मनोविज्ञान सार

-: मनोवैज्ञानिक सारांष :-

■ पाठ 1 शिक्षण अधिगम में मनोविज्ञान का महत्व

▪Psychology शब्द ग्रीक शब्द Psyche (साइके ) और Logos (लोगोस) के मिलकर बना है

▪Psyche आत्मा + Logos अध्ययन =  Psychology का शाब्दिक अर्थ है – “आत्मा का अध्ययन”

▪मनोविज्ञान का जनक "अरस्तू "को कहा जाता है

🔸 शिक्षा का अर्थ विधा प्राप्त करने से है

▪मनोविज्ञान सब्द का सर्वप्रथम प्रयोग "रुडोल्फ गोइकिल" ने 1590 में अपनी पुस्तक 'साइकोलोजीया ' में किया था

▪शिक्षा मनोविज्ञान का विकास 1900 ई में हुवा तथा इसका निश्चित स्वरूप धारण 1920 में किया गया

▪1940 में अमेरिका में अमेरिकन साइक्लोजीकल एसोसिएशन की स्थापना हुई

▪1947 में "नेशनल सिकरेटरी आफ कालेज टीचर आफ एजुकेशन " से क्रमगत विकास को आगे बढ़ाया
है

▪अरस्तू के अनुसार :-
हमारी इंद्रिय आँख, नाक, कान ,जीभ व त्वचा ये इंद्रिय अपना ज्ञान आत्मा को ले जाकर देती है हमारे सरीर का प्रमुख केंद्र आत्मा है

🔝आत्मा के विज्ञान से पूर्व मनोविज्ञान को अंतःकरण का विज्ञान कहा जाता था

🔘मनोविज्ञान का क्रमागत ऐतिहासिक विकास

1.आत्मा का विज्ञान
2.मन का विज्ञान
3.चेतना का विज्ञान
4.व्यवहार एवम अनुभूति का विज्ञान

☯ 1.आत्मा का विज्ञान [अरस्तू, प्लूटो, डेकार्ट ,रुडोल्फ गोइक व रूसो]

☯ 2.मन / मस्तिष्क का विज्ञान [ पोम्पॉनजी (इटली) समर्थक जोनलॉक, थॉमस रीड ,रिचेरी व लिवजीग

☯3.चेतना का विज्ञान [ विलियम वुंट(जर्मनी) ,विलियम जेम्स (अमेरिका),जेम्स सली वाईट्स ]

🔝"चेतना एक बुरा सब्द है इस रूप में मनोविज्ञान की परिभाषित करना मनोविज्ञान का दुर्भाग्य है "

 मैकडुगल ने अपनी पुस्तक "आउट लाइन साइक्लोजी" में पृष्ठ 16 में चेतना सब्द की भृकष निदा की है

🔝मनोविज्ञान का आधुनिक जनक विलियम वुंट है

☯4 .व्यवहार का विज्ञान [ प्रतिपादक वाटसन थे साथ ही वुडवर्थ ,स्किनर ,थार्नडाइक,विलियम मैकडुगल, ई जी बोरिंग,पिल्सबरी]

🔝व्यावहारवाद का जनक J B वाटसन को कहा जाता है

▪🔝व्यवहार सब्द की सर्वप्रथम  1905 में विलियम मेकयुडुगल ने दिया  जबकि व्यवहार का विज्ञान 1912-13 में वाटसन लेकर आया था

▪वाटसन की परिभाषा
1."मनोविज्ञान व्यवहार का सुद्ध विज्ञान है"
2."तुम मुझे कोई भी बालक दो में उसे वैसा बना दुगा जैसा तुम बनाना चाहते हो "

▪क्रो एंड क्रो के अनुसार " 20 वी शताब्दी बालक की शताब्दी है"
अर्थात "बाल केंद्रित शिक्षा"

▪मैकडुगल के अनुसार "मनोविज्ञान आचरण व व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है "

ट्रिक युगल बनने पर आय प्राप्त होती है युगल = मैकडुगल
आ = आचरण
य = यथार्थ

▪स्किनर के अनुसार
"मनोविज्ञान व्यवहार और अनुभव का आधरभूत विज्ञान है"

ट्रिक :-नर के पास व्यवहार व अनुभव होता है

▪क्रो एंड क्रो के अनुसार " मनोविज्ञान  मानव व्यवहार व मानव सम्बन्धो का अध्ययन है "

ट्रिक :-क्रो एंड क्रो में दो सब्द है परिभाषा में दो सब्द है (मानव व्यवहार व मानव सम्बन्ध)

▪सिगमण्ड फ्राइड के अनुसार " मनोविज्ञान अचेतन मन का अध्ययन करने वाला विज्ञान है"

ट्रिक :-अचेतन मन का जिक्र में सिगमण्ड फ्राइड आएगा

▪वुडवर्थ के अनुसार '' मनोविज्ञान जीवन मे आभास व प्रभाव देने वाली प्रत्येक क्रिया व्यवहार है "

▪जिमबोर्डों के अनुसार"मनोविज्ञान जीवधारियों का व्यवहार का विज्ञान है"

◆ 1. अधिगमकर्ता [Learner] शिक्षार्थी/ बालक/ अधेयता

▪वर्तमान में शिक्षा का नियोजन बालक के अनुसार होता है

▪ बालक शिक्षा का केंद्र बिंदु है जिसके चारों तरफ शिक्षण प्रक्रिया घूमती है

▪ बालक के लिए शिक्षा मनोविज्ञान इसलिए उपयोगी है ताकि बालक के वंशानुक्रम, वातावरण, उसकी मानसिक क्रिया उसकी योग्यता व क्षमताओं को जान सके

▪ शिक्षा मनोविज्ञान से बालक की मूल प्रवर्तिया का ज्ञान प्राप्त होता है

▪ मूल प्रवर्तिया का प्रतिपादन विलियम मेकडुगल ने किया इसे मूल प्रवर्तियों का जनक कहा जाता है

▪मूल प्रवर्तिया मेकडुगल के अनुसार 14 मूल प्रवर्तिया है प्रत्येक से जुड़ा एक सवेग होता है

▪सवेग से जो क्रिया होती है वह मूल प्रवर्ति है स्वेग़ स्वभाव जे तथा मूल प्रवर्तिया व्यवहार है

▪मूल प्रवर्तिया जन्मजात होती है जो कभी समान नही होती ये सार्वभौमिक होती है जो व्यवहार को संचालित करती है

▪® मूल प्रवर्तियो को दमन नही करना चाइए बल्की इन्हें शोधन करना चाइए

▪मूल प्रवर्तिया सोधनशील (परिवर्तन शील)होती है

2. शिक्षक / टीचर

▪शिक्षक शिक्षण प्रदान करने की धुरी है जिसे विषय का पूर्व ज्ञान व विधियों व उद्देश्यो का पूर्ण ज्ञान होना चाइए

▪ शिक्षक को ज्ञान "[ स्वम का +शिक्षार्थी का +सिद्धात व शिक्षण सूत्रों का ]

3. शिक्षण अधिगम प्रक्रियाब

▪शिक्षण व अधिगम में गहरा सम्बन्ध है
▪ शिक्षण औपचारिक शिक्षा का साधन है
▪परिभाषा :-
फ्रोबेल - शिक्षक बाल उद्यान का कुशल माली है
फ्रोबेल - माताएं आदर्श अध्यपिका है
पेस्टालजी - परिवार बालक का प्रथम विद्यालय है

▪ शिक्षण द्विमुखी प्रक्रिया - एडम महोदय ने ( बालक व शिक्षक)
▪ शिक्षण त्रिमुखी प्रक्रिया - जान डी वीं व रायबर्न ने दी [ शिक्षक + शिक्षार्थी + पाठ्यक्रम]

▪ कनिघम " पाठ्यक्रम कलाकार के हाथों का यंत्र है"
पाठ्यक्रम का शाब्दिक अर्थ करिकुलम ( लेटिन सब्द) अर्थ दौड़ का मैदान है

▪ शिक्षण एक अंतः प्रक्रिया है जो आमने सामने बैठकर औपचारिक व अनोपचारिक माध्यम से दी जाती है

▪ शिक्षण को °[ उदेश्य , कक्षा कक्षा की स्थति, मनोवैज्ञानिक वातावरण, व्यक्तित्व, कुशलता] प्रभावित बनाती है

■ शिक्षण सूत्र [10]
[ज्ञात - से -अज्ञात]
[सरल - से - जटिल]
[विश्लेषण - से - संश्लेषण]
[विशिष्ठ - से - सामान्य]
[अनिश्चित - से - निश्चित]
[आगमन - से - निर्गमन]
[प्रयोग - से - विवेक]
[मनोविज्ञान - से - तर्क]
[मूर्त - से - अमूर्त]
[पूर्ण - से - अंस]

▪शिक्षण प्रक्रिया में मनोविज्ञान की उपयोगिता
1.शिक्षण उद्देश्यो के निर्धारण में सहायक
2.पाठ्यक्रम के निर्धारण में सहायक
3.समय सारणी के निर्माण में सहायक

■ पाठ .2 शिक्षार्थी का विकास

▪अभिवृद्धि विकास का एक अंग है

■अभिवृद्धि

▪अभिवृद्धि बाह्यय स्वरूप का अध्ययन है जो सारेरिक पक्षो में होने वाले परिवर्तनों का मापता है एक समय बाद अभिवृद्धि रुक जाती है  इसका कोई निश्चित क्रम नही होता है यह वीवृद्धि का सूचक है जिसको मापा व तोला जा सकता है

■ विकास

▪विकास व्यापक होता है यह बाह्य व आंतरिक पक्षो में होने वाले सारेरिक व मानसिक सम्पूर्ण पक्षो का मापक है विकास का क्रम निश्चित होता है जो जीवन पर्यन्त चलता है इसका सीधा मापन सम्भव नही है यह परिमाणात्मक व गुणात्मक होता है इसका एक निश्चित क्रम होता है

▪हरलाक " विकास व्यक्ति में नवीन योग्यता व विशेषता को प्रफ़ुठित करता है "

▪हरलाक ने विकास क्रम दिया :- आकर परिवर्तन - अनुपात में परिवर्तन - चिन्हों में परिवर्तन - नवीन चिन्हों का उदय

■ विकास की अवस्था
1.शैशव्यवस्था - जन्म से 6 वर्ष ( महत्पूर्ण काल,आंतरिक चिंतन,सीखने का आदर्श काल)

2.बाल्यावस्था - 6 -12 वर्ष [ निर्माण काल,अनोखाकाल, वैचारिक क्रिया , मूर्त चिंतन,मिथ्या परिपक्वता)

3.किशोरावस्था - 12 से 18 वर्ष
4.प्रौढ़ावस्था - 18 वर्ष के बाद

■ किशोरावस्था

▪एडोसीयर ( लेटिन सब्द) To Grow to Maturity- परिपक्वता की तरफ बढ़ना

▪पूर्व किशोरावस्था 12-16 वर्ष
▪उतर किशोरावस्था 16 -18 वर्ष Book Adolescence में स्टेनलीहाल ने बताया

■ सिद्धात
▪त्वरिता विकास सिद्धात - स्टेनलीहाल - विकास अक्समात होता है
▪कृत्रिम विकास सिद्धात - थार्नडाइक व हलीगवर्थ - विकास क्रमानुसार धीरे धीरे होता है

▪किशोरावस्था [ कठिनकाल ,उलझनकाल ,आंधी तूफान समस्या, स्वर्णकाल , बसंतकाल , तीव्र विकास , तार्किक चिंतन अहम विशिष्टता की समस्या ]

▪सवेंगो का प्रदर्शन - शिशुव्यवस्था
▪सवेंगो का नियंत्रण - बाल्यावस्था
▪सवेंगो का परिपक्वन - किशोरावस्था
■ किशोरावस्था की परिभाषा

▪स्टेनलीहाल
- किशोरावस्था प्रबल दबाव,तनाव, तूफान एवम संघर्ष का काल है
- किशोरावस्था में सारेरिक, मानसिक, सवेगात्मक परिवर्तन अक्समात होते है
- किशोरावस्था एक नया जन्म है क्योंकि इसमें उच्चतर,श्रेष्ठतर, मानव विशेषता प्रकट करता है

# सूत्र - हाल की इच्छा में किशोर बालक तनाव ,दबाव में रहता है ये अकस्मात परिवर्तन है जिससे नया जन्म होता है

▪ वेलेंटाइन
- व्यक्तिगत व घनिष्ठ मित्रता किशोरावस्था की विशेषता है
- अपराध की नाजुक प्रवर्ती का समय है

# सूत्र - वेलेंटाइन के दिन घनिष्ठ मित्रता होती है जिससे लड़का अपराध करता है

▪रास -
- किशोरावस्था समाज सेवा के आदर्शों का निर्माण व पोषण करता है
- शिशुओं के समान किशोर वातावरण समायोजन का कार्य पुनः आरम्भ करता है

▪किलपेट्रिक - प्रौढ को मार्ग की बाधा मानते है (काका प्रौढ़)

▪जोन्स - किशोरावस्था शिशु अवस्था की पुनरावर्ती ( जॉनसन बेबी)

▪पियाजे- अध्यन के समय गाना बजाना (गाना बजाना पियानो के साथ)
- जरसील्ड - बाल्यावस्था से परिपक्व की तरफ बढ़ना ( जिल्ड होना)

■ सिद्धात

1. मनोविश्लेषणात्मक सिद्धात -सिगमंड फ्रायड [चेतन,अचेतन,अर्द्ध चेतन]
[व्यक्तिगत सरचना- Id - Ego - super Ego]
[मुलपरवर्ती :- जीवन मूलक, मृत्यु मूलक]
[आकटिप्स ग्रन्थी- माता प्रेम- ऑडीपस पिता प्रेम]

2.मनोलैंगिक सिद्धात - सिगमंड फ्रायड़
[ काम प्रवर्ति का असर मनोलेगिक 5 अवस्था -
मुखीय अबस्था -जन्म से एक वर्ष,
गुदीय अवस्था 1-3 वर्ष
लैंगिक अवस्था - 3-6 वर्ष
प्रसुसप्त अवस्था - 7-12 वर्ष
जनेन्द्रिय अवस्था -12 के बाद

3.सज्ञानात्मक विकास सिद्धात - जीन पियाजे
4.संज्ञानात्मक विकास सिद्धात - बोगतसकोइ
5.मनोसामाजिक विकास सिद्धात - लॉरेन्स कोहलबर्ग
6.भाषा विकास सिद्धात - पावलव ,स्किनर,अल्बर्ट,बन्दूर ,नाम चपन्स्की
7.नैतिक विकास सिद्धात - लॉरेन्स कोहलबर्ग

■जिन पियाजे की विकास अवस्था
▪सवेदी अवस्था -0-2 वर्ष
▪पूर्व संक्रियात्मक 2-7 वर्ष
▪मूर्त / स्थूल अवस्था 7-12 वर्ष
▪औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था - 12 वर्ष के बाद

▪विकास को वंशानुक्रम व वातावरण प्रभावित करता है

▪व्यक्तिगत विकास = H (वंशानुक्रम) × E ( वातावरण)

▪जेम्स ड्रेवर - माता पिता द्वारा हस्तांतरण
▪पीटरसन - माता पिता के माध्यम से पूर्वजो का
▪बिजमेन का सिद्धात - जनन द्रव्य द्वारा निरन्तर हस्तांतरण
▪लेमार्क का सिद्धात - उपार्जित गुणों का संचरण
▪गॉल्टन - जीव सांख्यिकी का सिद्धात

■ पाठ 3. Teaching – Learning :

▪अधिगम एक ऐसे मानसिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति परिपक्वता की और बढ़ते हुए तथा अपने अनुभवों का लाभ उठाते हुए अपने व्यवहार में परिवर्तन करता है अधिगम कहलाता है

परिभाषा

▪क्रो एंड क्रो  :- सीखना [आदत ज्ञान व अभिवर्तियो का अर्जन] (क्रो A-A-J तीन बातें बता रहा है)

▪वुडवर्थ :-नवीन ज्ञान, नवीन प्रक्रियाओं को प्राप्त करने की प्रक्रिया सीखना है (वुडवर्थ के दो सब्द)

▪क्रोनबेक :-अनुभव के परिणाम स्वरूप व्यवहार में परिवर्तन

▪गेट्स व अन्य :-अनुभव व परीक्षण द्वारा

▪गिलफर्ड :-व्यवहार के परिणाम स्वरूप ( गाल पर थप्पड़ के परिणाम थप्पड़)

▪स्किनर :-प्रगतिशील व्यवहार व्यस्थापन की प्रक्रिया को (उत्तरोत्तर में नर है)

● अधिगम के सोपान [सूत्र :- AVBP संगठन का लक्ष्य है]
A.अभिप्रेरणा
V.विभिन अनुक्रियाये
B.बाधाए
P.पुनर्बलन
संगठन -अनुभवों का संगठन
लक्ष्य - लक्ष्य

■ अधिगम के सिद्धात

▪1.उदीपक अनुक्रिया सिद्धात ( बोडिंग थ्योरी) :-थार्नडाइक
- प्रयोग भूखी बिल्ली पर
- उपनाम :- (प्रयास व त्रुटि नियम / प्रयत्न व भूल सिद्धात /  बंध सिद्धात / SR थ्योरी)
- (ततपरता का नियम, अभ्यास का नियम, परिमाण का नियम)
- शिक्षा पहले की गई गलतियों से लाभ उठाना

▪2.सक्रिय अनुबन्धन सिद्धात (स्किनर)

➖ प्रयोग चूहे व कबूतर पर क्रियाओं पर विशेष जोर दिया
➖ क्रिया के बाद तुरन्त पुनर्बलन मिलना चाइए जिससे क्रिया करने में तेजी आती है
➖ आपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन किया जाना चाइए
➖ उपनाम क्रिया प्रसूत अनुबन्धन/कार्यात्मक प्रतिबधता का सिद्धात/अभिक्रमित अनुदेशन

▪3.गेसाल्ट सिद्धात/सूझ सिद्धात/अंतर्दृष्टि सिद्धात (कोहलर )

➖ प्रयोग चंपेजी पर किया
➖ प्रवर्तक :- मैक्स वर्दीमर / प्रयोगकर्ता कोहलर / सहयोग - कोफ़्का
➖ सिद्धात - पूर्ण से अंश की और
➖ कठिन विषय सीखने में सहायक

▪ 4.अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धात (पावलव 1904 में )

➖ प्रयोग कुत्ता पर किया
➖ घंटी असवभाविक उदीपक (CS)
➖ भोजन स्वभाविक उदीपक (UCS)
➖ लार स्वभाविक अनुक्रिया (UCR)
- CS + UCS + UR या
-  CS + US + UR

▪5.सामाजिक अधिगम सिद्धान्त (अलबर्ट बानडूरा)

➖ प्रयोग बेबीडॉल व जीवत जोकर
➖ निष्कर्ष बालक अनुक्रिया से सीखता है
➖ (अवधान--धारण --पुनः प्रस्तुतिकरण --पुनर्बलन)

▪6.पुनर्बलन का सिद्धात (क्लार्क हल)
➖ उपनाम सबलीकरण/क्रमबद्ध व्यवहार
➖ अनुक्रिया आवश्यकता के कारण होती है

▪7.संरचनात्मक निर्मितवाद का सिद्धात (जेरोम ब्रूनर)

➖ पढ़ाने से पूर्व विषय वस्तु की सरचना की जानकारी दी जानी चाइये इसमे पूर्व ज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान किया जाना चाइए

➖ संज्ञानात्मक निर्मितवाद :- जीन पियाजे (वातावरण के सम्पर्क के आने से ज्ञान का विकास होता है

➖ सामाजिक निर्मितवाद :- बोइगोत्सकी (ज्ञान का विकास सामाजिक कारकों व भाषा के माध्यम से होता है)
➖ त्रिज्यात्मक निर्मितवाद :- जेरोम ब्रूनर (ज्ञान का निर्माण व्यक्तिगत परिस्थितियों में होता है जो विसिष्ठ परिस्थितियों में प्रदान किया जाता है)

🔰अधिगम अवस्था ब्रूनर
➖ विधि सवेदना निर्माण अवस्था :-  0-2
➖ प्रतिमान आधरित अवस्था :- 3-12
➖चिन्ह आधरित अवस्था :- 12 के बाद

▪8.आसुबेल का अधिगम सिद्धात (उदहारण के बाद समझाना निगमनात्मक है)
▪9.क्षेत्रीय सिद्धात (कुर्ते लेबिन) अधिगम = फलन (व्यक्ति × वातावरण )
▪10.चिन्ह अधिगम सिद्धात :- टोलमेंन
▪11.प्रतिस्थापन का सिद्धांत :- गुथरी
▪12.अनुभवजन्य सिद्धात :- कार्ल रोजर
▪13.मानवतावादी सिद्धात :- मसेलो
▪14.राबर्टगिनी ने अधिगम के 8 सिद्धात दिए है

▪इन्होंने अधिगम के अष्ठ (8 प्रकार) सिद्धात प्रस्तुत किए है जो सरल से कठिन की ओर प्रस्तुत किया जाता है

🔺8.समस्या समाधान अधिगम स्तर (सर्वोच्च स्तर है)
🔺7.सिद्धात अधिगम स्तर
🔺6.संप्रत्यय स्तर
🔺5.विभेदात्मक स्तर
🔺4.शाब्दिक साहचर्य स्तर
🔺3.श्रंखला अधिगम स्तर (स्किनर)】
🔺2.उदीपक अनुक्रिया स्तर थॉर्नडाईक】
🔺1.संकेत अधिगम स्तर पावलव】निम्न स्तर

●अधिगम के सिद्धात इसको दो भागों में बाटा गया है

■ व्यवहारवादी सिद्धात / साहचर्य सिद्धात / परिधीय सिद्धात

१.थार्नडाइक - उदीपक अनुक्रिया सिद्धात
२.पावलाव - अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धात
३.B F स्किनर - सक्रिय अनुबन्धन सिद्धात
४.क्लार्क हल - पुनर्बलन सिद्धात
५.गथरी - प्रतिस्थापन का सिद्धात

■ गेस्टाल्टवादी सम्प्रदाय /संज्ञानात्मक सिद्धात / केंद्रीय सिद्धात / क्षेत्रीय सिद्धात

१.मैक्स वर्दीमर ,कोहलर ,कोफ़्का - गेस्टाल्टवादी सिद्धात
२.अल्बर्ट बानडुरा - सामाजिक अधिगम सिद्धात
३.टोलमेंन -चिन्ह सिद्धात
४.कुर्ते लेविन - तरलता सिद्धात

■  सीखने के दो नियम बताए है
🖋मुख्य /प्राथमिक /प्रधान नियम
🖋गौण / द्वितीयक नियम

🔰 मुख्य नियम
♦1.अभ्यास का नियम (बार बार अभ्यास करके पहाड़ा सीखना
♦2.प्रभाव का नियम / परिणाम का नियम (संतोष व असन्तोष का नियम)
♦ततपरता का नियम / प्रेरणा का नियम / मानसिक तैयारी का नियम (घोड़े को पानी तक )

🔰 गौण नियम
♦1.बहु प्रतिक्रिया का नियम (अनेक क्रिया बार बार करना)
♦2.मानसिक विन्यास का नियम (मनोवर्ती का नियम)
♦3.आंशिक क्रिया का नियम (पूर्ण को समझने के लिए छोटे छोटे आंशिक रूप में पढ़ना
♦4.आत्मीकरण का नियम (पूर्व ज्ञान से सीखना)
♦5.साहचर्य परिवर्तन का नियम (वर्तमान परिपेक्ष का नियम)

■पाठ 4. Managing Adolescent Learner  किशोर अधिगमकर्ता की व्यवस्था

▪ मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का सर्वप्रथम प्रयोग क्लिफोर्ड बियर्स (1908) में अपनी पुस्तक : ए माइंड डेट फाउंड इट सेल्फ" में किया था

▪इस बुक के परिणाम स्वरूप : मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान परिषद (1908) की स्थापना हुई

▪ स्वास्थ्य विज्ञान को मानसिक आरोग्य कहा जाता है बियर्स स्वम एक मानसिक रोगी था

▪मानसिक विज्ञान मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा व रोगों की रोकथाम, व रोगों का उपचार इसका प्रमुख कार्य थे

:- मानसिक स्वास्थ्य का रखरखाव व मानसिक क्रिया - हेल्डफिड
:- मानसिक विज्ञान मानवीय सम्बन्धो से सम्बंधित है - क्रो एंड क्रो

■ मानसिक स्वास्थ्य [रोग व दोषों का अभाव]
- सम्पूर्ण व्यक्ति की पूर्ण व संतुलित क्रियाशीलता को - हेडफील्ड
- वास्तविक धरातल पर सामंजस्य स्थापित करने की योग्यता - लेंडल

▪ मानसिक रूप से स्वास्थ्य  व्यक्ति सहनशील ,आत्मविश्वास, सवेगात्मक परिपक्वता, सामंजस्य की योग्यता, आत्मसम्मान का गुण पाया जाता है

■ समायोजन [ Adjustment]

अपनी आवश्यकता व उनको पूरी करने वाली परिस्थितियों के बीच तालमेल स्थापित करना संयोजन है जो समायोजन नही बैठा पाता व कुसमायोजित व मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाता है

■ कुसमायोजित व्यक्ति के रोग

▪तनाव [टेंसन]  वातावरण के साथ समायोजित नही होता तब
▪दुश्चिन्ता [एंग्जायटी] अधूरी अचेतन दमित इच्छा का चेतन में आना
▪दबाव [स्ट्रेस]  सफलता व असफलता व आत्मसम्मान की रक्षा करने पर दबाव में आ जाता है
▪भग्नाशा /कुंठा [ फस्टर्सन] बार बार असफल के कारण निराशा
▪द्वंद्व /संघर्ष [ कंफकीक्ट] दो प्रतिकूल अवशरो की उपस्थिति में चयन करना

■ मानसिक मनोरचनाए / समायोजन तंत्र [ मसिहनियम]

वे मनोरचनाए जिनको व्यक्ति तनाव ,चिंता, कुंठा, आदी से बचने के लिए उपाय के रूप में अपनाता है

▪ प्रत्यक्ष उपाय
1.बाधाओं को दूर करना
2.अन्य मार्गो को खोजना
3.लक्ष्यों के प्रतिस्थापन करना
4.विश्लेषण एवम निर्णयन

▪ अप्रत्यक्ष उपाय
1.दमन - कटु अनुभूति को बलपूर्वक भूलना
2.श्रवण - कष्टदायी बातों को जानबूझकर चेतन अस्वीकार करना (दूध वाले से झड़प)
3.आश्रित होना - कर्महीन दुसरो पर आश्रित होकर संयोजन करना
4.प्रक्षेपण - अपनी असफलता का दोष दुसरो पर लगाना नाच न जाने आंगन टेढ़ा
5.प्रतिपगमन - जो तनाव देती है पूर्व स्थिति में लौटना व्यस्क का फुट फुट कर रोना
6.पृथक्करण - स्थति से अलग कर लेना घर मे लड़ाई पर उठकर चले जाना
7. विस्थापन - अपने आक्रोश को कमजोर पर उतना छोटे भाई को पीटना
8. तादामिकर्ण - परिचय उच्य प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति से करना
9. दिवास्वप्न - हकीकत में जिन इच्छाओं की पूर्ति नही होती कल्पना से पूरा करना
10. औचित्य स्थापन - पद प्राप्त ना होने पर दोष निकलना
11. विपरीत रचना - सौतेली बेटी से नफरत पर भी प्यार करना
12.सोधन.असामाजिक परवर्ती पर संयोजन् स्थापित करना झगड़ालू बच्चे को बॉक्सर बनानां

 3.क्षतिपूर्ति उपाय

▪जिस क्षेत्र में बालक कमजोर है उसकी क्षतिपूर्ति अन्य विषय मे करना क्षतिपूर्ति उपाय है ( कम लंबाई वाली लड़की ऊची एड़ी की चप्पल पहनकर)

4.आक्रमनात्मक उपाय

अपने क्रोध को हिंसात्मक  तरीके से अभिव्यक्त करना यह दो प्रकार का होता है रक्षक व भक्षक

■ बुद्धि  [इंटेलिजेंस]

▪ बुद्धि का सर्वप्रथम प्रयोग 1885 में फ्रांसीसी गॉल्टन ने किया है

▪ 'मानसिक परीक्षण' सब्द का प्रथम प्रयोग कैटल ने अपनी पुस्तक : Mantal Tast and Measurement में किया है

▪ सबसे पहला बुद्धि परीक्षण 1905 में बीने साइमन बुद्धि परीक्षण तैयार किया है

▪ मानसिक आयु सब्द का प्रयोग 1908 में अल्फ्रेड बीने ने किया है

▪ सर्वप्रथम बुद्धिलब्धि सूत्र का प्रयोग 1912 में  स्टर्न व कुहलमान ने दिया है  मानसिक आयु M.A / वास्तविक आयु C.A

▪ टर्मन ने 1916 में बुद्धिलब्धि का संसोधन सूत्र पेश किया है
IQ = M.A / C.A × 100

▪ बुद्धि जन्मजात होती है जिसका विकास व परिवर्तन हो सकता  है

▪ बुद्धि पर वंशानुक्रम व वातावरण दोनो का प्रभाव पड़ता है वातावरण का प्रभाव 10 बिंदुओं तक पड़ता है

▪ बुद्धि में लाबिक वर्द्धि ( वर्टिकल ग्रोथ ) 16 से 18 वर्ष तक होती है जबकि क्षेतिज वर्द्धि जीवन पर्यन्त चलती है

■ बुद्धि के प्रकार  :- थार्नडाइक व गेरिट ने 3 प्रकार की बताई
▪मूर्त बुद्धि - यंत्रीकरण बुद्धि इंजीनियरिंग कारीगर आदि
▪अमूर्त बुद्धि - वकील डॉक्टर साहित्यकार
▪सामाजिक बुद्धि - सामाजिक कार्यकर्ता, मंत्री व्यवसायी

■ बुद्धि के सिद्धात
▪एक तत्व सिद्धात - अल्फ्रेड बीने [ सामान्य तत्व जन्मजात]
▪दि तत्व सिद्धात - स्पीयरमैन [ सामान्य तत्व S विशिष्ट तत्व G]
▪त्रि तत्व सिद्धात- स्पीयरमैन [ समूह तत्व जोड़ा]
▪बहुतत्व  सिद्धात - थार्नडाइक [ बालू का ढेर] परमाणुवादी
▪समूह तत्व सिद्धात - थर्स्टन [ 7 मानसिक योग्यता]
▪प्रतिदर्श सिद्धात - थॉमसन [ थोड़ा थोड़ा सेंपल]
▪त्रिआयामी सिद्धात - गिल्फोर्ड [ बहु बुद्धि सरचना माडल] प्रारम्भ में 150 व  बाद में 180 कर दिए संक्रिया - विषय वस्तु- उत्पादन]
▪पदानुक्रमित सिद्धात - बर्ट व बर्नर
▪केटल व हॉर्न का सिद्धांत [ तरल बुद्धि व ठोस बुद्धि]
▪बहु बुद्धि सिद्धात - गार्डरनर

सूत्र A -B (अब) एक तत्त्व - बिने
दि - स  दि तत्व सिद्धात - स्पीयरमैन

■ बुद्धि परीक्षण
प्रथम परीक्षण -1905 अल्फ्रेड बिने व साइमन 30 प्रश्न
प्रथम संसोधन - 1908
द्वितीय संसोधन - 1911 प्रश्न 59
पुनः संसोधन - 1916 प्रश्न 90
भारत का प्रथम परीक्षण 1922 CH राइस द्वारा [35 कथन 7 उपकथन]

■ टरमन का बुद्धिलब्धि वर्गीकरण 1916 अमेरिका
140 से अधिक :- प्रतिभाशाली ( जीनियस)       1%
120 -139       :- प्रखर बुद्धि ( सुपीरियर)         5%
110 -119       :- तीव्र बुद्धि ( अब्बा एवरेज)     14%
90 - 109        :- सामान्य बुद्धि ( एवरेज)          60%
80 - 89           :- मंद बुद्धि ( डल एंड बैकवर्ड)  14%
70 - 79           :- निर्बल बुद्धि  ( फिबेल माइंडिड)5%

70 से कम        :-मूर्ख 

50-69        मूर्ख [मोरेन]
25-49        मूढ़ [इमबेकली]
25 से कम   जड़ [इडियट]

■ सवेगात्मक बुद्धि

▪ सवेग - Emotion लेटिन भाषा के Emorvere सब्द से हुई है इसका अर्थ है उत्तेजित करना है ( सवेग व्यक्ति कि उतेजित दशा को प्रदर्शित करते है

▪सवेग जन्मजात होते है इनका विकास एक साथ ना होकर धीरे धीरे होता है

▪ नवजात शिशुओं में तीन प्रकार के सवेग होते है [वाटसन]
- भय - क्रोध - स्नेह

▪ ब्रिजिश ने एक सवेग बताया - उतेजना

▪स्वेग़ दो प्रकार के होते है सुखद व दुखद  स्वेगो का प्रभाव व्यक्ति की क्रियाशीलता पर पड़ता है

● सवेगात्मक बुद्धि

▪इस सब्द का प्रयोग 1990 में दो अमेरिकी प्रोफेसर जान मेयर व पीटर सलोवे द्वारा किया गया है

▪वर्तमान में सवेगात्मक बुद्धि को प्रसिद्ध  डेनियल गोलमैन ने किया है

▪बुक :- सवेगात्मक बुद्धि : बुद्धिलब्धि से महत्वपूर्ण क्यो है ? 1995

▪सवेगात्मक बुद्धि अपनी व दुसरो की भावनाओं को जानने व समझने व उनका उचित प्रबन्ध करने से है

● सवेगात्मक बुद्धि के मॉडल
▪Ability modal - जान मेयर व पीटर सलोवे [ दूसरों की भावना को जानना]
▪Treat modal - के वी पेट्रीजस  [अपनी भावना को जानना]
▪Mixed modal - डेनियल गोलमेन [ अपनी व दूसरों की भावना को जानना]

▪डिस्प्रेक्सिया - विशिष्ट वाचन में कठिनाई
▪डिसकेल्कुलिया - गणितीय गणना में कठिनाई
▪डिस्लेक्सिया - पठान में कठिनाई
▪डिसग्रेफीय - विशिष्ट लेखन में कठिनाई

▪आस्मिक मनोहास - किसी वस्तु का नही होने पर भी आभास होना
▪सिजोफ्रेनिया - स्वम को सहनशाह समझना
▪भृम - रस्सी को सांप समझना
▪भ्रांति - हड़बड़ा कर आवाज देना
▪विचलनात्मक व्यवहार करना - जुनून पैदा होना

▪क व ख़ सिद्धात - हैब
▪आश्चर्य जनक बुद्धि - ब्लूम
▪धारा प्रवाह सिद्धात - केटल
▪गोलमेन ने सवेगात्मक बुद्धि में 25 दक्षता को सामिल किया है

■ 5. किशोर अधिगमकर्ता के लिए अनुदेष्णात्मक व्यूह रचना

● अनुदेशन :- सूचना देना या आज्ञा देना

▪कक्षा कक्ष में अध्यापक द्वारा विषय को छात्रों तक पहुचाने के लिए जो क्रिया की जाती है उसे अनुदेशन कहते है (पाठ्यक्रम के ज्ञान का आदान प्रदान करना)

▪अनुदेशन का क्षेत्र शिक्षण से कम होता है इसका संबंध केवल कक्षा कक्ष से होता है इसका उद्देश्य केवल पाठ्यक्रम को पूर्ण करवाना होता है यह सदैव औपचारिक होता है

● अनुदेशन व्यूहरचना (तकनीकी)
 :- इसका तातपर्य उन विधियों व प्रविधियों से है जिसकी सहायता से अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके

▪यह मानव व्यवस्था सिद्धात पर आधारित है जो बालक को अपनी गति से सीखने पर बल देता है 

▪निम्न व्यूह रचनाएं है :-
1. शिक्षण उपागम (टीचिंग अप्रोच)

▪शिक्षण प्रक्रिया में सुधार लाना व उद्देश्यों की प्राप्ति करने की जो तकनीक अपनाई जाती है उपागम कहते है

▪पाठ्यक्रम को विचारहीन स्थति से विचारपूर्ण अवस्था मे लाने के तीन स्तर है
💠 हरबर्ट शिक्षण उपागम - स्मृति स्तर (मेमोरी लेवल) विचारहीन अवस्था

:- शिक्षक सक्रिय  बालक निष्क्रिय /वस्तुनिष्ठ प्रश्न / रटने पर बल मौखिक व लिखित

💠 मारिशन शिक्षण उपागम - बोध स्तर (अंडरस्टैंडिंग लेवल) मध्यम स्तर

:- चितन व स्मृति पर आधरित /  गूढ़ भावों को समझना / शिक्षक छात्र दोनो क्रियाशील / वस्तुनिष्ठ, लघुतरात्मक, निबंधात्मक तीनो का समावेश

💠 हंट शिक्षण उपागम - चिन्तन स्तर ( थिंकिंग लेवल) विचारयुक्त

:- शिक्षण समस्या केंद्रित है/ छात्र अधिक क्रियाशीलता/ निबंधात्मक प्रश्न

■ हरबर्ट की पाठ योजना पंचपदीय प्रणाली
- हरबर्ट को पाठ योजना का जनक कहा गया है
- प्रमुख पद
# मूल पद  (P-P-V-T-Sa)
- प्रस्तावना
- प्रस्तुतिकरण
- व्यवस्था
- तुलना
- सामान्यीकरण

# संसोधित पद (PPTSaAn)
- प्रस्तावना
- प्रस्तुतिकरण
- व्यवस्था
- सामान्यीकरण
- अनुप्रयोग

▪ B. S ब्लूम ने हरबर्ट प्रणाली में संसोधन किया और शिक्षण उद्देश्यों को जोड़ा

▪ब्लूम ने शेक्षणिक उद्देश्यों को तीन भागों में बांटा [ ज्ञानात्मक ,भावनात्मक, क्रियात्मक]

 ▪मारिशन [ व्यवस्था - शिक्षण विधियां - सहायक सामग्री - बोद्ध प्रश्न - गृहकार्य ]

■ शिक्षण प्रतिमान (Teaching models)

▪किसी उदेश्य के अनुसार व्यवहार में परिवर्तन लाने की प्रक्रिया प्रतिमान है

▪ H.C विल्ड " किसी रूपरेखा के अनुसार व्यवहार को ढालने की प्रक्रिया प्रतिमान कहलाती है "

▪प्रतिमान किसी आदर्श का संदर्भ है जो बड़ी वस्तु को छोटी वस्तु में ढालता है

● शिक्षण प्रतिमान के मूलतत्व

▪[ 1.लक्ष्य या उदेश्य - 2. सरंचना -3.सामाजिक प्रणाली - 4.मूल्यांकन प्रणाली]

▪ शिक्षण प्रतिमान छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन ,शिक्षण को प्रभावी बनाने में ,शिक्षा का ब्लू प्रिंट तैयार करने में सहायक है

■ प्रमुख प्रतिमान मॉडल

 ▪प्रगत संगठनात्मक प्रतिमान (एडवांस ऑर्गनाइजेशन मॉडल) :- डेविड आशुबेल
 ▪पृछा प्रक्षिक्षण प्रतिमान ( एन्क्वायरी टीचिंग मॉडल) :- J रियार्ड सचमैंन
▪ सहकारी अधिगम मॉडल ( को-ऑपरेटिव मॉडल) वॉटसन ,शॉ ,आलपोर्ट
▪ सूचना प्रक्रिया मॉडल ( इन्फॉर्मेशन प्रोसेसिंग मॉडल) - शेनन
▪ निसप्पतित प्रतयय प्रतिमान ( कॉन्सेप्ट अटैचमेंट मॉडल) - जेरोम ब्रूनर
▪ आगमनात्मक /तबा का शिक्षण प्रतिमान - हिल्दा तबा
▪ऐतिहासिक शिक्षण प्रतिमान - डिसेको
▪ बुनियादी शिक्षण प्रतिमान -  रॉबर्ट गलेशर
▪ कम्प्यूटर आधरित प्रतिमान - लारेन्स स्टालरो व डेनियल डेविस
▪ सामाजिक अंतःक्रिया प्रतिमान - फ़्लेण्डर्स
▪ सामाजिक पृछा प्रतिमान - बायरण मसिलयन्स व मीन कम्स
▪ विकासात्मक शिक्षण प्रतिमान - जिन पियाजे
▪ दिशा विहीन प्रतिमान - कार्ल रोजर्स
▪ अभिज्ञान शिक्षण प्रतिमान - विलियम स्टूज

■ शिक्षण अधिगम की पद्धतिया
1. प्रभुत्ववादी शिक्षण पद्धतियां [ परम्परागत शिक्षण पर केंद्रित]
 :-  शिक्षक प्रमुख छात्र गौण
१.पाठ प्रदर्शन - २.व्याख्यान - ३.प्रबोधक वर्ग ४.अभिक्रमित अनुदेशन

2.प्रजातांत्रिक पद्धति [छात्र केंद्रित] :- छात्र केंद्रित शिक्षा

■ शिक्षण अधिगम सामग्री

वह सामग्री जो शिक्षण को प्रभावी बनाती है व शिक्षण अधिगम में सहायक होती है पाठ को सरल व रोचक बनाती है

1.ग्राफिक सामग्री - चित्र, चार्ट,मानचित्र, ग्राफ फोटोग्राफ आदि
2.त्रिआयामी सामग्री - लम्बाई चौड़ाई ऊँचाई को प्रदर्शित करता जे वास्तविकता के निकट है
3.प्रक्षेपित सामग्री - स्लाइड, डायोसकोप, ओवरहेड प्रोजेक्टर
4.क्रियात्मक सामग्री - नाटक ,भृमण
5.डिस्प्ले बार्ड सामग्री - बुलिटीन बार्ड ,फ्लेक्स बार्ड
6.दृश्य श्रव्य सामग्री -
▪श्रव्य ( रेड़ियो, टेपरिकार्डर, ग्रामोफोन, लिंगवाफ़ोन)
▪दृश्य ( मुद्रित - समाचारपत्र, मैगजीन, टैक्स बुक,एटलस,शब्दकोश, एनसाइक्लोपीडिया, वर्कबुक)
▪( अमुद्रित - चार्ट ,मॉडल, नक्से ,पिक्चर, स्लाइड, प्रोजेक्टर ,बुलिटीन बार्ड,आलेख चित्र ,डायस्कोप
▪ दृश्य श्रव्य सामग्री ( टी.वी, कम्प्यूटर, इंटरनेट, वीडियो,)
▪ क्लास रूम टेक्नीक - लेंग्वेज लेब,

■ एडगर डेल अनुभव संकु [ ऊपर से नीचे कुल 11]

सब्द प्रतीक -  दृश्य - रेड़ियो प्रसारण - स्थीर चित्र - चलचित्र - प्रदर्शित चित्र - भृमण - प्रदर्शन - नाट्य अनुभव - कृत्रिम अनुभव - प्रत्यक्ष प्रियोजनशील

■ पाठ 6. ICT Pedagogy Integration : सूचना सम्प्रेषण तकनीकी का संप्रत्यय

▪ सूचना क्या है ? :- विभिन्न आकड़ो व तथ्यों का तार्किक एवम अर्थपूर्ण क्रम में संगठन सूचना है

▪ सम्प्रेषण क्या है ? :-  सूचनाओं का आदान प्रदान सम्प्रेषण है

:- Communication (कम्युनिकेशन सब्द अंग्रेजी) की उत्तपति लेटिन सब्द (Communis) व (Commun) से हुवा है

:- इसका अर्थ समान बनानां है (To make Common)

▪ सम्प्रेषण के प्रकार
1.संप्रेषक ( Encoder) - जो संप्रेषक करता है
2.संप्रेषि (Decoder) - जिसके लिए सम्प्रेषण किया गया है

▪ सम्प्रेषण की प्रक्रिया ( सूचनाओं को किस माध्यम से भेजना व प्राप्तकर्ता द्वारा उसकी प्रतिक्रिया देने पर संदेश प्रेषण क्रिया पूर्ण होती है

1.सूचना का स्रोत क्या है (प्रारम्भिक अवस्था है)
2.सम्प्रेषण की सामग्री - क्या देना है
3.सम्प्रेषण का माध्यम - कैसे देना है
4.सम्प्रेषण का प्रारूप - कितना देना है
5.सम्प्रेषण के उद्देश्य - क्यो देना है
6.ग्रहनकर्ता (प्राप्तकर्ता)
7.अनुक्रिया (प्रतिउत्तर)

■ सम्प्रेषण के माध्यम
:- शाब्दिक (वर्बल) : मौखिक व लिखित
:- अशाब्दिक (नॉन वर्बल) : मुखाकृति -सांकेतिक -सारेरिक हावभाव
:- संचार सम्प्रेषण (टेलीकॉम कम्युनिकेशन) - दृश्य - श्रव्य - दृश्य श्रव्य - बहुमाध्यम

■ सम्प्रेषण के प्रकार

1.अंतर वैयक्तिक सम्प्रेषण - दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य सम्प्रेषण होता है
2.अंतः वैयक्तिक सम्प्रेषण/अंतरा व्यक्तित्व -  स्वम से बातचीत
3.लोक सम्प्रेषण - एक व्यक्ति या समूह के मध्य होता है

■ सम्प्रेषण के सिद्धात
1.ततपरता का सिद्धात
2.स्पष्ठता का सिद्धात
3.पर्याप्ता का सिद्धात (जानकारी पूरी हो)
4.संछिप्ता का सिद्धात (गागर में सागर)
5.विचारों की सुसम्बुद्धता का सिद्धात (क्रमबद्ध अध्ययन)
6.अवसर की अनुकूलता का सिद्धात

■ सम्प्रेषण नियंत्रण प्रारूप
ऐसी प्रणाली जिसके माध्यम से सम्प्रेषण को वस्तुनिष्ठ, क्रमबद्ध,व नियंत्रित किया जाता है
1.अदा (Input) :- इसके अंतर्गत शिक्षक द्वारा विषयवस्तु का प्रस्तुतिकरण करता है
2.प्रक्रिया ( Process) :- इसके अंतर्गत अनुदेष्णात्मक कार्य किये जाते है
3.प्रदा (Output) :- मूल्यांकन कर परिणाम ज्ञात किया जाता है

■ शैक्षणिक तकनीकी [एज्युकेशनल तकनीकी] ब्राइमर ने दी थी

: शैक्षणिक तकनीकी विधियों एवम तकनीकी का विज्ञान है जिसके द्वारा शैक्षणिक उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है

▪शैक्षणिक तकनीकी का प्रथम प्रयोग - ब्राइमर ने (इंग्लैंड में)
▪शैक्षणिक तकनीकी का आविर्भाव - भौतिकी व इंजीनियरिंग से
▪शैक्षणिक तकनीकी का उद्देश्य -उद्देश्यो की अधिकतम प्राप्ति से

■ लूम्सडेन ने 1964 में शैक्षणिक तकनीकी को तीन भागों में बांटा है
1.शैक्षणिक तकनीकी प्रथम [हार्डवेयर उपागम / कठोर शिल्प उपागम]
- शिक्षा प्रणाली में  यंत्रीकरण को महत्व दिया
- कम्प्यूटर, स्लाइड्स, प्रोजेक्टर, श्यामपट्ट,TV टेपरिकार्डर

2.शैक्षणिक तकनीकी द्वितीय [सॉफ्टवेयर उपागम / कोमल शिल्प उपागम]
- इसमे अध्यापक स्वम बनाकर प्रयोग करता है
- चित्र ,मानचित्र,कम्प्यूटर प्रोग्राम, वीडियो प्रोग्राम, ट्रांसप्रेषि मॉडल
- ये मूर्त व अमूर्त दोनो होते है

:- 1968 में सिल्वरमैन है हार्डवेयर को सम्बंधित तकनीकी व सॉफ्टवेयर को संरचनात्मक तकनीकी कहा है इन दोनों को अलग अलग नही किया जा सकता

3.शैक्षणिक तकनीकी तृतीय [प्रणाली उपागम]
- शिक्षा प्रशासन एवम प्रबंधन को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया गया है
- इसके मूलभूत तत्व
अदा - क्या प्रस्तुत करना है
प्रक्रिया - किस प्रक्रिया द्वारा करना है
प्रदा - प्रस्तुत करना
परिवेश - वातावरण से सामंजस्य करना

●Computer assisted learning. कम्प्यूटर आधारित अनुदेशन

▪1960 में विद्यार्थियों की विभिन्न आवश्यकता की पूर्ति के लिए इसका विकास किया गया

▪आधुनिक प्रोधोगिकी में सबसे बड़ा योगदान कम्प्यूटर का है

▪लॉरेन्स स्टालरो व डेनियल डेविस ने कम्प्यूटर पर आधारित शिक्षण प्रतिमान का विकास किया

▪प्रायोगिकी तौर पर इसका उपयोग 1969 में अमेरिकी सरकार ने किया था

▪BF स्किनर ने सर्वप्रथम शिक्षण मशीनों का प्रयोग किया था

▪एटकिंसन ने 1968 में बालको की वाचन योग्यता के लिए कम्प्यूटर आधरित अनुदेशन का प्रयोग किया

■ अभिक्रमित अनुदेशन [स्किनर 1954]
विषय वस्तु को छोटे छोटे खंडों में विभक्त कर फ्रेम में क्रमबद्ध प्रस्तुत किया है

▪छात्र अनुक्रिया करता है उसपर उसे पुनर्बलित किया जाता है छात्र स्वगती से सीखता है यह पूर्णतया व्यक्तिगत होता है

▪अनुदेशन की तीन पद [उदीपक -अनुक्रिया -पुनर्बलित]

▪1960 में 5 सिद्धात दिए
लघु पदों का सिद्धात
वाह्य अनुक्रिया सिद्धात
सीघ्र पृष्ठ पोषण
स्वगती का सिद्धांत
स्वमूल्यांकन का सिद्धात

■ अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार
1.रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन - स्किनर 1954(छोटे फ्रेम)
2.साखिय अभिक्रमित अनुदेशन- नार्मन ए क्राउडर 1960(बड़े फेम)
3.अवरोही अभिक्रमित अनुदेशन - थॉमस ए गिल्बर्ट 1962
4. कम्प्यूटर आधारित अनुदेशन - लारेन्स स्टेलरों व डेनियल डेनिस

■ CAL कम्प्यूटर आधारित अधिगम

- यह कम्प्यूटर द्वारा अनुदेशन प्रस्तुत करता है
- इसमे औपचारिक व अनोपचारिक शिक्षा दी जाती है
- विद्यार्थी स्वगती से सीखता है
- अघ्यापक की भूमिका सुविधा प्रदाता की है

■ CAI - कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन

[ सर्वप्रथम फ्रेम - सूचना - प्रश्न - अध्ययन - उत्तर - मूल्यांकन - प्रतिक्रिया]

■ कम्प्यूटर सहायक अनुदेशन की तकनीकी

1.हार्डवेयर 
:- इनपुट डिवाइस :- की बार्ड ,माउस ,स्कैनर
:- आउटपुट डिवाइस :- मॉनिटर, प्रिन्टर, स्पीकर
:- स्टोरेज डिवाइस :- हार्ड डिस्क, CD डिस्क ,पैन ड्राइव
:- आंतरिक उपकरण :- CPU , मदरबोर्ड, रैम चिप,रोम चिप

2.सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी  - कम्प्यूटर में मशीनी भाषा से आदेश देंना
3. कोर्सवेयर टेक्नोलॉजी - सॉफ्टवेयर बनाने वाले प्रोग्राम

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