MA सारांष
[पोस्ट ग्रेजुएशन M. A】
◆ 1.कल्याणवादी अर्थशास्त्र - (पेरेटो अनुकूलतम और न्यू वेलफेयर एकॉनॉमिस)
▪ सामाजिक कल्याण को अधिकतम करने जी दृष्टि से आर्थिक नितियों का विश्लेषण किया जाता है [क्या है वास्तविक अर्थशास्त्र है और क्या होना चाइए कल्याणकारी अर्थशास्त्र है ]
▪प्रमुख कल्याणकारी अर्थशास्त्री - मार्शल, पिगू, हिक्स , परेटो, सिटोविस्की,सेमयूल्सन, लिटिल व रेडर आदि
▪ आर्थिक कल्याण सामान्य कल्याण का वह भाग है जिसे प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से मुद्रा के मापदंड में मापा जाता है
● मार्शल का कल्याणवादी सिद्धात
▪मार्शल ने उपभोक्ता की बचत को आर्थिक कल्याण का आधार माना है कल्याण समाज द्वारा प्राप्त सुद्ध आगम की मात्रा पर निर्भर करता है
▪ मार्शल ने समाज मे व्याप्त आर्थिक आधिक्य का अध्ययन किया
● पिगू का कल्याणवादी सिद्धांत
▪पिगू का कल्याणवादी सिद्धांत मार्शल के गणनावाचक उपयोगिता विश्लेषण पर आधारित है जो आय पर सीमन्त उपयोगिता हास्यमान नियम पर आधारित है
▪Book :-Economics of welfare (1920)
■ परेटो का सामाजिक अनुकलतम सिद्धात (1906)
▪पेरेटो प्रथम अर्थशास्त्री थे जिन्होंने उपयोगिता के क्रमवाचक
विचार के आधार पर कल्याणवादी अर्थशास्त्र का विचार दिया
▪पेरेटो ने आर्थिक कल्याण में परिवर्तनों का मापने का एक निश्चित मापदंड दिया है जिसमें अनुकूल स्थति को " एज्वर्थ बावले बॉक्स " द्वारा प्रस्तुत किया है
▪परेटो ने अनुकलतम स्थिति इसे कहा की -"एक व्यक्ति को श्रेष्ठ पहुचाने के लिए दूसरे व्यक्ति को बुरी स्थति में पहुचना पड़ता है यह पेरेटो अनुकूलतम स्थति है
#▪परेटो का मापदंड -एक व्यक्ति को हानि पहुचाये बिना दूसरे व्यक्ति को अच्छी स्थति में पहुचाना पेरेटो का मापदंड है पेरेटो अनुकूलतम दशा में संसाधनों में पुनरावन्टन बिना अन्य व्यक्ति के कल्याण असम्भव है
▪उपभोग वस्तु का अनुकलतम वितरण =MRSxyA =MRSxyB होना चाइए तथा दूसरी शर्त इसका ढाल नतोदर होना चाइए OA से OB रेखा उपयोगी प्रसविदा वक्र रेखा है जिसपर L बिंदु अनुकूलतम मापदंड व M,N,K अनुकूलतम वक्र है
▪उत्पादन में MRTS Lk A = MRTS Lk B
▪पेरेटो का कल्याणवादी सिद्धांत " सबका भला करो " उदेश्य पर कार्य करता है यह क्रमबद्ध विश्लेषण पर आधारित है
▪परेटो अनुकलतम साम्य MRTxy = MRSxyA =MRSxy B
▪ पेरेटो ने संख्यात्मक माप को अस्वीकार कर दिया इन्होंने क्रमवाचक माप को स्वीकार किया
■ नवीन कल्याणवादी अर्थशास्त्र (हिक्स, कोलडोर, सिटोविस्की)
▪नवीन कल्याणवादी अर्थशास्त्र में कोलडोर व हिक्स ने क्षतिपूर्ति सिद्धात का प्रतिपादन किया तथा इनके सिद्धात में निहित अंतर्विरोध को सिटोविस्की का विरोधाभास कहा जाता है
▪इन्होंने सामाजिक कल्याण का वस्तुपरक मापदंड प्रस्तुत किया
▪हिक्स ने सामाजिक कल्याण को अनुकूलता की प्रथम शर्त तो माना लेकिन पर्याप्त नही माना
▪सिटिविस्की ने मापदंड में निहित विसंगतियों को दूर करने के लिए दोहरे मापदंड का का सहारा लिया
▪ सामाजिक कल्याण का फलन - बर्गरसन ने दिया
▪सूत्र W =f(U1,U2.....Un) यहा W सामाजिक कल्याण है
▪ सोसियल च्वाइस एंड इंडिविजुअल वेल्यूज J. K एरो ने 1951 में दिया
◆ कोलडोर व हिक्स का क्षतिपूर्ति सिद्धात : 1939
▪जब किसी नीति में परिवर्तन से कुछ को लाभ व कुछ को हानि होती है तो ये सामाजिक कल्याण को बढायेगा
[ यदि लाभान्वित व्यक्ति हानि उठाने वाले कि क्षतिपूर्ति करने के बाद भी अच्छी स्थिति में हो ]
▪रुचियां स्थीर मानी व वाह्य प्रभाव की अनुपस्थिति है प्रत्येक का कल्याण एक दूसरे से स्वतंत्र है
▪सामाजिक कल्याण उत्पादन व वितरण के स्तर पर निर्भर करता है
▪कोलडोर ने लाभ उठाने वाला दृष्टिकोण से अपना सिद्धात दिया जबकि हिक्स ने अपना सिद्धात हानि उठाने वाला दृष्टिकोण से दिया
▪ कोलडोर व हिक्स का सिद्धांत वास्तविक क्षतिपूर्ति का नही बल्कि सम्भावित क्षतिपूर्ति का सुझाव दिया
◆ सिटोविस्की का दोहरा मापदंड (1941)
▪कोलडोर व हिक्स के विरोधाभास को सबसे पहले सिटोविस्की ने बताया इसलिए इसको सिटिविस्की विरोधाभास कहा गया इस परीक्षण को ही विपरीत परीक्षण कहा गया
▪ क्षतिपूर्ति सिद्धात / नवीन कल्याणवादी सिद्धात कोलडोर, हिक्स व सिटिविस्की ने डियाब
◆ 2. हरित लेखांकन की अवधारणा [Concept of Green Accounting]
▪हरित GNP से तातपर्य है " एक निश्चित अवधि में उत्पादित संपदा की अधिकतम मात्रा है जिसे देश की प्राकृतिक संपदा को स्थीर रखते हुए प्राप्त किया जाता है
▪पीयर्स एंड बारर्फोर्ड ने सबसे पहले पर्यावरण लेखांकन की विधि विकसित की थी
▪इनके अनुसार "सम्पूर्ण पूंजी संपत्ति के अंतर्गत मानवीय पूंजी तथा पर्यावरण पूंजी को सम्मलित किया जाता है"
एक सूत्र दिया :-
पोषणीय निबल राष्ट्रीय उत्पाद = 【 सकल घरेलू उत्पाद - निर्मित पूजी सम्पति का हास्य - पर्यावरण सम्पति का हास्य 】
▪हरित सूचकांक विश्व बैंक द्वारा तैयार किया जाता है इसमे उत्पादित सम्पति , प्राकृतिक सम्पदा,मानव संसाधनों को अलग अलग मूल्य प्रदान किया जाता है
▪ ग्रीन GNP का मूल्यांकन प्रति 10 वर्ष बाद होता है
▪ हरित GDP पारम्परिक GDP का प्रति व्यक्ति कचरा व कार्बन उत्सर्जन का पैमाना है जो कितना घट या बढ़ रहा है
▪ 1999 से भारत मे पर्यावरण के लेखांकन का इतिहास प्रारम्भ हुवा जिसमे CSO द्वारा डवलपमेंट इंडेक्स आफ इन्वायरमेंट स्टैटिकस (FDES) के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया गया
▪ Note विश्वबैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की GDP का लगभग 8.5% (550 अरब डॉलर) नुकसान उठाना पड़ रहा है
NDP = Net Exports + Final Consumption (C) + Net Investment (I)
◆ 3.IS-LM Model – Relative effectiveness of Monetary and Fiscal Policy
▪IS - LM मॉडल आय व ब्याज दर का निर्धारण करता है
▪यहा पर IS वक्र वस्तु बाजार संतुलन को बताता है जिसमे निवेश = बचत बराबर होती है (I=S)
▪यहा पर LM वक्र मुद्रा बाजार में संतुलन को बताता है जिसमे मुद्रा की मांग =मुद्रा की पूर्ति बराबर होती है (L=M)
▪ हिक्स हेनसन का समन्यवित रूप दोनो मॉडलों का समन्वित रूप IS-LM मॉडल है
▪वस्तु बाजार संतुलन व मुद्रा बाजार संतुलन बराबर हो तब सामान्य संतुलन होगा
▪IS वक्र "प्रवाह " को बताता है (यह बचत व निवेश के सम्बन्ध को बताता है)
▪LM वक्र मौद्रिक प्रवाह के स्टॉक चरो के संतुलन को बताता है
▪ IS -LM माडल आय व ब्याज का श्रेठ मॉडल है जो मौद्रिक व वित्तिय नीतियों को समझाने में सहायक है
● IS वक्र :-
▪IS वक्र ब्याज व आय के उन सहयोगों को दर्शाता है बचत व विनियोग बराबर हो
▪ IS वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है IS वक्र वास्तविक क्षेत्र को बताता है
▪ IS वक्र का ढाल II वक्र के ढाल पर निर्भर करता है
▪अगर सरकार खर्चो में वृद्धि व करो में कमी करती है तो IS वक्र दाई तरफ विवर्तित हो जाता है यह वास्तविक क्षेत्र को बताता है
▪ IS वक्र बाई तरफ होगा तो विनियोग बचत से ज्यादा व दाई तरफ होगा तो बचत विनियोग से ज्यादा होगा
▪ किन्स रेंज केवल राजकोषीय नीति पर कार्य करती है
● LM वक्र
▪LM वक्र. आय व ब्याज के उन सयोगों को बताता है जहां पर मुद्रा की मांग पर मुद्रा की पूर्ति बराबर होती है
▪LM वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है यह मुद्रा की तरलता पर निर्भर करता है
▪मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि में दाई तरफ विवर्तित होता है तथा कमी पर बाई तरफ विवर्तित होता है
▪LM वक्र का ढाल उदग्र सीधा(पूर्णतया बेलोचदार) में केवल मौद्रिक नीति कार्य करती है जबकि LM वक्र क्षेतिज होने की स्थति में नहीं करती (राजकोषीय नीति कार्य करती है)
▪ LM वक्र को तीन रेंज में बाटा गया है १.किन्स रेंज २. मध्यवर्ती रेंज ३.क्लासिक रेंज
▪LM वक्र मौद्रिक क्षेत्र बताते है
● हिक्स हेनसन का आधुनिक ब्याज का सिद्धांत है इसमे मुद्रा की मांग व पूर्ति बराबर होती है व बचत व विनियोग बराबर होते है
[S=I=Md=Ms]
▪ मुद्रा की पूर्ति बढ़ने पर ब्याज घटेगा व विनियोग बढ़ेगा
▪IS वक्र तथा LM वक्र दोनों की सहायता से हम ब्याज की दर तथा आय-स्तर का निर्धारण कर सकते हैं
▪IS वक्र राजकोषीय नीति के परिवर्तन पर निर्भर करता है
▪LM वक्र मौद्रिक नीति में परिवर्तन पर निर्भर करता है
® ब्याज दर व राष्ट्रीय आय का निर्धारण
IS वक्र में
- उपभोग बढ़ेगा तो दाई तरफ विवर्तन होगा
- उपभोग घटेगा तो बाई तरफ विवर्तन होगा [ढाल ऋणात्मक]
LM वक्र में -
- आय बढ़ने पर ब्याज घटता है - विनियोग बढ़ता है
- आय घटने पर ब्याज बढ़ता है - विनियोग घटता है
🔝 LM मौद्रिक नीति पर प्रभाव बताता है
🔝 IS राजकोषीय नीति में परिवर्तन पर निर्भर है
◆ 5.मुण्डेल फ्लेमिंग मॉडल (1960)
▪ मुण्डेल फ्लेमिंग मॉडल IS-LM मॉडल का विस्तृत रूप है
▪मुण्डेल फ्लेमिंग मॉडल पूर्ण पूजी गतिशीलता व निरपेक्ष लोचदार विनिमय दर वाली खुली अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति व राजकोषीय नीति का विश्लेषण करता है
▪ मान्यताएं छोटी खुली अर्थव्यवस्था है जिसमें पूजी की गतिशीलता है
▪अर्थव्यवस्था में ब्याजदर का निर्धारण विश्व ब्याज दर पर होता है
▪अगर विश्व मे ब्याज दर ज्यादा तो घरेलू मुद्रा विदेशो में चली जायेगी और अगर घरेलू ब्याज दर ज्यादा होगी तो वापस आ जायेगी
● परिवर्तनशील विनिमय दर के अंतर्गत
राजकोषीय नीति
मौद्रिक नीति
व्यापार नीति
■ राजकोषीय नीति में विस्तार :-
- विस्तारवादी राजकोषीय नीति के कारण IS वक्र बाई तरफ़ हो जाता है
- उपचार - सरकार सरकारी व्यय बढ़ाये व कर घटाये तब IS वक्र दाई तरफ विवर्तित हो जाती है
-विनिमय बढेगा तो ब्याज बढ़ेगा विदेसी मुद्रा स्वदेश में आ जाती है जिससे विनिमय दर में वर्द्धि
■ मौद्रिक नीति
▪मौद्रिक नीति के परिणाम स्वरूप आय बढ़ेगी व विनिमय दर घटेगी ब्याज दर घटेगी तब हमारी मुद्रा विदेश में चली जायेगी
मुद्रा सप्लाई बढ़ेगी - ब्याज घटेगा - इसलिए विनिमय दर घटेगी
:- हमारी मुद्रा विदेश में चली जायेगी
■ व्यापर नीति
▪व्यापार नीति के परिणामस्वरूप (सरकार आयात, कोटा,प्रशुल्क ) लगाकर व्यापर पर नियंत्रण करता है तब निर्यातों में वृद्धि होती है जिससे IS वक्र दाएं औरविवर्तित हो जाता है
● स्थीर विनिमय दर की स्थिति में
■ राजकोषीय नीति -
▪जब सरकार व्यय में वृद्धि व करो में छूट देती है तो विनिमय दर में वृद्धि होती है इससे IS वक्र दाहिनी तरफ विवर्तन हो जाता है
▪केंद्रीय बैंक इस दर को स्थीर रखने के लिए मुद्रा की पूर्ति को बढ़ाकर विनिमय दर स्थीर रखा जाता है
- व्यय बढ़ेगा - विनिमय बढ़ेगा - IS वक्र दाहिनी तरफ विवर्तन [तब मुद्रा पूर्ति को बढ़ाकर विनिमय दर को स्थीर किया जाता है
■ मौद्रिक नीति
▪मुद्रा की सप्लाई बढ़ाने पर विनिमय दर में कमी आती है इसे स्थीर रखने हेतु मुद्रा की सप्लाई में कमी करनी पड़ती है ताकि विनिमय दर वही बनी रहे
▪केंद्रीय बैंक विदेशी विनिमय बाजार से मुद्रा खरीदने लगता है तब LM वक्र बाई तरफ विवर्तन हो जाता है
▪विनिमय दर को स्थीर रखकर मुद्रा सप्लाई में कमी तभी विनिमय दर स्थीर रहती है
■ व्यापार नीति
▪जब सरकार कोटा,प्रशुल्क लगाकर आयात पर प्रतिबन्ध लगाती है तो निर्यात में विसुद्ध वृद्धि.होती है इससे IS वक्र दाई तरफ विवर्तन करती है
▪इसे स्थीर रखने हेतु केंद्रीय बैंक विदेसी बाजार में घरेलू मुद्रा को बेच कर स्थिरता लाएगा जिससे LM वक्र दाई तरफ विवर्तित हो जाता है
◆ 6 व्यापार चक्रीय सिद्धात : प्रतिचक्रिय नीति
▪ व्यापार चक्र आर्थिक क्रियाओं का उतार चढ़ाव है जो नियमित क्रम में उत्पन्न होता है तथा क्रम में समाप्त होता है
▪ व्यापार चक्र [कुल रोजगार + आय + उत्पादन +कीमत स्तरों की आव्रती ] के उतार चढ़ाव से सम्बंधित है
▪ गुणक व त्वरक की पारस्परिक क्रिया के कारण व्यापार चक्र पैदा होते है
▪ व्यापार चक्रों को ट्रेड साइकल कहते है अमेरिकी अर्थशास्त्री ने बिजनिस साइकल तथा प्रो ली ने भ्रामक सब्द कहा है
● सुपिटियर ने व्यापार चक्रों की चार अवस्था बताई है :-
1.समृधि अवस्था
2.प्रतिसार अवस्था
3.अवसाद अवस्था (जहा आय व रोजगार के स्तर घटता है 1930 कि मंदी)
4.पुनरोद्धार अवस्था
● व्यापार चक्र के प्रकार (3 प्रकार के होते है)
1.प्रमुख चक्र (9 से 10 वर्ष) क्लीमेंट जगलर ने 1862 में
2.लघु चक्र (40 माह से साढ़े तीन साल) जोसेफ किचन ने
3.दीर्घ चक्र (50 वर्ष) क्रान्तिफ ने
■ हिक्स का व्यापार चक्र (1950)
▪ book - ए कंस्ट्रक्शन टू थ्योरी आफ ट्रेड साइकल
▪ व्यापार चक्र गुणक व त्वरक के परस्पर क्रिया के कारण उतपन्न होते है
▪ हिक्स ने दो सीमाओं के मध्य व्यापार चक्रों को पैदा होने को मानता है (उच्य सिमा-निम्न सिमा)
▪ हिक्स ने अपने मॉडल में विकास पथ को शामिल किया है
▪व्याख्या :- प्रारम्भ में गुणक व त्वरक समलित रूप में कार्य करता है ,अविष्कार का प्रभाव से उच्य सिमा की तरफ बढ़ता है तब गिरावट में त्वरक काम नहीं करता इसके बाद विनियोग से आय बढ़ेगी तो वापस ऊपर चला जायेगा
▪ हिक्स ने व्यापार चक्रों को अल्पकालिक उतार चढ़ाव से स्पष्ठ किया साथ ही विकास प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाई
▪ वर्तमान उपभोग पिछली आमदनी पर निर्भर करता है [Ct =ay t-1]
■ सेम्युलसन का व्यापार चक्र
▪ यह गुणक व त्वरक की अंतर्क्रिया पर आधारित है
▪ आर्थिक क्रियाओं के विश्लेषण में गुणक व त्वरक के प्रभाव को अलग नही किया जा सकता
▪Book द रिव्यू आफ एकॉनॉमिस स्टेटिक्स
1.वर्तमान समय की आय :-
Yt = Ct + It + Gt
वर्तमान समय की आय = उपभोग पर व्यय + प्रेरित विनियोग व्यय + सरकारी व्यय का परिणाम है
2.वर्तमान समय का उपभोग व्यय =पिछली आय पर निर्भर है
Ct = a Yt-1
Ct =वर्तमान समय का उपभोग व्यय
Yt-1 =पिछली आय पर निर्भर है
a =स्वचलित उपभोग
3.विनियोग उपभोग [It =B (Ct-Ct_1)]
B त्वरक गुणाक है
◆ सेम्युलसन ने पांच उतार चढ़ाव बताए है
1.चक्रहीन पथ - केवल गुणक पर आधरित है त्वरक काम नही करता
2.परिमदित चक्रीय पथ - प्रारम्भ में बड़े बाद में क्रम से छोटे
3.प्रतिमन्दित - नियमित उतार चढ़ाव
4.प्रतिमन्दित विस्फोटक - प्रारम्भ में छोटे बाद में क्रम से बड़े
5.चक्रहीन विस्फोटक अवस्था - उर्द्धगामी
■ कोलडोर का व्यापार चक्र
▪ कोलडोर ने व्यापर चक्र को बचत व विनियोग द्वारा समझाया था
▪ रेखीय स्थिति में व्यापार चक्र उत्तपन्न नही होते चक्रों के लिए रेखीय होना आवश्यक है
▪ I विनियोग व S बचत रेखा द्वारा समझाया है इनके मध्य स्थिरता बिंदु वहां होगा जहा विनियोग वक्र (I) बचत वक्र (S) को ऊपर से काटे
▪ कोलडोर ने दो अवस्था बताई एक साम्य की व एक असंतुलन की
◆ प्रतिचक्रिय नीतियां
ये व्यापार चक्रों को नियंत्रित करने हेतु बनाई जाती है
1.राजकोषीय नीति में (सरकार बनाती है)
- बजट नीति
- कर नीति
- सार्वजनिक व्यय नीति
- सार्वजनिक ऋण नीति का प्रयोग किया जाता हैं
▪ राजकोषीय नीति में कमियां -
मंदी का अनुमान नहीं लगा सकती
नीतियों को प्रतिदिन नही बदला जा सकता
जल्दी योजना नही बनाई जा सकती
दो धारी तलवार है
2.मौद्रिक नीति (बैंक नियंत्रण करता है)
▪ बैंक दर नीति
▪ खुले बाजार की क्रिया
▪ नगद कोषानुपत में परिवर्तन
3.भौतिक नियंत्रण (कीमत समर्थन नीति, कीमत नियंत्रण, राशनिंग आय द्वारा)
◆ 7. Growth Models –
● Lewis model ( लेविस मॉडल )
▪ श्रम की असीमित पूर्ति के सिद्धांत लुइस ने दिया
▪ एकॉनॉमिस डवलपमेंट विद अनलिमिटेड सप्लाइ ऑफ लेबर 1954 में दी
▪ अर्थव्यवस्था में अधिक विकास बचत के परिणाम स्वरूप होता है एक स्थति के बाद बचत खत्म होने पर रुक जाता है
▪ यह मॉडल श्रम अधिकता वाले देशों की विकास प्रक्रिया पर लागू किया गया था उदहारण भारत
▪ इस मॉडल को डुआलिस्टिक एकॉनॉमिक मॉडल भी कहते है
▪ मॉडल को दो भागों में बांटा (जीवन निर्वाह क्षेत्र व पूंजीवादी आधुनिक क्षेत्र उधोग)
▪यह मॉडल अल्पविकसित देशों में इसमे लुइस ने माना कि जीवन निर्वाह क्षेत्र में श्रम की असीमित पूर्ति होती है
▪ श्रम की अधिकता अदृश्य बेरोजगारी उत्पन्न करती है
▪ लुइस का मोड़ बिंदु वह है -
जहाँ पूंजीवादी क्षेत्र में मजदूरी बढ़ने लगे
जीवन निर्वाह क्षेत्र में अतिरिक्त श्रम का प्रयोग उधोगों में लिया जाने लगे
- औधोगिक क्षेत्र का अतिरिक्त (बचत) जहा समाप्त हो जाएगा विकास वही रूक जाएगा
▪ लुइस के अनुसार आर्थिक विकास - पूजी निर्माण के लिए बचत की आवश्यकता होती है ताकि पुनर्निवेश किया जा सके
▪लुइस के अनुसार पूंजीवादी क्षेत्र में लाभ इसलिए अधिक होता है क्योंकि श्रम की उत्पादिता ,मजदूरी दर से अधिक होती है
▪ अल्पविकसित देशों में अधिक आय वाले 10% लोग राष्ट्रीय आय का 30% बचत करते है
◆ हैरेड डोमर मॉडल (Harrod-Domar model)
▪ H.D मॉडल किन्सवादी मॉडल का प्रायोगिकी मॉडल है जो दीर्घकालीन समस्याओं को ध्यान केंद्रित करता है
▪H.D स्थीर संवृद्धि की समस्या पर विचार किया है इनका मुख्य उद्देश्य उन दशाओं का पता लगाना है जो मंदी व स्फीति के बिना पूर्ण रोजगार में सतत वृद्धि की समस्या पर विचार है
■ हैरोड मॉडल (1939)
▪ फारवर्ड आ डायनामिक एकोनिमिस में अपना सिद्धात प्रतिपादित किया
▪ हेरेड के अनुसार " प्रायोगिक साम्य को उत्तपन करना ही विकास है" विकास प्रक्रिया में पूजी संचय की प्रमुख भूमिका है
▪हेरेड ने गुणक व त्वरक की क्रियाशीलता द्वारा विकास का प्रायोगिकी सिद्धात दिया
▪ हेरेड के अनुसार - प्रायोगिकी साम्य उतपन्न करना ही साम्य है
■ हेरेड का मॉडल तीन वृद्धि दरों पर निर्भर है
▪G -वास्तविक वृद्धि दर
(वह दर जिस पर देश विकास कर रहा है G =S /C अर्थात बचत अनुपात /पूजी अनुपात)
▪ GW - अभीष्ट/आवश्यक वृद्धि दर ( आय की पूर्ण क्षमता बताती है Gw =S / Cr अर्थात सीमांत बचत प्रवर्ति /पूंजी उत्पादन अनुपात)
▪GN - प्राकृतिक वृद्धि दर (इस दर पर पूर्ण रोजगार बना रहता है)
▪सतत विकास की स्थति के लिए दोहरी पूरी होनी चाइए
G =GW या
C=CN आवश्यक है
▪पूर्ण रोजगार की स्थति के लिए :-
G =GW =GN की दशा पूरी होनी चाइए हेरेड ने इस समस्या को छुरी धार समस्या कहा है
▪यदि G > Gw - वास्तविक पूजी कम -आवश्यक पूजी से (तब दीर्घकालीन स्फीति उत्पन्न)
▪यदि G < Gw - वास्तविक पूजी अधिक - आवश्यक पूजी से (दीर्घकालीन मंदी)
▪ G = Gw पूर्ण रोजगार में साम्य
▪ यदि Gw > Gn (तब दीर्घकालीन गतिहीनता)
▪ यदि Gw < Gn (तब दीर्घकालीन स्फीति)
▪ यह आय की विकास प्रक्रिया को सर्वाधिक महत्व देता है व बचत व पूर्ति में साम्य स्थापित करता है
■ डोमर मॉडल (1946)
▪ डोमर ने रोजगार को आय एवम उत्पादन क्षमता के अनुपात का फलन माना है
▪राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है इसलिए निवेश इतना होना चाइए की आय व उत्पादन में समान वृद्धि.हो
▪ मांग व पूर्ति में समन्वय करके निवेश ढूढने का प्रयास किया है
▪यह विनियोग को सर्वाधिक महत्व देता है ∆I /Y विकास दर है यह गुणक के परिणाम स्वरूप है
▪यह आय व उत्पादन क्षमता का अनुपात फलन है
■ H.D मॉडल में असमानता
1.H विकास प्रक्रिया को महत्व देता है जबकी D विनियोग को सर्वाधिक महत्व देता है
2.हेरेड बचत की मांग व पूर्ति में साम्य स्थापित करता है डोमर विनियोग की मांग व पूर्ति में साम्य स्थापित करता है
3.सीमांत पूजी उत्पादन का का उपयोग करता है जबकि डोमर अनुपात का व्युत्क्रम है
4.हेरेड ने पूजी उत्पादन अनुपात में त्वरक का उपयोग किया है डोमर ने गुणक का प्रयोग किया है
5.हेरेड विकास चक्रों को अनिवार्य माना जबकि डोमर ने स्वीकार नही किया
6.हेरेड ने विकास की तीन दर (G,Gw,Gn) बताई जबकि डोमर ने ∆I /Y सिग्मा विकास की दर को बताया है
◆ कोलडोर का आर्थिक वृद्धि का मॉडल
▪ कोलडोर ने विकास वितरण का मॉडल प्रस्तुत किया है
▪ कोलडोर ने बचत व आय अनुपात को परिवर्तनशील बनाने का प्रयत्न किया है
▪कोलडोर ने मॉडल में तीन धारणाओं (बचत,निवेश, तकनीकी की प्रगति) का समावेश किया है
▪ मॉडल के निर्धारक तत्वों में बचत-आय अनुपात ,प्रावधिक प्रगती व जनसंख्या को शामिल किया है
▪ स्थीर कार्यशील जनसंख्या कुल वास्तविक आय का अनुपातिक वृद्धि दर प्रतिव्यक्ति उत्पादन की आनुपातिक वृद्धि दर के बराबर है
▪ इसमे विकास की अवधारणा तकनीकी प्रगति फलन पर आधारित है
▪कोलडोर ने आय व वितरण के समष्टिगत सिद्धात का प्रतिपादन किया
▪ I/Y विनियोग व आय स्तर स्थीर रहता है तथा बचत व आय अनुपात स्थीर दर से बढ़ता है
◆ सोलो का दीर्घकालीन वृद्धि मॉडल (1956)
▪ शोलो का मानना है कि - उत्पादन की दर (Yt) ही वास्तविक आय को प्रकट करती है जो शेष बचता है उसे निवेश कर लिया जाता है
▪ शोलो ने नव प्रतिष्टित मॉडल हेरेड डोमर के विकल्प में प्रस्तुत किया है यह आर्थिक सवृद्धि का दीर्घकालीन मॉडल है
▪ हेरेड डोमर मॉडल की " छूरिधार समस्या का समाधान है " सोलो मॉडल है यह समस्या श्रम व पूजी अनुपात के कारण होता है इनको एक दूसरे की जगह प्रतिस्थापित कर इस समस्या से बचा जा सकता है
▪ बाजार में एकमात्र वस्तु "उत्पादन" को मानकर चलता है
▪पूंजीपतियों की बजाय मजदूरों की MPS अधिक है इस कारण मजदूरों की सीमांत बचत प्रवर्ति कम होती है
▪ विनियोग उत्पादन अनुपात एक स्वतंत्र चर है
▪ इस सिद्धात में कहा गया है कि पूंजीपतियों की बचत बढ़नी चाइए ताकि विनियोग कर सके
▪ इसके विपरीत मजदूर को बचत दी जाए तो उसका उपभोग कर जाएगा जिससे आर्थिक विकास नही हो पाता है इसलिए पूंजीपतियों की बचत बढ़ जानी चाइए
▪ बचत को परिवर्तनशील बना दिया जाना चाइए इससे विकास होगा लाभ बढ़ेगा जिससे अर्थव्यवस्था स्थिर आएगी
▪ I / Y को बढ़ाकर बचतों को बढ़ा सकते है यह सिद्धात वितरण का है
S = f ( y)
▪शोलो का मूल समीकरण K = Sf [K,Loe nt]
▪शोलो का आधारभूत समीकरण r 1 = sf (r,1) -nr
●8 .प्रतिपगमन विश्लेषण
▪प्रतिपगमन सब्द का प्रयोग 1817 में सर फ्रांसीसी गॉल्टन द्वारा किया गया था
▪सब्द का अर्थ वापस लौटना है /पीछे हटना है
▪एक चर मूल्य द्वारा दूसरे चर मूल्य का पूर्वानुमान लगया जा सके इस विधि को प्रतिपगमन कहते है
▪ यह आर्थिक व व्यवससिक जगत में प्रतिपगमन की अत्यधिक उपयोगिता है
▪ प्रतिपगमन की सहायता से चर मूल्यों में सहसम्बन्ध की मात्रा व दिशा का माप किया जा सकता है
◆ प्रतिपगमन रेखाएं
▪एक श्रेणी के पारस्परिक माध्य सम्बन्ध को प्रकट करने वाली सर्वोपुक्त रेखाओं को प्रतिपगमन रेखा कहते है
▪दो सम्बंधित श्रेणियों के लिए दो प्रतिपगमन रेखाएं होती है
एक X on Y
दूसरी Y on X
▪वे प्रतिपगमन रेखा श्रेष्ठ होती है जिसकी रचना न्यूतम वर्ग की मान्यता के आधार पर होती है
▪न्यूतम वर्ग द्वारा खिंची जाने वाली रेखा ऐसी होनी चाइए जिससे विभिन्न बिंदुओं के विचलन वर्गों का जोड़ न्यूतम हो
▪ दो श्रेणियों में पूर्ण सहसम्बन्ध - तब होगा जब X और Y के मध्य एक ही प्रतिपगमन रेखा होती है (यह नियम का अपवाद है)
■प्रतिपगमन रेखाओं के कार्य
1.सर्वोपुक्त अनुमान लगाना - एक श्रेणी के मुल्योंके आधार पर दूसरी श्रेणी का अनुमान लगाया जा सकता है
X on Y प्रतिपगमन रेखा से X का
Y on X प्रतिपगमन रेखा से Y का अनुमान लगाया जाता है
2.सहसम्बन्ध की मात्रा व दिशा का ज्ञान होता जे
- धनात्मक :- बाए से दाएं ऊपर की तरफ
- ऋणात्मक :- बाए से ऊपर से नीचे
- पूर्ण सहसम्बन्ध :- सीधी रेखा
- सहसम्बन्ध अभाव :- 90° पर काटे
- सीमित सहसम्बन्ध :- जितना निकट होगा सहसम्बन्ध उतना अधिक होगा
▪ प्रतिपगमन गुणाक को समान्तर माध्य सहसम्बन्ध गुणाक से (bxy +byx / 2) > r
▪ दो रेखाएं 90° पर काटती है तो X और Y के मध्य सहसम्बन्ध शून्य (0) होगा
▪ परस्पर लम्ब तो r =0 होगा
■ विकास की अवधारणा - वास्तविक आर्थिक विकास दर वह दर है जिस पर देश का सकल घरेलू उत्पाद एक वर्ष में होता है
▪GVA सकल मूल्य वर्धन 4.3 %रही
■ 9. Liberalization [उदारीकरण]
▪उदारीकरण (Liberalization) क्या है?
अर्थ: उदारीकरण वह आर्थिक सुधार है जिसका उद्देश्य भारतीय व्यापार और उद्योग को सभी अनावश्यक नियंत्रणों और प्रतिबंधों से मुक्त करना था। वे लाइसेंस-परमिट-कोटा राज के अंत का संकेत देते हैं
▪ भारत में आर्थिक उदारीकरण 24 जुलाई 1991 के बाद से शुरू हुआ
▪भारत में आर्थिक सुधारों की प्रथम एवं व्यापक स्तर पर पाई जाने वाली नीति 1991 की औद्योगिक नीति थी। इस नीति में आर्थिक सुधारों की तीन प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया था- उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण
▪तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने आर्थिक सुधारों प्रक्रिया शुरू की डॉ मनमोहन सिंह ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, तब भारत सरकार के वित्त मंत्री थे
▪सरकार केवल 6 उधोगों के लिए अनिवार्य लाइसेंस के तहत उद्योगों की संख्या कम हो।
▪नीति को उदार बनाया गया था विदेशी इक्विटी भागीदारी की हिस्सेदारी बढ़ गया था और कई गतिविधियों में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ( एफडीआई) की अनुमति दी थी।
▪उदारीकरण का सबसे ज़्यादा सकारात्मक प्रभाव सेवा क्षेत्र पर दिखाई देता है।
▪वर्तमान में जीडीपी का अधिकांश हिस्सा इसी क्षेत्र से आता है। भारत सॉफ्टवेयर सेवा, पर्यटन सेवा, चिकित्सा सेवा इत्यादि के लिये आदर्श स्थल बन चुका है
▪बी.पी.ओ. के क्षेत्र में भी भारत अग्रणी
■ Privatization
निजीकरण और वैश्वीकरण
निजीकरण के रूप में अच्छी तरह से निजी क्षेत्र के लिए व्यापार और सेवाओं और सार्वजनिक क्षेत्र (या सरकार) से स्वामित्व के हस्तांतरण में निजी संस्थाओं की भागीदारी को दर्शाता है।
वैश्वीकरण की दुनिया के विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के समेकन के लिए खड़ा है।
निजीकरण निम्न सुविधाओं की विशेषता थी:
राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के लिए एक कम भूमिका को बड़ी भूमिका देने के उद्देश्य से आर्थिक सुधारों के नए सेट।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार 1991 की नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को नई परिभाषा दी
■ वैश्वीकरण
▪वैश्वीकरण पहले से ही सरकार द्वारा शुरू किए गए उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों का नतीजा है।
▪वैश्वीकरण आम तौर पर दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ देश की अर्थव्यवस्था के एकीकरण करना है
▪यह अधिक से अधिक निर्भरता और एकीकरण की दिशा में दुनिया को बदलने के उद्देश्य से कर रहे हैं कि विभिन्न नीतियों के सेट का नतीजा है।
▪यह आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक सीमाओं से परे नेटवर्क और गतिविधियों का निर्माण शामिल है।
▪वैश्वीकरण वैश्विक अर्थव्यवस्था के विभिन्न राष्ट्रों के बीच बातचीत और परस्पर निर्भरता का एक बढ़ा स्तर शामिल है।
◆ 10. हेक्शर-ओहलीन सिद्धात
▪हेक्शर-ओहलीन सिद्धात को व्यापार का आधुनिक सिद्धात कहते है
▪सामान्य संतुलन का सिद्धांत / साधन सम्पनता का सिद्धांत भी कहते है
▪तुलनात्मक लागत सिद्धात का मानना है कि दो देशों में व्यापार लागतो में तुलनात्मक अंतर के कारण होता है
▪हेकचर ओहलीन कहते है दो देशों में व्यापार वस्तुओं के लागत में सापेक्षित अंतर के कारण उत्पन्न होता है
▪तुलनात्मक लागतो में अंतर का कारण
1.- दो देशों में कीमतों में सापेक्षित अंतर के कारण
2.- उत्पादन साधनों आवश्यकता में भिन्नता के कारण
▪ हेक्सचर ओहलीन ने समझाया कि लागतो में अंतर क्यो होता है जो रिकार्डो नही समझा पाए थे
▪अंतरराष्ट्रीय व्यापार तुलनात्मक लाभ में अंतर के कारण होता है
▪साधनों में सम्पनता के कारण लागतो में अंतर आता है जिससे अंतराष्ट्रीय व्यापार होता है
▪अंतरराष्ट्रीय व्यापार अन्तरक्षेत्रीय व्यापार का एक रूप है
▪ भौतिक मापदण्ड (K/L)A > (K/L)B साधनों की मात्रा को शामिल किया जाता है
▪मूल्य मापदण्ड (L/K)B > (L/K)A
▪ ओहलीन की पुस्तक "इंटर रीजनल एंड इंटरनेशनल ट्रेड" में समझाया है
▪दो देशों के मध्य व्यापार साधनों की भिन्नता के कारण होता है 2 साधन ×दो देश ×दो वस्तु का मॉडल है
◆11.वर्तमान व्यापार नीति
▪विदेसी व्यापार अधिनियम (विकास एवम विनिमय )1992 की धारा 5 में प्रावधान है
▪ विदेशी व्यापार नीति का प्रमुख उद्देश्य निर्यातों को प्रोत्साहन करना व आयातों को प्रतिस्थापित करना है
▪ भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने 2015-2020 की अवधि के लिए 01 अप्रैल 2015 को नई विदेश व्यापार नीति की घोषणा की,
▪इससे पहले इस नीति को निर्यात आयात (एक्ज़िम) नीति के रूप में जाना जाता था।
●भारत की नई विदेश व्यापार नीति 2015-2020
▪इसके अंतर्गत दो नई योजनाओं 'भारत से वस्तु निर्यात योजना' और 'भारत से सेवा निर्यात योजना' का शुभारम्भ भी किया गया है
1.भारत से वस्तु निर्यात योजना ( Merchandise Exports from India Scheme-MEIS)
2.भारत से सेवा निर्यात योजना ( Services Exports From India Scheme- SEIS )
▪MEIS का उद्देश्य - विशेष बाजारों को विशेष वस्तुओं का निर्यात करना है
▪SEIS का उद्देश्य - अधिसूचित सेवाओं का निर्यात बढ़ाना है।
▪इसके तहत पात्रता और उपयोग के लिए अलग-अलग शर्तें रखी गई हैं इन योजनाओं के तहत जारी की जाने वाली किसी भी स्क्रिप (पावती-पत्र) के लिए कोई शर्त नहीं रखी गई है।
▪MEIS और SEIS के तहत जारी की जाने वाली Duty credit scrip और इन स्क्रिप के एवज में आयात की जाने वाली वस्तुएं पूरी तरह से हस्तांतरण योग्य हैं।
▪ MEIS के तहत इनाम देने के लिए देशों को तीन समूहों में श्रेणीबद्ध किया गया है
▪ MEIS के तहत इनाम की दरें 2 से लेकर 5 फीसदी तक हैं।
▪ SEIS के तहत चुनिंदा सेवाओं को 3% और 5% की दर पर पुरस्कृत किया जाएगा।
● लाभ ( Benefit OF FTP )
▪विदेश व्यापार नीति आने वाले वर्षो में भारत के नियंत्रण व्यापार को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगी।
▪वर्ष 2020 तक विश्व व्यापार में भारत एक महत्वपूर्ण भागीदार होगा।
▪विश्व व्यापार में भारत का निर्यात हिस्सा दो प्रतिशत से बढ़ाकर 3.5 प्रतिशत पर पहुंचाया जाएगा।
▪विदेश व्यापार नीति से देश में एसईजेड के विकास को नई गति मिलेगी।
● भारत मे विदेसी व्यापार नीति 2015-20
▪निर्यातों को प्रोत्साहन व आयतों को प्रतिस्तापित करना उद्देश्य है अब तक 6 नीतियां बनी
24 जुलाई 1991 को प्रथम बार नीतियां बनाई
➖1992-97
➖1997-02
➖2002-07(बीच मे बन्द)
➖2004-09
➖2009-15
➖2015-20 अब तक 6 नीति लागू
● प्रमुख घोषणा
1.निर्यात व्यापार 900 अरब डॉलर सालाना (व्यापार 2% से बढ़ाकर 3.5% करना)
2.वस्तुगत निर्यातों को बढ़ाने के लिए 5 स्किमो की जगह एक स्किम MEIS जो निर्यात 2% से बढ़ाकर 5%का लक्ष्य है
3.सेवाओ के निर्यात हेतु SEIS का गठन जो 3% से बढ़कर 5%लक्ष्य है(service export from India same)
4.पहले 33 टाउन ऑफ एक्सपोर्टऐक्सेलन थे इसमे बढ़ाकर संख्या 35 कर दी गई (विशाखापत्तनम,भिमावरम (आंध्रप्रदेश)
▪राजस्थान में 4 है जयपुर, जोधपुर, बाड़मेर व भीलवाड़ा
5.निर्यातों को बढ़ावा देने के लिए दो नए पोर्ट बनाये
▪कालीकट पोर्ट(केरल)
▪अरकोनम पोर्ट(तमिलनाडु)
6.निर्यात हाउसों को 5 स्टारों में बाटा गया है
★ upto 30 लाख
★★ 30 लाख से 2.5 करोड़
★★★2.5-10 करोड़
★★★★10 से 50 करोड़
★★★★★50 से 200 करोड़
7.केंद्र व राज्य सरकार सयुक्त निर्यात प्रोत्साहन योजना मिशन लागू
8.स्किल इंडिया ,मेक इन इंडिया,डिजिटल इंडिया को इसमे समाहित
◆ 12. पर्यावरण और आर्थिक विकास का सम्बंध
▪धारणीय विकास वह है जो भावी पीढ़ी की आवश्यकता को पूरी करने की क्षमता को क्षति पहुचाये बिना वर्तमान आवश्यकता को पूरा करे
▪संधारणीय विकास अथवा टिकाऊ विकास (Sustainable Development), विकास की वह अवधारणा है जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुचाये बिना, भावी पीढ़ी को ध्यान मे रखकर वर्तमान विकास दर जारी रखना
■ वैश्विक उष्णता -
▪वर्तमान में मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावस्वरूप पृथ्वी के दीर्घकालिक औसत तापमान में हुई वृद्धि को वैश्विक तापन/ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है
▪ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी से बाहर जाने वाले ताप अर्थात दीर्घतरंगीय विकिरण को अवशोषित कर पृथ्वी के तापमान को बढ़ा देती हैं, इस प्रक्रिया को ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ कहते है
▪ग्रीन हाउस गैसों में मुख्यतः कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, ओज़ोन आदि गैसें शामिल हैं
▪1880 से 2012 की अवधि के दौरान पृथ्वी के औसत सतही तापमान में 0.85°C की वृद्धि दर्ज की गयी है
▪1906 से 2005 की अवधि के दौरान पृथ्वी के औसत सतही तापमान में 0.74±0.18°C की वृद्धि दर्ज की गयी है
▪इसी दर से धरती गरम होती रही तो वर्ष 2030 और 2052 के बीच ग्लोबल वार्मिंग का स्तर बढ़कर 1.5 डिग्री तक पहुंच सकता है
■ ओजोन अपक्षय
▪समताप मंडल में क्लोरीन व ब्रोमीन की मात्रा का बढ़ना इन योगिकों का मूल क्लोरो फ्लोरो कार्बन है
▪16 दिसम्बर विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है
▪16 दिसम्बर 1987 को मल्ट्रीयर सहर में कनाडा में 33 देशों का सम्मेलन हुवा जिसे मजिस्ट्रीयल प्रोटोकॉल कहा जाता है
■ चिपको आंदोलन (रैनि गांव चमोली उत्तराखंड)1973
▪1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी
▪गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था
▪प्रदूषण नियंत्रण बार्ड 1974 में स्थापना
◆ IPCC की प्रथम बैठेक 1988 जेनेवा में हुई जिसने 1990 में प्रथम जलवायु रिपोर्ट पेश की थी
◆ पृथ्वी सम्मलेन
▪सन् 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो शहर में विश्व के 172 देशों ने पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया गया था
▪इसके पश्चात सन् 2002 में दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन करके संसार के सभी राष्ट्रों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान आकर्षित करने के लिए ज़ोर दिया था।
▪ COP- 24 दिसंबर 2018 में पोलैंड के कार्टोविस में आयोजित
▪COP-25 दिसम्बर 2019 के आयोजन की जिम्मेदारी दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में स्थित चिली को सौंपी गई थी।
▪UNFCCC जलवायु परिवर्तन पर प्रथम बहुपक्षीय कन्वेंशन था।
▪वर्ष 1992 में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन में तीन कन्वेंशन की घोषणा की गयी थी, उनमें से एक UNFCCC का उद्देश्य जलवायु तंत्र के साथ खतरनाक मानवीय हस्तक्षेप को रोकना है।
यह कन्वेंशन 21 मार्च, 1994 से प्रभाव में आया।
▪वर्तमान में 197 देशों ने कन्वेंशन को सत्यापित किया है, यही देश कॉन्फ्रेंस के पार्टीज़ (Parties of the Conference) कहलाते हैं तथा इन्हीं देशों की जलवायु परिवर्तन पर वार्षिक बैठक को COP सम्मेलन कहते हैं ।
▪UNFCCC का प्रथम COP सम्मेलन वर्ष 1995 में बर्लिन में हुआ था।
▪वर्ष 2015 में पेरिस में संपन्न हुए COP-21 में पेरिस समझौते के रूप में जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध एक नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था ने जन्म लिया जिसके प्रावधान अगले वर्ष क्योटो प्रोटोकॉल की अवधि समाप्त होने के बाद लागू हो जाएंगे।
▪सतत विकास की अवधारणा की शुरूआत 1962 में हुई जब वैज्ञानिक रॉकल कारसन ने ‘दी साइलेंट स्प्रिंग’ नामक पुस्तक लिखी।
▪ट्रांस्फॉर्मिंग आवर वर्ल्ड : द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के संकल्प को, जिसे सतत विकास लक्ष्यों के नाम से भी जाना जाता है, भारत सहित 193 देशों ने सितंबर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय पूर्ण बैठक में स्वीकार किया गया था और इसे एक जनवरी, 2016 को लागू किया गया।
◆ 1.कल्याणवादी अर्थशास्त्र - (पेरेटो अनुकूलतम और न्यू वेलफेयर एकॉनॉमिस)
▪ सामाजिक कल्याण को अधिकतम करने जी दृष्टि से आर्थिक नितियों का विश्लेषण किया जाता है [क्या है वास्तविक अर्थशास्त्र है और क्या होना चाइए कल्याणकारी अर्थशास्त्र है ]
▪प्रमुख कल्याणकारी अर्थशास्त्री - मार्शल, पिगू, हिक्स , परेटो, सिटोविस्की,सेमयूल्सन, लिटिल व रेडर आदि
▪ आर्थिक कल्याण सामान्य कल्याण का वह भाग है जिसे प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से मुद्रा के मापदंड में मापा जाता है
● मार्शल का कल्याणवादी सिद्धात
▪मार्शल ने उपभोक्ता की बचत को आर्थिक कल्याण का आधार माना है कल्याण समाज द्वारा प्राप्त सुद्ध आगम की मात्रा पर निर्भर करता है
▪ मार्शल ने समाज मे व्याप्त आर्थिक आधिक्य का अध्ययन किया
● पिगू का कल्याणवादी सिद्धांत
▪पिगू का कल्याणवादी सिद्धांत मार्शल के गणनावाचक उपयोगिता विश्लेषण पर आधारित है जो आय पर सीमन्त उपयोगिता हास्यमान नियम पर आधारित है
▪Book :-Economics of welfare (1920)
■ परेटो का सामाजिक अनुकलतम सिद्धात (1906)
▪पेरेटो प्रथम अर्थशास्त्री थे जिन्होंने उपयोगिता के क्रमवाचक
विचार के आधार पर कल्याणवादी अर्थशास्त्र का विचार दिया
▪पेरेटो ने आर्थिक कल्याण में परिवर्तनों का मापने का एक निश्चित मापदंड दिया है जिसमें अनुकूल स्थति को " एज्वर्थ बावले बॉक्स " द्वारा प्रस्तुत किया है
▪परेटो ने अनुकलतम स्थिति इसे कहा की -"एक व्यक्ति को श्रेष्ठ पहुचाने के लिए दूसरे व्यक्ति को बुरी स्थति में पहुचना पड़ता है यह पेरेटो अनुकूलतम स्थति है
#▪परेटो का मापदंड -एक व्यक्ति को हानि पहुचाये बिना दूसरे व्यक्ति को अच्छी स्थति में पहुचाना पेरेटो का मापदंड है पेरेटो अनुकूलतम दशा में संसाधनों में पुनरावन्टन बिना अन्य व्यक्ति के कल्याण असम्भव है
▪उपभोग वस्तु का अनुकलतम वितरण =MRSxyA =MRSxyB होना चाइए तथा दूसरी शर्त इसका ढाल नतोदर होना चाइए OA से OB रेखा उपयोगी प्रसविदा वक्र रेखा है जिसपर L बिंदु अनुकूलतम मापदंड व M,N,K अनुकूलतम वक्र है
▪उत्पादन में MRTS Lk A = MRTS Lk B
▪पेरेटो का कल्याणवादी सिद्धांत " सबका भला करो " उदेश्य पर कार्य करता है यह क्रमबद्ध विश्लेषण पर आधारित है
▪परेटो अनुकलतम साम्य MRTxy = MRSxyA =MRSxy B
▪ पेरेटो ने संख्यात्मक माप को अस्वीकार कर दिया इन्होंने क्रमवाचक माप को स्वीकार किया
■ नवीन कल्याणवादी अर्थशास्त्र (हिक्स, कोलडोर, सिटोविस्की)
▪नवीन कल्याणवादी अर्थशास्त्र में कोलडोर व हिक्स ने क्षतिपूर्ति सिद्धात का प्रतिपादन किया तथा इनके सिद्धात में निहित अंतर्विरोध को सिटोविस्की का विरोधाभास कहा जाता है
▪इन्होंने सामाजिक कल्याण का वस्तुपरक मापदंड प्रस्तुत किया
▪हिक्स ने सामाजिक कल्याण को अनुकूलता की प्रथम शर्त तो माना लेकिन पर्याप्त नही माना
▪सिटिविस्की ने मापदंड में निहित विसंगतियों को दूर करने के लिए दोहरे मापदंड का का सहारा लिया
▪ सामाजिक कल्याण का फलन - बर्गरसन ने दिया
▪सूत्र W =f(U1,U2.....Un) यहा W सामाजिक कल्याण है
▪ सोसियल च्वाइस एंड इंडिविजुअल वेल्यूज J. K एरो ने 1951 में दिया
◆ कोलडोर व हिक्स का क्षतिपूर्ति सिद्धात : 1939
▪जब किसी नीति में परिवर्तन से कुछ को लाभ व कुछ को हानि होती है तो ये सामाजिक कल्याण को बढायेगा
[ यदि लाभान्वित व्यक्ति हानि उठाने वाले कि क्षतिपूर्ति करने के बाद भी अच्छी स्थिति में हो ]
▪रुचियां स्थीर मानी व वाह्य प्रभाव की अनुपस्थिति है प्रत्येक का कल्याण एक दूसरे से स्वतंत्र है
▪सामाजिक कल्याण उत्पादन व वितरण के स्तर पर निर्भर करता है
▪कोलडोर ने लाभ उठाने वाला दृष्टिकोण से अपना सिद्धात दिया जबकि हिक्स ने अपना सिद्धात हानि उठाने वाला दृष्टिकोण से दिया
▪ कोलडोर व हिक्स का सिद्धांत वास्तविक क्षतिपूर्ति का नही बल्कि सम्भावित क्षतिपूर्ति का सुझाव दिया
◆ सिटोविस्की का दोहरा मापदंड (1941)
▪कोलडोर व हिक्स के विरोधाभास को सबसे पहले सिटोविस्की ने बताया इसलिए इसको सिटिविस्की विरोधाभास कहा गया इस परीक्षण को ही विपरीत परीक्षण कहा गया
▪ क्षतिपूर्ति सिद्धात / नवीन कल्याणवादी सिद्धात कोलडोर, हिक्स व सिटिविस्की ने डियाब
◆ 2. हरित लेखांकन की अवधारणा [Concept of Green Accounting]
▪हरित GNP से तातपर्य है " एक निश्चित अवधि में उत्पादित संपदा की अधिकतम मात्रा है जिसे देश की प्राकृतिक संपदा को स्थीर रखते हुए प्राप्त किया जाता है
▪पीयर्स एंड बारर्फोर्ड ने सबसे पहले पर्यावरण लेखांकन की विधि विकसित की थी
▪इनके अनुसार "सम्पूर्ण पूंजी संपत्ति के अंतर्गत मानवीय पूंजी तथा पर्यावरण पूंजी को सम्मलित किया जाता है"
एक सूत्र दिया :-
पोषणीय निबल राष्ट्रीय उत्पाद = 【 सकल घरेलू उत्पाद - निर्मित पूजी सम्पति का हास्य - पर्यावरण सम्पति का हास्य 】
▪हरित सूचकांक विश्व बैंक द्वारा तैयार किया जाता है इसमे उत्पादित सम्पति , प्राकृतिक सम्पदा,मानव संसाधनों को अलग अलग मूल्य प्रदान किया जाता है
▪ ग्रीन GNP का मूल्यांकन प्रति 10 वर्ष बाद होता है
▪ हरित GDP पारम्परिक GDP का प्रति व्यक्ति कचरा व कार्बन उत्सर्जन का पैमाना है जो कितना घट या बढ़ रहा है
▪ 1999 से भारत मे पर्यावरण के लेखांकन का इतिहास प्रारम्भ हुवा जिसमे CSO द्वारा डवलपमेंट इंडेक्स आफ इन्वायरमेंट स्टैटिकस (FDES) के लिए एक फ्रेमवर्क तैयार किया गया
▪ Note विश्वबैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की GDP का लगभग 8.5% (550 अरब डॉलर) नुकसान उठाना पड़ रहा है
NDP = Net Exports + Final Consumption (C) + Net Investment (I)
◆ 3.IS-LM Model – Relative effectiveness of Monetary and Fiscal Policy
▪IS - LM मॉडल आय व ब्याज दर का निर्धारण करता है
▪यहा पर IS वक्र वस्तु बाजार संतुलन को बताता है जिसमे निवेश = बचत बराबर होती है (I=S)
▪यहा पर LM वक्र मुद्रा बाजार में संतुलन को बताता है जिसमे मुद्रा की मांग =मुद्रा की पूर्ति बराबर होती है (L=M)
▪ हिक्स हेनसन का समन्यवित रूप दोनो मॉडलों का समन्वित रूप IS-LM मॉडल है
▪वस्तु बाजार संतुलन व मुद्रा बाजार संतुलन बराबर हो तब सामान्य संतुलन होगा
▪IS वक्र "प्रवाह " को बताता है (यह बचत व निवेश के सम्बन्ध को बताता है)
▪LM वक्र मौद्रिक प्रवाह के स्टॉक चरो के संतुलन को बताता है
▪ IS -LM माडल आय व ब्याज का श्रेठ मॉडल है जो मौद्रिक व वित्तिय नीतियों को समझाने में सहायक है
● IS वक्र :-
▪IS वक्र ब्याज व आय के उन सहयोगों को दर्शाता है बचत व विनियोग बराबर हो
▪ IS वक्र ऋणात्मक ढाल वाला होता है IS वक्र वास्तविक क्षेत्र को बताता है
▪ IS वक्र का ढाल II वक्र के ढाल पर निर्भर करता है
▪अगर सरकार खर्चो में वृद्धि व करो में कमी करती है तो IS वक्र दाई तरफ विवर्तित हो जाता है यह वास्तविक क्षेत्र को बताता है
▪ IS वक्र बाई तरफ होगा तो विनियोग बचत से ज्यादा व दाई तरफ होगा तो बचत विनियोग से ज्यादा होगा
▪ किन्स रेंज केवल राजकोषीय नीति पर कार्य करती है
● LM वक्र
▪LM वक्र. आय व ब्याज के उन सयोगों को बताता है जहां पर मुद्रा की मांग पर मुद्रा की पूर्ति बराबर होती है
▪LM वक्र धनात्मक ढाल वाला होता है यह मुद्रा की तरलता पर निर्भर करता है
▪मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि में दाई तरफ विवर्तित होता है तथा कमी पर बाई तरफ विवर्तित होता है
▪LM वक्र का ढाल उदग्र सीधा(पूर्णतया बेलोचदार) में केवल मौद्रिक नीति कार्य करती है जबकि LM वक्र क्षेतिज होने की स्थति में नहीं करती (राजकोषीय नीति कार्य करती है)
▪ LM वक्र को तीन रेंज में बाटा गया है १.किन्स रेंज २. मध्यवर्ती रेंज ३.क्लासिक रेंज
▪LM वक्र मौद्रिक क्षेत्र बताते है
● हिक्स हेनसन का आधुनिक ब्याज का सिद्धांत है इसमे मुद्रा की मांग व पूर्ति बराबर होती है व बचत व विनियोग बराबर होते है
[S=I=Md=Ms]
▪ मुद्रा की पूर्ति बढ़ने पर ब्याज घटेगा व विनियोग बढ़ेगा
▪IS वक्र तथा LM वक्र दोनों की सहायता से हम ब्याज की दर तथा आय-स्तर का निर्धारण कर सकते हैं
▪IS वक्र राजकोषीय नीति के परिवर्तन पर निर्भर करता है
▪LM वक्र मौद्रिक नीति में परिवर्तन पर निर्भर करता है
® ब्याज दर व राष्ट्रीय आय का निर्धारण
IS वक्र में
- उपभोग बढ़ेगा तो दाई तरफ विवर्तन होगा
- उपभोग घटेगा तो बाई तरफ विवर्तन होगा [ढाल ऋणात्मक]
LM वक्र में -
- आय बढ़ने पर ब्याज घटता है - विनियोग बढ़ता है
- आय घटने पर ब्याज बढ़ता है - विनियोग घटता है
🔝 LM मौद्रिक नीति पर प्रभाव बताता है
🔝 IS राजकोषीय नीति में परिवर्तन पर निर्भर है
◆ 5.मुण्डेल फ्लेमिंग मॉडल (1960)
▪ मुण्डेल फ्लेमिंग मॉडल IS-LM मॉडल का विस्तृत रूप है
▪मुण्डेल फ्लेमिंग मॉडल पूर्ण पूजी गतिशीलता व निरपेक्ष लोचदार विनिमय दर वाली खुली अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति व राजकोषीय नीति का विश्लेषण करता है
▪ मान्यताएं छोटी खुली अर्थव्यवस्था है जिसमें पूजी की गतिशीलता है
▪अर्थव्यवस्था में ब्याजदर का निर्धारण विश्व ब्याज दर पर होता है
▪अगर विश्व मे ब्याज दर ज्यादा तो घरेलू मुद्रा विदेशो में चली जायेगी और अगर घरेलू ब्याज दर ज्यादा होगी तो वापस आ जायेगी
● परिवर्तनशील विनिमय दर के अंतर्गत
राजकोषीय नीति
मौद्रिक नीति
व्यापार नीति
■ राजकोषीय नीति में विस्तार :-
- विस्तारवादी राजकोषीय नीति के कारण IS वक्र बाई तरफ़ हो जाता है
- उपचार - सरकार सरकारी व्यय बढ़ाये व कर घटाये तब IS वक्र दाई तरफ विवर्तित हो जाती है
-विनिमय बढेगा तो ब्याज बढ़ेगा विदेसी मुद्रा स्वदेश में आ जाती है जिससे विनिमय दर में वर्द्धि
■ मौद्रिक नीति
▪मौद्रिक नीति के परिणाम स्वरूप आय बढ़ेगी व विनिमय दर घटेगी ब्याज दर घटेगी तब हमारी मुद्रा विदेश में चली जायेगी
मुद्रा सप्लाई बढ़ेगी - ब्याज घटेगा - इसलिए विनिमय दर घटेगी
:- हमारी मुद्रा विदेश में चली जायेगी
■ व्यापर नीति
▪व्यापार नीति के परिणामस्वरूप (सरकार आयात, कोटा,प्रशुल्क ) लगाकर व्यापर पर नियंत्रण करता है तब निर्यातों में वृद्धि होती है जिससे IS वक्र दाएं औरविवर्तित हो जाता है
● स्थीर विनिमय दर की स्थिति में
■ राजकोषीय नीति -
▪जब सरकार व्यय में वृद्धि व करो में छूट देती है तो विनिमय दर में वृद्धि होती है इससे IS वक्र दाहिनी तरफ विवर्तन हो जाता है
▪केंद्रीय बैंक इस दर को स्थीर रखने के लिए मुद्रा की पूर्ति को बढ़ाकर विनिमय दर स्थीर रखा जाता है
- व्यय बढ़ेगा - विनिमय बढ़ेगा - IS वक्र दाहिनी तरफ विवर्तन [तब मुद्रा पूर्ति को बढ़ाकर विनिमय दर को स्थीर किया जाता है
■ मौद्रिक नीति
▪मुद्रा की सप्लाई बढ़ाने पर विनिमय दर में कमी आती है इसे स्थीर रखने हेतु मुद्रा की सप्लाई में कमी करनी पड़ती है ताकि विनिमय दर वही बनी रहे
▪केंद्रीय बैंक विदेशी विनिमय बाजार से मुद्रा खरीदने लगता है तब LM वक्र बाई तरफ विवर्तन हो जाता है
▪विनिमय दर को स्थीर रखकर मुद्रा सप्लाई में कमी तभी विनिमय दर स्थीर रहती है
■ व्यापार नीति
▪जब सरकार कोटा,प्रशुल्क लगाकर आयात पर प्रतिबन्ध लगाती है तो निर्यात में विसुद्ध वृद्धि.होती है इससे IS वक्र दाई तरफ विवर्तन करती है
▪इसे स्थीर रखने हेतु केंद्रीय बैंक विदेसी बाजार में घरेलू मुद्रा को बेच कर स्थिरता लाएगा जिससे LM वक्र दाई तरफ विवर्तित हो जाता है
◆ 6 व्यापार चक्रीय सिद्धात : प्रतिचक्रिय नीति
▪ व्यापार चक्र आर्थिक क्रियाओं का उतार चढ़ाव है जो नियमित क्रम में उत्पन्न होता है तथा क्रम में समाप्त होता है
▪ व्यापार चक्र [कुल रोजगार + आय + उत्पादन +कीमत स्तरों की आव्रती ] के उतार चढ़ाव से सम्बंधित है
▪ गुणक व त्वरक की पारस्परिक क्रिया के कारण व्यापार चक्र पैदा होते है
▪ व्यापार चक्रों को ट्रेड साइकल कहते है अमेरिकी अर्थशास्त्री ने बिजनिस साइकल तथा प्रो ली ने भ्रामक सब्द कहा है
● सुपिटियर ने व्यापार चक्रों की चार अवस्था बताई है :-
1.समृधि अवस्था
2.प्रतिसार अवस्था
3.अवसाद अवस्था (जहा आय व रोजगार के स्तर घटता है 1930 कि मंदी)
4.पुनरोद्धार अवस्था
● व्यापार चक्र के प्रकार (3 प्रकार के होते है)
1.प्रमुख चक्र (9 से 10 वर्ष) क्लीमेंट जगलर ने 1862 में
2.लघु चक्र (40 माह से साढ़े तीन साल) जोसेफ किचन ने
3.दीर्घ चक्र (50 वर्ष) क्रान्तिफ ने
■ हिक्स का व्यापार चक्र (1950)
▪ book - ए कंस्ट्रक्शन टू थ्योरी आफ ट्रेड साइकल
▪ व्यापार चक्र गुणक व त्वरक के परस्पर क्रिया के कारण उतपन्न होते है
▪ हिक्स ने दो सीमाओं के मध्य व्यापार चक्रों को पैदा होने को मानता है (उच्य सिमा-निम्न सिमा)
▪ हिक्स ने अपने मॉडल में विकास पथ को शामिल किया है
▪व्याख्या :- प्रारम्भ में गुणक व त्वरक समलित रूप में कार्य करता है ,अविष्कार का प्रभाव से उच्य सिमा की तरफ बढ़ता है तब गिरावट में त्वरक काम नहीं करता इसके बाद विनियोग से आय बढ़ेगी तो वापस ऊपर चला जायेगा
▪ हिक्स ने व्यापार चक्रों को अल्पकालिक उतार चढ़ाव से स्पष्ठ किया साथ ही विकास प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाई
▪ वर्तमान उपभोग पिछली आमदनी पर निर्भर करता है [Ct =ay t-1]
■ सेम्युलसन का व्यापार चक्र
▪ यह गुणक व त्वरक की अंतर्क्रिया पर आधारित है
▪ आर्थिक क्रियाओं के विश्लेषण में गुणक व त्वरक के प्रभाव को अलग नही किया जा सकता
▪Book द रिव्यू आफ एकॉनॉमिस स्टेटिक्स
1.वर्तमान समय की आय :-
Yt = Ct + It + Gt
वर्तमान समय की आय = उपभोग पर व्यय + प्रेरित विनियोग व्यय + सरकारी व्यय का परिणाम है
2.वर्तमान समय का उपभोग व्यय =पिछली आय पर निर्भर है
Ct = a Yt-1
Ct =वर्तमान समय का उपभोग व्यय
Yt-1 =पिछली आय पर निर्भर है
a =स्वचलित उपभोग
3.विनियोग उपभोग [It =B (Ct-Ct_1)]
B त्वरक गुणाक है
◆ सेम्युलसन ने पांच उतार चढ़ाव बताए है
1.चक्रहीन पथ - केवल गुणक पर आधरित है त्वरक काम नही करता
2.परिमदित चक्रीय पथ - प्रारम्भ में बड़े बाद में क्रम से छोटे
3.प्रतिमन्दित - नियमित उतार चढ़ाव
4.प्रतिमन्दित विस्फोटक - प्रारम्भ में छोटे बाद में क्रम से बड़े
5.चक्रहीन विस्फोटक अवस्था - उर्द्धगामी
■ कोलडोर का व्यापार चक्र
▪ कोलडोर ने व्यापर चक्र को बचत व विनियोग द्वारा समझाया था
▪ रेखीय स्थिति में व्यापार चक्र उत्तपन्न नही होते चक्रों के लिए रेखीय होना आवश्यक है
▪ I विनियोग व S बचत रेखा द्वारा समझाया है इनके मध्य स्थिरता बिंदु वहां होगा जहा विनियोग वक्र (I) बचत वक्र (S) को ऊपर से काटे
▪ कोलडोर ने दो अवस्था बताई एक साम्य की व एक असंतुलन की
◆ प्रतिचक्रिय नीतियां
ये व्यापार चक्रों को नियंत्रित करने हेतु बनाई जाती है
1.राजकोषीय नीति में (सरकार बनाती है)
- बजट नीति
- कर नीति
- सार्वजनिक व्यय नीति
- सार्वजनिक ऋण नीति का प्रयोग किया जाता हैं
▪ राजकोषीय नीति में कमियां -
मंदी का अनुमान नहीं लगा सकती
नीतियों को प्रतिदिन नही बदला जा सकता
जल्दी योजना नही बनाई जा सकती
दो धारी तलवार है
2.मौद्रिक नीति (बैंक नियंत्रण करता है)
▪ बैंक दर नीति
▪ खुले बाजार की क्रिया
▪ नगद कोषानुपत में परिवर्तन
3.भौतिक नियंत्रण (कीमत समर्थन नीति, कीमत नियंत्रण, राशनिंग आय द्वारा)
◆ 7. Growth Models –
● Lewis model ( लेविस मॉडल )
▪ श्रम की असीमित पूर्ति के सिद्धांत लुइस ने दिया
▪ एकॉनॉमिस डवलपमेंट विद अनलिमिटेड सप्लाइ ऑफ लेबर 1954 में दी
▪ अर्थव्यवस्था में अधिक विकास बचत के परिणाम स्वरूप होता है एक स्थति के बाद बचत खत्म होने पर रुक जाता है
▪ यह मॉडल श्रम अधिकता वाले देशों की विकास प्रक्रिया पर लागू किया गया था उदहारण भारत
▪ इस मॉडल को डुआलिस्टिक एकॉनॉमिक मॉडल भी कहते है
▪ मॉडल को दो भागों में बांटा (जीवन निर्वाह क्षेत्र व पूंजीवादी आधुनिक क्षेत्र उधोग)
▪यह मॉडल अल्पविकसित देशों में इसमे लुइस ने माना कि जीवन निर्वाह क्षेत्र में श्रम की असीमित पूर्ति होती है
▪ श्रम की अधिकता अदृश्य बेरोजगारी उत्पन्न करती है
▪ लुइस का मोड़ बिंदु वह है -
जहाँ पूंजीवादी क्षेत्र में मजदूरी बढ़ने लगे
जीवन निर्वाह क्षेत्र में अतिरिक्त श्रम का प्रयोग उधोगों में लिया जाने लगे
- औधोगिक क्षेत्र का अतिरिक्त (बचत) जहा समाप्त हो जाएगा विकास वही रूक जाएगा
▪ लुइस के अनुसार आर्थिक विकास - पूजी निर्माण के लिए बचत की आवश्यकता होती है ताकि पुनर्निवेश किया जा सके
▪लुइस के अनुसार पूंजीवादी क्षेत्र में लाभ इसलिए अधिक होता है क्योंकि श्रम की उत्पादिता ,मजदूरी दर से अधिक होती है
▪ अल्पविकसित देशों में अधिक आय वाले 10% लोग राष्ट्रीय आय का 30% बचत करते है
◆ हैरेड डोमर मॉडल (Harrod-Domar model)
▪ H.D मॉडल किन्सवादी मॉडल का प्रायोगिकी मॉडल है जो दीर्घकालीन समस्याओं को ध्यान केंद्रित करता है
▪H.D स्थीर संवृद्धि की समस्या पर विचार किया है इनका मुख्य उद्देश्य उन दशाओं का पता लगाना है जो मंदी व स्फीति के बिना पूर्ण रोजगार में सतत वृद्धि की समस्या पर विचार है
■ हैरोड मॉडल (1939)
▪ फारवर्ड आ डायनामिक एकोनिमिस में अपना सिद्धात प्रतिपादित किया
▪ हेरेड के अनुसार " प्रायोगिक साम्य को उत्तपन करना ही विकास है" विकास प्रक्रिया में पूजी संचय की प्रमुख भूमिका है
▪हेरेड ने गुणक व त्वरक की क्रियाशीलता द्वारा विकास का प्रायोगिकी सिद्धात दिया
▪ हेरेड के अनुसार - प्रायोगिकी साम्य उतपन्न करना ही साम्य है
■ हेरेड का मॉडल तीन वृद्धि दरों पर निर्भर है
▪G -वास्तविक वृद्धि दर
(वह दर जिस पर देश विकास कर रहा है G =S /C अर्थात बचत अनुपात /पूजी अनुपात)
▪ GW - अभीष्ट/आवश्यक वृद्धि दर ( आय की पूर्ण क्षमता बताती है Gw =S / Cr अर्थात सीमांत बचत प्रवर्ति /पूंजी उत्पादन अनुपात)
▪GN - प्राकृतिक वृद्धि दर (इस दर पर पूर्ण रोजगार बना रहता है)
▪सतत विकास की स्थति के लिए दोहरी पूरी होनी चाइए
G =GW या
C=CN आवश्यक है
▪पूर्ण रोजगार की स्थति के लिए :-
G =GW =GN की दशा पूरी होनी चाइए हेरेड ने इस समस्या को छुरी धार समस्या कहा है
▪यदि G > Gw - वास्तविक पूजी कम -आवश्यक पूजी से (तब दीर्घकालीन स्फीति उत्पन्न)
▪यदि G < Gw - वास्तविक पूजी अधिक - आवश्यक पूजी से (दीर्घकालीन मंदी)
▪ G = Gw पूर्ण रोजगार में साम्य
▪ यदि Gw > Gn (तब दीर्घकालीन गतिहीनता)
▪ यदि Gw < Gn (तब दीर्घकालीन स्फीति)
▪ यह आय की विकास प्रक्रिया को सर्वाधिक महत्व देता है व बचत व पूर्ति में साम्य स्थापित करता है
■ डोमर मॉडल (1946)
▪ डोमर ने रोजगार को आय एवम उत्पादन क्षमता के अनुपात का फलन माना है
▪राष्ट्रीय आय में वृद्धि होने पर उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है इसलिए निवेश इतना होना चाइए की आय व उत्पादन में समान वृद्धि.हो
▪ मांग व पूर्ति में समन्वय करके निवेश ढूढने का प्रयास किया है
▪यह विनियोग को सर्वाधिक महत्व देता है ∆I /Y विकास दर है यह गुणक के परिणाम स्वरूप है
▪यह आय व उत्पादन क्षमता का अनुपात फलन है
■ H.D मॉडल में असमानता
1.H विकास प्रक्रिया को महत्व देता है जबकी D विनियोग को सर्वाधिक महत्व देता है
2.हेरेड बचत की मांग व पूर्ति में साम्य स्थापित करता है डोमर विनियोग की मांग व पूर्ति में साम्य स्थापित करता है
3.सीमांत पूजी उत्पादन का का उपयोग करता है जबकि डोमर अनुपात का व्युत्क्रम है
4.हेरेड ने पूजी उत्पादन अनुपात में त्वरक का उपयोग किया है डोमर ने गुणक का प्रयोग किया है
5.हेरेड विकास चक्रों को अनिवार्य माना जबकि डोमर ने स्वीकार नही किया
6.हेरेड ने विकास की तीन दर (G,Gw,Gn) बताई जबकि डोमर ने ∆I /Y सिग्मा विकास की दर को बताया है
◆ कोलडोर का आर्थिक वृद्धि का मॉडल
▪ कोलडोर ने विकास वितरण का मॉडल प्रस्तुत किया है
▪ कोलडोर ने बचत व आय अनुपात को परिवर्तनशील बनाने का प्रयत्न किया है
▪कोलडोर ने मॉडल में तीन धारणाओं (बचत,निवेश, तकनीकी की प्रगति) का समावेश किया है
▪ मॉडल के निर्धारक तत्वों में बचत-आय अनुपात ,प्रावधिक प्रगती व जनसंख्या को शामिल किया है
▪ स्थीर कार्यशील जनसंख्या कुल वास्तविक आय का अनुपातिक वृद्धि दर प्रतिव्यक्ति उत्पादन की आनुपातिक वृद्धि दर के बराबर है
▪ इसमे विकास की अवधारणा तकनीकी प्रगति फलन पर आधारित है
▪कोलडोर ने आय व वितरण के समष्टिगत सिद्धात का प्रतिपादन किया
▪ I/Y विनियोग व आय स्तर स्थीर रहता है तथा बचत व आय अनुपात स्थीर दर से बढ़ता है
◆ सोलो का दीर्घकालीन वृद्धि मॉडल (1956)
▪ शोलो का मानना है कि - उत्पादन की दर (Yt) ही वास्तविक आय को प्रकट करती है जो शेष बचता है उसे निवेश कर लिया जाता है
▪ शोलो ने नव प्रतिष्टित मॉडल हेरेड डोमर के विकल्प में प्रस्तुत किया है यह आर्थिक सवृद्धि का दीर्घकालीन मॉडल है
▪ हेरेड डोमर मॉडल की " छूरिधार समस्या का समाधान है " सोलो मॉडल है यह समस्या श्रम व पूजी अनुपात के कारण होता है इनको एक दूसरे की जगह प्रतिस्थापित कर इस समस्या से बचा जा सकता है
▪ बाजार में एकमात्र वस्तु "उत्पादन" को मानकर चलता है
▪पूंजीपतियों की बजाय मजदूरों की MPS अधिक है इस कारण मजदूरों की सीमांत बचत प्रवर्ति कम होती है
▪ विनियोग उत्पादन अनुपात एक स्वतंत्र चर है
▪ इस सिद्धात में कहा गया है कि पूंजीपतियों की बचत बढ़नी चाइए ताकि विनियोग कर सके
▪ इसके विपरीत मजदूर को बचत दी जाए तो उसका उपभोग कर जाएगा जिससे आर्थिक विकास नही हो पाता है इसलिए पूंजीपतियों की बचत बढ़ जानी चाइए
▪ बचत को परिवर्तनशील बना दिया जाना चाइए इससे विकास होगा लाभ बढ़ेगा जिससे अर्थव्यवस्था स्थिर आएगी
▪ I / Y को बढ़ाकर बचतों को बढ़ा सकते है यह सिद्धात वितरण का है
S = f ( y)
▪शोलो का मूल समीकरण K = Sf [K,Loe nt]
▪शोलो का आधारभूत समीकरण r 1 = sf (r,1) -nr
●8 .प्रतिपगमन विश्लेषण
▪प्रतिपगमन सब्द का प्रयोग 1817 में सर फ्रांसीसी गॉल्टन द्वारा किया गया था
▪सब्द का अर्थ वापस लौटना है /पीछे हटना है
▪एक चर मूल्य द्वारा दूसरे चर मूल्य का पूर्वानुमान लगया जा सके इस विधि को प्रतिपगमन कहते है
▪ यह आर्थिक व व्यवससिक जगत में प्रतिपगमन की अत्यधिक उपयोगिता है
▪ प्रतिपगमन की सहायता से चर मूल्यों में सहसम्बन्ध की मात्रा व दिशा का माप किया जा सकता है
◆ प्रतिपगमन रेखाएं
▪एक श्रेणी के पारस्परिक माध्य सम्बन्ध को प्रकट करने वाली सर्वोपुक्त रेखाओं को प्रतिपगमन रेखा कहते है
▪दो सम्बंधित श्रेणियों के लिए दो प्रतिपगमन रेखाएं होती है
एक X on Y
दूसरी Y on X
▪वे प्रतिपगमन रेखा श्रेष्ठ होती है जिसकी रचना न्यूतम वर्ग की मान्यता के आधार पर होती है
▪न्यूतम वर्ग द्वारा खिंची जाने वाली रेखा ऐसी होनी चाइए जिससे विभिन्न बिंदुओं के विचलन वर्गों का जोड़ न्यूतम हो
▪ दो श्रेणियों में पूर्ण सहसम्बन्ध - तब होगा जब X और Y के मध्य एक ही प्रतिपगमन रेखा होती है (यह नियम का अपवाद है)
■प्रतिपगमन रेखाओं के कार्य
1.सर्वोपुक्त अनुमान लगाना - एक श्रेणी के मुल्योंके आधार पर दूसरी श्रेणी का अनुमान लगाया जा सकता है
X on Y प्रतिपगमन रेखा से X का
Y on X प्रतिपगमन रेखा से Y का अनुमान लगाया जाता है
2.सहसम्बन्ध की मात्रा व दिशा का ज्ञान होता जे
- धनात्मक :- बाए से दाएं ऊपर की तरफ
- ऋणात्मक :- बाए से ऊपर से नीचे
- पूर्ण सहसम्बन्ध :- सीधी रेखा
- सहसम्बन्ध अभाव :- 90° पर काटे
- सीमित सहसम्बन्ध :- जितना निकट होगा सहसम्बन्ध उतना अधिक होगा
▪ प्रतिपगमन गुणाक को समान्तर माध्य सहसम्बन्ध गुणाक से (bxy +byx / 2) > r
▪ दो रेखाएं 90° पर काटती है तो X और Y के मध्य सहसम्बन्ध शून्य (0) होगा
▪ परस्पर लम्ब तो r =0 होगा
■ विकास की अवधारणा - वास्तविक आर्थिक विकास दर वह दर है जिस पर देश का सकल घरेलू उत्पाद एक वर्ष में होता है
▪GVA सकल मूल्य वर्धन 4.3 %रही
■ 9. Liberalization [उदारीकरण]
▪उदारीकरण (Liberalization) क्या है?
अर्थ: उदारीकरण वह आर्थिक सुधार है जिसका उद्देश्य भारतीय व्यापार और उद्योग को सभी अनावश्यक नियंत्रणों और प्रतिबंधों से मुक्त करना था। वे लाइसेंस-परमिट-कोटा राज के अंत का संकेत देते हैं
▪ भारत में आर्थिक उदारीकरण 24 जुलाई 1991 के बाद से शुरू हुआ
▪भारत में आर्थिक सुधारों की प्रथम एवं व्यापक स्तर पर पाई जाने वाली नीति 1991 की औद्योगिक नीति थी। इस नीति में आर्थिक सुधारों की तीन प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया था- उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण
▪तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने आर्थिक सुधारों प्रक्रिया शुरू की डॉ मनमोहन सिंह ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, तब भारत सरकार के वित्त मंत्री थे
▪सरकार केवल 6 उधोगों के लिए अनिवार्य लाइसेंस के तहत उद्योगों की संख्या कम हो।
▪नीति को उदार बनाया गया था विदेशी इक्विटी भागीदारी की हिस्सेदारी बढ़ गया था और कई गतिविधियों में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ( एफडीआई) की अनुमति दी थी।
▪उदारीकरण का सबसे ज़्यादा सकारात्मक प्रभाव सेवा क्षेत्र पर दिखाई देता है।
▪वर्तमान में जीडीपी का अधिकांश हिस्सा इसी क्षेत्र से आता है। भारत सॉफ्टवेयर सेवा, पर्यटन सेवा, चिकित्सा सेवा इत्यादि के लिये आदर्श स्थल बन चुका है
▪बी.पी.ओ. के क्षेत्र में भी भारत अग्रणी
■ Privatization
निजीकरण और वैश्वीकरण
निजीकरण के रूप में अच्छी तरह से निजी क्षेत्र के लिए व्यापार और सेवाओं और सार्वजनिक क्षेत्र (या सरकार) से स्वामित्व के हस्तांतरण में निजी संस्थाओं की भागीदारी को दर्शाता है।
वैश्वीकरण की दुनिया के विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं के समेकन के लिए खड़ा है।
निजीकरण निम्न सुविधाओं की विशेषता थी:
राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के लिए एक कम भूमिका को बड़ी भूमिका देने के उद्देश्य से आर्थिक सुधारों के नए सेट।
इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार 1991 की नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका को नई परिभाषा दी
■ वैश्वीकरण
▪वैश्वीकरण पहले से ही सरकार द्वारा शुरू किए गए उदारीकरण और निजीकरण की नीतियों का नतीजा है।
▪वैश्वीकरण आम तौर पर दुनिया की अर्थव्यवस्था के साथ देश की अर्थव्यवस्था के एकीकरण करना है
▪यह अधिक से अधिक निर्भरता और एकीकरण की दिशा में दुनिया को बदलने के उद्देश्य से कर रहे हैं कि विभिन्न नीतियों के सेट का नतीजा है।
▪यह आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक सीमाओं से परे नेटवर्क और गतिविधियों का निर्माण शामिल है।
▪वैश्वीकरण वैश्विक अर्थव्यवस्था के विभिन्न राष्ट्रों के बीच बातचीत और परस्पर निर्भरता का एक बढ़ा स्तर शामिल है।
◆ 10. हेक्शर-ओहलीन सिद्धात
▪हेक्शर-ओहलीन सिद्धात को व्यापार का आधुनिक सिद्धात कहते है
▪सामान्य संतुलन का सिद्धांत / साधन सम्पनता का सिद्धांत भी कहते है
▪तुलनात्मक लागत सिद्धात का मानना है कि दो देशों में व्यापार लागतो में तुलनात्मक अंतर के कारण होता है
▪हेकचर ओहलीन कहते है दो देशों में व्यापार वस्तुओं के लागत में सापेक्षित अंतर के कारण उत्पन्न होता है
▪तुलनात्मक लागतो में अंतर का कारण
1.- दो देशों में कीमतों में सापेक्षित अंतर के कारण
2.- उत्पादन साधनों आवश्यकता में भिन्नता के कारण
▪ हेक्सचर ओहलीन ने समझाया कि लागतो में अंतर क्यो होता है जो रिकार्डो नही समझा पाए थे
▪अंतरराष्ट्रीय व्यापार तुलनात्मक लाभ में अंतर के कारण होता है
▪साधनों में सम्पनता के कारण लागतो में अंतर आता है जिससे अंतराष्ट्रीय व्यापार होता है
▪अंतरराष्ट्रीय व्यापार अन्तरक्षेत्रीय व्यापार का एक रूप है
▪ भौतिक मापदण्ड (K/L)A > (K/L)B साधनों की मात्रा को शामिल किया जाता है
▪मूल्य मापदण्ड (L/K)B > (L/K)A
▪ ओहलीन की पुस्तक "इंटर रीजनल एंड इंटरनेशनल ट्रेड" में समझाया है
▪दो देशों के मध्य व्यापार साधनों की भिन्नता के कारण होता है 2 साधन ×दो देश ×दो वस्तु का मॉडल है
◆11.वर्तमान व्यापार नीति
▪विदेसी व्यापार अधिनियम (विकास एवम विनिमय )1992 की धारा 5 में प्रावधान है
▪ विदेशी व्यापार नीति का प्रमुख उद्देश्य निर्यातों को प्रोत्साहन करना व आयातों को प्रतिस्थापित करना है
▪ भारत सरकार के वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने 2015-2020 की अवधि के लिए 01 अप्रैल 2015 को नई विदेश व्यापार नीति की घोषणा की,
▪इससे पहले इस नीति को निर्यात आयात (एक्ज़िम) नीति के रूप में जाना जाता था।
●भारत की नई विदेश व्यापार नीति 2015-2020
▪इसके अंतर्गत दो नई योजनाओं 'भारत से वस्तु निर्यात योजना' और 'भारत से सेवा निर्यात योजना' का शुभारम्भ भी किया गया है
1.भारत से वस्तु निर्यात योजना ( Merchandise Exports from India Scheme-MEIS)
2.भारत से सेवा निर्यात योजना ( Services Exports From India Scheme- SEIS )
▪MEIS का उद्देश्य - विशेष बाजारों को विशेष वस्तुओं का निर्यात करना है
▪SEIS का उद्देश्य - अधिसूचित सेवाओं का निर्यात बढ़ाना है।
▪इसके तहत पात्रता और उपयोग के लिए अलग-अलग शर्तें रखी गई हैं इन योजनाओं के तहत जारी की जाने वाली किसी भी स्क्रिप (पावती-पत्र) के लिए कोई शर्त नहीं रखी गई है।
▪MEIS और SEIS के तहत जारी की जाने वाली Duty credit scrip और इन स्क्रिप के एवज में आयात की जाने वाली वस्तुएं पूरी तरह से हस्तांतरण योग्य हैं।
▪ MEIS के तहत इनाम देने के लिए देशों को तीन समूहों में श्रेणीबद्ध किया गया है
▪ MEIS के तहत इनाम की दरें 2 से लेकर 5 फीसदी तक हैं।
▪ SEIS के तहत चुनिंदा सेवाओं को 3% और 5% की दर पर पुरस्कृत किया जाएगा।
● लाभ ( Benefit OF FTP )
▪विदेश व्यापार नीति आने वाले वर्षो में भारत के नियंत्रण व्यापार को बढ़ावा देने में मददगार साबित होगी।
▪वर्ष 2020 तक विश्व व्यापार में भारत एक महत्वपूर्ण भागीदार होगा।
▪विश्व व्यापार में भारत का निर्यात हिस्सा दो प्रतिशत से बढ़ाकर 3.5 प्रतिशत पर पहुंचाया जाएगा।
▪विदेश व्यापार नीति से देश में एसईजेड के विकास को नई गति मिलेगी।
● भारत मे विदेसी व्यापार नीति 2015-20
▪निर्यातों को प्रोत्साहन व आयतों को प्रतिस्तापित करना उद्देश्य है अब तक 6 नीतियां बनी
24 जुलाई 1991 को प्रथम बार नीतियां बनाई
➖1992-97
➖1997-02
➖2002-07(बीच मे बन्द)
➖2004-09
➖2009-15
➖2015-20 अब तक 6 नीति लागू
● प्रमुख घोषणा
1.निर्यात व्यापार 900 अरब डॉलर सालाना (व्यापार 2% से बढ़ाकर 3.5% करना)
2.वस्तुगत निर्यातों को बढ़ाने के लिए 5 स्किमो की जगह एक स्किम MEIS जो निर्यात 2% से बढ़ाकर 5%का लक्ष्य है
3.सेवाओ के निर्यात हेतु SEIS का गठन जो 3% से बढ़कर 5%लक्ष्य है(service export from India same)
4.पहले 33 टाउन ऑफ एक्सपोर्टऐक्सेलन थे इसमे बढ़ाकर संख्या 35 कर दी गई (विशाखापत्तनम,भिमावरम (आंध्रप्रदेश)
▪राजस्थान में 4 है जयपुर, जोधपुर, बाड़मेर व भीलवाड़ा
5.निर्यातों को बढ़ावा देने के लिए दो नए पोर्ट बनाये
▪कालीकट पोर्ट(केरल)
▪अरकोनम पोर्ट(तमिलनाडु)
6.निर्यात हाउसों को 5 स्टारों में बाटा गया है
★ upto 30 लाख
★★ 30 लाख से 2.5 करोड़
★★★2.5-10 करोड़
★★★★10 से 50 करोड़
★★★★★50 से 200 करोड़
7.केंद्र व राज्य सरकार सयुक्त निर्यात प्रोत्साहन योजना मिशन लागू
8.स्किल इंडिया ,मेक इन इंडिया,डिजिटल इंडिया को इसमे समाहित
◆ 12. पर्यावरण और आर्थिक विकास का सम्बंध
▪धारणीय विकास वह है जो भावी पीढ़ी की आवश्यकता को पूरी करने की क्षमता को क्षति पहुचाये बिना वर्तमान आवश्यकता को पूरा करे
▪संधारणीय विकास अथवा टिकाऊ विकास (Sustainable Development), विकास की वह अवधारणा है जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुचाये बिना, भावी पीढ़ी को ध्यान मे रखकर वर्तमान विकास दर जारी रखना
■ वैश्विक उष्णता -
▪वर्तमान में मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न ग्रीनहाउस गैसों के प्रभावस्वरूप पृथ्वी के दीर्घकालिक औसत तापमान में हुई वृद्धि को वैश्विक तापन/ग्लोबल वार्मिंग कहा जाता है
▪ग्रीनहाउस गैसें पृथ्वी से बाहर जाने वाले ताप अर्थात दीर्घतरंगीय विकिरण को अवशोषित कर पृथ्वी के तापमान को बढ़ा देती हैं, इस प्रक्रिया को ‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ कहते है
▪ग्रीन हाउस गैसों में मुख्यतः कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, ओज़ोन आदि गैसें शामिल हैं
▪1880 से 2012 की अवधि के दौरान पृथ्वी के औसत सतही तापमान में 0.85°C की वृद्धि दर्ज की गयी है
▪1906 से 2005 की अवधि के दौरान पृथ्वी के औसत सतही तापमान में 0.74±0.18°C की वृद्धि दर्ज की गयी है
▪इसी दर से धरती गरम होती रही तो वर्ष 2030 और 2052 के बीच ग्लोबल वार्मिंग का स्तर बढ़कर 1.5 डिग्री तक पहुंच सकता है
■ ओजोन अपक्षय
▪समताप मंडल में क्लोरीन व ब्रोमीन की मात्रा का बढ़ना इन योगिकों का मूल क्लोरो फ्लोरो कार्बन है
▪16 दिसम्बर विश्व ओजोन दिवस मनाया जाता है
▪16 दिसम्बर 1987 को मल्ट्रीयर सहर में कनाडा में 33 देशों का सम्मेलन हुवा जिसे मजिस्ट्रीयल प्रोटोकॉल कहा जाता है
■ चिपको आंदोलन (रैनि गांव चमोली उत्तराखंड)1973
▪1970 में भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी
▪गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था
▪प्रदूषण नियंत्रण बार्ड 1974 में स्थापना
◆ IPCC की प्रथम बैठेक 1988 जेनेवा में हुई जिसने 1990 में प्रथम जलवायु रिपोर्ट पेश की थी
◆ पृथ्वी सम्मलेन
▪सन् 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो शहर में विश्व के 172 देशों ने पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया गया था
▪इसके पश्चात सन् 2002 में दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन करके संसार के सभी राष्ट्रों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान आकर्षित करने के लिए ज़ोर दिया था।
▪ COP- 24 दिसंबर 2018 में पोलैंड के कार्टोविस में आयोजित
▪COP-25 दिसम्बर 2019 के आयोजन की जिम्मेदारी दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में स्थित चिली को सौंपी गई थी।
▪UNFCCC जलवायु परिवर्तन पर प्रथम बहुपक्षीय कन्वेंशन था।
▪वर्ष 1992 में आयोजित पृथ्वी शिखर सम्मेलन में तीन कन्वेंशन की घोषणा की गयी थी, उनमें से एक UNFCCC का उद्देश्य जलवायु तंत्र के साथ खतरनाक मानवीय हस्तक्षेप को रोकना है।
यह कन्वेंशन 21 मार्च, 1994 से प्रभाव में आया।
▪वर्तमान में 197 देशों ने कन्वेंशन को सत्यापित किया है, यही देश कॉन्फ्रेंस के पार्टीज़ (Parties of the Conference) कहलाते हैं तथा इन्हीं देशों की जलवायु परिवर्तन पर वार्षिक बैठक को COP सम्मेलन कहते हैं ।
▪UNFCCC का प्रथम COP सम्मेलन वर्ष 1995 में बर्लिन में हुआ था।
▪वर्ष 2015 में पेरिस में संपन्न हुए COP-21 में पेरिस समझौते के रूप में जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध एक नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था ने जन्म लिया जिसके प्रावधान अगले वर्ष क्योटो प्रोटोकॉल की अवधि समाप्त होने के बाद लागू हो जाएंगे।
▪सतत विकास की अवधारणा की शुरूआत 1962 में हुई जब वैज्ञानिक रॉकल कारसन ने ‘दी साइलेंट स्प्रिंग’ नामक पुस्तक लिखी।
▪ट्रांस्फॉर्मिंग आवर वर्ल्ड : द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के संकल्प को, जिसे सतत विकास लक्ष्यों के नाम से भी जाना जाता है, भारत सहित 193 देशों ने सितंबर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय पूर्ण बैठक में स्वीकार किया गया था और इसे एक जनवरी, 2016 को लागू किया गया।
Comments
Post a Comment