढ़ती है यह उसका गुणन है उदहारण विनियोग 100 रुपय हुवा आमदनी 300 तो गुणक 300/100 =3 हो जाएगा इसी तरह 400 में गुणक 4 हो जाएगा

➖गुणक वह अंक होता है जिसे विनियोग के परिवर्तन से गुणा करने पर आय का परिवर्तन निकला आता है

 विनियोग को बढ़ाया जाता है तो आय में गुणक के अनुपात में वृद्धि होती है और यदि विनियोग घटाया जाता है तो आय में गुणक के अनुपात में कमी होती है इस तरह गुणांक दोनों तरफ अपना पूर्ण प्रभाव दिखाता है

⭐गुणक का आकार /मूल्य

गुणक सीमान्त उपभोग प्रवर्ति पर निर्भर करता है उपभोग परवर्ती अधिक तो गुणक का मूल्य अधिक होगा इसके विपरीत उपभोग परवर्ती कम तो गुणक का मूल्य कम होगा

सीमान्त उपभोग प्रवर्तित से गुणक निकलने का सूत्र
गुणक =1 /1-सीमान्त उपभोग परवर्ती
या K =1/1-MPS

⭐गुणक का महत्व

गुणक की धारणा उत्पादन, आय व रोजगार सिद्धांत में बहुत महत्वपूर्ण है

1.गुणक का विनियोग कार्य मे महत्व है
2.गुणक व्यापार चक्रों के विश्लेषण में सहायक है
3.गुणक बचत विनियोग में समानता स्थापित करने में सहायक है
4.गुणक आर्थिक नीतियों के निर्धारण मे सहायक है
5.गुणक सरकारी हस्तक्षेप की नीति का समर्थन करता है

सर्वप्रथम गुणक की अवधारणा का विकास RF काहन ने 1931 में रोजगार गुणक के रुप मे किया किन्स द्वारा इस अवधारणा का प्रयोग निवेश तथा आय में परिवर्तन की प्रक्रिया की व्याख्या करने में किया

🔰किन्स का निवेश गुणक

किंसियन्स गुणक से आशय उस संख्या से है जिससे विनियोग के परिवर्तन को गुना करने से कुल उतपत्ति में होने वाले परिवर्तनों को ज्ञात किया जा सकता है

➖जब किसी अर्थव्यवस्था में विनियोग किया जाता है तो उससे आय में उतनी ही वर्द्धि नही होती जितना विनियोग बढ़ाया है बल्कि विनियोग से कुछ गुणा अधिक/कम वर्द्धि होती है ऐसा गुणक प्रभाव के कारण होता है


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